- Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021)
सूक्ति संग्रह
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सूक्ति
सूक्ति संग्रह
उद्देश्य और विषय
इस्राएल के राजा, दावीद के पुत्र शलोमोन की सूक्तियां:
ज्ञान और शिक्षा से परिचय के लिए;
शब्दों को समझने के निमित्त ज्ञान;
व्यवहार कुशलता के लिए निर्देश-प्राप्ति,
धर्मी, पक्षपात किए बिना तथा न्यायसंगति के लिए;
साधारण व्यक्ति को समझ प्रदान करने के लिए,
युवाओं को ज्ञान और निर्णय-बुद्धि प्रदान करने के लिए.
बुद्धिमान इन्हें सुनकर अपनी बुद्धि को बढ़ाए,
समझदार व्यक्ति बुद्धिमानी का परामर्श प्राप्त करे;
कि वह सूक्ति तथा दृष्टांत को, बुद्धिमानों की योजना को
और उनके रहस्यों को समझ सके.
याहवेह के प्रति श्रद्धा ही ज्ञान का प्रारम्भ-बिंदु है,
मूर्ख हैं वे, जो ज्ञान और अनुशासन को तुच्छ मानते हैं.
प्रस्तावना: बुद्धि को गले लगाने का प्रबोधन
पाप से संबंधित चेतावनी
मेरे पुत्र, अपने पिता के अनुशासन पर ध्यान देना
और अपनी माता की शिक्षा को न भूलना.
क्योंकि ये तुम्हारे सिर के लिए सुंदर अलंकार
और तुम्हारे कण्ठ के लिए माला हैं.
मेरे पुत्र, यदि पापी तुम्हें प्रलोभित करें,
उनसे सहमत न हो जाना.
यदि वे यह कहें, “हमारे साथ चलो;
हम हत्या के लिए घात लगाएंगे,
हम बिना किसी कारण निर्दोष पर छिपकर आक्रमण करें;
अधोलोक के समान हम भी उन्हें जीवित ही निगल जाएं,
पूरा ही निगल जाएं, जैसे लोग कब्र में समा जाते हैं;
तब हमें सभी अमूल्य वस्तुएं प्राप्त हो जाएंगी
इस लूट से हम अपने घरों को भर लेंगे;
जो कुछ तुम्हारे पास है, सब हमें दो;
तब हम सभी का एक ही बटुआ हो जाएगा.”
मेरे पुत्र, उनके इस मार्ग के सहयात्री न बन जाना,
उनके मार्गों का चालचलन करने से अपने पैरों को रोके रखना;
क्योंकि उनके पैर बुराई की दिशा में ही दौड़ते हैं,
हत्या के लिए तो वे फुर्तीले हो जाते हैं.
यदि किसी पक्षी के देखते-देखते उसके लिए जाल बिछाया जाए,
तो यह निरर्थक होता है!
किंतु ये व्यक्ति ऐसे हैं, जो अपने लिए ही घात लगाए बैठे हैं;
वे अपने ही प्राण लेने की प्रतीक्षा में हैं.
यही चाल है हर एक ऐसे व्यक्ति की, जो अवैध लाभ के लिए लोभ करता है;
यह लोभ अपने ही स्वामियों के प्राण ले लेगा.
ज्ञान का आह्वान
ज्ञान गली में उच्च स्वर में पुकार रही है,
व्यापार केंद्रों में वह अपना स्वर उठा रही है;
व्यस्त मार्गों के उच्चस्थ स्थान पर वह पुकार रही है,
नगर प्रवेश पर वह यह बातें कह रही है:
“हे भोले लोगो, कब तक तुम्हें भोलापन प्रिय रहेगा?
ठट्ठा करनेवालो, कब तक उपहास तुम्हारे विनोद का विषय
और मूर्खो, ज्ञान तुम्हारे लिए घृणास्पद रहेगा?
यदि मेरे धिक्कारने पर तुम मेरे पास आ जाते!
तो मैं तुम्हें अपनी आत्मा से भर देती,
तुम मेरे विचार समझने लगते.
मैंने पुकारा और तुमने इसकी अनसुनी कर दी,
मैंने अपना हाथ बढ़ाया किंतु किसी ने ध्यान ही न दिया,
मेरे सभी परामर्शों की तुमने उपेक्षा की
और मेरी किसी भी ताड़ना का तुम पर प्रभाव न पड़ा है,
मैं भी तुम पर विपत्ति के अवसर पर हंसूंगी;
जब तुम पर आतंक का आक्रमण होगा, मैं तुम्हारा उपहास करूंगी—
जब आतंक आंधी के समान
और विनाश बवंडर के समान आएगा,
जब तुम पर दुःख और संकट का पहाड़ टूट पड़ेगा.
“उस समय उन्हें मेरा स्मरण आएगा, किंतु मैं उन्हें उत्तर न दूंगी;
वे बड़े यत्नपूर्वक मुझे खोजेंगे, किंतु पाएंगे नहीं.
क्योंकि उन्होंने ज्ञान से घृणा की थी
और याहवेह के प्रति श्रद्धा को उपयुक्त न समझा.
उन्होंने मेरा एक भी परामर्श स्वीकार नहीं किया
उन्होंने मेरी ताड़नाओं को तुच्छ समझा,
परिणामस्वरूप वे अपनी करनी का फल भोगेंगे
उनकी युक्तियों का पूरा-पूरा परिणाम उन्हीं के सिर पर आ पड़ेगा.
सरल-साधारण व्यक्ति सुसंगत मार्ग छोड़ देते और मृत्यु का कारण हो जाते हैं,
तथा मूर्खों की मनमानी उन्हें ले डूबती है;
किंतु कोई भी, जो मेरी सुनता है, सुरक्षा में बसा रहेगा
वह निश्चिंत रहेगा, क्योंकि उसे विपत्ति का कोई भय न होगा.”
बुद्धि का मूल्य
मेरे पुत्र, यदि तुम मेरे वचन स्वीकार करो
और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में संचित कर रखो,
यदि अपने कानों को ज्ञान के प्रति चैतन्य
तथा अपने हृदय को समझदारी की ओर लगाए रखो;
वस्तुतः यदि तुम समझ को आह्वान करो
और समझ को उच्च स्वर में पुकारो,
यदि तुम इसकी खोज उसी रीति से करो
जैसी चांदी के लिए की जाती है और इसे एक गुप्त निधि मानते हुए खोजते रहो,
तब तुम्हें ज्ञात हो जाएगा कि याहवेह के प्रति श्रद्धा क्या होती है,
तब तुम्हें परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त हो जाएगा.
क्योंकि ज्ञान को देनेवाला याहवेह ही हैं;
उन्हीं के मुख से ज्ञान और समझ की बातें बोली जाती हैं.
खरे के लिए वह यथार्थ ज्ञान आरक्षित रखते हैं,
उनके लिए वह ढाल प्रमाणित होते हैं, जिनका चालचलन निर्दोष है,
वह बिना पक्षपात न्याय प्रणाली की सुरक्षा बनाए रखते हैं
तथा उनकी दृष्टि उनके संतों के चालचलन पर लगी रहती है.
मेरे पुत्र, तब तुम्हें धर्मी, बिना पक्षपात न्याय,
हर एक सन्मार्ग और औचित्य की पहचान हो जाएगी.
क्योंकि तब ज्ञान तुम्हारे हृदय में आ बसेगा,
ज्ञान तुम्हारी आत्मा में आनंद का संचार करेगा.
निर्णय-ज्ञान तुम्हारी चौकसी करेगा,
समझदारी में तुम्हारी सुरक्षा होगी.
ये तुम्हें बुराई के मार्ग से और ऐसे व्यक्तियों से बचा लेंगे,
जिनकी बातें कुटिल है,
जो अंधकारपूर्ण जीवनशैली को अपनाने के लिए
खराई के चालचलन को छोड़ देते हैं,
जिन्हें कुकृत्यों
तथा बुराई की भ्रष्टता में आनंद आता है,
जिनके व्यवहार ही कुटिल हैं
जो बिगड़े मार्ग पर चालचलन करते हैं.
तब ज्ञान तुम्हें अनाचरणीय स्त्री से, उस अन्य पुरुषगामिनी से,
जिसकी बातें मीठी हैं, सुरक्षित रखेगी,
जिसने युवावस्था के साथी का परित्याग कर दिया है
जो परमेश्वर के समक्ष की गई वाचा को भूल जाती है.
उसका घर-परिवार मृत्यु के गर्त में समाता जा रहा है,
उसके पांव अधोलोक की राह पर हैं.
जो कोई उसके पास गया, वह लौटकर कभी न आ सकता,
और न उनमें से कोई पुनः जीवन मार्ग पा सकता है.
मेरे पुत्र, ज्ञान तुम्हें भलाई के मार्ग पर ले जाएगा
और तुम्हें धर्मियों के मार्ग पर स्थिर रखेगा.
धर्मियों को ही देश प्राप्त होगा,
और वे, जो धर्मी हैं, इसमें बने रहेंगे;
किंतु दुर्जनों को देश से निकाला जाएगा
तथा धोखेबाज को समूल नष्ट कर दिया जाएगा.
बुद्धि से भलाई
मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा को न भूलना,
मेरे आदेशों को अपने हृदय में रखे रहना,
क्योंकि इनसे तेरी आयु वर्षों वर्ष बढ़ेगी
और ये तुझे शांति और समृद्धि दिलाएंगे.
प्रेम और ईमानदारी तुमसे कभी अलग न हो;
इन्हें अपने कण्ठ का हार बना लो,
इन्हें अपने हृदय-पटल पर लिख लो.
इसका परिणाम यह होगा कि तुम्हें परमेश्वर
तथा मनुष्यों की ओर से प्रतिष्ठा तथा अति सफलता प्राप्त होगी.
याहवेह पर अपने संपूर्ण हृदय से भरोसा करना,
स्वयं अपनी ही समझ का सहारा न लेना;
अपने समस्त कार्य में याहवेह को मान्यता देना,
वह तुम्हारे मार्गों में तुम्हें स्मरण करेंगे.
अपनी ही दृष्टि में स्वयं को बुद्धिमान न मानना;
याहवेह के प्रति भय मानना, और बुराई से अलग रहना.
इससे तुम्हारी देह पुष्ट
और तुम्हारी अस्थियां सशक्त बनी रहेंगी.
अपनी संपत्ति के द्वारा,
अपनी उपज के प्रथम उपज के द्वारा याहवेह का सम्मान करना;
तब तुम्हारे भंडार विपुलता से भर जाएंगे,
और तुम्हारे कुंडों में द्राक्षारस छलकता रहेगा.
मेरे पुत्र, याहवेह के अनुशासन का तिरस्कार न करना,
और न उनकी डांट पर बुरा मानना,
क्योंकि याहवेह उसे ही डांटते हैं, जिससे उन्हें प्रेम होता है,
उसी पुत्र के जैसे, जिससे पिता प्रेम करता है.
धन्य है वह, जिसने ज्ञान प्राप्त कर ली है,
और वह, जिसने समझ को अपना लिया है,
क्योंकि इससे प्राप्त बुद्धि, चांदी से प्राप्त बुद्धि से सर्वोत्तम होती है
और उससे प्राप्त लाभ विशुद्ध स्वर्ण से उत्तम.
ज्ञान रत्नों से कहीं अधिक मूल्यवान है;
आपकी लालसा की किसी भी वस्तु से उसकी तुलना नहीं की जा सकती.
अपने दायें हाथ में वह दीर्घायु थामे हुए है;
और बायें हाथ में समृद्धि और प्रतिष्ठा.
उसके मार्ग आनन्द-दायक मार्ग हैं,
और उसके सभी मार्गों में शांति है.
जो उसे अपना लेते हैं, उनके लिए वह जीवन वृक्ष प्रमाणित होता है;
जो उसे छोड़ते नहीं, वे धन्य होते हैं.
याहवेह द्वारा ज्ञान में पृथ्वी की नींव रखी गई,
बड़ी समझ के साथ उन्होंने आकाशमंडल की स्थापना की है;
उनके ज्ञान के द्वारा ही महासागर में गहरे सोते फूट पड़े,
और मेघों ने ओस वृष्टि प्रारंभ की.
मेरे पुत्र इन्हें कभी ओझल न होने देना,
विशुद्ध बुद्धि और निर्णय-बुद्धि;
ये तुम्हारे प्राणों के लिए संजीवनी सिद्ध होंगे
और तुम्हारे कण्ठ के लिए हार.
तब तुम सुरक्षा में अपने मार्ग में आगे बढ़ते जाओगे,
और तुम्हारे पांवों में कभी ठोकर न लगेगी.
जब तुम बिछौने पर जाओगे तो निर्भय रहोगे;
नींद तुम्हें आएगी और वह नींद सुखद नींद होगी.
मेरे पुत्र, अचानक आनेवाले आतंक अथवा दुर्जनों पर
टूट पड़ी विपत्ति को देख भयभीत न हो जाना,
क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा याहवेह में होगी,
वही तुम्हारे पैर को फंदे में फंसने से बचा लेंगे.
यदि तुममें भला करने की शक्ति है और किसी को इसकी आवश्यकता है,
तो भला करने में आनाकानी न करना.
यदि तुम्हारे पास कुछ है, जिसकी तुम्हारे पड़ोसी को आवश्यकता है,
तो उससे यह न कहना, “अभी जाओ, फिर आना;
कल यह मैं तुम्हें दे दूंगा.”
अपने पड़ोसी के विरुद्ध बुरी युक्ति की योजना न बांधना,
तुम पर विश्वास करते हुए उसने तुम्हारे पड़ोस में रहना उपयुक्त समझा है.
यदि किसी ने तुम्हारा कोई नुकसान नहीं किया है,
तो उसके साथ अकारण झगड़ा प्रारंभ न करना.
न तो हिंसक व्यक्ति से ईर्ष्या करो
और न उसकी जीवनशैली को अपनाओ.
कुटिल व्यक्ति याहवेह के लिए घृणास्पद है
किंतु धर्मी उनके विश्वासपात्र हैं.
दुष्ट का परिवार याहवेह द्वारा शापित होता है,
किंतु धर्मी के घर पर उनकी कृपादृष्टि बनी रहती है.
वह स्वयं ठट्ठा करनेवालों का उपहास करते हैं
किंतु दीन जन उनके अनुग्रह के पात्र होते हैं.
ज्ञानमान लोग सम्मान पाएंगे,
किंतु मूर्ख लज्जित होते जाएंगे.
किसी भी कीमत पर ज्ञान प्राप्त करें
मेरे पुत्रो, अपने पिता की शिक्षा ध्यान से सुनो;
इन पर विशेष ध्यान दो, कि तुम्हें समझ प्राप्त हो सके.
क्योंकि मेरे द्वारा दिए जा रहे नीति-सिद्धांत उत्तम हैं,
इन शिक्षाओं का कभी त्याग न करना.
जब मैं स्वयं अपने पिता का पुत्र था,
मैं सुकुमार था, माता के लिए लाखों में एक.
मेरे पिता ने मुझे शिक्षा देते हुए कहा था,
“मेरी शिक्षा अपने हृदय में दृढतापूर्वक बैठा लो;
मेरे आदेशों का पालन करते रहो, क्योंकि इन्हीं में तुम्हारा जीवन सुरक्षित है.
मेरे मुख से निकली शिक्षा से बुद्धिमत्ता प्राप्त करो, समझ प्राप्त करो;
न इन्हें त्यागना, और न इनसे दूर जाओ.
यदि तुम इसका परित्याग न करो, तो यह तुम्हें सुरक्षित रखेगी;
इसके प्रति तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारी सुरक्षा होगी.
सर्वोच्च प्राथमिकता है बुद्धिमत्ता की उपलब्धि: बुद्धिमत्ता प्राप्त करो.
यदि तुम्हें अपना सर्वस्व भी देना पड़े, समझ अवश्य प्राप्त कर लेना.
ज्ञान को अमूल्य संजो रखना, तब वह तुम्हें भी प्रतिष्ठित बनाएगा;
तुम इसे आलिंगन करो तो यह तुम्हें सम्मानित करेगा.
यह तुम्हारे मस्तक को एक भव्य आभूषण से सुशोभित करेगा;
यह तुम्हें एक मनोहर मुकुट प्रदान करेगा.”
मेरे पुत्र, मेरी शिक्षाएं सुनो और उन्हें अपना लो,
कि तुम दीर्घायु हो जाओ.
मैंने तुम्हें ज्ञान की नीतियों की शिक्षा दी है,
मैंने सीधे मार्ग पर तुम्हारी अगुवाई की है.
इस मार्ग पर चलते हुए तुम्हारे पैर बाधित नहीं होंगे;
यदि तुम दौड़ोगे तब भी तुम्हारे पांव ठोकर न खाएंगे.
इन शिक्षाओं पर अटल रहो; कभी इनका परित्याग न करो;
ज्ञान तुम्हारा जीवन है, उसकी रक्षा करो.
दुष्टों के मार्ग पर पांव न रखना,
दुर्जनों की राह पर पांव न रखना.
इससे दूर ही दूर रहना, उस मार्ग पर कभी न चलना;
इससे मुड़कर आगे बढ़ जाना.
उन्हें बुराई किए बिना नींद ही नहीं आती;
जब तक वे किसी का बुरा न कर लें, वे करवटें बदलते रह जाते हैं.
क्योंकि बुराई ही उन्हें आहार प्रदान करती है
और हिंसा ही उनका पेय होती है.
किंतु धर्मी का मार्ग भोर के प्रकाश समान है,
जो दिन चढ़ते हुए उत्तरोत्तर प्रखर होती जाती है और मध्याह्न पर पहुंचकर पूर्ण तेज पर होती है.
पापी की जीवनशैली गहन अंधकार होती है;
उन्हें यह ज्ञात ही नहीं हो पाता, कि उन्हें ठोकर किससे लगी है.
मेरे पुत्र, मेरी शिक्षाओं के विषय में सचेत रहना;
मेरी बातों पर विशेष ध्यान देना.
ये तुम्हारी दृष्टि से ओझल न हों,
उन्हें अपने हृदय में बनाए रखना.
क्योंकि जिन्होंने इन्हें प्राप्त कर लिया है,
ये उनका जीवन हैं, ये उनकी देह के लिए स्वास्थ्य हैं.
सबसे अधिक अपने हृदय की रक्षा करते रहना,
क्योंकि जीवन के प्रवाह इसी से निकलते हैं.
कुटिल बातों से दूर रहना;
वैसे ही छल-प्रपंच के वार्तालाप में न बैठना.
तुम्हारी आंखें सीधे लक्ष्य को ही देखती रहें;
तुम्हारी दृष्टि स्थिर रहे.
इस पर विचार करो कि तुम्हारे पांव कहां पड़ रहे हैं
तब तुम्हारे समस्त लेनदेन निरापद बने रहेंगे.
सन्मार्ग से न तो दायें मुड़ना न बाएं;
बुराई के मार्ग पर पांव न रखना.
व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी
मेरे पुत्र, मेरे ज्ञान पर ध्यान देना,
अपनी समझदारी के शब्दों पर कान लगाओ,
कि तुम्हारा विवेक और समझ स्थिर रहे
और तुम्हारी बातों में ज्ञान सुरक्षित रहे.
क्योंकि व्यभिचारिणी की बातों से मानो मधु टपकता है,
उसका वार्तालाप तेल से भी अधिक चिकना होता है;
किंतु अंत में वह चिरायते सी कड़वी
तथा दोधारी तलवार-सी तीखी-तीक्ष्ण होती है.
उसका मार्ग सीधा मृत्यु तक पहुंचता है;
उसके पैर अधोलोक के मार्ग पर आगे बढ़ते जाते हैं.
जीवन मार्ग की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता;
उसके चालचलन का कोई लक्ष्य नहीं होता और यह वह स्वयं नहीं जानती.
और अब, मेरे पुत्रो, ध्यान से मेरी शिक्षा को सुनो;
मेरे मुख से बोले शब्दों से कभी न मुड़ना.
तुम उससे दूर ही दूर रहना,
उसके घर के द्वार के निकट भी न जाना,
कहीं ऐसा न हो कि तुम अपना सम्मान किसी अन्य को सौंप बैठो
और तुम्हारे जीवन के दिन किसी क्रूर के वश में हो जाएं,
कहीं अपरिचित व्यक्ति तुम्हारे बल का लाभ उठा लें
और तुम्हारे परिश्रम की सारी कमाई परदेशी के घर में चली जाए.
और जीवन के संध्याकाल में तुम कराहते रहो,
जब तुम्हारी देह और स्वास्थ्य क्षीण होता जाए.
और तब तुम यह विचार करके कहो, “क्यों मैं अनुशासन तोड़ता रहा!
क्यों मैं ताड़ना से घृणा करता रहा!
मैंने शिक्षकों के शिक्षा की अनसुनी की,
मैंने शिक्षाओं पर ध्यान ही न दिया.
आज मैं विनाश के कगार पर,
सारी मण्डली के सामने, खड़ा हूं.”
तुम अपने ही जलाशय से जल का पान करना,
तुम्हारा अपना कुंआ तुम्हारा सोता हो.
क्या तुम्हारे सोते की जलधाराएं इधर-उधर बह जाएं,
क्या ये जलधाराएं सार्वजनिक गलियों के लिए हैं?
इन्हें मात्र अपने लिए ही आरक्षित रखना,
न कि तुम्हारे निकट आए अजनबी के लिए.
आशीषित बने रहें तुम्हारे सोते,
युवावस्था से जो तुम्हारी पत्नी है, वही तुम्हारे आनंद का सोता हो.
वह हिरणी सी कमनीय और मृग सी आकर्षक है.
उसी के स्तन सदैव ही तुम्हें उल्लास से परिपूर्ण करते रहें,
उसका प्रेम ही तुम्हारा आकर्षण बन जाए.
मेरे पुत्र, वह व्यभिचारिणी भली क्यों तुम्हारे आकर्षण का विषय बने?
वह व्यभिचारिणी क्यों तुम्हारे सीने से लगे?
पुरुष का चालचलन सदैव याहवेह की दृष्टि में रहता है,
वही तुम्हारी चालों को देखते रहते हैं.
दुष्ट के अपराध उन्हीं के लिए फंदा बन जाते हैं;
बड़ा सशक्त होता है उसके पाप का बंधन.
उसकी मृत्यु का कारण होती है उसकी ही शिक्षा,
उसकी अतिशय मूर्खता ही उसे भटका देती है.
व्यवहारिक चेतावनियां
मेरे पुत्र, यदि तुम अपने पड़ोसी के लिए ज़मानत दे बैठे हो,
किसी अपरिचित के लिए वचनबद्ध हुए हो,
यदि तुम वचन देकर फंस गए हो,
तुम्हारे ही शब्दों ने तुम्हें विकट परिस्थिति में ला रखा है,
तब मेरे पुत्र, ऐसा करना कि तुम स्वयं को बचा सको,
क्योंकि इस समय तो तुम अपने पड़ोसी के हाथ में आ चुके हो:
तब अब अपने पड़ोसी के पास चले जाओ,
और उसको नम्रता से मना लो!
यह समय निश्चिंत बैठने का नहीं है,
नींद में समय नष्ट न करना.
इस समय तुम्हें अपनी रक्षा उसी हिरणी के समान करना है, जो शिकारी से बचने के लिए अपने प्राण लेकर भाग रही है,
जैसे पक्षी जाल डालनेवाले से बचकर उड़ जाता है.
ओ आलसी, जाकर चींटी का ध्यान कर;
उनके कार्य पर विचार कर और ज्ञानी बन जा!
बिना किसी प्रमुख,
अधिकारी अथवा प्रशासक के,
वह ग्रीष्मकाल में ही अपना आहार जमा कर लेती है
क्योंकि वह कटनी के अवसर पर अपना भोजन एकत्र करती रहती है.
ओ आलसी, तू कब तक ऐसे लेटा रहेगा?
कब टूटेगी तेरी नींद?
थोड़ी और नींद, थोड़ा और विश्राम,
कुछ देर और हाथ पर हाथ रखे हुए विश्राम,
तब देखना निर्धनता कैसे तुझ पर डाकू के समान टूट पड़ती है
और गरीबी, सशस्त्र पुरुष के समान.
बुरा व्यक्ति निकम्मा ही सिद्ध होता है,
उसकी बातों में हेरा-फेरी होती है,
वह पलकें झपका कर,
अपने पैरों के द्वारा
तथा उंगली से इशारे करता है,
वह अपने कपटी हृदय से बुरी युक्तियां सोचता
तथा निरंतर ही कलह को उत्पन्न करता रहता है.
परिणामस्वरूप विपत्ति उस पर एकाएक आ पड़ेगी;
क्षण मात्र में उस पर असाध्य रोग का प्रहार हो जाएगा.
छः वस्तुएं याहवेह को अप्रिय हैं,
सात से उन्हें घृणा है:
घमंड से भरी आंखें,
झूठ बोलने वाली जीभ,
वे हाथ, जो निर्दोष की हत्या करते हैं,
वह मस्तिष्क, जो बुरी योजनाएं सोचता रहता है,
बुराई के लिए तत्पर पांव,
झूठ पर झूठ उगलता हुआ साक्षी तथा वह व्यक्ति,
जो भाइयों के मध्य कलह निर्माण करता है.
व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी
मेरे पुत्र, अपने पिता के आदेश पालन करते रहना,
अपनी माता की शिक्षा का परित्याग न करना.
ये सदैव तुम्हारे हृदय में स्थापित रहें;
ये सदैव तुम्हारे गले में लटके रहें.
जब तुम आगे बढ़ोगे, ये तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे;
जब तुम विश्राम करोगे, ये तुम्हारे रक्षक होंगे;
और जब तुम जागोगे, तो ये तुमसे बातें करेंगे.
आदेश दीपक एवं शिक्षा प्रकाश है,
तथा ताड़ना सहित अनुशासन जीवन का मार्ग हैं,
कि बुरी स्त्री से तुम्हारी रक्षा की जा सके
व्यभिचारिणी की मीठी-मीठी बातों से.
मन ही मन उसके सौंदर्य की कामना न करना,
उसके जादू से तुम्हें वह अधीन न करने पाए.
वेश्या मात्र एक भोजन के द्वारा मोल ली जा सकती है6:26 या वेश्या तुमको गरीबी में ले जाएगी!,
किंतु दूसरे पुरुष की औरत तुम्हारे खुद के जीवन को लूट लेती है.
क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति अपनी छाती पर आग रखे
और उसके वस्त्र न जलें?
अथवा क्या कोई जलते कोयलों पर चले
और उसके पैर न झुलसें?
यही नियति है उस व्यक्ति की, जो पड़ोसी की पत्नी के साथ यौनाचार करता है;
उसके साथ इस रूप से संबंधित हर एक व्यक्ति का दंड निश्चित है.
लोगों की दृष्टि में वह व्यक्ति घृणास्पद नहीं होता
जिसने अतिशय भूख मिटाने के लिए भोजन चुराया है,
हां, यदि वह चोरी करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे उसका सात गुणा लौटाना पड़ता है,
इस स्थिति में उसे अपना सब कुछ देना पड़ सकता है.
वह, जो व्यभिचार में लिप्त हो जाता है, निरा मूर्ख है;
वह, जो यह सब कर रहा है, स्वयं का विनाश कर रहा है.
घाव और अपमान उसके अंश होंगे,
उसकी नामधराई मिटाई न जा सकेगी.
ईर्ष्या किसी भी व्यक्ति को क्रोध में भड़काती है,
प्रतिशोध की स्थिति में उसकी सुरक्षा संभव नहीं.
उसे कोई भी क्षतिपूर्ति स्वीकार्य नहीं होती;
कितने भी उपहार उसे लुभा न सकेंगे.
व्यभिचारिणी से संबंधित चेतावनी
मेरे पुत्र, मेरे वचनों का पालन करते रहो
और मेरे आदेशों को अपने हृदय में संचित करके रखना.
मेरे आदेशों का पालन करना और जीवित रहना;
मेरी शिक्षाएं वैसे ही सुरक्षित रखना, जैसे अपने नेत्र की पुतली को रखते हो.
इन्हें अपनी उंगलियों में पहन लेना;
इन्हें अपने हृदय-पटल पर उकेर लेना.
ज्ञान से कहो, “तुम मेरी बहन हो,”
समझ को “अपना रिश्तेदार घोषित करो,”
कि ये तुम्हें व्यभिचारिणी स्त्री से सुरक्षित रखें,
तुम्हें पर-स्त्री की लुभानेवाली बातों में फंसने से रोक सकें.
मैं खिड़की के पास
खड़ा हुआ जाली में से बाहर देख रहा था.
मुझे एक साधारण,
सीधा-सादा युवक दिखाई दिया,
इस युवक में समझदारी तो थी ही नहीं,
यह युवक उस मार्ग पर जा रहा था, जो इस स्त्री के घर की ओर जाता था,
सड़क की छोर पर उसका घर था.
यह संध्याकाल गोधूली की बेला थी,
रात्रि के अंधकार का समय हो रहा था.
तब मैंने देखा कि एक स्त्री उससे मिलने निकल आई,
उसकी वेशभूषा वेश्या के समान थी उसके हृदय से धूर्तता छलक रही थी.
(वह अत्यंत भड़कीली और चंचल थी,
वह अपने घर पर तो ठहरती ही न थी;
वह कभी सड़क पर दिखती थी तो कभी नगर चौक में,
वह प्रतीक्षा करती हुई किसी भी चौराहे पर देखी जा सकती थी.)
आगे बढ़ के उसने उस युवक को बाहों में लेकर चूम लिया
और बड़ी ही निर्लज्जता से उससे कहने लगी:
“मुझे बलि अर्पित करनी ही थी
और आज ही मैंने अपने मन्नत को पूर्ण कर लिया हैं.
इसलिये मैं तुमसे मिलने आ सकी हूं;
मैं कितनी उत्कण्ठापूर्वक तुम्हें खोज रही थी, देखो, अब तुम मुझे मिल गए हो!
मैंने उत्कृष्ट चादरों से बिछौना सजाया है
इन पर मिस्र देश की रंगीन कलाकृतियां हैं.
मैंने बिछौने को गन्धरस,
अगरू और दालचीनी से सुगंधित किया है.
अब देर किस लिए, प्रेम क्रीड़ा के लिए हमारे पास प्रातःकाल तक समय है;
हम परस्पर प्रेम के द्वारा एक दूसरे का समाधान करेंगे!
मेरे पति प्रवास पर हैं;
बड़े लंबे समय का है उनका प्रवास.
वह अपने साथ बड़ी धनराशि लेकर गए हैं
वह तो पूर्णिमा पर ही लौटेंगे.”
इसी प्रकार के मधुर शब्द के द्वारा उसने अंततः
उस युवक को फुसला ही लिया; उसके मधुर शब्द के समक्ष वह हार गया.
तत्क्षण वह उसके साथ चला गया. यह वैसा ही दृश्य था
जैसे वध के लिए ले जाया जा रहा बैल,
अथवा जैसे कोई मूर्ख फंदे में फंस गया हो.
तब बाण उसके कलेजे को बेधता हुआ निकल जाता है,
जैसे पक्षी जाल में जा उलझा हो. उसे तो यह बोध ही नहीं होता,
कि यह उसके प्राण लेने के लिए किया जा रहा है.
और अब, मेरे पुत्रो, ध्यान से सुनो;
और मेरे मुख से निकले शब्दों के प्रति सावधान रहो.
तुम्हारा हृदय कभी भी ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे,
उसके आचार-व्यवहार देखकर बहक न जाना,
उसने ऐसे अनेक-अनेक व्यक्तियों को फंसाया है;
और बड़ी संख्या है उसके द्वारा संहार किए गए शक्तिशाली व्यक्तियों की.
उसका घर अधोलोक का द्वार है,
जो सीधे मृत्यु के कक्ष में ले जाकर छोड़ता है.
बुद्धि का आह्वान
क्या ज्ञान आह्वान नहीं करता?
क्या समझ उच्च स्वर में नहीं पुकारती?
वह गलियों के ऊंचे मार्ग पर,
चौराहों पर जाकर खड़ी हो जाती है;
वह नगर प्रवेश द्वार के सामने खड़ी रहती है,
उसके द्वार के सामने खड़ी होकर वह उच्च स्वर में पुकारती रहती है:
“मनुष्यो, मैं तुम्हें संबोधित कर रही हूं;
मेरी पुकार मनुष्यों की सन्तति के लिए है.
साधारण सरल व्यक्तियो, चतुराई सीख लो;
अज्ञानियो, बुद्धिमत्ता सीख लो.
क्योंकि मैं तुम पर उत्कृष्ट बातें प्रकट करूंगी;
मेरे मुख से वही सब निकलेगा जो सुसंगत ही है,
क्योंकि मेरे मुख से मात्र सत्य ही निकलेगा,
मेरे होंठों के लिए दुष्टता घृणास्पद है.
मेरे मुख से निकला हर एक शब्द धर्ममय ही होता है;
उनमें न तो छल-कपट होता है, न ही कोई उलट फेर का विषय.
जिस किसी ने इनका मूल्य पहचान लिया है, उनके लिए ये उपयुक्त हैं,
और जिन्हें ज्ञान की उपलब्धि हो चुकी है, उनके लिए ये उत्तम हैं.
चांदी के स्थान पर मेरी शिक्षा को संग्रहीत करो,
वैसे ही उत्कृष्ट स्वर्ण के स्थान पर ज्ञान को,
क्योंकि ज्ञान रत्नों से अधिक कीमती है,
और तुम्हारे द्वारा अभिलाषित किसी भी वस्तु से इसकी तुलना नहीं की जा सकती.
“मैं ज्ञान हूं और व्यवहार कुशलता के साथ मेरा सह अस्तित्व है,
मेरे पास ज्ञान और विवेक है.
पाप से घृणा ही याहवेह के प्रति श्रद्धा है;
मुझे घृणा है अहंकार, गर्वोक्ति,
बुराई तथा छलपूर्ण बातों से.
मुझमें ही परामर्श है, सद्बुद्धि है;
मुझमें समझ है, मुझमें शक्ति निहित है.
मेरे द्वारा राजा शासन करते हैं,
मेरे ही द्वारा वे न्याय संगत निर्णय लेते हैं.
मेरे द्वारा ही शासक शासन करते हैं,
और समस्त न्यायाध्यक्ष मेरे द्वारा ही न्याय करते हैं.
जिन्हें मुझसे प्रेम है, वे सभी मुझे भी प्रिय हैं,
जो मुझे खोजते हैं, मुझे प्राप्त भी कर लेते हैं.
मेरे साथ ही संलग्न हैं समृद्धि
और सम्मान इनके साथ ही चिरस्थायी निधि तथा धार्मिकता.
मेरा फल स्वर्ण से, हां, उत्कृष्ट स्वर्ण से उत्तम;
तथा जो कुछ मुझसे निकलता है, वह चांदी से उत्कृष्ट है.
धार्मिकता मेरा मार्ग है, जिस पर मैं चालचलन करता हूं,
न्यायशीलता ही मेरा मार्ग है,
परिणामस्वरूप, जिन्हें मुझसे प्रेम है, उन्हें धन प्राप्त हो जाता है
और उनके भण्डारगृह परिपूर्ण भरे रहते हैं.
“जब याहवेह ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की,
इसके पूर्व कि वह किसी वस्तु की सृष्टि करते, मैं उनके साथ था;
युगों पूर्व ही, सर्वप्रथम,
पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पूर्व ही मैं अस्तित्व में था.
महासागरों के अस्तित्व में आने के पूर्व, जब सोते ही न थे,
मुझे जन्म दिया गया.
इसके पूर्व कि पर्वतों को आकार दिया गया,
और पहाड़ियां अस्तित्व में आयीं, मैं अस्तित्व में था;
इसके पूर्व कि परमेश्वर ने पृथ्वी तथा पृथ्वी की सतह पर मैदानों की रचना की,
अथवा भूमि पर सर्वप्रथम धूल देखी गई.
जब परमेश्वर ने आकाशमंडल की स्थापना की, मैं अस्तित्व में था,
जब उन्होंने महासागर पर क्षितिज रेखा का निर्माण किया,
जब उन्होंने आकाश को हमारे ऊपर सुदृढ़ कर दिया,
जब उन्होंने महासागर के सोते प्रतिष्ठित किए,
जब उन्होंने महासागर की सीमाएं बांध दी,
कि जल उनके आदेश का उल्लंघन न कर सके,
जब उन्होंने पृथ्वी की नींव रेखांकित की.
उस समय मैं उनके साथ साथ कार्यरत था.
एक प्रधान कारीगर के समान प्रतिदिन मैं ही उनके हर्ष का कारण था,
सदैव मैं उनके समक्ष आनंदित होता रहता था,
उनके द्वारा बसाए संसार में
तथा इसके मनुष्यों में मेरा आनंद था.
“मेरे पुत्रो, ध्यान से सुनो;
मेरे निर्देश सुनकर बुद्धिमान हो जाओ.
इनका परित्याग कभी न करना;
धन्य होते हैं वे, जो मेरी नीतियों पर चलते हैं.
धन्य होता है वह व्यक्ति,
जो इन शिक्षाओं के समक्ष ठहरा रहता है,
जिसे द्वार पर मेरी प्रतीक्षा रहती है.
जिसने मुझे प्राप्त कर लिया, उसने जीवन प्राप्त कर लिया,
उसने याहवेह की कृपादृष्टि प्राप्त कर ली.
किंतु वह, जो मुझे पाने में असफल होता है, वह स्वयं का नुकसान कर लेता है;
वे सभी, जो मुझसे घृणा करते हैं, वे मृत्यु का आलिंगन करते हैं.”
बुद्धि का आमंत्रण
ज्ञान ने एक घर का निर्माण किया है;
उसने काटकर अपने लिए सात स्तंभ भी गढ़े हैं.
उसने उत्कृष्ट भोजन तैयार किए हैं तथा उत्तम द्राक्षारस भी परोसा है;
उसने अतिथियों के लिए सभी भोज तैयार कर रखा है.
आमंत्रण के लिए उसने अपनी सहेलियां भेज दी हैं
कि वे नगर के सर्वोच्च स्थलों से आमंत्रण की घोषणा करें,
“जो कोई सरल-साधारण है, यहां आ जाए!”
जिस किसी में सरल ज्ञान का अभाव है, उसे वह कहता है,
“आ जाओ, मेरे भोज में सम्मिलित हो जाओ.
उस द्राक्षारस का भी सेवन करो, जो मैंने परोसा है.
अपना भोला चालचलन छोड़कर;
समझ का मार्ग अपना लो और जीवन में प्रवेश करो.”
यदि कोई ठट्ठा करनेवाले की भूल सुधारता है, उसे अपशब्द ही सुनने पड़ते हैं;
यदि कोई किसी दुष्ट को डांटता है, अपने ही ऊपर अपशब्द ले आता है.
तब ठट्ठा करनेवाले को मत डांटो, अन्यथा तुम उसकी घृणा के पात्र हो जाओगे;
तुम ज्ञानवान को डांटो, तुम उसके प्रेम पात्र ही बनोगे.
शिक्षा ज्ञानवान को दो. इससे वह और भी अधिक ज्ञानवान हो जाएगा;
शिक्षा किसी सज्जन को दो, इससे वह अपने ज्ञान में बढ़ते जाएगा.
याहवेह के प्रति श्रद्धा-भय से ज्ञान का
तथा महा पवित्र के सैद्धान्तिक ज्ञान से समझ का उद्भव होता है.
तुम मेरे द्वारा ही आयुष्मान होगे
तथा तुम्हारी आयु के वर्ष बढ़ाए जाएंगे.
यदि तुम बुद्धिमान हो, तो तुम्हारा ज्ञान तुमको प्रतिफल देगा;
यदि तुम ज्ञान के ठट्ठा करनेवाले हो तो इसके परिणाम मात्र तुम भोगोगे.
श्रीमती मूर्खता उच्च स्वर में बक-बक करती है;
वह भोली है, अज्ञानी है.
उसके घर के द्वार पर ही अपना आसन लगाया है,
जब वह नगर में होती है तब वह अपने लिए सर्वोच्च आसन चुन लेती है,
वह उनको आह्वान करती है, जो वहां से निकलते हैं,
जो अपने मार्ग की ओर अग्रगामी हैं,
“जो कोई सीधा-सादा है, वह यहां आ जाए!”
और निबुद्धियों से वह कहती है,
“मीठा लगता है चोरी किया हुआ जल;
स्वादिष्ट लगता है वह भोजन, जो छिपा-छिपा कर खाया जाता है!”
भला उसे क्या मालूम कि वह मृतकों का स्थान है,
कि उसके अतिथि अधोलोक में पहुंचे हैं.
शलोमोन के बुद्धि सूत्र
शलोमोन के ज्ञान सूत्र निम्न लिखित हैं:
बुद्धिमान संतान पिता के आनंद का विषय होती है,
किंतु मूर्ख संतान माता के शोक का कारण.
बुराई द्वारा प्राप्त किया धन लाभ में वृद्धि नहीं करता,
धार्मिकता मृत्यु से सुरक्षित रखती है.
याहवेह धर्मी व्यक्ति को भूखा रहने के लिए छोड़ नहीं देते,
किंतु वह दुष्ट की लालसा पर अवश्य पानी फेर देते हैं.
निर्धनता का कारण होता है आलस्य,
किंतु परिश्रमी का प्रयास ही उसे समृद्ध बना देता है.
बुद्धिमान है वह पुत्र, जो ग्रीष्मकाल में ही आहार संचित कर रखता है,
किंतु वह जो फसल के दौरान सोता है वह एक अपमानजनक पुत्र है.
धर्मी आशीषें प्राप्त करते जाते हैं,
किंतु दुष्ट में हिंसा ही समाई रहती है.
धर्मी का जीवन ही आशीर्वाद-स्वरूप स्मरण किया जाता है,10:7 [उत्प 48:20]
किंतु दुष्ट का नाम ही मिट जाता है.
बुद्धिमान आदेशों को हृदय से स्वीकार करेगा,
किंतु बकवादी मूर्ख विनष्ट होता जाएगा.
जिस किसी का चालचलन सच्चाई का है, वह सुरक्षित है,
किंतु वह, जो कुटिल मार्ग अपनाता है, पकड़ा जाता है.
जो कोई आंख मारता है, वह समस्या उत्पन्न कर देता है,
किंतु बकवादी मूर्ख विनष्ट हो जाएगा.
धर्मी के मुख से निकले वचन जीवन का सोता हैं,
किंतु दुष्ट अपने मुख में हिंसा छिपाए रहता है.
घृणा कलह की जननी है,
किंतु प्रेम सभी अपराधों पर आवरण डाल देता है.
समझदार व्यक्ति के होंठों पर ज्ञान का वास होता है,
किंतु अज्ञानी के लिए दंड ही निर्धारित है.
बुद्धिमान ज्ञान का संचयन करते हैं,
किंतु मूर्ख की बातें विनाश आमंत्रित करती है.
धनी व्यक्ति के लिए उसका धन एक गढ़ के समान होता है,
किंतु निर्धन की गरीबी उसे ले डूबती है.
धर्मी का ज्ञान उसे जीवन प्रदान करता है,
किंतु दुष्ट की उपलब्धि होता है पाप.
जो कोई सावधानीपूर्वक शिक्षा का चालचलन करता है,
वह जीवन मार्ग पर चल रहा होता है, किंतु जो ताड़ना की अवमानना करता है, अन्यों को भटका देता है.
वह, जो घृणा को छिपाए रहता है,
झूठा होता है और वह व्यक्ति मूर्ख प्रमाणित होता है, जो निंदा करता फिरता है.
जहां अधिक बातें होती हैं, वहां अपराध दूर नहीं रहता,
किंतु जो अपने मुख पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है.
धर्मी की वाणी उत्कृष्ट चांदी तुल्य है;
दुष्ट के विचारों का कोई मूल्य नहीं होता.
धर्मी के उद्गार अनेकों को तृप्त कर देते हैं,
किंतु बोध के अभाव में ही मूर्ख मृत्यु का कारण हो जाते हैं.
याहवेह की कृपादृष्टि समृद्धि का मर्म है.
वह इस कृपादृष्टि में दुःख को नहीं मिलाता.
जैसे अनुचित कार्य करना मूर्ख के लिए हंसी का विषय है,
वैसे ही बुद्धिमान के समक्ष विद्वत्ता आनंद का विषय है.
जो आशंका दुष्ट के लिए भयास्पद होती है, वही उस पर घटित हो जाती है;
किंतु धर्मी की मनोकामना पूर्ण होकर रहती है.
बवंडर के निकल जाने पर दुष्ट शेष नहीं रह जाता,
किंतु धर्मी चिरस्थायी बना रहता है.
आलसी संदेशवाहक अपने प्रेषक पर वैसा ही प्रभाव छोड़ता है,
जैसा सिरका दांतों पर और धुआं नेत्रों पर.
याहवेह के प्रति श्रद्धा से आयु बढ़ती जाती है,
किंतु थोड़े होते हैं दुष्ट के आयु के वर्ष.
धर्मी की आशा में आनंद का उद्घाटन होता है,
किंतु दुर्जन की आशा निराशा में बदल जाती है.
निर्दोष के लिए याहवेह का विधान एक सुरक्षित आश्रय है,
किंतु बुराइयों के निमित्त सर्वनाश.
धर्मी सदैव अटल और स्थिर बने रहते हैं,
किंतु दुष्ट पृथ्वी पर निवास न कर सकेंगे.
धर्मी अपने बोलने में ज्ञान का संचार करते हैं,
किंतु कुटिल की जीभ काट दी जाएगी.
धर्मी में यह सहज बोध रहता है, कि उसका कौन सा उद्गार स्वीकार्य होगा,
किंतु दुष्ट के शब्द कुटिल विषय ही बोलते हैं.
अशुद्ध माप याहवेह के लिए घृणास्पद है,
किंतु शुद्ध तोल माप उनके लिए आनंद है.
जब कभी अभिमान सिर उठाता है, लज्जा उसके पीछे-पीछे चली आती है,
किंतु विनम्रता ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है.
ईमानदार की सत्यनिष्ठा उनका मार्गदर्शन करती है,
किंतु विश्वासघाती व्यक्ति की कुटिलता उसके विनाश का कारक होती है.
प्रकोप के दिन में धन-संपत्ति निरर्थक सिद्ध होती है,
मात्र धार्मिकता मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करती है.
निर्दोष की धार्मिकता ही उसके मार्ग को सीधा बना देती है,
किंतु दुष्ट अपनी ही दुष्टता के कारण नाश में जा पड़ता है.
ईमानदार की धार्मिकता ही उसकी सुरक्षा है,
किंतु कृतघ्न व्यक्ति अपनी वासना के जाल में उलझ जाते हैं.
जब दुष्ट की मृत्यु होती है, उसकी आशा भी बुझ जाती है,
और बलवान की आशा शून्य रह जाती है.
धर्मी विपत्ति से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है,
किंतु दुष्ट उसी में फंस जाता है.
अभक्त लोग मात्र अपने शब्दों के द्वारा अपने पड़ोसी का नाश कर देता है,
किंतु धर्मी का छुटकारा ज्ञान में होता है.
धर्मी की सफलता में संपूर्ण नगर आनंदित होता है,
और जब दुर्जन नष्ट होते हैं, जयघोष गूंज उठते हैं.
ईमानदार के आशीर्वाद से नगर की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है,
किंतु दुर्जन का वक्तव्य ही उसे ध्वस्त कर देता है.
निर्बुद्धि व्यक्ति ही अपने पड़ोसी को तुच्छ समझता है,
किंतु समझदार व्यक्ति चुपचाप बना रहता है.
निंदक के लिए गोपनीयता बनाए रखना संभव नहीं होता,
किंतु विश्वासपात्र रहस्य छुपाए रखता है.
मार्गदर्शन के अभाव में राष्ट्र का पतन हो जाता है,
किंतु अनेक सलाह देनेवाले मंत्रियों के होने पर राष्ट्र सुरक्षित हो जाता है.
यह सुनिश्चित ही है कि यदि किसी ने किसी अपरिचित की ज़मानत ले ली है, उसकी हानि अवश्य होगी,
किंतु वह, जो ऐसी शपथ करने की भूल नहीं करता, सुरक्षित रहता है.
कृपावान स्त्री का ज्ञान है सम्मान,
किंतु क्रूर व्यक्ति के हाथ मात्र धन ही लगता है.
कृपा करने के द्वारा मनुष्य अपना ही हित करता है,
किंतु क्रूर व्यक्ति स्वयं का नुकसान कर लेता है.
दुर्जन का वेतन वस्तुतः छल ही होता है,
किंतु जो धर्म का बीज रोपण करता है, उसे निश्चयतः सार्थक प्रतिफल प्राप्त होता है.
वह, जो धर्म में दृढ़ रहता है, जीवित रहता है,
किंतु जो बुराई का चालचलन करता है, वह जीवित न रहेगा.
याहवेह की दृष्टि में कुटिल हृदय घृणास्पद है,
किंतु उनके निमित्त निर्दोष व्यक्ति प्रसन्न है.
यह सुनिश्चित है कि दुष्ट दंडित अवश्य किया जाएगा,
किंतु धर्मी की सन्तति सुरक्षित रहेगी.
विवेकहीन सुंदर स्त्री वैसी ही होती है
जैसी सूअर के थूथन में सोने की नथ.
धर्मी की आकांक्षा का परिणाम उत्तम ही होता है,
किंतु दुष्ट की आशा कोप ले आती है.
कोई तो उदारतापूर्वक दान करते है, फिर भी अधिकाधिक धनाढ्य होता जाता है;
किंतु अन्य है जो उसे दबाकर रखता है, और फिर भी वह तंगी में ही रहता है.
जो कोई उदारता से देता है, वह सम्पन्न होता जाएगा;
और वह, जो अन्यों को सांत्वना देता है, वह सांत्वना पायेगा!
उसे, जो अनाज को दबाए रखता है, लोग शाप देते हैं,
किंतु उसे, जो अनाज जनता को बेचता जाता है, लोग आशीर्वाद देते हैं.
जो कोई भलाई की खोज करता है, वह प्रसन्नता प्राप्त करता है,
किंतु वह, जो बुराई को ढूंढता है, वह उसी को मिल जाती है.
धर्मी नई पत्तियों के समान पल्लवित होंगे,
किंतु उसका पतन निश्चित है, जिसने अपनी धन-संपत्ति पर आशा रखी है.
जो कोई अपने परिवार की विपत्ति का कारण होता है, वह केवल हवा का वारिस होगा,
मूर्ख को कुशाग्रबुद्धि के व्यक्ति के अधीन ही सेवा करनी पड़ती है.
धर्मी का प्रतिफल है जीवन वृक्ष और ज्ञानवान है वह,
जो आत्माओं का विजेता है.
यदि पार्थिव जीवन में ही धर्मी को उसके सत्कर्मों का प्रतिफल प्राप्त हो जाता है,
तो दुष्टों और पापियों को क्यों नहीं!
अनुशासन प्रिय व्यक्ति को बुद्धिमता से प्रेम है,
किंतु मूर्ख होता है वह, जिसे अप्रिय होती है सुधारना.
धर्मी व्यक्ति को याहवेह की कृपादृष्टि प्राप्त हो जाती है,
किंतु जो दुष्कर्म की युक्ति करता रहता है, उसके लिए याहवेह का दंड नियत है.
किसी को स्थिर करने में दुष्टता कोई भी योग नहीं देती,
किंतु धर्मी के मूल को कभी उखाड़ा नहीं जा सकता.
अच्छे चाल-चलनवाली पत्नी अपने पति का शिरोमणि होती है, किंतु वह पत्नी,
जो पति के लिए लज्जा का विषय है, मानो पति की अस्थियों में लगा रोग है.
धर्मी की धारणाएं न्याय संगत होती हैं,
किंतु दुष्ट व्यक्ति के परामर्श छल-कपट पूर्ण होते हैं.
दुष्ट व्यक्ति के शब्द ही रक्तपात के लिए उच्चारे जाते हैं.
किंतु सज्जन व्यक्ति की बातें लोगों को छुड़ाने वाली होती हैं.
बुराइयां उखाड़ फेंकी जाती हैं और उनकी स्मृति भी शेष नहीं रहती,
किंतु धार्मिक का परिवार स्थिर खड़ा रहता है.
बुद्धिमान की बुद्धि उसे प्रशंसा प्रदान करती है,
किंतु कुटिल मनोवृत्ति के व्यक्ति को घृणित समझा जाता है.
सामान्य व्यक्ति होकर भी सेवक रखने की क्षमता जिसे है,
वह उस व्यक्ति से श्रेष्ठतर है, जो बड़प्पन तो दिखाता है, किंतु खाने की रोटी का भी अभाव में है.
धर्मी अपने पालतू पशु के जीवन का भी ध्यान रखता है,
किंतु दुर्जन द्वारा प्रदर्शित दया भी निर्दयता ही होती है.
जो किसान अपनी भूमि की जुताई-गुड़ाई करता रहता है, उसे भोजन का अभाव नहीं होता,
किंतु जो व्यर्थ कार्यों में समय नष्ट करता है, निर्बुद्धि प्रमाणित होता है.
दुष्ट बुराइयों द्वारा लूटी गई संपत्ति की लालसा करता है,
किंतु धर्मी की जड़ फलवंत होती है.
बुरा व्यक्ति अपने ही मुख की बातों से फंस जाता है,
किंतु धर्मी संकट से बच निकलता है.
समझदार शब्द कई लाभ लाते हैं,
और कड़ी मेहनत प्रतिफल लाती है.
मूर्ख की दृष्टि में उसकी अपनी कार्यशैली योग्य लगती है,
किंतु ज्ञानवान परामर्श की विवेचना करता है.
मूर्ख अपना क्रोध शीघ्र ही प्रकट करता है,
किंतु व्यवहार कुशल व्यक्ति अपमान को अनदेखा करता है.
सत्यवादी की साक्ष्य सत्य ही होती है,
किंतु झूठा छलयुक्त साक्ष्य देता है.
असावधानी में कहा गया शब्द तलवार समान बेध जाता है,
किंतु बुद्धिमान के शब्द चंगाई करने में सिद्ध होते हैं.
सच्चाई के वचन चिरस्थायी सिद्ध होते हैं,
किंतु झूठ बोलने वाली जीभ पल भर की होती है!
बुराई की युक्ति करनेवाले के हृदय में छल होता है,
किंतु जो मेल स्थापना का प्रयास करते हैं, हर्षित बने रहते हैं.
धर्मी पर हानि का प्रभाव ही नहीं होता,
किंतु दुर्जन सदैव संकट का सामना करते रहते हैं.
झूठ बोलनेवाले ओंठ याहवेह के समक्ष घृणास्पद हैं,
किंतु उनकी प्रसन्नता खराई में बनी रहती है.
चतुर व्यक्ति ज्ञान को प्रगट नहीं करता,
किंतु मूर्ख के हृदय मूर्खता का प्रसार करता है.
सावधान और परिश्रमी व्यक्ति शासक के पद तक उन्नत होता है,
किंतु आलसी व्यक्ति को गुलाम बनना पड़ता है.
चिंता का बोझ किसी भी व्यक्ति को दबा छोड़ता है,
किंतु सांत्वना का मात्र एक शब्द उसमें आनंद को भर देता है.
धर्मी अपने पड़ोसी के लिए मार्गदर्शक हो जाता है,
किंतु बुरे व्यक्ति का चालचलन उसे भटका देता है.
आलसी के पास पकाने के लिए अन्न ही नहीं रह जाता,
किंतु परिश्रमी व्यक्ति के पास भरपूर संपत्ति जमा हो जाती है.
धर्म का मार्ग ही जीवन है;
और उसके मार्ग पर अमरत्व है.
समझदार संतान अपने पिता की शिक्षा का पालन करती है,
किंतु ठट्ठा करनेवाले के लिए फटकार भी प्रभावहीन होती है.
मनुष्य अपनी बातों का ही प्रतिफल प्राप्त करता है,
किंतु हिंसा ही विश्वासघाती का लक्ष्य होता है.
जो कोई अपने मुख पर नियंत्रण रखता है, वह अपने जीवन को सुरक्षित रखता है,
किंतु वह, जो बिना विचारे बक-बक करता रहता है, अपना ही विनाश आमंत्रित कर लेता है.
आलसी मात्र लालसा ही करता रह जाता है.
किंतु उसे प्राप्त कुछ भी नहीं होता, जबकि परिश्रमी की इच्छा पूर्ण हो जाती है.
धर्मी के लिए झूठ घृणित है,
किंतु दुष्ट दुर्गंध
तथा घृणा ही समेटता है.
जिसका चालचलन निर्दोष होता है, धार्मिकता उसकी सुरक्षा बन जाती है,
किंतु पाप दुर्जन के समूल विनाश का कारण होता है.
कोई तो धनाढ्य होने का प्रदर्शन करता है, किंतु वस्तुतः वह निर्धन होता है;
अन्य ऐसा है, जो प्रदर्शित करता है कि वह निर्धन है, किंतु वस्तुतः वह है अत्यंत सम्पन्न!
धन किसी व्यक्ति के लिए छुटकारा हो सकता है,
किंतु निर्धन पर यह स्थिति नहीं आती.
धर्मी आनन्दायी प्रखर ज्योति समान हैं,
जबकि दुष्ट बुझे हुए दीपक समान.
अहंकार और कुछ नहीं, कलह को ही जन्म देता है,
किंतु वे, जो परामर्श का चालचलन करते हैं, बुद्धिमान प्रमाणित होते हैं.
बेईमानी का धन शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है,
किंतु परिश्रम से प्राप्त किया धन बढ़ता जाता है.
आशा की वस्तु उपलब्ध न होने पर हृदय खिन्न हो जाता है,
किंतु अभिलाषा की पूर्ति जीवन वृक्ष प्रमाणित होती है.
वह, जो शिक्षा को तुच्छ दृष्टि से देखता है, स्वयं अपना विनाश आमंत्रित करता है,
किंतु वह, जो आदेश का सम्मान करता है, उत्कृष्ट प्रतिफल प्राप्त करता है.
बुद्धिमान की शिक्षा जीवन का सोता है,
कि इससे मृत्यु के फन्दों से बचा जा सके.
सौहार्दपूर्ण संबंध सहज सुबुद्धि द्वारा स्थापित किए जाते हैं,
किंतु विश्वासघाती की नीति उसी के विनाश का कारक होती है.
चतुर व्यक्ति के हर एक कार्य में ज्ञान झलकता है,
किंतु मूर्ख अपनी मूर्खता ही उछालता रहता है.
कुटिल संदेशवाहक विपत्ति में जा पड़ता है,
किंतु विश्वासयोग्य संदेशवाहक मेल-मिलाप करवा देता है.
निर्धनता और लज्जा, उसी के हाथ लगती हैं, जो शिक्षा की उपेक्षा करता है,
किंतु सम्मानित वह होता है, जो ताड़ना स्वीकार करता है.
अभिलाषा की पूर्ति प्राणों में मधुरता का संचार करती है,
किंतु बुराई का परित्याग मूर्ख को अप्रिय लगता है.
वह, जो ज्ञानवान की संगति में रहता है, ज्ञानवान हो जाता है,
किंतु मूर्खों के साथियों को हानि का सामना करना होगा.
विपत्ति पापियों के पीछे लगी रहती है,
किंतु धर्मी का प्रतिफल होता है कल्याण.
सज्जन संतान की संतान के लिए धन छोड़ जाता है,
किंतु पापियों की निधि धर्मी को प्राप्त होती है.
यह संभव है कि साधारण किसान की भूमि उत्तम उपज लाए,
किंतु अन्यायी उसे हड़प लेता है.
जो पिता अपने पुत्र को दंड नहीं देता, उसे अपने पुत्र से प्रेम नहीं है,
किंतु जिसे अपने पुत्र से प्रेम है, वह बड़ी सावधानीपूर्वक उसे अनुशासन में रखता है.
धर्मी को उसकी भूख मिटाने के लिए पर्याप्त भोजन रहता है,
किंतु दुष्ट सदैव अतृप्त ही बने रहते हैं.
बुद्धिमान स्त्री एक सशक्त परिवार का निर्माण करती है,
किंतु मूर्ख अपने ही हाथों से उसे नष्ट कर देती है.
जिस किसी के जीवन में याहवेह के प्रति श्रद्धा है, उसके जीवन में सच्चाई है;
परंतु वह जो प्रभु को तुच्छ समझता है, उसका आचरण छल से भरा हुआ है!
मूर्ख के मुख से निकले शब्द ही उसके दंड के कारक बन जाते हैं,
किंतु बुद्धिमानों के होंठों से निकले शब्द उनकी रक्षा करते हैं.
जहां बैल ही नहीं हैं, वहां गौशाला स्वच्छ रहती है,
किंतु बैलों की शक्ति से ही धन की भरपूरी निहित है.
विश्वासयोग्य साक्षी छल नहीं करता,
किंतु झूठे साक्षी के मुख से झूठ ही झूठ बाहर आता है.
छिछोरा व्यक्ति ज्ञान की खोज कर सकता है, किंतु उसे प्राप्त नहीं कर पाता,
हां, जिसमें समझ होती है, उसे ज्ञान की उपलब्धि सरलतापूर्वक हो जाती है.
मूर्ख की संगति से दूर ही रहना,
अन्यथा ज्ञान की बात तुम्हारी समझ से परे ही रहेगी.
विवेकी की बुद्धिमता इसी में होती है, कि वह उपयुक्त मार्ग की विवेचना कर लेता है,
किंतु मूर्खों की मूर्खता धोखा है.
दोष बलि मूर्खों के लिए ठट्ठा का विषय होता है,
किंतु खरे के मध्य होता है अनुग्रह.
मनुष्य को स्वयं अपने मन की पीडा का बोध रहता है
और अज्ञात व्यक्ति हृदय के आनंद में सम्मिलित नहीं होता.
दुष्ट के घर-परिवार का नष्ट होना निश्चित है,
किंतु धर्मी का डेरा भरा-पूरा रहता है.
एक ऐसा भी मार्ग है, जो उपयुक्त जान पड़ता है,
किंतु इसका अंत है मृत्यु-द्वार.
हंसता हुआ व्यक्ति भी अपने हृदय में वेदना छुपाए रख सकता है,
और हर्ष के बाद शोक भी हो सकता है.
विश्वासहीन व्यक्ति अपनी ही नीतियों का परिणाम भोगेगा,
किंतु धर्मी अपनी नीतियों का.
मूर्ख जो कुछ सुनता है उस पर विश्वास करता जाता है,
किंतु विवेकी व्यक्ति सोच-विचार कर पैर उठाता है.
बुद्धिमान व्यक्ति वह है, जो याहवेह का भय मानता, और बुरी जीवनशैली से दूर ही दूर रहता है;
किंतु निर्बुद्धि अहंकारी और असावधान होता है.
वह, जो शीघ्र क्रोधी हो जाता है, मूर्ख है,
तथा वह जो बुराई की युक्ति करता है, घृणा का पात्र होता है.
निर्बुद्धियों को प्रतिफल में मूर्खता ही प्राप्त होती है,
किंतु बुद्धिमान मुकुट से सुशोभित किए जाते हैं.
अंततः बुराई को भलाई के समक्ष झुकना ही पड़ता है,
तथा दुष्टों को भले लोगों के द्वार के समक्ष.
पड़ोसियों के लिए भी निर्धन घृणा का पात्र हो जाता है,
किंतु अनेक हैं, जो धनाढ्य के मित्र हो जाते हैं.
वह, जो अपने पड़ोसी से घृणा करता है, पाप करता है,
किंतु वह धन्य होता है, जो निर्धनों के प्रति उदार एवं कृपालु होता है.
क्या वे मार्ग से भटक नहीं गये, जिनकी अभिलाषा ही दुष्कर्म की होती है?
वे, जो भलाई का यत्न करते रहते हैं. उन्हें सच्चाई तथा निर्जर प्रेम प्राप्त होता है.
श्रम किसी भी प्रकार का हो, लाभांश अवश्य प्राप्त होता है,
किंतु मात्र बातें करते रहने का परिणाम होता है गरीबी.
बुद्धिमान समृद्धि से सुशोभित होते हैं,
किंतु मूर्खों की मूर्खता और अधिक गरीबी उत्पन्न करती है.
सच्चा साक्षी अनेकों के जीवन को सुरक्षित रखता है,
किंतु झूठा गवाह धोखेबाज है.
जिसके हृदय में याहवेह के प्रति श्रद्धा होती है, उसे दृढ़ गढ़ प्राप्त हो जाता है,
उसकी संतान सदैव सुरक्षित रहेगी.
याहवेह के प्रति श्रद्धा ही जीवन का सोता है,
उससे मानव मृत्यु के द्वारा बिछाए गए जाल से बचता जाएगा.
प्रजा की विशाल जनसंख्या राजा के लिए गौरव का विषय होती है,
किंतु प्रजा के अभाव में प्रशासक नगण्य रह जाता है.
वह बुद्धिमान ही होता है, जिसका अपने क्रोधावेग पर नियंत्रण होता है,
किंतु जिसे शीघ्र ही क्रोध आ जाता है, वह मूर्खता की वृद्धि करता है.
शांत हृदय देह के लिए संजीवनी सिद्ध होता है,
किंतु ईर्ष्या अस्थियों में लगे घुन-समान है.
वह, जो निर्धन को उत्पीड़ित करता है, उसके सृजनहार को अपमानित करता है,
किंतु वह, जो निर्धन के प्रति उदारता प्रदर्शित करता है, उसके सृजनहार को सम्मानित करता है.
दुष्ट के विनाश का कारण उसी के कुकृत्य होते हैं,
किंतु धर्मी अपनी मृत्यु के अवसर पर निराश्रित नहीं छूट जाता.
बुद्धिमान व्यक्ति के हृदय में ज्ञान का निवास होता है,
किंतु मूर्खों के हृदय में ज्ञान गुनहगार अवस्था में रख दिया जाता है.
धार्मिकता ही राष्ट्र को उन्नत बनाती है,
किंतु किसी भी समाज के लिए पाप निंदनीय ही होता है.
चतुर सेवक राजा का प्रिय पात्र होता है,
किंतु वह सेवक, जो लज्जास्पद काम करता है, राजा का कोप को भड़काता है.
मृदु प्रत्युत्तर कोप शांत कर देता है,
किंतु कठोर प्रतिक्रिया से क्रोध भड़कता है.
बुद्धिमान के मुख से ज्ञान निकलता है,
किंतु मूर्ख का मुख मूर्खता ही उगलता है.
याहवेह की दृष्टि सब स्थान पर बनी रहती है,
उनके नेत्र उचित-अनुचित दोनों पर निगरानी रखते हैं.
सांत्वना देनेवाली बातें जीवनदायी वृक्ष है,
किंतु कुटिलतापूर्ण वार्तालाप उत्साह को दुःखित कर देता है.
मूर्ख पुत्र की दृष्टि में पिता के निर्देश तिरस्कारीय होते हैं,
किंतु विवेकशील होता है वह पुत्र, जो पिता की डांट पर ध्यान देता है.
धर्मी के घर में अनेक-अनेक बहुमूल्य वस्तुएं पाई जाती हैं,
किंतु दुष्ट की आय ही उसके संकट का कारण बन जाती है.
बुद्धिमान के होंठों से ज्ञान का प्रसरण होता है,
किंतु मूर्ख के हृदय से ऐसा कुछ नहीं होता.
दुष्ट द्वारा अर्पित की गई बलि याहवेह के लिए घृणास्पद है,
किंतु धर्मी द्वारा की गई प्रार्थना उन्हें स्वीकार्य है.
याहवेह के समक्ष बुराई का चालचलन घृणास्पद होता है,
किंतु जो धर्मी का निर्वाह करता है वह उनका प्रिय पात्र हो जाता है.
उसके लिए घातक दंड निर्धारित है, जो सन्मार्ग का परित्याग कर देता है और वह;
जो डांट से घृणा करता है, मृत्यु आमंत्रित करता है.
जब मृत्यु और विनाश याहवेह के समक्ष खुली पुस्तक-समान हैं,
तो मनुष्य के हृदय कितने अधिक स्पष्ट न होंगे!
हंसी मजाक करनेवाले को डांट पसंद नहीं है,
इसलिए वे ज्ञानी से दूर रखते हैं.
प्रसन्न हृदय मुखमंडल को भी आकर्षक बना देता है,
किंतु दुःखित हृदय आत्मा तक को निराश कर देता है.
विवेकशील हृदय ज्ञान की खोज करता रहता है,
किंतु मूर्खों का वार्तालाप उत्तरोत्तर मूर्खता विकसित करता है.
गरीबी-पीड़ित के सभी दिन क्लेशपूर्ण होते हैं,
किंतु उल्लसित हृदय के कारण प्रतिदिन उत्सव सा आनंद रहता है.
याहवेह के प्रति श्रद्धा में सीमित धन ही उत्तम होता है,
इसकी अपेक्षा कि अपार संपदा के साथ विपत्तियां भी संलग्न हों.
प्रेमपूर्ण वातावरण में मात्र सादा साग का भोजन ही उपयुक्त होता है,
इसकी अपेक्षा कि अनेक व्यंजनों का आमिष भोज घृणा के साथ परोसा जाए.
क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति कलह उत्पन्न करता है,
किंतु क्रोध में विलंबी व्यक्ति कलह को शांत कर देता है.
मूर्खों की जीवनशैली कंटीली झाड़ी के समान होती है,
किंतु धर्मी के जीवन का मार्ग सीधे-समतल राजमार्ग समान होता है.
बुद्धिमान पुत्र अपने पिता के लिए आनंद एवं गर्व का विषय होता है,
किंतु मूर्ख होता है वह, जिसे अपनी माता से घृणा होती है.
समझ रहित व्यक्ति के लिए मूर्खता ही आनन्दप्रदायी मनोरंजन है,
किंतु विवेकशील व्यक्ति धर्मी के मार्ग पर सीधा आगे बढ़ता जाता है.
उपयुक्त परामर्श के अभाव में योजनाएं विफल हो जाती हैं,
किंतु अनेक परामर्शक उसे विफल नहीं होने देते.
अवसर के अनुकूल दिया गया उपयुक्त उत्तर हर्ष का विषय होता है.
कैसा मनोहर होता है, अवसर के अनुकूल दिया गया सुसंगत शब्द!
बुद्धिमान और विवेकी व्यक्ति का जीवन मार्ग ऊपर की तरफ जाता है,
कि वह नीचे, अधोलोक-उन्मुख मृत्यु के मार्ग से बच सके.
याहवेह अहंकारी के घर को चिथड़े-चिथड़े कर देते हैं,
किंतु वह विधवा की सीमाएं सुरक्षित रखते हैं.
दुष्ट का विचार मंडल ही याहवेह के लिए घृणित है,
किंतु करुणामय बातें उन्हें सुखद लगती हैं.
लालची अपने ही परिवार में विपत्ति ले आता है.
किंतु वह, जो घूस से घृणा करता है, जीवित रहता है.
उत्तर देने के पूर्व धर्मी अपने हृदय में अच्छी रीति से विचार कर लेता है,
किंतु दुष्ट के मुख से मात्र दुर्वचन ही निकलते हैं.
याहवेह धर्मी की प्रार्थना का उत्तर अवश्य देते हैं,
किंतु वह दुष्टों से दूरी बनाए रखते हैं.
संदेशवाहक की नेत्रों में चमक सभी के हृदय में आनंद का संचार करती है,
तथा शुभ संदेश अस्थियों तक में नवस्फूर्ति ले आता है.
वह व्यक्ति, जो जीवन-प्रदायी ताड़ना को स्वीकार करता है,
बुद्धिमान के साथ निवास करेगा.
वह जो अनुशासन का परित्याग करता है, स्वयं से छल करता है,
किंतु वह, जो प्रताड़ना स्वीकार करता है, समझ प्राप्त करता है.
वस्तुतः याहवेह के प्रति श्रद्धा ही ज्ञान उपलब्धि का साधन है,
तथा विनम्रता महिमा की पूर्ववर्ती है.
मनुष्य के मन में योजना अवश्य होती हैं,
किंतु कार्य का आदेश याहवेह के द्वारा ही किया जाता है.
मनुष्य की दृष्टि में उसका अपना समस्त चालचलन शुद्ध ही होता है,
किंतु याहवेह ही उसकी अंतरात्मा को परखते हैं.
अपना समस्त उपक्रम याहवेह पर डाल दो,
कि वह तुम्हारी योजनाओं को सफल कर सकें.
याहवेह ने हर एक वस्तु को एक विशेष उद्देश्य से सृजा—
यहां तक कि दुष्ट को घोर विपत्ति के दिन के लिए.
हर एक अहंकारी हृदय याहवेह के लिए घृणास्पद है;
स्मरण रहे: दंड से कोई भी नहीं बचेगा.
निस्वार्थ प्रेम तथा खराई द्वारा अपराधों का प्रायश्चित किया जाता है;
तथा याहवेह के प्रति श्रद्धा के द्वारा बुराई से मुड़ना संभव होता है.
जब किसी व्यक्ति का चालचलन याहवेह को भाता है,
वह उसके शत्रुओं तक को उसके प्रति मित्र बना देते हैं.
सीमित संसाधनों के साथ धर्मी का जीवन
अनुचित रूप से अर्जित अपार संपत्ति से उत्तम है.
मानवीय मस्तिष्क अपने लिए उपयुक्त मार्ग निर्धारित कर लेता है,
किंतु उसके पैरों का निर्धारण याहवेह ही करते हैं.
राजा के मुख द्वारा घोषित निर्णय दिव्य वाणी के समान होते हैं,
तब उसके निर्णयों में न्याय-विसंगति अनुपयुक्त है.
शुद्ध माप याहवेह द्वारा निर्धारित होते हैं;
सभी प्रकार के माप पर उन्हीं की स्वीकृति है.
बुराई राजा पर शोभा नहीं देती,
क्योंकि सिंहासन की स्थिरता धर्म पर आधारित है.
राजाओं को न्यायपूर्ण वाणी भाती है;
जो जन सत्य बोलता है, वह उसे ही मान देता है.
राजा का कोप मृत्यु के दूत के समान होता है,
किंतु ज्ञानवान व्यक्ति इस कोप को ठंडा कर देता है.
राजा के मुखमंडल का प्रकाश जीवनदान है;
उसकी कृपादृष्टि उन मेघों के समान है, जो वसन्त ऋतु की वृष्टि लेकर आते हैं.
स्वर्ण की अपेक्षा ज्ञान को प्राप्त करना कितना अधिक उत्तम है,
और बुद्धिमत्ता की उपलब्धि चांदी पाने से.
धर्मी का राजमार्ग कुटिलता को देखे बिना उसे दूर छोड़ता हुआ आगे बढ़ जाता है.
जो अपने चालचलन के प्रति न्यायी रहता है, अपने जीवन की रक्षा ही करता है.
सर्वनाश के पूर्व अहंकार,
तथा ठोकर के पूर्व घमंड प्रकट होता है.
निर्धनों के मध्य विनम्र भाव में रहना
दिन के साथ लूट की सामग्री में सम्मिलित होने से उत्तम है.
जो कोई शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुनता है,
उत्तम प्रतिफल प्राप्त करता है और धन्य होता है वह, जिसने याहवेह पर भरोसा रखा है.
कुशाग्रबुद्धि के व्यक्ति अनुभवी व्यक्ति के रूप में प्रख्यात हो जाते हैं,
और मधुर बातों से अभिव्यक्ति ग्रहण योग्य हो जाती है.
बुद्धिमान व्यक्ति में समझ जीवन-प्रदायी सोता समान है,
किंतु मूर्ख को अपनी ही मूर्खता के द्वारा दंड प्राप्त हो जाता है.
बुद्धिमानों के मन उनके मुंह को समझदार बनाते हैं और उनके ओंठ ज्ञान प्रसार करते हैं,
और उसका वक्तव्य श्रोता स्वीकार भी कर लेते हैं.
सुहावने शब्द मधु के छत्ते-समान होते हैं,
जिनसे मन को शांति तथा देह को स्वास्थ्य प्राप्त होता है.
एक ऐसा मार्ग है, जो उपयुक्त जान पड़ता है,
किंतु इसका अंत है मृत्यु-द्वार.
श्रमिक के श्रम की प्रेरणा है उसकी भूख;
अपने उदर की सतत मांग पर ही वह श्रम करता जाता है.
अधर्मी व्यक्ति बुराई की योजना करता रहता है,
और जब वह बातें करता है, तो उसके शब्द भड़कती अग्नि-समान होते हैं.
कुटिल मनोवृत्ति का व्यक्ति कलह फैलाता जाता है,
तथा परम मित्रों में फूट का कारण वह व्यक्ति होता है, जो कानाफूसी करता है.
हिंसक प्रवृत्ति का व्यक्ति अपने पड़ोसी को आकर्षित कर
उसे बुराई के लिए प्रेरित कर देता है.
वह, जो अपने नेत्रों से इशारे करता है, वह निश्चयतः कुटिल युक्ति गढ़ रहा होता है;
जो अपने ओंठ चबाता है, वह विसंगत युक्ति कर रहा होता है.
श्वेत केश शानदार मुकुट हैं;
ये धर्ममय मार्ग पर चलने से प्राप्त होते है.
एक योद्धा से बेहतर वह है, जो विलंब से क्रोध करता है;
जिसने एक नगर को अधीन कर लिया है, उससे भी उत्तम है जिसने अपनी अंतरात्मा पर नियंत्रण कर लिया है!
किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए मत अवश्य लिया जाता है,
किंतु हर एक निष्कर्ष याहवेह द्वारा ही निर्धारित किया जाता है.
सुख-शांति के वातावरण में सूखी रोटी का भोजन
कलहपूर्ण उत्सव-भोज से कहीं अधिक उत्तम है.
चतुर, बुद्धिमान सेवक उस पुत्र पर शासन करेगा,
जिसका चालचलन लज्जास्पद है.
चांदी की परख कुठाली से तथा स्वर्ण की भट्टी से की जाती है,
किंतु हृदयों की परख याहवेह करते हैं.
दुष्ट अनर्थ में रुचि लेता रहता है;
झूठा व्यक्ति विनाशकारी जीभ पर ध्यान देता है.
जो निर्धन को उपहास का पात्र बनाता है, वह उसके सृजनहार का उपहास करता है;
और जो दूसरों की विपत्ति को देख आनंदित होता है, निश्चयतः दंड प्राप्त करता है.
वयोवृद्धों का गौरव उनके नाती-पोतों में होता है,
तथा संतान का गौरव उनके माता-पिता में.
अशोभनीय होती है मूर्ख द्वारा की गई दीर्घ बात;
इससे कहीं अधिक अशोभनीय होती है प्रशासक द्वारा की गई झूठी बात.
वह, जो घूस देता है, उसकी दृष्टि में घूस जादू-समान प्रभाव डालता है;
इसके द्वारा वह अपना कार्य पूर्ण कर ही लेता है.
प्रेम का खोजी अन्य के अपराध पर आवरण डालता है,
किंतु वह, जो अप्रिय घटना का उल्लेख बार-बार करता है, परम मित्रों तक में फूट डाल देता है.
बुद्धिमान व्यक्ति पर एक डांट का जैसा गहरा प्रभाव पड़ता है,
मूर्ख पर वैसा प्रभाव सौ लाठी के प्रहारों से भी संभव नहीं है.
दुष्ट का लक्ष्य मात्र विद्रोह ही हुआ करता है;
इसके दमन के लिए क्रूर दूत भेजा जाना अनिवार्य हो जाता है.
किसी मूर्ख की मूर्खता में उलझने से उत्तम यह होगा,
कि उस रीछनी से सामना हो जाए, जिसके बच्चे छीन लिए गए हैं.
जो व्यक्ति किसी हितकार्य का प्रतिफल बुराई कार्य के द्वारा देता है,
उसके परिवार में बुराई का स्थायी वास हो जाता है.
कलह का प्रारंभ वैसा ही होता है, जैसा विशाल जल राशि का छोड़ा जाना;
तब उपयुक्त यही होता है कि कलह के प्रारंभ होते ही वहां से पलायन कर दिया जाए.
याहवेह की दृष्टि में दोनों ही घृणित हैं;
वह, जो दोषी को छोड़ देता है तथा जो धर्मी को दोषी घोषित कर देता है.
ज्ञानवर्धन के लिए किसी मूर्ख के धन का क्या लाभ?
जब उसे ज्ञान का मूल्य ही ज्ञात नहीं है.
मित्र वह है, जिसका प्रेम चिरस्थायी रहता है,
और भाई का अस्तित्व विषम परिस्थिति में सहायता के लिए ही होता है.
वह मूर्ख ही होता है, जो हाथ पर हाथ मारकर शपथ करता
तथा अपने पड़ोसी के लिए आर्थिक ज़मानत देता है.
जो कोई झगड़े से प्यार रखता है, वह पाप से प्यार करता है;
जो भी एक ऊंचा फाटक बनाता है विनाश को आमंत्रित करता है.
कुटिल प्रवृत्ति का व्यक्ति अवश्य ही विपत्ति में जा पड़ेगा;
वैसे ही वह भी, जो झूठ बोलने वाला है.
वह, जो मन्दबुद्धि पुत्र को जन्म देता है, अपने ही ऊपर शोक ले आता है;
मूर्ख के पिता के समक्ष आनंद का कोई विषय नहीं रह जाता.
आनंदित हृदय स्वास्थ्य देनेवाली औषधि है,
किंतु टूटा दिल अस्थियों को तक सुखा देता है.
दुष्ट गुप्त रूप से घूस लेता रहता है,
कि न्याय की नीति को कुटिल कर दे.
बुद्धिमान सदैव ज्ञान की ही खोज करता रहता है,
किंतु मूर्ख का मस्तिष्क विचलित होकर सर्वत्र भटकता रहता है.
मूर्ख पुत्र अपने पिता के लिए शोक का कारण होता है
और जिसने उसे जन्म दिया है उसके हृदय की कड़वाहट का कारण.
यह कदापि उपयुक्त नहीं है कि किसी धर्मी को दंड दिया जाए,
और न किसी सज्जन पर प्रहार किया जाए.
ज्ञानी जन शब्दों पर नियंत्रण रखता है,
और समझदार जन शांत बना रहता है.
जब तक मूर्ख मौन रहता है, बुद्धिमान माना जाता है,
उसे उस समय तक बुद्धिमान समझा जाता है, जब तक वह वार्तालाप में सम्मिलित नहीं होता.
जिसने स्वयं को समाज से अलग कर लिया है, वह अपनी ही अभिलाषाओं की पूर्ति में संलिप्त रहता है,
वह हर प्रकार की प्रामाणिक बुद्धिमत्ता को त्याग चुका है.
विवेकशीलता में मूर्ख की कोई रुचि नहीं होती.
उसे तो मात्र अपने ही विचार व्यक्त करने की धुन रहती है.
जैसे ही दृष्टि का प्रवेश होता है, घृणा भी साथ साथ चली आती है,
वैसे ही अपमान के साथ साथ निर्लज्जता भी.
मनुष्य के मुख से बोले शब्द गहन जल समान होते हैं,
और ज्ञान का सोता नित प्रवाहित उमड़ती नदी समान.
दुष्ट का पक्ष लेना उपयुक्त नहीं
और न धर्मी को न्याय से वंचित रखना.
मूर्खों का वार्तालाप कलह का प्रवेश है,
उनके मुंह की बातें उनकी पिटाई की न्योता देती हैं.
मूर्खों के मुख ही उनके विनाश का हेतु होता हैं,
उनके ओंठ उनके प्राणों के लिए फंदा सिद्ध होते हैं.
फुसफुसाहट में उच्चारे गए शब्द स्वादिष्ट भोजन-समान होते हैं;
ये शब्द मनुष्य के पेट में समा जाते हैं.
जो कोई अपने निर्धारित कार्य के प्रति आलसी है
वह विध्वंसक व्यक्ति का भाई होता है.
याहवेह का नाम एक सुदृढ़ मीनार समान है;
धर्मी दौड़कर इसमें छिप जाता और सुरक्षित बना रहता है.
धनी व्यक्ति के लिए उसका धन एक गढ़ के समान होता है;
उनको लगता हैं कि उस पर चढ़ना मुश्किल है!
इसके पूर्व कि किसी मनुष्य पर विनाश का प्रहार हो, उसका हृदय घमंडी हो जाता है,
पर आदर मिलने के पहले मनुष्य नम्र होता है!
यदि कोई ठीक से सुने बिना ही उत्तर देने लगे,
तो यह मूर्खता और लज्जा की स्थिति होती है.
रुग्ण अवस्था में मनुष्य का मनोबल उसे संभाले रहता है,
किंतु टूटे हृदय को कौन सह सकता है?
बुद्धिमान मस्तिष्क वह है, जो ज्ञान प्राप्त करता रहता है.
बुद्धिमान का कान ज्ञान की खोज करता रहता है.
उपहार उसके देनेवाले के लिए मार्ग खोलता है,
जिससे उसका महान व्यक्तियों के पास प्रवेश संभव हो जाता है.
यह संभव है कि न्यायालय में, जो व्यक्ति पहले होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करता है,
सच्चा ज्ञात हो; जब तक अन्य पक्ष आकर परीक्षण न करे.
पासा फेंककर विवाद हल करना संभव है,
इससे प्रबल विरोधियों के मध्य सर्वमान्य निर्णय लिया जा सकता है.
एक रुष्ट भाई को मनाना सुदृढ़-सुरक्षित नगर को ले लेने से अधिक कठिन कार्य है;
और विवाद राजमहल के बंद फाटक समान होते हैं.
मनुष्य की बातों का परिणाम होता है उसके पेट का भरना;
उसके होंठों के उत्पाद में उसका संतोष होता है.
जिह्वा की सामर्थ्य जीवन और मृत्यु तक व्याप्त है,
और जिन्हें यह बात ज्ञात है, उन्हें इसका प्रतिफल प्राप्त होगा.
जिस किसी को पत्नी प्राप्त हो गई है, उसने भलाई प्राप्त की है,
उसे याहवेह की ओर से ही यह आनंद प्राप्त हुआ है.
संसार में निर्धन व्यक्ति गिड़गिड़ाता रहता है,
और धनी उसे कठोरतापूर्व उत्तर देता है.
मनुष्य के मित्र मैत्री का लाभ उठाते रहते हैं,
किंतु सच्चा मित्र वह होता है, जो भाई से भी अधिक उत्तम होता है.
वह निर्धन व्यक्ति, जिसका चालचलन खराई है,
उस व्यक्ति से उत्तम है, जो कुटिल है और मूर्ख भी.
ज्ञान-रहित इच्छा निरर्थक होती है
तथा वह, जो किसी भी कार्य के लिए उतावली करता है, लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाता!
जब किसी व्यक्ति की मूर्खता के परिणामस्वरूप उसकी योजनाएं विफल हो जाती हैं,
तब उसके हृदय में याहवेह के प्रति क्रोध भड़क उठता है.
धन-संपत्ति अनेक नए मित्रों को आकर्षित करती है,
किंतु निर्धन व्यक्ति के मित्र उसे छोड़कर चले जाते हैं.
झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है,
तथा दंडित वह भी होगा, जो झूठा है.
उदार व्यक्ति का समर्थन अनेक व्यक्ति चाहते हैं,
और उस व्यक्ति के मित्र सभी हो जाते हैं, जो उपहार देने में उदार है.
निर्धन व्यक्ति तो अपने संबंधियों के लिए भी घृणा का पात्र हो जाता है.
उसके मित्र उससे कितने दूर हो जाते हैं!
वह उन्हें मनाता रह जाता है,
किंतु इसका उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
बुद्धि प्राप्त करना स्वयं से प्रेम करना है;
तथा ज्ञान को सुरक्षित रखना समृद्धि है.
झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है तथा जो झूठा है,
वह नष्ट हो जाएगा.
सुख से रहना मूर्ख को शोभा नहीं देता,
ठीक जिस प्रकार दास का शासकों पर शासन करना.
सद्बुद्धि मनुष्य को क्रोध पर नियंत्रण रखने योग्य बनाती है;
और जब वह अपराध को भुला देता है, उसकी प्रतिष्ठा होती है.
राजा का क्रोध सिंह के गरजने के समान होता है,
किंतु उसकी कृपा घास पर पड़ी ओस समान.
मूर्ख संतान पिता के विनाश का कारक होती है,
और झगड़ालू पत्नी नित
टपक रहे जल समान.
घर और संपत्ति पूर्वजों का धन होता है,
किंतु बुद्धिमती पत्नी याहवेह की ओर से प्राप्त होती है.
आलस्य का परिणाम होता है गहन नींद,
ढीला व्यक्ति भूखा रह जाता है.
वह, जो आदेशों को मानता है, अपने ही जीवन की रक्षा करता है,
किंतु जो अपने चालचलन के विषय में असावधान रहता है, मृत्यु अपना लेता है.
वह, जो निर्धनों के प्रति उदार मन का है, मानो याहवेह को ऋण देता है;
याहवेह उसे उत्तम प्रतिफल प्रदान करेंगे.
यथासंभव अपनी संतान पर अनुशासन रखो उसी में तुम्हारी आशा निहित है;
किंतु ताड़ना इस सीमा तक न की जाए, कि इसमें उसकी मृत्यु ही हो जाए.
अति क्रोधी व्यक्ति को इसका दंड भोगना होता है;
यदि तुम उसे दंड से बचाओगे तो तुम समस्त प्रक्रिया को दोहराते रहोगे.
परामर्श पर विचार करते रहो और निर्देश स्वीकार करो,
कि तुम उत्तरोत्तर बुद्धिमान होते जाओ.
मनुष्य के मन में अनेक-अनेक योजनाएं उत्पन्न होती रहती हैं,
किंतु अंततः याहवेह का उद्देश्य ही पूरा होता है.
मनुष्य में खराई की अपेक्षा की जाती है;
तथा झूठ बोलनेवाले की अपेक्षा निर्धन अधिक उत्तम है.
याहवेह के प्रति श्रद्धा ही जीवन का मार्ग है;
तथा जिस किसी में यह भय है, उसका ठिकाना सुखी रहता है, अनिष्ट उसको स्पर्श नहीं करता.
एक आलसी ऐसा भी होता है, जो अपना हाथ भोजन की थाली में डाल तो देता है;
किंतु आलस्य में भोजन को मुख तक नहीं ले जाता.
ज्ञान के ठट्ठा करनेवाले पर प्रहार करो कि सरल-साधारण व्यक्ति भी बुद्धिमान बन जाये;
विवेकशील व्यक्ति को डांटा करो कि उसका ज्ञान बढ़ सके.
जो व्यक्ति अपने पिता के प्रति हिंसक हो जाता तथा अपनी माता को घर से बाहर निकाल देता है,
ऐसी संतान है, जो परिवार पर लज्जा और निंदा ले आती है.
मेरे पुत्र, यदि तुम शिक्षाओं को सुनना छोड़ दो,
तो तुम ज्ञान के वचनों से दूर चले जाओगे.
कुटिल साक्षी न्याय का उपहास करता है,
और दुष्ट का मुख अपराध का समर्थन करता है.
ठट्ठा करनेवालों के लिए दंड निर्धारित है,
और मूर्ख की पीठ के लिए कोड़े हैं.
दाखमधु ठट्ठा करनेवाला, तथा दाखमधु हल्ला मचानेवाला हो जाता है;
और जो व्यक्ति इनके प्रभाव में है, वह निर्बुद्धि है.
राजा का भय सिंह की दहाड़-समान होता है;
जो कोई उसके कोप को उकसाता है, अंततः प्राणों से हाथ धो बैठता है.
आदरणीय है वह व्यक्ति, जो कलह और विवादों से दूर रहता है,
झगड़ालू, वस्तुतः मूर्ख ही होता है.
आलसी निर्धारित समय पर हल नहीं जोतता;
और कटनी के समय पर उपज काटने जाता है, तो वहां कुछ भी नहीं रहेगा.
मनुष्य के मन में निहित युक्तियां गहरे सागर समान होती हैं,
ज्ञानवान ही उन्हें निकाल बाहर ला सकता है.
अनेक अपने उत्कृष्ट प्रेम का दावा करते हुए खड़े हो जाएंगे,
किंतु एक सच्चा व्यक्ति किसे प्राप्त होता है?
धर्मी जन निष्कलंक जीवन जीता है;
उसके बाद आनेवाली संतानें धन्य हैं.
न्याय-सिंहासन पर विराजमान राजा मात्र
अपनी दृष्टि ही से बुराई को भांप लेता है.
कौन यह दावा कर सकता है, “मैंने अपने हृदय को पवित्र कर लिया है;
मैं पाप से शुद्ध हो चुका हूं”?
याहवेह के समक्ष असमान तुला
और असमान माप घृणास्पद हैं.
एक किशोर के लिए भी यह संभव है, कि वह अपने चालचलन द्वारा अपनी विशेषता के लक्षण प्रकट कर दे,
कि उसकी गतिविधि शुद्धता तथा पवित्रता की ओर है अथवा नहीं?
वे कान, जो सुनने के लिए, तथा वे नेत्र, जो देखने के लिए निर्धारित किए गए हैं,
याहवेह द्वारा निर्मित हैं.
नींद का मोह तुम्हें गरीबी में डुबो देगा;
अपने नेत्र खुले रखो कि तुम्हारे पास भोजन की भरपूरी रहे.
ग्राहक तो विक्रेता से यह अवश्य कहता है, “अच्छी नहीं है यह सामग्री!”
किंतु वहां से लौटकर वह अन्यों के समक्ष अपनी उत्कृष्ट खरीद की बड़ाई करता है.
स्वर्ण और मूंगे की कोई कमी नहीं है,
दुर्लभ रत्नों के समान दुर्लभ हैं ज्ञान के उद्गार.
जो किसी अनजान के ऋण की ज़मानत देता है, वह अपने वस्त्र तक गंवा बैठता है;
जब कोई अनजान व्यक्तियों की ज़मानत लेने लगे, तब प्रतिभूति सुरक्षा में उसका वस्त्र भी रख ले.
छल से प्राप्त किया गया भोजन उस व्यक्ति को बड़ा स्वादिष्ट लगता है,
किंतु अंत में वह पाता है कि उसका मुख कंकड़ों से भर गया है.
किसी भी योजना की सिद्धि का मर्म है सुसंगत परामर्श;
तब युद्ध के पूर्व उपयुक्त निर्देश प्राप्त कर रखो.
कानाफूसी आत्मविश्वास को धोखा देती है;
तब ऐसे बकवादी की संगति से दूर रहना ही भला है.
जो अपने पिता और अपनी माता को शाप देता है,
उसका दीपक घोर अंधकार की स्थिति में ही बुझ जाएगा.
प्रारंभ में सरलतापूर्वक और शीघ्रता से
प्राप्त की हुई संपत्ति अंततः सुखदायक नहीं होती.
मत कहो, “मैं इस अन्याय का प्रतिशोध अवश्य लूंगा!”
याहवेह के निर्धारित अवसर की प्रतीक्षा करो, वही तुम्हारा छुटकारा करेंगे.
असमान माप याहवेह के समक्ष घृणास्पद,
तथा छलपूर्ण तुलामान कुटिलता है.
जब मनुष्य का चलना याहवेह द्वारा ठहराया जाता है,
तब यह कैसे संभव है कि हम अपनी गतिविधियों को स्वयं समझ सकें?
जल्दबाजी में कुछ प्रभु के लिए कुछ समर्पित करना एक जाल जैसा है,
क्योंकि तत्पश्चात व्यक्ति मन्नत के बारे में विचार करने लगता है!
बुद्धिमान राजा दुष्टों को अलग करता जाता है;
और फिर उन पर दांवने का पहिया चला देता है.
मनुष्य की आत्मा याहवेह द्वारा प्रज्वलित वह दीप है,
जिसके प्रकाश में वह उसके मन की सब बातों का ध्यान कर लेते हैं.
स्वामीश्रद्धा तथा सच्चाई ही राजा को सुरक्षित रखती हैं;
तथा बिना पक्षपात का न्याय उसके सिंहासन की स्थिरता होती है.
युवाओं की शोभा उनके शौर्य में है,
और वरिष्ठ व्यक्ति की उसके सफेद बालों में.
बुराई को छोड़ने के लिए अनिवार्य है वह प्रहार,
जो घायल कर दे; कोड़ों की मार मन को स्वच्छ कर देती है.
याहवेह के हाथों में राजा का हृदय जलप्रवाह-समान है;
वही इसे ईच्छित दिशा में मोड़ देते हैं.
मनुष्य की दृष्टि में उसका हर एक कदम सही ही होता है,
किंतु याहवेह उसके हृदय को जांचते रहते हैं.
याहवेह के लिए सच्चाई तथा न्याय्यता
कहीं अधिक स्वीकार्य है.
घमंडी आंखें, दंभी हृदय
तथा दुष्ट का दीप पाप हैं.
यह सुनिश्चित होता है कि परिश्रमी व्यक्ति की योजनाएं लाभ में निष्पन्न होती हैं,
किंतु हर एक उतावला व्यक्ति निर्धन ही हो जाता है.
झूठ बोलने के द्वारा पाया गया धन
इधर-उधर लहराती वाष्प होती है, यह मृत्यु का फंदा है.
दुष्ट अपने ही हिंसक कार्यों में उलझ कर विनष्ट हो जाएंगे,
क्योंकि वे उपयुक्त और सुसंगत विकल्प को ठुकरा देते हैं.
दोषी व्यक्ति कुटिल मार्ग को चुनता है,
किंतु सात्विक का चालचलन धार्मिकतापूर्ण होता है.
विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से
कहीं अधिक श्रेष्ठ है छत के एक कोने में रह लेना.
दुष्ट के मन की लालसा ही बुराई की होती है;
उसके पड़ोसी तक भी उसकी आंखों में कृपा की झलक नहीं देख पाते.
जब ज्ञान के ठट्ठा करनेवालों को दंड दिया जाता है, बुद्धिहीनों में ज्ञानोदय हो जाता है;
जब बुद्धिमान को शिक्षा दी जाती है, उसमें ज्ञानवर्धन होता जाता है.
धर्मी दुष्ट के घर पर दृष्टि बनाए रखता है,
और वह दुष्ट को विनाश गर्त में डाल देता है.
जो कोई निर्धन की पुकार की अनसुनी करता है,
उसकी पुकार के अवसर पर उसकी भी अनसुनी की जाएगी.
गुप्त रूप से दिया गया उपहार
और चुपचाप दी गई घूस कोप शांत कर देती है.
बिना पक्षपात न्याय को देख धर्मी हर्षित होते हैं,
किंतु यही दुष्टों के लिए आतंक प्रमाणित होता है.
जो ज्ञान का मार्ग छोड़ देता है,
उसका विश्रान्ति स्थल मृतकों के साथ निर्धारित है.
यह निश्चित है कि विलास प्रिय व्यक्ति निर्धन हो जाएगा तथा वह;
जिसे दाखमधु तथा शारीरिक सुखों का मोह है, निर्धन होता जाएगा.
धर्मी के लिए दुष्ट फिरौती हो जाता है,
तथा विश्वासघाती खराई के लिए.
क्रोधी, विवादी और चिड़चिड़ी स्त्री के साथ निवास करने से
उत्तम होगा बंजर भूमि में निवास करना.
अमूल्य निधि और उत्कृष्ट भोजन बुद्धिमान के घर में ही पाए जाते हैं,
किंतु मूर्ख इन्हें नष्ट करता चला जाता है.
धर्म तथा कृपा के अनुयायी को प्राप्त होता है
जीवन, धार्मिकता और महिमा.
बुद्धिमान व्यक्ति ही योद्धाओं के नगर पर आक्रमण करके उस सुरक्षा को ध्वस्त कर देता है,
जिस पर उन्होंने भरोसा किया था.
जो कोई अपने मुख और जीभ को वश में रखता है,
स्वयं को विपत्ति से बचा लेता है.
अहंकारी तथा दुष्ट व्यक्ति, जो ठट्ठा करनेवाले के रूप में कुख्यात हो चुका है,
गर्व और क्रोध के भाव में ही कार्य करता है.
आलसी की अभिलाषा ही उसकी मृत्यु का कारण हो जाती है,
क्योंकि उसके हाथ कार्य करना ही नहीं चाहते.
सारे दिन वह लालसा ही लालसा करता रहता है,
किंतु धर्मी उदारतापूर्वक दान करता जाता है.
याहवेह के लिए दुष्ट द्वारा अर्पित बलि घृणास्पद है और उससे भी कहीं अधिक उस स्थिति में,
जब यह बलि कुटिल अभिप्राय से अर्पित की जाती है.
झूठा साक्षी तो नष्ट होगा ही,
किंतु वह, जो सच्चा है, सदैव सुना जाएगा.
दुष्ट व्यक्ति अपने मुख पर निर्भयता का भाव ले आता है,
किंतु धर्मी अपने चालचलन के प्रति अत्यंत सावधान रहता है.
याहवेह के समक्ष न तो कोई ज्ञान,
न कोई समझ और न कोई परामर्श ठहर सकता है.
युद्ध के दिन के लिए घोड़े को सुसज्जित अवश्य किया जाता है,
किंतु जय याहवेह के ही अधिकार में रहती है.
विशाल निधि से कहीं अधिक योग्य है अच्छा नाम;
तथा स्वर्ण और चांदी से श्रेष्ठ है आदर सम्मान!
सम्पन्न और निर्धन के विषय में एक समता है:
दोनों ही के सृजनहार याहवेह ही हैं.
चतुर व्यक्ति जोखिम को देखकर छिप जाता है,
किंतु अज्ञानी आगे ही बढ़ता जाता है और यातना सहता है.
विनम्रता तथा याहवेह के प्रति श्रद्धा का प्रतिफल होता है;
धन संपदा, सम्मान और जीवन.
कुटिल व्यक्ति के मार्ग पर बिछे रहते हैं कांटे और फंदे,
किंतु जो कोई अपने जीवन के प्रति सावधान रहता है, स्वयं को इन सबसे दूर ही दूर रखता है.
अपनी संतान को उसी जीवनशैली के लिए तैयार कर लो,
जो सुसंगत है, वृद्ध होने पर भी वह इससे भटकेगा नहीं.
निर्धन पर धनाढ्य अधिकार कर लेता है,
तथा ऋणी महाजन का दास होकर रह जाता है.
जो कोई अन्याय का बीजारोपण करता है, विपत्ति की उपज एकत्र करता है,
तब उसके क्रोध की लाठी भी विफल सिद्ध होती है.
उदार व्यक्ति धन्य रहेगा,
क्योंकि वह निर्धन को अपने भोजन में सहभागी कर लेता है.
यदि छिछोरे और ठट्ठा करनेवाले को सभा से बाहर कर दिया जाए;
तो विवाद, कलह और परनिंदा सभी समाप्त हो जाएंगे.
जिन्हें निर्मल हृदय की महत्ता ज्ञात है, जिनकी बातें मधुर हैं,
वे राजा के प्रिय पात्र हो जाएंगे.
याहवेह की दृष्टि ज्ञान की रक्षा करती है,
किंतु वह कृतघ्न और विश्वासघाती के वक्तव्य को मिटा देते हैं.
आलसी कहता है, “बाहर सिंह है!
बाहर सड़क पर जाने पर मेरी मृत्यु निश्चित है!”
चरित्रहीन स्त्री का मुख गहरे गड्ढे-समान है;
याहवेह द्वारा शापित व्यक्ति ही इसमें जा गिरता है.
बालक की प्रकृति में ही मूर्खता बंधी रहती है,
अनुशासन की छड़ी से ही यह उससे दूर की जाती है.
जो अपनी संपत्ति में वृद्धि पाने के उद्देश्य से निर्धन पर अंधेर करने,
तथा धनाढ्य को उपहार देने का परिणाम होता है; निर्धनता!
तीस ज्ञान सूत्र
पहला सूत्र
अत्यंत ध्यानपूर्वक बुद्धिमानों का प्रवचन सुनो;
और मेरे ज्ञान की बातों को मन में बसा लो,
क्योंकि यह करना तुम्हारे लिए सुखदायी होगा,
यदि ये तुम्हारे मन में बसे हुए होंगे, यदि ये सभी तुम्हें मुखाग्र होंगे.
मैं यह सब तुम पर, विशेष रूप से
तुम पर इसलिये प्रकट कर रहा हूं, कि तुम्हारा भरोसा याहवेह पर अटल रहे;
विचार करो, क्या मैंने परामर्श
तथा ज्ञान के ये तीस नीति सूत्र इस उद्देश्य से नहीं लिखे कि
तुम्हें यह बोध रहे कि सुसंगत और सत्य क्या है,
और तुम अपने प्रेषकों को उपयुक्त उत्तर दे सको?
दूसरा सूत्र
किसी निर्धन को इसलिये लूटने न लगो, कि वह निर्धन है,
वैसे ही किसी पीड़ित को न्यायालय ले जाकर गुनहगार न बनाना,
क्योंकि याहवेह पीड़ित के पक्ष में खड़े होंगे,
और उनके प्राण का बदला लेंगे.
तीसरा सूत्र
किसी क्रोधी व्यक्ति को मित्र न बनाना,
और न किसी शीघ्र क्रोधी व्यक्ति के किसी कार्य में सहयोगी बनना.
कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उसी के समान बन जाओ
और स्वयं किसी फंदे में जा फंसो.
चौथा सूत्र
तुम उनके जैसे न बनना, जो किसी की ज़मानत लेते हैं,
जो किसी ऋणी के ऋण का दायित्व लेते हैं.
यदि तुम्हारे पास भुगतान करने के लिए कुछ नहीं है,
तो साहूकार तो तुमसे तुम्हारा बिछौना छीन लेगा.
पांचवां सूत्र
अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित
सीमा-चिन्हों को तुम कभी न हटाना.
छठा सूत्र
क्या आप किसी को अपने काम में कुशल दिखते हैं?
उस व्यक्ति का स्थान राजा की उपस्थिति में है;
वे नीचे श्रेणी के अधिकारियों के सामने सेवा नहीं करेंगे.
सातवां सूत्र
जब तुम किसी अधिकारी के साथ भोजन के लिए बैठो,
जो कुछ तुम्हारे समक्ष है, सावधानीपूर्वक उसका ध्यान करो.
उपयुक्त होगा कि तुम अपनी भूख पर
नियंत्रण रख भोजन की मात्रा कम ही रखो.
उसके उत्कृष्ट व्यंजनों की लालसा न करना,
क्योंकि वे सभी धोखे के भोजन हैं.
आठवां सूत्र
धनाढ्य हो जाने की अभिलाषा में स्वयं को
अतिश्रम के बोझ के नीचे दबा न डालो.
जैसे ही तुम्हारी दृष्टि इस पर जा ठहरती है, यह अदृश्य हो जाती है,
मानो इसके पंख निकल आए हों,
और यह गरुड़ के समान आकाश में उड़ जाता है.
नौवां सूत्र
भोजन के लिए किसी कंजूस के घर न जाना,
और न उसके उत्कृष्ट व्यंजनों की लालसा करना;
क्योंकि वह उस व्यक्ति के समान है,
जो कहता तो है, “और खाइए न!”
किंतु मन ही मन वह भोजन के मूल्य का हिसाब लगाता रहता है.
वस्तुतः उसकी वह इच्छा नहीं होती, जो वह कहता है.
तुमने जो कुछ अल्प खाया है, वह तुम उगल दोगे,
और तुम्हारे अभिनंदन, प्रशंसा और सम्मान के मधुर उद्गार भी व्यर्थ सिद्ध होंगे.
दसवां सूत्र
जब मूर्ख आपकी बातें सुन रहा हो तब कुछ न कहना.
क्योंकि तुम्हारी ज्ञान की बातें उसके लिए तुच्छ होंगी.
ग्यारहवां सूत्र
पूर्वकाल से चले आ रहे सीमा-चिन्ह को न हटाना,
और न किसी अनाथ के खेत को हड़प लेना.
क्योंकि सामर्थ्यवान है उनका छुड़ाने वाला;
जो तुम्हारे विरुद्ध उनका पक्ष लड़ेगा.
बारहवां सूत्र
शिक्षा पर अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करो,
ज्ञान के तथ्यों पर ध्यान लगाओ.
तेरहवां सूत्र
संतान पर अनुशासन के प्रयोग से न हिचकना;
उस पर छड़ी के प्रहार से उसकी मृत्यु नहीं हो जाएगी.
यदि तुम उस पर छड़ी का प्रहार करोगे
तो तुम उसकी आत्मा को नर्क से बचा लोगे.
चौदहवां सूत्र
मेरे पुत्र, यदि तुम्हारे हृदय में ज्ञान का निवास है,
तो मेरा हृदय अत्यंत प्रफुल्लित होगा;
मेरा अंतरात्मा हर्षित हो जाएगा,
जब मैं तुम्हारे मुख से सही उद्गार सुनता हूं.
पन्द्रहवां सूत्र
दुष्टों को देख तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या न जागे,
तुम सर्वदा याहवेह के प्रति श्रद्धा में आगे बढ़ते जाओ.
भविष्य सुनिश्चित है,
तुम्हारी आशा अपूर्ण न रहेगी.
सोलहवां सूत्र
मेरे बालक, मेरी सुनकर विद्वत्ता प्राप्त करो,
अपने हृदय को सुमार्ग के प्रति समर्पित कर दो:
उनकी संगति में न रहना, जो मद्यपि हैं
और न उनकी संगति में, जो पेटू हैं.
क्योंकि मतवालों और पेटुओं की नियति गरीबी है,
और अति नींद उन्हें चिथड़े पहनने की स्थिति में ले आती है.
सत्रहवां सूत्र
अपने पिता की शिक्षाओं को ध्यान में रखना, वह तुम्हारे जनक है,
और अपनी माता के वयोवृद्ध होने पर उन्हें तुच्छ न समझना.
सत्य को मोल लो, किंतु फिर इसका विक्रय न करना;
ज्ञान, अनुशासन तथा समझ संग्रहीत करते जाओ.
सबसे अधिक उल्लसित व्यक्ति होता है धर्मी व्यक्ति का पिता;
जिसने बुद्धिमान पुत्र को जन्म दिया है, वह पुत्र उसके आनंद का विषय होता है.
वही करो कि तुम्हारे माता-पिता आनंदित रहें;
एवं तुम्हारी जननी उल्लसित.
अठारहवां सूत्र
मेरे पुत्र, अपना हृदय मुझे दे दो;
तुम्हारे नेत्र मेरी जीवनशैली का ध्यान करते रहें,
वेश्या एक गहरा गड्ढा होती है,
पराई स्त्री एक संकरा कुंआ है.
वह डाकू के समान ताक लगाए बैठी रहती है
इसमें वह मनुष्यों में विश्वासघातियों की संख्या में वृद्धि में योग देती जाती है.
उन्नीसवां सूत्र
कौन है शोक संतप्त? कौन है विपदा में?
कौन विवादग्रस्त है? और कौन असंतोष में पड़ा है?
किस पर अकारण ही घाव हुए है? किसके नेत्र लाल हो गए हैं?
वे ही न, जिन्होंने देर तक बैठे दाखमधु पान किया है,
वे ही न, जो विविध मिश्रित दाखमधु का पान करते रहे हैं?
उस लाल आकर्षक दाखमधु पर दृष्टि ही मत डालो और न तब,
जब यह प्याले में उंडेली जाती है,
अन्यथा यह गले से नीचे उतरने में विलंब नहीं करेगी.
अंत में सर्पदंश के समान होता है
दाखमधु का प्रभाव तथा विषैले सर्प के समान होता है उसका प्रहार.
तुम्हें असाधारण दृश्य दिखाई देने लगेंगे,
तुम्हारा मस्तिष्क कुटिल विषय प्रस्तुत करने लगेगा.
तुम्हें ऐसा अनुभव होगा, मानो तुम समुद्र की लहरों पर लेटे हुए हो,
ऐसा, मानो तुम जलयान के उच्चतम स्तर पर लेटे हो.
तब तुम यह दावा भी करने लगोगे, “उन्होंने मुझे पीटा था, फिर भी मुझ पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा.
उन्होंने मुझे मारा पर मुझे तो लगा ही नहीं!
कब टूटेगी मेरी यह नींद?
लाओ, मैं एक प्याला और पी लूं.”
बीसवां सूत्र
दुष्टों से ईर्ष्या न करना,
उनके साहचर्य की कामना भी न करना;
उनके मस्तिष्क में हिंसा की युक्ति तैयार होती रहती है,
और उनके मुख से हानिकर शब्द ही निकलते हैं.
इक्कीसवां सूत्र
गृह-निर्माण के लिए विद्वत्ता आवश्यक होती है,
और इसकी स्थापना के लिए चतुरता;
ज्ञान के द्वारा घर के कक्षों में सभी प्रकार की बहुमूल्य
तथा सुखदाई वस्तुएं सजाई जाती हैं.
बाईसवां सूत्र
ज्ञानवान व्यक्ति शक्तिमान व्यक्ति होता है,
विद्वान अपनी शक्ति में वृद्धि करता जाता है.
क्योंकि कुशल दिशा-निर्देश के द्वारा ही युद्ध में तुम आक्रमण कर सकते हो,
अनेक परामर्शदाताओं के परामर्श से विजय सुनिश्चित हो जाती है.
तेईसवां सूत्र
मूर्ख के लिए ज्ञान पहुंच के बाहर होता है;
बुद्धिमानों की सभा में वह चुप रह जाता है.
चौबीसवां सूत्र
वह, जो अनर्थ की युक्ति करता है
वह षड़्यंत्रकारी के रूप में कुख्यात हो जाता है.
मूर्खतापूर्ण योजना वस्तुतः पाप ही है,
और ज्ञान का ठट्ठा करनेवाला सभी के लिए तिरस्कार बन जाता है.
पच्चीसवां सूत्र
कठिन परिस्थिति में तुम्हारा हताश होना
तुम्हारी सीमित शक्ति का कारण है.
जिन्हें मृत्यु दंड के लिए ले जाया जा रहा है, उन्हें विमुक्त कर दो;
और वे, जो लड़खड़ाते पैरों से अपने ही वध की ओर बढ़ रहे हैं, उन्हें वहीं रोक लो.
यदि तुम यह कहो, “देखिए, इस विषय में हमें तो कुछ भी ज्ञात नहीं था.”
क्या वे, परमेश्वर जो मन को जांचनेवाले हैं, यह सब नहीं समझते?
क्या उन्हें, जो तुम्हारे जीवन के रक्षक हैं, यह ज्ञात नहीं?
क्या वह सभी को उनके कार्यों के अनुरूप प्रतिफल न देंगे?
छब्बीसवां सूत्र
मेरे प्रिय बालक, मधु का सेवन करो क्योंकि यह भला है;
छत्ते से टपकता हुआ मधु स्वादिष्ट होता है.
यह भी समझ लो, कि तुम्हारे जीवन में ज्ञान भी ऐसी ही है:
यदि तुम इसे अपना लोगे तो उज्जवल होगा तुम्हारा भविष्य,
और तुम्हारी आशाएं अपूर्ण न रह जाएंगी.
सत्ताईसवां सूत्र
दुष्ट व्यक्ति! धर्मी व्यक्ति के घर पर घात लगाकर न बैठ
और न उसके विश्रामालय को नष्ट करने की युक्ति कर;
क्योंकि सात बार गिरने पर भी धर्मी व्यक्ति पुनः उठ खड़ा होता है,
किंतु दुष्टों को विपत्ति नष्ट कर जाती है.
अट्ठाइसवां सूत्र
तुम्हारे विरोधी का पतन तुम्हारे हर्ष का विषय न हो;
और उन्हें ठोकर लगने पर तुम आनंदित न होना,
ऐसा न हो कि यह याहवेह की अप्रसन्नता का विषय हो जाए
और उन पर से याहवेह का क्रोध जाता रहे.
उन्तीसवां सूत्र
दुष्टों के वैभव को देख कुढ़ने न लगाना
और न बुराइयों की जीवनशैली से ईर्ष्या करना,
क्योंकि दुष्ट का कोई भविष्य नहीं होता,
उनके जीवनदीप का बुझना निर्धारित है.
तीसवां सूत्र
मेरे पुत्र, याहवेह तथा राजा के प्रति श्रद्धा बनाए रखो, उनसे दूर रहो,
जिनमें विद्रोही प्रवृत्ति है,
सर्वनाश उन पर अचानक रूप से आ पड़ेगा और इसका अनुमान कौन लगा सकता है,
कि याहवेह और राजा द्वारा उन पर भयानक विनाश का रूप कैसा होगा?
बुद्धिमानों की कुछ और सूक्तियां
ये भी बुद्धिमानों द्वारा बोली गई सूक्तियां हैं:
न्याय में पक्षपात करना उचित नहीं है:
जो कोई अपराधी से कहता है, “तुम निर्दोष हो,”
वह लोगों द्वारा शापित किया जाएगा तथा अन्य राष्ट्रों द्वारा घृणास्पद समझा जाएगा.
किंतु जो अपराधी को फटकारते हैं उल्लसित रहेंगे,
और उन पर सुखद आशीषों की वृष्टि होगी.
सुसंगत प्रत्युत्तर
होंठों पर किए गए चुम्बन-समान सुखद होता है.
पहले अपने बाह्य कार्य पूर्ण करके
खेत को तैयार कर लो
और तब अपना गृह-निर्माण करो.
बिना किसी संगत के कारण अपने पड़ोसी के विरुद्ध साक्षी न देना,
और न अपनी साक्षी के द्वारा उसे झूठा प्रमाणित करना.
यह कभी न कहना, “मैं उसके साथ वैसा ही करूंगा, जैसा उसने मेरे साथ किया है;
उसने मेरे साथ जो कुछ किया है, मैं उसका बदला अवश्य लूंगा.”
मैं उस आलसी व्यक्ति की वाटिका के पास से निकल रहा था,
वह मूर्ख व्यक्ति था, जिसकी वह द्राक्षावाटिका थी.
मैंने देखा कि समस्त वाटिका में,
कंटीली झाड़ियां बढ़ आई थीं,
सारी भूमि पर बिच्छू बूटी छा गई थी.
यह सब देख मैं विचार करने लगा,
जो कुछ मैंने देखा उससे मुझे यह शिक्षा प्राप्त हुई:
थोड़ी और नींद, थोड़ा और विश्राम,
कुछ देर और हाथ पर हाथ रखे हुए विश्राम,
तब देखना निर्धनता कैसे तुझ पर डाकू के समान टूट पड़ती है
और गरीबी, सशस्त्र पुरुष के समान.
शलोमोन के कुछ और नीति वाक्य
ये भी राजा शलोमोन के ही कुछ और नीति वाक्य हैं, जिन्हें यहूदिया राज्य के राजा हिज़किय्याह के लोगों ने तैयार किया है:
परमेश्वर की महिमा इसमें है कि वह किसी विषय को गुप्त रख देते हैं;
जबकि राजा की महिमा किसी विषय की गहराई तक खोजने में होती है.
जैसे आकाश की ऊंचाई और पृथ्वी की गहराई,
उसी प्रकार राजाओं का हृदय भी रहस्यमय होता है.
चांदी में से खोट दूर कर दो,
तो चांदीकार के लिए शुद्ध चांदी शेष रह जाती है.
राजा के सामने से दुष्टों को हटा दो,
तो राज सिंहासन धर्म में प्रतिष्ठित हो जाएगा.
न तो राजा के समक्ष स्वयं को सम्मान्य प्रमाणित करो,
और न ही किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का स्थान लेने का प्रयास करो;
क्योंकि उत्तम तो यह होगा कि राजा ही तुम्हें आमंत्रित कर यह कहे, “यहां मेरे पास आओ,”
इसकी अपेक्षा कि तुम्हें सब की दृष्टि में निम्नतर स्थान पर जाने का आदेश दिया जाए.
मात्र इसलिये कि तुमने कुछ देख लिया है,
मुकदमा चलाने की उतावली न करना.
विवादास्पद विषय पर सीधा उसी व्यक्ति से विचार-विमर्श कर लो,
और किसी अन्य व्यक्ति का रहस्य प्रकाशित न करना,
कहीं ऐसा न हो कि कोई इसे सुन ले, यह तुम्हारे ही लिए लज्जा का कारण हो जाए
और तुम्हारी प्रतिष्ठा स्थायी रूप से नष्ट हो जाए.
उचित अवसर पर कहा हुआ वचन चांदी के पात्र में
प्रस्तुत स्वर्ण के सेब के समान होता है.
तत्पर श्रोता के लिए ज्ञानवान व्यक्ति की चेतावनी वैसी ही होती है
जैसे स्वर्ण कर्णफूल अथवा स्वर्ण आभूषण.
कटनी के समय की उष्णता में ठंडे पानी के पेय के समान होता है,
प्रेषक के लिए वह दूत, जो विश्वासयोग्य है;
वह अपने स्वामी के हृदय को प्रफुल्लित कर देता है.
बारिश के बिना बादलों और हवा की तरह है जो व्यक्ति उपहार तो देता नहीं,
किंतु सबके समक्ष देने की डींग मारता रहता है.
धैर्य के द्वारा शासक को भी मनाया जा सकता है,
और कोमलता में कहे गए वचन से हड्डी को भी तोड़ा जा सकता है.
यदि तुम्हें कहीं मधु प्राप्त हो जाए, तो उतना ही खाना, जितना पर्याप्त है,
सीमा से अधिक खाओगे तो, तुम उसे उगल दोगे.
उत्तम तो यह होगा कि तुम्हारे पड़ोसी के घर में
तुम्हारे पैर कम ही पडे़ं, ऐसा न हो कि वह तुमसे ऊब जाए और तुमसे घृणा करने लगे.
वह व्यक्ति, जो अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठा साक्षी हो जाता है,
वह युद्ध के लिए प्रयुक्त लाठी, तलवार अथवा बाण के समान है.
विपदा के अवसर पर ऐसे व्यक्ति पर भरोसा रखना, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता,
वैसा ही होता है, जैसे सड़े दांत अथवा टूटे पैर पर भरोसा रखना.
दुःख में डूबे व्यक्ति के समक्ष हर्ष गीत गाने का वैसा ही प्रभाव होता है,
जैसा शीतकाल में किसी को विवस्त्र कर देना
अथवा किसी के घावों पर सिरका मल देना.
यदि तुम्हारा विरोधी भूखा है, उसे भोजन कराओ,
यदि प्यासा है, उसे पीने के लिए जल दो;
इससे तुम उसके सिर पर प्रज्वलित कोयलों का ढेर लगा दोगे,
और तुम्हें याहवेह की ओर से पारितोषिक प्राप्त होगा.
जैसे उत्तरी वायु प्रवाह वृष्टि का उत्पादक होता है,
वैसे ही पीठ पीछे पर निंदा करती जीभ शीघ्र क्रोधी मुद्रा उत्पन्न करती है.
विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से कहीं अधिक श्रेष्ठ है
छत के एक कोने में रह लेना.
दूर देश से आया शुभ संदेश वैसा ही होता है,
जैसा प्यासी आत्मा को दिया गया शीतल जल.
वह धर्मी व्यक्ति, जो दुष्टों के आगे झुक जाता है,
गंदले सोते तथा दूषित कुओं-समान होता है.
मधु का अत्यधिक सेवन किसी प्रकार लाभकर नहीं होता,
ठीक इसी प्रकार अपने लिए सम्मान से और अधिक सम्मान का यत्न करना लाभकर नहीं होता.
वह व्यक्ति, जिसका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं है, वैसा ही है,
जैसा वह नगर, जिसकी सुरक्षा के लिए कोई दीवार नहीं है.
मूर्ख को सम्मानित करना वैसा ही असंगत है,
जैसा ग्रीष्मऋतु में हिमपात तथा कटनी के समय वृष्टि.
निर्दोष को दिया गया शाप वैसे ही प्रभावी नहीं हो पाता,
जैसे गौरेया का फुदकना और अबाबील की उड़ान.
जैसे घोड़े के लिए चाबुक और गधे के लिए लगाम,
वैसे ही मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी निर्धारित है.
मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुरूप उत्तर न दो,
कहीं तुम स्वयं मूर्ख सिद्ध न हो जाओ.
मूर्खों को उनकी मूर्खता के उपयुक्त उत्तर दो,
अन्यथा वे अपनी दृष्टि में विद्वान हो जाएंगे.
किसी मूर्ख के द्वारा संदेश भेजना वैसा ही होता है,
जैसा अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार लेना अथवा विषपान कर लेना.
मूर्ख के मुख द्वारा निकला नीति सूत्र वैसा ही होता है,
जैसा अपंग के लटकते निर्जीव पैर.
किसी मूर्ख को सम्मानित करना वैसा ही होगा,
जैसे पत्थर को गोफन में बांध देना.
मूर्ख व्यक्ति द्वारा कहा गया नीतिवचन वैसा ही लगता है,
जैसे मद्यपि के हाथों में चुभा हुआ कांटा.
जो अनजान मूर्ख यात्री अथवा मदोन्मत्त व्यक्ति को काम पर लगाता है,
वह उस धनुर्धारी के समान है, जो बिना किसी लक्ष्य के, लोगों को घायल करता है.
अपनी मूर्खता को दोहराता हुआ व्यक्ति उस कुत्ते के समान है,
जो बार-बार अपने उल्टी की ओर लौटता है.
क्या तुमने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है, जो स्वयं को बुद्धिमान समझता है?
उसकी अपेक्षा एक मूर्ख से कहीं अधिक अपेक्षा संभव है.
आलसी कहता है, “मार्ग में सिंह है,
सिंह गलियों में छुपा हुआ है!”
आलसी अपने बिछौने पर वैसे ही करवटें बदलते रहता है,
जैसे चूल पर द्वार.
आलसी अपना हाथ भोजन की थाली में डाल तो देता है;
किंतु आलस्यवश वह अपना हाथ मुख तक नहीं ले जाता.
अपने विचार में आलसी उन सात व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होता है,
जिनमें सुसंगत उत्तर देने की क्षमता होती है.
मार्ग में चलते हुए अपरिचितों के मध्य चल रहे विवाद में हस्तक्षेप करते हुए व्यक्ति की स्थिति वैसी ही होती है,
मानो उसने वन्य कुत्ते को उसके कानों से पकड़ लिया हो.
उस उन्मादी सा जो मशाल उछालता है या मनुष्य जो घातक तीर फेंकता है
वैसे ही वह भी होता है जो अपने पड़ोसी की छलता है
और कहता है, “मैं तो बस ऐसे ही मजाक कर रहा था!”
लकड़ी समाप्त होते ही आग बुझ जाती है;
वैसे ही जहां कानाफूसी नहीं की जाती, वहां कलह भी नहीं होता.
जैसे प्रज्वलित अंगारों के लिए कोयला और अग्नि के लिए लकड़ी,
वैसे ही कलह उत्पन्न करने के लिए होता है विवादी प्रवृत्ति का व्यक्ति.
फुसफुसाहट में उच्चारे गए शब्द स्वादिष्ट भोजन-समान होते हैं;
ये शब्द मनुष्य के पेट में समा जाते हैं.
कुटिल हृदय के व्यक्ति के चिकने-चुपड़े शब्द वैसे ही होते हैं,
जैसे मिट्टी के पात्र पर चढ़ाई गई चांदी का कीट.
घृणापूर्ण हृदय के व्यक्ति के मुख से मधुर वाक्य टपकते रहते हैं,
जबकि उसके हृदय में छिपा रहता है छल और कपट.
जब वह मनभावन विचार व्यक्त करने लगे, तो उसका विश्वास न करना,
क्योंकि उसके हृदय में सात घिनौनी बातें छिपी हुई हैं.
यद्यपि इस समय उसने अपने छल को छुपा रखा है,
उसकी कुटिलता का प्रकाशन भरी सभा में कर दिया जाएगा.
जो कोई गड्ढा खोदता है, उसी में जा गिरता है;
जो कोई पत्थर को लुढ़का देता है, उसी के नीचे आ जाता है.
झूठ बोलने वाली जीभ जिससे बातें करती है, वह उसके घृणा का पात्र होता है,
तथा विनाश का कारण होते हैं चापलूस के शब्द.
भावी कल तुम्हारे गर्व का विषय न हो,
क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि दिन में क्या घटनेवाला है.
कोई अन्य तुम्हारी प्रशंसा करे तो करे, तुम स्वयं न करना;
कोई अन्य कोई अपरिचित तुम्हारी प्रशंसा करे तो करे, तुम स्वयं न करना, स्वयं अपने मुख से नहीं.
पत्थर भारी होता है और रेत का भी बोझ होता है,
किंतु इन दोनों की अपेक्षा अधिक भारी होता है मूर्ख का क्रोध.
कोप में क्रूरता निहित होती है तथा रोष में बाढ़ के समान उग्रता,
किंतु ईर्ष्या के समक्ष कौन ठहर सकता है?
छिपे प्रेम से कहीं अधिक प्रभावशाली है
प्रत्यक्ष रूप से दी गई फटकार.
मित्र द्वारा किए गए घाव भी विश्वासयोग्य है,
किंतु विरोधी चुम्बनों की वर्षा करता है!
जब भूख अच्छी रीति से तृप्त की जा चुकी है, तब मधु भी अप्रिय लगने लगता है,
किंतु अत्यंत भूखे व्यक्ति के लिए कड़वा भोजन भी मीठा हो जाता है.
अपने घर से दूर चला गया व्यक्ति वैसा ही होता है
जैसे अपने घोंसले से भटक चुका पक्षी.
तेल और सुगंध द्रव्य हृदय को मनोहर कर देते हैं,
उसी प्रकार सुखद होता है
खरे मित्र का परामर्श.
अपने मित्र तथा अपने माता-पिता के मित्र की उपेक्षा न करना.
अपनी विपत्ति की स्थिति में अपने भाई के घर भेंट करने न जाना.
दूर देश में जा बसे तुम्हारे भाई से उत्तम है तुम्हारे निकट निवास कर रहा पड़ोसी.
मेरे पुत्र, कैसा मनोहर होगा मेरा हृदय, जब तुम स्वयं को बुद्धिमान प्रमाणित करोगे;
तब मैं अपने निंदकों को मुंह तोड़ प्रत्युत्तर दे सकूंगा.
चतुर व्यक्ति जोखिम को देखकर छिप जाता है,
किंतु अज्ञानी आगे ही बढ़ता जाता है, और यातना सहता है.
जो किसी अनजान के ऋण की ज़मानत देता है, वह अपने वस्त्र तक गंवा बैठता है;
जब कोई अनजान व्यक्तियों की ज़मानत लेने लगे, तब प्रतिभूति सुरक्षा में उसका वस्त्र भी रख ले.
यदि किसी व्यक्ति को प्रातःकाल में अपने पड़ोसी को उच्च स्वर में आशीर्वाद देता हुआ सुनो,
तो उसे शाप समझना.
विवादी पत्नी तथा वर्षा ऋतु में लगातार वृष्टि,
दोनों ही समान हैं,
उसे नियंत्रित करने का प्रयास पवन वेग को नियंत्रित करने का प्रयास जैसा,
अथवा अपने दायें हाथ से तेल को पकड़ने का प्रयास जैसा.
जिस प्रकार लोहे से ही लोहे पर धार बनाया जाता है,
वैसे ही एक व्यक्ति दूसरे के सुधार के लिए होते है.
अंजीर का फल वही खाता है, जो उस वृक्ष की देखभाल करता है,
वह, जो अपने स्वामी का ध्यान रखता है, सम्मानित किया जाएगा.
जिस प्रकार जल में मुखमंडल की छाया देख सकते हैं,
वैसे ही व्यक्ति का जीवन भी हृदय को प्रतिबिंबित करता है.
मृत्यु और विनाश अब तक संतुष्ट नहीं हुए हैं,
मनुष्य की आंखों की अभिलाषा भी कभी संतुष्ट नहीं होती.
चांदी की परख कुठाली से तथा स्वर्ण की भट्टी से होती है,
वैसे ही मनुष्य की परख उसकी प्रशंसा से की जाती है.
यदि तुम मूर्ख को ओखली में डालकर
मूसल से अनाज के समान भी कूटो,
तुम उससे उसकी मूर्खता को अलग न कर सकोगे.
अनिवार्य है कि तुम्हें अपने पशुओं की स्थिति का यथोचित ज्ञान हो,
अपने पशुओं का ध्यान रखो;
क्योंकि, न तो धन-संपत्ति चिरकालीन होती है,
और न यह कहा जा सकता है कि राजपाट आगामी सभी पीढ़ियों के लिए सुनिश्चित हो गया.
जब सूखी घास एकत्र की जा चुकी हो और नई घास अंकुरित हो रही हो,
जब पर्वतों से जड़ी-बूटी एकत्र की जाती है,
तब मेमनों से तुम्हारे वस्त्रों की आवश्यकता की पूर्ति होगी,
और तुम बकरियों के मूल्य से खेत मोल ले सकोगे,
बकरियों के दूध इतना भरपूर होगा कि वह तुम्हारे संपूर्ण परिवार के लिए पर्याप्त भोजन रहेगा;
तुम्हारी सेविकाओं की ज़रूरत भी पूर्ण होती रहेगी.
जब कोई पीछा नहीं भी कर रहा होता, तब भी दुर्जन व्यक्ति भागता रहता है,
किंतु धर्मी वैसे ही निडर होते हैं, जैसे सिंह.
राष्ट्र में अराजकता फैलने पर अनेक शासक उठ खड़े होते हैं,
किंतु बुद्धिमान शासक के शासन में स्थायी सुव्यवस्था बनी रहती है.
वह शासक, जो निर्धनों को उत्पीड़ित करता है,
ऐसी घनघोर वृष्टि-समान है, जो समस्त उपज को नष्ट कर जाती है.
कानून को नहीं मानने वाला व्यक्ति दुर्जनों की प्रशंसा करते नहीं थकते,
किंतु वे, जो सामाजिक सुव्यवस्था का निर्वाह करते हैं, ऐसों का प्रतिरोध करते हैं.
दुष्ट लोग न्याय का मूल्य नहीं समझ सकते,
किंतु याहवेह के अभिलाषी इसे उत्तम रीति से पहचानते हैं.
खराई का चलनेवाला निर्धन उस धनी से कहीं उत्तम है
जिसकी जीवनशैली कुटिल है.
नियमों का पालन करता है बुद्धिमान संतान,
किंतु पेटू का साथी अपने पिता को लज्जा लाता है.
जो कोई अपनी संपत्ति की वृद्धि अतिशय ब्याज लेकर करता है,
वह इसे उस व्यक्ति के लिए संचित कर रहा होता है, जो निर्धनों को उदारतापूर्वक देता रहता है.
जो व्यक्ति नियम-व्यवस्था का परित्याग करता है,
उसकी प्रार्थना भी परमेश्वर के लिए घृणित हो जाती है.
जो कोई किसी धर्मी को भटका कर विसंगत चालचलन के लिए उकसाता है
वह अपने ही जाल में फंस जाएगा,
किंतु खरे व्यक्ति का प्रतिफल सुखद होता है.
अपने ही विचार में धनाढ्य स्वयं को बुद्धिमान मानता है;
जो गरीब और समझदार है, वह देखता है कि धनवान कितना भ्रमित है.
धर्मी व्यक्ति की विजय पर अतिशय आनंद मनाया जाता है;
किंतु जब दुष्ट उन्नत होने लगते हैं, प्रजा छिप जाती है.
जो अपने अपराध को छिपाए रखता है, वह समृद्ध नहीं हो पाता,
किंतु वह, जो अपराध स्वीकार कर उनका परित्याग कर देता है, उस पर कृपा की जाएगी.
धन्य होता है वह व्यक्ति जिसके हृदय में याहवेह के प्रति श्रद्धा सर्वदा रहती है,
किंतु जो अपने हृदय को कठोर बनाए रखता है, विपदा में जा पड़ता है.
निर्धनों के प्रति दुष्ट शासक का व्यवहार वैसा ही होता है
जैसा दहाड़ते हुए सिंह अथवा आक्रामक रीछ का.
एक शासक जो समझदार नहीं, अपनी प्रजा को उत्पीड़ित करता है,
किंतु वह, जिसे अनुचित अप्रिय है, आयुष्मान होता है.
यदि किसी की अंतरात्मा पर मनुष्य हत्या का बोझ है
वह मृत्युपर्यंत छिपता और भागता रहेगा;
यह उपयुक्त नहीं कि कोई उसकी सहायता करे.
जिसका चालचलन खराईपूर्ण है, वह विपत्तियों से बचा रहेगा,
किंतु जिसके चालचलन में कुटिलता है, शीघ्र ही पतन के गर्त में जा गिरेगा.
जो किसान अपनी भूमि की जुताई-गुड़ाई करता रहता है, उसे भोजन का अभाव नहीं होता,
किंतु जो व्यर्थ कार्यों में समय नष्ट करता है, निर्बुद्धि प्रमाणित होता है.
खरे व्यक्ति को प्रचुरता में आशीषें प्राप्त होती रहती है,
किंतु जो शीघ्र ही धनाढ्य होने की धुन में रहता है, वह दंड से बच न सकेगा.
पक्षपात भयावह होता है.
फिर भी यह संभव है कि मनुष्य मात्र रोटी के एक टुकड़े को प्राप्त करने के लिए अपराध कर बैठे.
कंजूस व्यक्ति को धनाढ्य हो जाने की उतावली होती है,
जबकि उन्हें यह अन्देशा ही नहीं होता, कि उसका निर्धन होना निर्धारित है.
अंततः कृपापात्र वही बन जाएगा, जो किसी को किसी भूल के लिए डांटता है,
वह नहीं, जो चापलूसी करता रहता है.
जो अपने माता-पिता से संपत्ति छीनकर
यह कहता है, “इसमें मैंने कुछ भी अनुचित नहीं किया है,”
लुटेरों का सहयोगी होता है.
लोभी व्यक्ति कलह उत्पन्न करा देता है,
किंतु समृद्ध वह हो जाता है, जिसने याहवेह पर भरोसा रखा है.
मूर्ख होता है वह, जो मात्र अपनी ही बुद्धि पर भरोसा रखता है,
किंतु सुरक्षित वह बना रहता है, जो अपने निर्णय विद्वत्ता में लेता है.
जो निर्धनों को उदारतापूर्वक दान देता है, उसे अभाव कभी नहीं होता,
किंतु वह, जो दान करने से कतराता है अनेक ओर से शापित हो जाता है.
दुष्टों का उत्थान लोगों को छिपने के लिए विवश कर देता है;
किंतु दुष्ट नष्ट हो जाते हैं, खरे की वृद्धि होने लगती है.
वह, जिसे बार-बार डांट पड़ती रहती है, फिर भी अपना हठ नहीं छोड़ता,
उस पर विनाश अचानक रूप से टूट पड़ेगा और वह पुनः उठ न सकेगा.
जब खरे की संख्या में वृद्धि होती है, लोगों में हर्ष की लहर दौड़ जाती है;
किंतु जब दुष्ट शासन करने लगते हैं, तब प्रजा कराहने लगती है.
बुद्धि से प्रेम करनेवाला पुत्र अपने पिता के हर्ष का विषय होता है,
किंतु जो वेश्याओं में संलिप्त रहता है वह अपनी संपत्ति उड़ाता जाता है.
न्याय्यता पर ही राजा अपने राष्ट्र का निर्माण करता है,
किंतु वह, जो जनता को करो के बोझ से दबा देता है, राष्ट्र के विनाश को आमंत्रित करता है.
जो अपने पड़ोसियों की चापलूसी करता है,
वह अपने पड़ोसी के पैरों के लिए जाल बिछा रहा होता है.
दुष्ट अपने ही अपराधों में उलझा रहता है,
किंतु धर्मी सदैव उल्लसित हो गीत गाता रहता है.
धर्मी को सदैव निर्धन के अधिकारों का बोध रहता है,
किंतु दुष्ट को इस विषय का ज्ञान ही नहीं होता.
ठट्ठा करनेवाले नगर को अग्नि लगाते हैं,
किंतु बुद्धिमान ही कोप को शांत करते हैं.
यदि बुद्धिमान व्यक्ति किसी मूर्ख को न्यायालय ले जाता है,
तो विवाद न तो शीघ्र क्रोधी होने से सुलझता है न ही हंसी में उड़ा देने से.
खून के प्यासे हिंसक व्यक्ति खराई से घृणा करते हैं,
वे धर्मी के प्राणों के प्यासे हो जाते हैं.
क्रोध में मूर्ख व्यक्ति अनियंत्रित हो जाता है,
किंतु बुद्धिमान संयमपूर्वक शांत बना रहता है.
यदि शासक असत्य को सुनने लगता है,
उसके सभी मंत्री कुटिल बन जाते हैं.
अत्याचारी और निर्धन व्यक्ति में एक साम्य अवश्य है:
दोनों ही को याहवेह ने दृष्टि प्रदान की है.
यदि राजा पूर्ण खराई में निर्धन का न्याय करता है,
उसका सिंहासन स्थायी रहता है.
ज्ञानोदय के साधन हैं डांट और छड़ी,
किंतु जिस बालक पर ये प्रयुक्त न हुए हों, वह माता की लज्जा का कारण हो जाता है.
दुष्टों की संख्या में वृद्धि अपराध दर में वृद्धि करती है,
किंतु धर्मी उनके पतन के दर्शक होते हैं.
अपने पुत्र को अनुशासन में रखो कि तुम्हारा भविष्य सुखद हो;
वही तुम्हारे हृदय को आनंदित रखेगा.
भविष्य के दर्शन के अभाव में लोग प्रतिबन्ध तोड़ फेंकते हैं;
किंतु धन्य होता है वह, जो नियमों का पालन करता है.
सेवकों के अनुशासन के लिए मात्र शब्द निर्देश पर्याप्त नहीं होता;
वे इसे समझ अवश्य लेंगे, किंतु इसका पालन नहीं करेंगे.
एक मूर्ख व्यक्ति से उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आशा की जा सकती है,
जो बिना विचार अपना मत दे देता है.
यदि सेवक को बाल्यकाल से ही जो भी चाहे दिया जाए,
तो अंततः वह घमंडी हो जाएगा.
शीघ्र क्रोधी व्यक्ति कलह करनेवाला होता है,
और अनियंत्रित क्रोध का दास अनेक अपराध कर बैठता है.
अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण होता है,
किंतु वह, जो आत्मा में विनम्र है, सम्मानित किया जाता है.
जो चोर का साथ देता है, वह अपने ही प्राणों का शत्रु होता है;
वह न्यायालय में सबके द्वारा शापित किया जाता है, किंतु फिर भी सत्य प्रकट नहीं कर सकता.
लोगों से भयभीत होना उलझन प्रमाणित होता है,
किंतु जो कोई याहवेह पर भरोसा रखता है, सुरक्षित रहता है.
शासक के प्रिय पात्र सभी बनना चाहते हैं,
किंतु वास्तविक न्याय याहवेह के द्वारा निष्पन्न होता है.
अन्यायी खरे के लिए तुच्छ होते हैं;
किंतु वह, जिसका चालचलन खरा है, दुष्टों के लिए तुच्छ होता है.
आगूर द्वारा प्रस्तुत नीति सूत्र
याकेह के पुत्र आगूर का वक्तव्य—एक प्रकाशन ईथिएल के लिए.
इस मनुष्य की घोषणा—ईथिएल और उकाल के लिए:
निःसंदेह, मैं इन्सान नहीं, जानवर जैसा हूं;
मनुष्य के समान समझने की क्षमता भी खो चुका हूं.
न तो मैं ज्ञान प्राप्त कर सका हूं,
और न ही मुझमें महा पवित्र परमेश्वर को समझने की कोई क्षमता शेष रह गई है.
कौन है, जो स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर आया है?
किसने वायु को अपनी मुट्ठी में एकत्र कर रखा है?
किसने महासागर को वस्त्र में बांधकर रखा है?
किसने पृथ्वी की सीमाएं स्थापित कर दी हैं?
क्या है उनका नाम और क्या है उनके पुत्र का नाम?
यदि आप जानते हैं! तो मुझे बता दीजिए.
“परमेश्वर का हर एक वचन प्रामाणिक एवं सत्य है;
वही उनके लिए ढाल समान हैं जो उनमें आश्रय लेते हैं.
उनके वक्तव्य में कुछ भी न जोड़ा जाए ऐसा न हो कि तुम्हें उनकी फटकार सुननी पड़े और तुम झूठ प्रमाणित हो जाओ.
“अपनी मृत्यु के पूर्व मैं आपसे दो आग्रह कर रहा हूं;
मुझे इनसे वंचित न कीजिए.
मुझसे वह सब अत्यंत दूर कर दीजिए, जो झूठ है, असत्य है;
न तो मुझे निर्धनता में डालिए और न मुझे धन दीजिए,
मात्र मुझे उतना ही भोजन प्रदान कीजिए, जितना आवश्यक है.
ऐसा न हो कि सम्पन्नता में मैं आपका त्याग ही कर दूं
और कहने लगूं, ‘कौन है यह याहवेह?’
अथवा ऐसा न हो कि निर्धनता की स्थिति में मैं चोरी करने के लिए बाध्य हो जाऊं,
और मेरे परमेश्वर के नाम को कलंकित कर बैठूं.
“किसी सेवक के विरुद्ध उसके स्वामी के कान न भरना,
ऐसा न हो कि वह सेवक तुम्हें शाप दे और तुम्हीं दोषी पाए जाओ.
“एक पीढ़ी ऐसी है, जो अपने ही पिता को शाप देती है,
तथा उनके मुख से उनकी माता के लिए कोई भी धन्य उद्गार नहीं निकलते;
कुछ की दृष्टि में उनका अपना चालचलन शुद्ध होता है
किंतु वस्तुतः उनकी अपनी ही मलिनता से वे धुले हुए नहीं होते है;
एक और समूह ऐसा है,
आंखें गर्व से चढ़ी हुई तथा उन्नत भौंहें;
कुछ वे हैं, जिनके दांत तलवार समान
तथा जबड़ा चाकू समान हैं,
कि पृथ्वी से उत्पीड़ितों को
तथा निर्धनों को मनुष्यों के मध्य में से लेकर निगल जाएं.
“जोंक की दो बेटियां हैं.
जो चिल्लाकर कहती हैं, ‘और दो! और दो!’
“तीन वस्तुएं असंतुष्ट ही रहती है,
वस्तुतः चार कभी नहीं कहती, ‘अब बस करो!’:
अधोलोक तथा
बांझ की कोख;
भूमि, जो जल से कभी तृप्त नहीं होती,
और अग्नि, जो कभी नहीं कहती, ‘बस!’
“वह नेत्र, जो अपने पिता का अनादर करते हैं,
तथा जिसके लिए माता का आज्ञापालन घृणास्पद है,
घाटी के कौवों द्वारा नोच-नोच कर निकाल लिया जाएगा,
तथा गिद्धों का आहार हो जाएगा.
“तीन वस्तुएं मेरे लिए अत्यंत विस्मयकारी हैं,
वस्तुतः चार, जो मेरी समझ से सर्वथा परे हैं:
आकाश में गरुड़ की उड़ान,
चट्टान पर सर्प का रेंगना,
महासागर पर जलयान का आगे बढ़ना,
तथा पुरुष और स्त्री का पारस्परिक संबंध.
“व्यभिचारिणी स्त्री की चाल यह होती है:
संभोग के बाद वह कहती है, ‘क्या विसंगत किया है मैंने.’
मानो उसने भोजन करके अपना मुख पोंछ लिया हो.
“तीन परिस्थितियां ऐसी हैं, जिनमें पृथ्वी तक कांप उठती है;
वस्तुतः चार इसे असहाय हैं:
दास का राजा बन जाना,
मूर्ख व्यक्ति का छक कर भोजन करना,
पूर्णतः घिनौनी स्त्री का विवाह हो जाना
तथा दासी का स्वामिनी का स्थान ले लेना.
“पृथ्वी पर चार प्राणी ऐसे हैं, जो आकार में तो छोटे हैं,
किंतु हैं अत्यंत बुद्धिमान:
चीटियों की गणना सशक्त प्राणियों में नहीं की जाती,
फिर भी उनकी भोजन की इच्छा ग्रीष्मकाल में भी समाप्त नहीं होती;
चट्टानों के निवासी बिज्जू सशक्त प्राणी नहीं होते,
किंतु वे अपना आश्रय चट्टानों में बना लेते हैं;
अरबेह टिड्डियों का कोई शासक नहीं होता,
फिर भी वे सैन्य दल के समान पंक्तियों में आगे बढ़ती हैं;
छिपकली, जो हाथ से पकड़े जाने योग्य लघु प्राणी है,
किंतु इसका प्रवेश राजमहलों तक में होता है.
“तीन हैं, जिनके चलने की शैली अत्यंत भव्य है,
चार की गति अत्यंत प्रभावशाली है:
सिंह, जो सभी प्राणियों में सबसे अधिक शक्तिमान है, वह किसी के कारण पीछे नहीं हटता;
गर्वीली चाल चलता हुआ मुर्ग,
बकरा,
तथा अपनी सेना के साथ आगे बढ़ता हुआ राजा.
“यदि तुम आत्मप्रशंसा की मूर्खता कर बैठे हो,
अथवा तुमने कोई षड़्यंत्र गढ़ा है,
तो अपना हाथ अपने मुख पर रख लो!
जिस प्रकार दूध के मंथन से मक्खन तैयार होता है,
और नाक पर घूंसे के प्रहार से रक्त निकलता है,
उसी प्रकार क्रोध को भड़काने से कलह उत्पन्न होता है.”
राजा लमूएल के नीति सूत्र
ये राजा लमूएल द्वारा प्रस्तुत नीति सूत्र हैं, जिनकी शिक्षा उन्हें उनकी माता द्वारा दी गई थी.
सुन, मेरे पुत्र! सुन, मेरे ही गर्भ से जन्मे पुत्र!
सुन, मेरी प्रार्थनाओं के प्रत्युत्तर पुत्र!
अपना पौरुष स्त्रियों पर व्यय न करना और न अपने संसाधन उन पर लुटाना,
जिन्होंने राजाओं तक के अवपात में योग दिया है.
लमूएल, यह राजाओं के लिए कदापि उपयुक्त नहीं है,
दाखमधु राजाओं के लिए सुसंगत नहीं है,
शासकों के लिए मादक द्रव्यपान भला नहीं होता.
ऐसा न हो कि वे पीकर कानून को भूल जाएं,
और दीन दलितों से उनके अधिकार छीन लें.
मादक द्रव्य उन्हें दो, जो मरने पर हैं,
दाखमधु उन्हें दो, जो घोर मन में उदास हैं!
वे पिएं तथा अपनी निर्धनता को भूल जाएं
और उन्हें उनकी दुर्दशा का स्मरण न आएं.
उनके पक्ष में खड़े होकर उनके लिए न्याय प्रस्तुत करो,
जो अपना पक्ष प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं.
निडरतापूर्वक न्याय प्रस्तुत करो और बिना पक्षपात न्याय दो;
निर्धनों और निर्धनों के अधिकारों की रक्षा करो.
आदर्श पत्नी का गुणगान
आलेफ़
किसे उपलब्ध होती है उत्कृष्ट, गुणसंपन्न पत्नी?
उसका मूल्य रत्नों से कहीं अधिक बढ़कर है.
बैथ
उसका पति उस पर पूर्ण भरोसा करता है
और उसके कारण उसके पति का मूल्य अपरिमित होता है.
गिमेल
वह आजीवन अपने पति का हित ही करती है,
बुरा कभी नहीं.
दालेथ
वह खोज कर ऊन और पटसन ले आती है
और हस्तकार्य में उसकी गहरी रुचि है.
व्यापारिक जलयानों के समान,
वह दूर-दूर जाकर भोज्य वस्तुओं का प्रबंध करती है.
वाव
रात्रि समाप्त भी नहीं होती, कि वह उठ जाती है;
और अपने परिवार के लिए भोजन का प्रबंध करती
तथा अपनी परिचारिकाओं को उनके काम संबंधी निर्देश देती है.
ज़ईन
वह जाकर किसी भूखण्ड को परखती है और उसे मोल ले लेती है;
वह अपने अर्जित धन से द्राक्षावाटिका का रोपण करती है.
ख़ेथ
वह कमर कसकर तत्परतापूर्वक कार्य में जुट जाती है;
और उसकी बाहें सशक्त रहती हैं.
टेथ
उसे यह बोध रहता है कि उसका लाभांश ऊंचा रहे,
रात्रि में भी उसकी समृद्धि का दीप बुझने नहीं पाता.
योध
वह चरखे पर कार्य करने के लिए बैठती है
और उसके हाथ तकली पर चलने लगते हैं.
काफ़
उसके हाथ निर्धनों की ओर बढ़ते हैं
और वह निर्धनों की सहायता करती है.
लामेध
शीतकाल का आगमन उसके परिवार के लिए चिंता का विषय नहीं होता;
क्योंकि उसके समस्त परिवार के लिए पर्याप्त ऊनी वस्त्र तैयार रहते हैं.
मेम
वह अपने लिए बाह्य ऊनी वस्त्र भी तैयार रखती है;
उसके सभी वस्त्र उत्कृष्ट तथा भव्य ही होते हैं.
नून
जब राज्य परिषद का सत्र होता है,
तब प्रमुखों में उसका पति अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है.
सामेख
वह पटसन के वस्त्र बुनकर उनका विक्रय कर देती है,
तथा व्यापारियों को दुपट्टे बेचती है.
अयिन
वह शक्ति और सम्मान धारण किए हुए है;
भविष्य की आशा में उसका उल्लास है.
पे
उसके मुख से विद्वत्तापूर्ण वचन ही बोले जाते हैं,
उसके वचन कृपा-प्रेरित होते हैं.
त्सादे
वह अपने परिवार की गतिविधि पर नियंत्रण रखती है
और आलस्य का भोजन उसकी चर्या में है ही नहीं.
क़ौफ़
प्रातःकाल उठकर उसके बालक उसकी प्रशंसा करते हैं;
उसका पति इन शब्दों में उसकी प्रशंसा करते नहीं थकता:
रेश
“अनेक स्त्रियों ने उत्कृष्ट कार्य किए हैं,
किंतु तुम उन सबसे उत्कृष्ट हो.”
शीन
आकर्षण एक झूठ है और सौंदर्य द्रुत गति से उड़ जाता है;
किंतु जिस स्त्री में याहवेह के प्रति श्रद्धा विद्यमान है, वह प्रशंसनीय रहेगी.
ताव
उसके परिश्रम का श्रेय उसे दिया जाए,
और उसके कार्य नगर में घोषित किए जाएं.