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अय्योब
अय्योब
अय्योब
अय्यो
अय्योब
अय्योब का चरित्र एवं संपत्ति
उज़ देश में अय्योब नामक एक व्यक्ति थे. वे सीधे, खरे, परमेश्वर के श्रद्धा युक्त तथा बुराई से दूर थे. उनके सात पुत्र एवं तीन पुत्रियां थीं, उनके पास सात हजार भेड़ें, तीन हजार ऊंट, पांच सौ जोड़े बैल, पांच सौ गधियां तथा अनेक-अनेक दास-दासियां थीं. पूर्वी देशों में कोई भी उनके तुल्य धनवान न था.
उनके पुत्र अपने-अपने जन्मदिन पर अपने घरों में दावत का आयोजन करते थे, जिसमें वे अपनी तीनों बहनों को भी आमंत्रित किया करते थे, कि वे भी भोज में सम्मिलित हों. जब उत्सवों का समय समाप्त हो जाता था, तब अय्योब अपनी इन संतानों को अपने यहां बुलाकर उन्हें पवित्र किया करते थे. वह बड़े भोर को उठकर उनकी संख्या के अनुरूप होमबलि अर्पित करते थे. उनकी सोच थी, “संभव है मेरे पुत्रों से कोई पाप हुआ हो और उन्होंने अपने हृदय में ही परमेश्वर के प्रति अनिष्ट किया हो और परमेश्वर को छोड़ दिया हो.” अय्योब यह सब नियमपूर्वक किया करते थे.
यह वह दिन था, जब परमेश्वर के पुत्र1:6 परमेश्वर के पुत्र अर्थात् स्वर्गदूत ने स्वयं को याहवेह के सामने प्रस्तुत किया और शैतान भी उनके साथ आया हुआ था. याहवेह ने शैतान से पूछा, “तुम कहां से आ रहे हो?”
शैतान ने याहवेह को उत्तर दिया, “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते हुए तथा डोलते-डालते आया हूं.”
याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “क्या तुमने अय्योब, मेरे सेवक पर ध्यान दिया है? कि सारी पृथ्वी पर कोई भी उसके तुल्य नहीं है. वह सीधा, खरा, परमेश्वर के प्रति श्रद्धा युक्त तथा बुराई से दूर है.”
शैतान ने याहवेह से पूछा, “क्या अय्योब परमेश्वर के प्रति श्रद्धा बिना लाभ के मानता है? आपने उसके घर के और उसकी संपत्ति के चारों ओर अपनी सुरक्षा का बाड़ा बांध रखा है? आपने उसके श्रम को समृद्ध किया है. उसकी संपत्ति इस देश में फैलती जा रही है. आप हाथ बढ़ाकर उसकी समस्त संपत्ति को छुएं, वह निश्चय आपके सामने आपकी निंदा करने लगेगा.”
याहवेह ने शैतान से कहा, “अच्छा सुनो, उसकी समस्त संपत्ति पर मैं तुम्हें अधिकार दे रहा हूं, मात्र ध्यान दो, तुम उसको स्पर्श मत करना.”
शैतान याहवेह की उपस्थिति से चला गया.
जिस दिन अय्योब के पुत्र-पुत्रियां ज्येष्ठ भाई के घर पर उत्सव में व्यस्त थे, एक दूत ने अय्योब को सूचित किया, “बैल हल चला रहे थे तथा निकट ही गधे चर रहे थे, कि शीबाईयों ने आक्रमण किया और इन्हें लूटकर ले गए. उन्होंने तो हमारे दास-दासियों का तलवार से संहार कर दिया है, मात्र मैं बचते हुए आपको सूचित करने आया हूं!”
अभी उसका कहना पूर्ण भी न हुआ था, कि एक अन्य दूत ने आकर सूचना दी, “आकाश से परमेश्वर की ज्वाला प्रकट हुई और हमारी भेड़ें एवं दास-दासियां भस्म हो गए, मैं बचते हुए आपको सूचित करने आया हूं!”
उसका कहना अभी पूर्ण भी न हुआ था, कि एक अन्य दूत भी वहां आ पहुंचा और कहने लगा, “कसदियों ने तीन दल बनाकर ऊंटों पर छापा मारा और उन्हें ले गए. दास-दासियों का उन्होंने तलवार से संहार कर दिया है, मात्र मैं बचते हुए आपको सूचित करने आया हूं!”
वह अभी कह ही रहा था, कि एक अन्य दूत भी वहां आ पहुंचा और उन्हें सूचित करने लगा, “आपके ज्येष्ठ पुत्र के घर पर आपके पुत्र-पुत्रियां उत्सव में खा-पी रहे थे, कि एक बड़ी आंधी चली, जिसका प्रारंभ रेगिस्तान क्षेत्र से हुआ था, इसने उस घर पर चारों ओर से ऐसा प्रहार किया कि दब कर समस्त युवाओं की मृत्यु हो गई. मात्र मैं बचकर आपको सूचना देने आया हूं!”
अय्योब यह सुन उठे, और अपने वस्त्र फाड़ डाले, अपने सिर का मुंडन किया तथा भूमि पर दंडवत किया. उनके वचन थे:
“माता के गर्भ से मैं नंगा आया था,
और मैं नंगा ही चला जाऊंगा.
याहवेह ने दिया था, याहवेह ने ले लिया;
धन्य है याहवेह का नाम.”
समस्त घटनाक्रम में अय्योब ने न तो कोई पाप किया और न ही उन्होंने परमेश्वर की किसी भी प्रकार की निंदा की.
फिर एक दिन जब स्वर्गदूत याहवेह की उपस्थिति में एकत्र हुए, शैतान भी उनके मध्य में आया था, कि वह स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करे. याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “तुम कहां से आ रहे हो?”
शैतान ने याहवेह को उत्तर दिया, “पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते तथा इसकी चारों दिशाओं में डोलते-डालते आया हूं.”
याहवेह ने शैतान से प्रश्न किया, “क्या तुमने अय्योब, मेरे सेवक पर ध्यान दिया है? क्योंकि पृथ्वी पर कोई भी उसके तुल्य नहीं है. वह सीधा, ईमानदार, परमेश्वर के प्रति श्रद्धा युक्त तथा बुराई से दूर रहनेवाला व्यक्ति है. अब भी वह अपनी खराई पर अटल है, जबकि तुम्हीं हो जिसने उसे नष्ट करने के लिए मुझे अकारण ही उकसाया था.”
शैतान ने याहवेह को जवाब दिया, “खाल का विनिमय खाल से! अपने प्राणों की रक्षा में मनुष्य अपना सर्वस्व देने के लिए तैयार हो जाता है. अब आप उसकी हड्डी तथा मांस को स्पर्श कीजिए; तब वह आपके सामने आपकी निंदा करने लगेगा.”
यह सुनकर याहवेह ने शैतान को उत्तर दिया, “सुनो, अब वह तुम्हारे अधिकार में है; बस इतना ध्यान रहे कि उसका जीवन सुरक्षित रहे.”
शैतान याहवेह की उपस्थिति से चला गया और जाकर अय्योब पर ऐसा प्रहार किया कि उनकी देह पर, तलवों से लेकर सिर तक, दुखदाई फोड़े निकल आए. वह राख में जा बैठे और एक ठीकरे के टुकड़े से स्वयं को खुजलाने लगे.
यह सब देख उनकी पत्नी ने उनसे कहा, “क्या तुम अब भी अपनी खराई को ही थामे रहोगे? परमेश्वर की निंदा करो और मर जाओ!”
किंतु अय्योब ने उसे उत्तर दिया, “तुम तो मूर्ख2:10 मूर्ख यानी अनैतिक स्त्रियों के समान बक-बक करने लगी हो. क्या हमारे लिए यह भला होगा कि परमेश्वर से सुख स्वीकार करते जाएं और दुःख कुछ भी नहीं?”
इन सभी स्थितियों में अय्योब ने अपने मुख द्वारा कोई पाप नहीं किया.
जब अय्योब के तीन मित्रों को अय्योब की दुखद स्थिति का समाचार प्राप्त हुआ, तब तीनों ही अपने-अपने स्थानों से अय्योब के घर आ गए, तेमानी से एलिफाज़, शूही से बिलदद तथा नआमथ से ज़ोफर. इन तीनों ने योजना बनाई कि सहानुभूति एवं सांत्वना देने के लिए वे अय्योब से भेंट करेंगे. जब वे दूर ही थे तथा उन्होंने अय्योब की ओर देखा, तो वे उन्हें पहचान ही न सके. वे उच्च स्वर में रोने लगे. हर एक ने अपने-अपने वस्त्रों को फाड़कर अपने-अपने ऊपर धूल डाल ली. तब वे जाकर अय्योब के निकट भूमि पर सात दिन एवं सात रात्रि चुप बैठे रहे, क्योंकि उनके सामने यह पूर्णतः स्पष्ट था कि अय्योब की पीड़ा अत्यंत भयानक थी.
अय्योब का संवाद
उसके बाद अय्योब ने अपना मुंह खोला और अपने जन्मदिवस को धिक्कारा. उनका वचन था:
“जिस दिन मेरा जन्म होना निर्धारित था,
वही दिन मिट जाए तथा वह रात्रि, जब यह घोषणा की गयी कि एक बालक का गर्भधारण हुआ है!
अंधकारमय हो वह दिन;
स्वर्गिक परमेश्वर उसका ध्यान ही न रखें;
किसी भी ज्योति का प्रकाश उस पर न पड़े.
अंधकार तथा मृत्यु के बादल बने रहें;
उस पर एक बादल आ जाए;
दिन का अंधकार उसको डराने का कारण हो जाए.
उस रात्रि को भी अंधकार अपने वश में कर ले;
वर्ष के दिनों में, यह दिन आनन्दमय न समझा जाए;
माहों में उस दिन की गणना न की जाए.
ओह, वह रात्रि बांझ हो जाए;
कोई भी आनंद ध्वनि उसे सुनाई न दे.
वे, जो दिनों को धिक्कारते रहते हैं
तथा लिवयाथान3:8 लिवयाथान बड़ा मगरमच्छ हो सकता है को उकसाने के लिए तत्पर रहते हैं, वे इसे भी धिक्कारें.
इसके संध्या के तारे काले हो जाएं;
इसका उजियाला नष्ट हो जाए,
इसके लिए प्रभात ही मिट जाए;
क्योंकि यही वह दिन था, जिसने मेरी माता के प्रसव को रोका नहीं,
और न ही इसने विपत्ति को मेरी दृष्टि से छिपाया.
“जन्म होते ही मेरी मृत्यु क्यों न हो गई,
क्यों नहीं गर्भ से निकलते ही मेरा प्राण चला गया?
क्यों उन घुटनों ने मुझे थाम लिया
तथा मेरे दुग्धपान के लिए वे स्तन तत्पर क्यों थे?
यदि ऐसा न होता तो आज मैं शांति से पड़ा हुआ होता;
मैं निद्रा में विश्रान्ति कर रहा होता,
मेरे साथ होते संसार के राजा एवं मंत्री,
जिन्होंने अपने ही लिए सुनसान स्थान को पुनर्निर्माण किया था.
अथवा वे शासक, जो स्वर्ण धारण किए हुए थे,
जिन्होंने चांदी से अपने कोष भर लिए थे.
अथवा उस मृत भ्रूण के समान, उस शिशु-समान,
जिसने प्रकाश का अनुभव ही नहीं किया, मेरी भी स्थिति वैसी होती.
उस स्थान पर तो दुष्ट लोग भी दुःख देना छोड़ देते हैं
तथा थके मांदे विश्रान्ति के लिए कब्र में जा पहुंचते हैं,
वहां एकत्र बंदी भी एक साथ सुख से रहते हैं;
वहां उनके पहरेदारों की आवाज वे नहीं सुनते.
वहां सामान्य भी हैं और विशिष्ट भी,
वहां दास अपने स्वामी से स्वतंत्र हो चुका है.
“जो पीड़ा में पड़ा हुआ है, उसे प्रकाश का क्या लाभ,
तथा उसको जीवन क्यों देना है, जिसकी आत्मा कड़वाहट से भर चुकी हो,
वह जिसकी मनोकामना मृत्यु की है, किंतु मृत्यु उससे दूर-दूर रहती है,
वह मृत्यु को इस यत्न से खोज रहा है, मानो वह एक खजाना है.
भला किसे,
किसी कब्र को देख आनंद होता है?
उस व्यक्ति को प्रकाश प्रदान करने का क्या लाभ,
जिसके सामने कोई मार्ग नहीं है,
जिसे परमेश्वर द्वारा सीमित कर दिया गया है?
भोजन को देखने से ही मेरी कराहट का प्रारंभ होता है;
तथा जल समान बहता है मेरा विलाप.
जो कुछ मेरे सामने भय का विषय थे; उन्हीं ने मुझे घेर रखा है,
जो मेरे सामने भयावह था, वही मुझ पर आ पड़ा है.
मैं सुख स्थिति में नहीं हूं, मैं निश्चिंत नहीं हूं;
मुझमें विश्रान्ति नहीं है, परंतु खलबली समाई है.”
एलिफाज़ की पहली प्रतिक्रिया
तब तेमानवासी एलिफाज़ ने उत्तर दिया:
“अय्योब, यदि मैं तुमसे कुछ कहने का ढाढस करूं, क्या तुम चिढ़ जाओगे?
किंतु कुछ न कहना भी असंभव हो रहा है.
यह सत्य है कि तुमने अनेकों को चेताया है,
तुमने अनेकों को प्रोत्साहित किया है.
तुम्हारे शब्दों से अनेकों के लड़खड़ाते पैर स्थिर हुए हैं;
तुमसे ही निर्बल घुटनों में बल-संचार हुआ है.
अब तुम स्वयं उसी स्थिति का सामना कर रहे हो तथा तुम अधीर हो रहे हो;
उसने तुम्हें स्पर्श किया है और तुम निराशा में डूबे हुए हो!
क्या तुम्हारे बल का आधार परमेश्वर के प्रति तुम्हारी श्रद्धा नहीं है?
क्या तुम्हारी आशा का आधार तुम्हारा आचरण खरा होना नहीं?
“अब यह सत्य याद न होने देना कि क्या कभी कोई अपने निर्दोष होने के कारण नष्ट हुआ?
अथवा कहां सज्जन को नष्ट किया गया है?
अपने अनुभव के आधार पर मैं कहूंगा, जो पाप में हल चलाते हैं
तथा जो संकट बोते हैं, वे उसी की उपज एकत्र करते हैं.
परमेश्वर के श्वास मात्र से वे नष्ट हो जाते हैं;
उनके कोप के विस्फोट से वे नष्ट हो जाते हैं,
सिंह की दहाड़, हिंसक सिंह की गरज,
बलिष्ठ सिंहों के दांत टूट जाते हैं.
भोजन के अभाव में सिंह नष्ट हो रहे हैं,
सिंहनी के बच्चे इधर-उधर जा चुके हैं.
“एक संदेश छिपते-छिपाते मुझे दिया गया,
मेरे कानों ने वह शांत ध्वनि सुन ली.
रात्रि में सपनों में विचारों के मध्य के दृश्यों से,
जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़े हुए होते हैं,
मैं भय से भयभीत हो गया, मुझ पर कंपकंपी छा गई,
वस्तुतः मेरी समस्त हड्डियां हिल रही थीं.
उसी अवसर पर मेरे चेहरे के सामने से एक आत्मा निकलकर चली गई,
मेरे रोम खड़े हो गए.
मैं स्तब्ध खड़ा रह गया.
उसके रूप को समझना मेरे लिए संभव न था.
एक रूप को मेरे नेत्र अवश्य देख रहे थे.
वातावरण में पूर्णतः सन्नाटा था, तब मैंने एक स्वर सुना
‘क्या मानव जाति परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी हो सकती है?
क्या रचयिता की परख में मानव पवित्र हो सकता है?
परमेश्वर ने अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखा है,
अपने स्वर्गदूतों पर वे दोष आरोपित करते हैं.
तब उन पर जो मिट्टी के घरों में निवास करते,
जिनकी नींव ही धूल में रखी हुई है,
जिन्हें पतंगे-समान कुचलना कितना अधिक संभव है!
प्रातःकाल से लेकर संध्याकाल तक उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है;
उन्हें सदा-सर्वदा के लिए विनष्ट कर दिया जाता है, किसी का ध्यान उन पर नहीं जाता.
क्या यह सत्य नहीं कि उनके तंबुओं की रस्सियां उनके भीतर ही खोल दी जाती हैं?
तथा बुद्धिहीनों की मृत्यु हो जाती है?’ ”
“इसी समय पुकारकर देख. है कोई जो इसे सुनेगा?
तुम किस सज्जन व्यक्ति से सहायता की आशा करोगे?
क्रोध ही मूर्ख व्यक्ति के विनाश का कारण हो जाता है,
तथा जलन भोले के लिए घातक होती है.
मैंने मूर्ख को जड़ पकडे देखा है,
किंतु तत्काल ही मैंने उसके घर को शाप दे दिया.
उसकी संतान सुरक्षित नहीं है, नगर चौक में वे कष्ट के लक्ष्य बने हुए हैं,
कोई भी वहां नहीं, जो उनको छुड़वाएगा,
उसकी कटी हुई उपज भूखे लोग खा जाते हैं,
कंटीले क्षेत्र की उपज भी वे नहीं छोड़ते.
लोभी उसकी संपत्ति हड़पने के लिए प्यासे हैं.
कष्ट का उत्पन्न धूल से नहीं होता
और न विपत्ति भूमि से उपजती है.
जिस प्रकार चिंगारियां ऊपर दिशा में ही बढ़ती हैं
उसी प्रकार मनुष्य का जन्म होता ही है यातनाओं के लिए.
“हां, मैं तो परमेश्वर की खोज करूंगा;
मैं अपना पक्ष परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करूंगा.
वही विलक्षण एवं अगम्य कार्य करते हैं,
असंख्य हैं आपके चमत्कार.
वही पृथ्वी पर वृष्टि बरसाते
तथा खेतों को पानी पहुंचाते हैं.
तब वह विनम्रों को ऊंचे स्थान पर बैठाते हैं,
जो विलाप कर रहे हैं, उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं.
वह चालाक के षड़्यंत्र को विफल कर देते हैं,
परिणामस्वरूप उनके कार्य सफल हो ही नहीं पाते.
वह बुद्धिमानों को उन्हीं की युक्ति में उलझा देते हैं
तथा धूर्त का परामर्श तत्काल विफल हो जाता है.
दिन में ही वे अंधकार में जा पड़ते हैं
तथा मध्याह्न पर उन्हें रात्रि के समान टटोलना पड़ता है.
किंतु प्रतिरक्षा के लिए परमेश्वर का वचन है उनके मुख की तलवार;
वह बलवानों की शक्ति से दीन की रक्षा करते हैं.
तब निस्सहाय के लिए आशा है,
अनिवार्य है कि बुरे लोग चुप रहें.
“ध्यान दो, कैसा प्रसन्न है वह व्यक्ति जिसको परमेश्वर ताड़ना देते हैं;
तब सर्वशक्तिमान के द्वारा की जा रही ताड़ना से घृणा न करना.
चोट पहुंचाना और मरहम पट्टी करना, दोनों ही उनके द्वारा होते हैं;
वही घाव लगाते और स्वास्थ्य भी वही प्रदान करते हैं.
वह छः कष्टों से तुम्हारा निकास करेंगे,
सात में भी अनिष्ट तुम्हारा स्पर्श नहीं कर सकेगा.
अकाल की स्थिति में परमेश्वर तुम्हें मृत्यु से बचाएंगे,
वैसे ही युद्ध में तलवार के प्रहार से.
तुम चाबुक समान जीभ से सुरक्षित रहोगे,
तथा तुम्हें हिंसा भयभीत न कर सकेगी.
हिंसा तथा अकाल तुम्हारे लिए उपहास के विषय होंगे,
तुम्हें हिंसक पशुओं का भय न होगा.
तुम खेत के पत्थरों के साथ रहोगे
तथा वन-पशुओं से तुम्हारी मैत्री हो जाएगी.
तुम्हें यह तो मालूम हो जाएगा कि तुम्हारा डेरा सुरक्षित है;
तुम अपने घर में जाओगे और तुम्हें किसी भी हानि का भय न होगा.
तुम्हें यह भी बोध हो जाएगा कि तुम्हारे वंशजों की संख्या बड़ी होगी,
तुम्हारी सन्तति भूमि की घास समान होगी.
मृत्यु की बेला में भी तुम्हारे शौर्य का ह्रास न हुआ होगा,
जिस प्रकार परिपक्व अन्न एकत्र किया जाता है.
“इस पर ध्यान दो: हमने इसे परख लिया है यह ऐसा ही है.
इसे सुनो तथा स्वयं इसे पहचान लो.”
मित्रों से अय्योब की निराशा
यह सुन अय्योब ने यह कहा:
“कैसा होता यदि मेरी पीड़ा मापी जा सकती,
इसे तराजू में रखा जाता!
तब तो इसका माप सागर तट की बालू से अधिक होता.
इसलिये मेरे शब्द मूर्खता भरे लगते हैं.
क्योंकि सर्वशक्तिमान के बाण मुझे बेधे हुए हैं,
उनका विष रिसकर मेरी आत्मा में पहुंच रहा है.
परमेश्वर का आतंक आक्रमण के लिए मेरे विरुद्ध खड़ा है!
क्या जंगली गधा घास के सामने आकर रेंकता है?
क्या बछड़ा अपना चारा देख रम्भाता है?
क्या किसी स्वादरहित वस्तु का सेवन नमक के बिना संभव है?
क्या अंडे की सफेदी में कोई भी स्वाद होता है?
मैं उनका स्पर्श ही नहीं चाहता;
मेरे लिए ये घृणित भोजन-समान हैं.
“कैसा होता यदि मेरा अनुरोध पूर्ण हो जाता
तथा परमेश्वर मेरी लालसा को पूर्ण कर देते,
तब ऐसा हो जाता कि परमेश्वर मुझे कुचलने के लिए तत्पर हो जाते,
कि वह हाथ बढ़ाकर मेरा नाश कर देते!
किंतु तब भी मुझे तो संतोष है,
मैं असह्य दर्द में भी आनंदित होता हूं,
क्योंकि मैंने पवित्र वचनों के आदेशों का विरोध नहीं किया है.
“क्या है मेरी शक्ति, जो मैं आशा करूं?
क्या है मेरी नियति, जो मैं धैर्य रखूं?
क्या मेरा बल वह है, जो चट्टानों का होता है?
अथवा क्या मेरी देह की रचना कांस्य से हुई है?
क्या मेरी सहायता का मूल मेरे अंतर में निहित नहीं,
क्या मेरी विमुक्ति मुझसे दूर हो चुकी?
“जो अपने दुःखी मित्र पर करुणा नहीं दिखाता,
वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति श्रद्धा छोड़ देता है.
मेरे भाई तो जलधाराओं समान विश्वासघाती ही प्रमाणित हुए,
वे जलधाराएं, जो विलीन हो जाती हैं,
जिनमें हिम पिघल कर जल बनता है
और उनका जल छिप जाता है.
वे जलहीन शांत एवं सूनी हो जाती हैं,
वे ग्रीष्मऋतु में अपने स्थान से विलीन हो जाती हैं.
वे अपने रास्ते से भटक जाते हैं;
उसके बाद वे मरुभूमि में विलीन हो जाती हैं.
तेमा के यात्री दल उन्हें खोजते रहे,
शीबा के यात्रियों ने उन पर आशा रखी थी.
उन पर भरोसा कर उन्हें पछतावा हुआ;
वे वहां पहुंचे और निराश हो गए.
अब स्थिति यह है, कि तुम इन्हीं जलधाराओं के समान हो चुके हो;
तुम आतंक को देखकर डर जाते हो.
क्या मैंने कभी यह आग्रह किया है, ‘कुछ तो दे दो मुझे, अथवा,
अपनी संपत्ति में से कुछ देकर मुझे मुक्त करा लो,
अथवा, शत्रु के बंधन से मुझे मुक्त करा लो,
इस उपद्रव करनेवाले व्यक्ति के अधिकार से मुझे छुड़ा लो?’
“मुझे शिक्षा दीजिए, मैं चुप रहूंगा;
मेरी त्रुटियां मुझ पर प्रकट कर दीजिए.
सच्चाई में कहे गए उद्गार कितने सुखदायक होते हैं!
किंतु आपके विवाद से क्या प्रकट होता है?
क्या तुम्हारा अभिप्राय मेरे कहने की निंदा करना है,
निराश व्यक्ति के उद्गार तो निरर्थक ही होते हैं?
तुम तो पितृहीनों के लिए चिट्ठी डालोगे
तथा अपने मित्र को ही बेच दोगे.
“अब कृपा करो और मेरी ओर देखो.
फिर देखना कि क्या मैं तुम्हारे मुख पर झूठ बोल सकूंगा?
अब कोई अन्याय न होने पाए;
छोड़ दो यह सब, मैं अब भी सत्यनिष्ठ हूं.
क्या मेरी जीभ अन्यायपूर्ण है?
क्या मुझमें बुराई और अच्छाई का बोध न रहा?
“क्या ऐहिक जीवन में मनुष्य श्रम करने के लिए बंधा नहीं है?
क्या उसका जीवनकाल मज़दूर समान नहीं है?
उस दास के समान, जो हांफते हुए छाया खोजता है,
उस मज़दूर के समान, जो उत्कण्ठापूर्वक अपनी मज़दूरी मिलने की प्रतीक्षा करता है.
इसी प्रकार मेरे लिए निरर्थकता के माह
तथा पीड़ा की रातें निर्धारित की गई हैं.
मैं इस विचार के साथ बिछौने पर जाता हूं, ‘मैं कब उठूंगा?’
किंतु रात्रि समाप्त नहीं होती. मैं प्रातःकाल तक करवटें बदलता रह जाता हूं.
मेरी खाल पर कीटों एवं धूल की परत जम चुकी है,
मेरी खाल कठोर हो चुकी है, उसमें से स्राव बहता रहता है.
“मेरे दिनों की गति तो बुनकर की धड़की की गति से भी अधिक है,
जब वे समाप्त होते हैं, आशा शेष नहीं रह जाती.
यह स्मरणीय है कि मेरा जीवन मात्र श्वास है;
कल्याण अब मेरे सामने आएगा नहीं.
वह, जो मुझे आज देख रहा है, इसके बाद नहीं देखेगा;
तुम्हारे देखते-देखते मैं अस्तित्वहीन हो जाऊंगा.
जब कोई बादल छुप जाता है, उसका अस्तित्व मिट जाता है,
उसी प्रकार वह अधोलोक में प्रवेश कर जाता है, पुनः यहां नहीं लौटता.
वह अपने घर में नहीं लौटता;
न ही उस स्थान पर उसका अस्तित्व रह जाता है.
“तब मैं अपने मुख को नियंत्रित न छोड़ूंगा;
मैं अपने हृदय की वेदना उंडेल दूंगा,
अपनी आत्मा की कड़वाहट से भरके कुड़कुड़ाता रहूंगा.
परमेश्वर, क्या मैं सागर हूं, अथवा सागर का विकराल जल जंतु,
कि आपने मुझ पर पहरा बैठा रखा है?
यदि मैं यह विचार करूं कि बिछौने पर तो मुझे सुख संतोष प्राप्त हो जाएगा,
मेरे आसन पर मुझे इन पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी,
तब आप मुझे स्वप्नों के द्वारा भयभीत करने लगते हैं
तथा दर्शन दिखा-दिखाकर आतंकित कर देते हैं;
कि मेरी आत्मा को घुटन हो जाए,
कि मेरी पीड़ाएं मेरे प्राण ले लें.
मैं अपने जीवन से घृणा करता हूं; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता हूं.
छोड़ दो मुझे अकेला; मेरा जीवन बस एक श्वास तुल्य है.
“प्रभु, मनुष्य है ही क्या, जिसे आप ऐसा महत्व देते हैं,
जिसका आप ध्यान रखते हैं,
हर सुबह आप उसका परीक्षण करते,
तथा हर पल उसे परखते रहते हैं?
क्या आप अपनी दृष्टि मुझ पर से कभी न हटाएंगे?
क्या आप मुझे इतना भी अकेला न छोड़ेंगे, कि मैं अपनी लार को गले से नीचे उतार सकूं?
प्रभु, आप जो मनुष्यों पर अपनी दृष्टि लगाए रखते हैं, क्या किया है मैंने आपके विरुद्ध?
क्या मुझसे कोई पाप हो गया है?
आपने क्यों मुझे लक्ष्य बना रखा है?
क्या, अब तो मैं अपने ही लिए एक बोझ बन चुका हूं?
तब आप मेरी गलतियों को क्षमा क्यों नहीं कर रहे,
क्यों आप मेरे पाप को माफ नहीं कर रहे?
क्योंकि अब तो तुझे धूल में मिल जाना है;
आप मुझे खोजेंगे, किंतु मुझे नहीं पाएंगे.”
बिलदद द्वारा परमेश्वर की सच्चाई की पुष्टि
तब शूही बिलदद ने कहना प्रारंभ किया:
“और कितना दोहराओगे इस विषय को?
अब तो तुम्हारे शब्द तेज हवा जैसी हो चुके हैं.
क्या परमेश्वर द्वारा अन्याय संभव है?
क्या सर्वशक्तिमान न्याय को पथभ्रष्ट करेगा?
यदि तुम्हारे पुत्रों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है,
तब तो परमेश्वर ने उन्हें उनके अपराधों के अधीन कर दिया है.
यदि तुम परमेश्वर को आग्रहपूर्वक अर्थना करें, सर्वशक्तिमान से
कृपा की याचना करें,
यदि तुम पापरहित तथा ईमानदार हो, यह निश्चित है
कि परमेश्वर तुम्हारे पक्ष में सक्रिय हो जाएंगे
और तुम्हारी युक्तता की स्थिति को पुनःस्थापित कर देंगे.
यद्यपि तुम्हारा प्रारंभ नम्र जान पड़ेगा,
फिर भी तुम्हारा भविष्य अत्यंत महान होगा.
“कृपा करो और पूर्व पीढ़ियों से मालूम करो,
उन विषयों पर विचार करो,
क्योंकि हम तो कल की पीढ़ी हैं और हमें इसका कोई ज्ञान नहीं है,
क्योंकि पृथ्वी पर हमारा जीवन छाया-समान होता है.
क्या वे तुम्हें शिक्षा देते हुए प्रकट न करेंगे,
तथा अपने मन के विचार व्यक्त न करेंगे?
क्या दलदल में कभी सरकंडा उग सकता है?
क्या जल बिन झाड़ियां जीवित रह सकती हैं?
वह हरा ही होता है तथा इसे काटा नहीं जाता,
फिर भी यह अन्य पौधों की अपेक्षा पहले ही सूख जाता है.
उनकी चालचलन भी ऐसी होती है, जो परमेश्वर को भूल जाते हैं;
श्रद्धाहीन मनुष्यों की आशा नष्ट हो जाती है.
उसका आत्मविश्वास दुर्बल होता है
तथा उसका विश्वास मकड़ी के जाल समान पल भर का होता है.
उसने अपने घर के आश्रय पर भरोसा किया, किंतु वह स्थिर न रह सका है;
उसने हर संभव प्रयास तो किए, किंतु इसमें टिकने की क्षमता ही न थी.
वह सूर्य प्रकाश में समृद्ध हो जाता है,
उसकी जड़ें उद्यान में फैलती जाती हैं.
उसकी जड़ें पत्थरों को चारों ओर से जकड़ लेती हैं,
वह पत्थरों से निर्मित भवन को पकड़े रखता है.
यदि उसे उसके स्थान से उखाड़ दिया जाए,
तब उससे यह कहा जाएगा: ‘तुम्हें मैंने कभी देखा नहीं!’
अय्योब, ध्यान दो! यही है परमेश्वर की नीतियों का आनंद;
इसी धूल से दूसरे उपजेंगे.
“मालूम है कि परमेश्वर सत्यनिष्ठ व्यक्ति को उपेक्षित नहीं छोड़ देते,
और न वह दुष्कर्मियों का समर्थन करते हैं.
अब भी वह तुम्हारे जीवन को हास्य से पूर्ण कर देंगे,
तुम उच्च स्वर में हर्षोल्लास करोगे.
जिन्हें तुमसे घृणा है, लज्जा उनका परिधान होगी
तथा दुर्वृत्तों का घर अस्तित्व में न रहेगा.”
अय्योब के साथ में मनुष्य एवं परमेश्वर के मध्य मध्यस्थ कोई नहीं
तब अय्योब ने और कहा:
“वस्तुतः मुझे यह मालूम है कि सत्य यही है.
किंतु मनुष्य भला परमेश्वर की आंखों में निर्दोष कैसे हो सकता है?
यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से वाद-विवाद करना चाहे,
तो वह परमेश्वर को एक हजार में से एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे सकेगा.
वह तो मन से बुद्धिमान तथा बल के शूर हैं.
कौन उनकी हानि किए बिना उनकी उपेक्षा कर सका है?
मात्र परमेश्वर ही हैं, जो विचलित कर देते हैं,
किसे यह मालूम है कि अपने क्रोध में वह किस रीति से उन्हें पलट देते हैं.
कौन है जो पृथ्वी को इसके स्थान से हटा देता है,
कि इसके आधार-स्तंभ थरथरा जाते हैं.
उसके आदेश पर सूर्य निष्प्रभ हो जाता है,
कौन तारों पर अपनी मोहर लगा देता है?
कौन अकेले ही आकाशमंडल को फैला देता है,
कौन सागर की लहरों को रौंदता चला जाता है;
किसने सप्त ऋषि, मृगशीर्ष, कृतिका
तथा दक्षिण नक्षत्रों की स्थापना की है?
कौन विलक्षण कार्य करता है?
वे कार्य, जो अगम्य, आश्चर्यजनक एवं असंख्य भी हैं.
यदि वे मेरे निकट से होकर निकलें, वह दृश्य न होंगे;
यदि वह मेरे निकट से होकर निकलें, मुझे उनका बोध भी न होगा.
यदि वह कुछ छीनना चाहें, कौन उन्हें रोक सकता है?
किसमें उनसे यह प्रश्न करने का साहस है, ‘यह क्या कर रहे हैं आप?’
परमेश्वर अपने कोप को शांत नहीं करेंगे;
उनके नीचे राहाब9:13 राहाब एक पौराणिक समुद्री राक्षस जो प्राचीन साहित्य में अराजकता का प्रतिनिधित्व करता है के सहायक दुबके बैठे हैं.
“मैं उन्हें किस प्रकार उत्तर दे सकता हूं?
मैं कैसे उनके लिए दोषी व निर्दोष को पहचानूं?
क्योंकि यदि मुझे धर्मी व्यक्ति पहचाना भी जाए, तो उत्तर देना मेरे लिए असंभव होगा;
मुझे अपने न्याय की कृपा के लिए याचना करनी होगी.
यदि वे मेरी पुकार सुन लेते हैं,
मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन होगा, कि वे मेरी पुकार को सुन रहे थे.
क्योंकि वे तो मुझे तूफान द्वारा घायल करते हैं,
तथा अकारण ही मेरे घावों की संख्या में वृद्धि करते हैं.
वे मुझे श्वास भी न लेने देंगे,
वह मुझे कड़वाहट से परिपूर्ण कर देते हैं.
यदि यह अधिकार का विषय है, तो परमेश्वर बलशाली हैं!
यदि यह न्याय का विषय है, तो कौन उनके सामने ठहर सकता है?
यद्यपि मैं ईमानदार हूं, मेरे ही शब्द मुझे दोषारोपित करेंगे;
यद्यपि मैं दोषहीन हूं, मेरा मुंह मुझे दोषी घोषित करेंगे.
“मैं दोषहीन हूं,
यह स्वयं मुझे दिखाई नहीं देता;
मुझे तो स्वयं से घृणा हो रही है.
सभी समान हैं; तब मेरा विचार यह है,
‘वे तो निर्दोष तथा दुर्वृत्त दोनों ही को नष्ट कर देते हैं.’
यदि एकाएक आई विपत्ति महामारी ले आती है,
तो परमेश्वर निर्दोषों की निराशा का उपहास करते हैं.
समस्त को दुष्ट के हाथों में सौप दिया गया है,
वे अपने न्यायाधीशों के चेहरे को आवृत्त कर देते हैं.
अगर वे नहीं हैं, तो वे कौन हैं?
“मेरे इन दिनों की गति तो धावक से भी तीव्र है;
वे उड़े चले जा रहे हैं, इन्होंने बुरा समय ही देखा है.
ये ऐसे निकले जा रहे हैं, कि मानो ये सरकंडों की नौकाएं हों,
मानो गरुड़ अपने शिकार पर झपटता है.
यद्यपि मैं कहूं: मैं अपनी शिकायत प्रस्तुत नहीं करूंगा,
‘मैं अपने चेहरे के विषाद को हटाकर उल्लास करूंगा.’
मेरे समस्त कष्टों ने मुझे भयभीत कर रखा है,
मुझे यह मालूम है कि आप मुझे निर्दोष घोषित नहीं करेंगे.
मेरी गणना दुर्वृत्तों में हो चुकी है,
तो फिर मैं अब व्यर्थ परिश्रम क्यों करूं?
यदि मैं स्वयं को बर्फ के निर्मल जल से साफ कर लूं,
अपने हाथों को साबुन से साफ़ कर लूं,
यह सब होने पर भी आप मुझे कब्र में डाल देंगे.
मेरे वस्त्र मुझसे घृणा करने लगेंगे.
“परमेश्वर कोई मेरे समान मनुष्य तो नहीं हैं, कि मैं उन्हें वाद-विवाद में सम्मिलित कर लूं,
कि मैं उनके साथ न्यायालय में प्रवेश करूं.
हम दोनों के मध्य कोई भी मध्यस्थ नहीं,
कि वह हम दोनों के सिर पर हाथ रखे.
परमेश्वर ही मुझ पर से अपना नियंत्रण हटा लें,
उनका आतंक मुझे भयभीत न करने पाए.
इसी के बाद मैं उनसे बिना डर के वार्तालाप कर सकूंगा,
किंतु स्वयं मैं अपने अंतर में वैसा नहीं हूं.
“अपने जीवन से मुझे घृणा है;
मैं खुलकर अपनी शिकायत प्रस्तुत करूंगा.
मेरे शब्दों का मूल है मेरी आत्मा की कड़वाहट.
परमेश्वर से मेरा आग्रह है: मुझ पर दोषारोपण न कीजिए,
मुझ पर यह प्रकट कर दीजिए, कि मेरे साथ अमरता का मूल क्या है.
क्या आपके लिए यह उपयुक्त है कि आप अत्याचार करें,
कि आप अपनी ही कृति को त्याग दें,
तथा दुर्वृत्तों की योजना को समर्थन दें?
क्या आपके नेत्र मनुष्यों के नेत्र-समान हैं?
क्या आपका देखना मनुष्यों-समान होता है?
क्या आपका जीवनकाल मनुष्यों-समान है,
अथवा आपके जीवन के वर्ष मनुष्यों-समान हैं,
कि आप मुझमें दोष खोज रहे हैं,
कि आप मेरे पाप की छानबीन कर रहे हैं?
आपके ज्ञान के अनुसार सत्य यही है मैं दोषी नहीं हूं,
फिर भी आपकी ओर से मेरे लिए कोई भी मुक्ति नहीं है.
“मेरी संपूर्ण संरचना आपकी ही कृति है,
क्या आप मुझे नष्ट कर देंगे?
स्मरण कीजिए, मेरी रचना आपने मिट्टी से की है.
क्या आप फिर मुझे मिट्टी में शामिल कर देंगे?
आपने क्या मुझे दूध के समान नहीं उंडेला
तथा दही-समान नहीं जमा दिया था?
क्या आपने मुझे मांस तथा खाल का आवरण नहीं पहनाया
तथा मुझे हड्डियों तथा मांसपेशियों से बुना था?
आपने मुझे जीवन एवं करुणा-प्रेम10:12 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं का अनुदान दिया
तथा आपकी कृपा में मेरी आत्मा सुरक्षित रही है.
“फिर भी ये सत्य आपने अपने हृदय में गोपनीय रख लिए,
मुझे यह मालूम है कि यह आप में सुरक्षित है:
यदि मैं कोई पाप कर बैठूं तो आपका ध्यान मेरी ओर जाएगा.
तब आप मुझे निर्दोष न छोड़ेंगे.
धिक्कार है मुझ पर—यदि मैं दोषी हूं!
और यद्यपि मैं बेकसूर हूं, मुझमें सिर ऊंचा करने का साहस नहीं है.
मैं तो लज्जा से भरा हुआ हूं,
क्योंकि मुझे मेरी दयनीय दुर्दशा का बोध है.
यदि मैं अपना सिर ऊंचा कर लूं, तो आप मेरा पीछा ऐसे करेंगे, जैसे सिंह अपने आहार का पीछा करता है;
एक बार फिर आप मुझ पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे.
आप मेरे विरुद्ध नए-नए साक्षी लेकर आते हैं
तथा मेरे विरुद्ध अपने कोप की वृद्धि करते हैं;
मुझ पर तो कष्टों पर कष्ट चले आ रहे हैं.
“तब आपने मुझे गर्भ से बाहर क्यों आने दिया?
उत्तम तो यही होता कि वहीं मेरी मृत्यु हो जाती कि मुझ पर किसी की दृष्टि न पड़ती.
मुझे तो ऐसा हो जाना था,
मानो मैं हुआ ही नहीं; या सीधे गर्भ से कब्र में!
क्या परमेश्वर मुझे मेरे इन थोड़े से दिनों में शांति से रहने न देंगे?
आप अपना यह स्थान छोड़ दीजिए, कि मैं कुछ देर के लिए आनंदित रह सकूं.
इसके पूर्व कि मैं वहां के लिए उड़ जाऊं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता,
उस अंधकार तथा मृत्यु के स्थान को,
उस घोर अंधकार के स्थान को,
जहां कुछ गड़बड़ी नहीं है,
उस स्थान में अंधकार भी प्रकाश समान है.”
जोफर की पहली प्रतिक्रिया
इसके बाद नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:
“क्या मेरे इतने सारे शब्दों का उत्तर नहीं मिलेगा?
क्या कोई वाचाल व्यक्ति दोष मुक्त माना जाएगा?
क्या तुम्हारी अहंकार की बातें लोगों को चुप कर पाएगी?
क्या तुम उपहास करके भी कष्ट से मुक्त रहोगे?
क्योंकि तुमने तो कहा है, ‘मेरी शिक्षा निर्मल है
तथा आपके आंकलन में मैं निर्दोष हूं,’
किंतु यह संभव है कि परमेश्वर संवाद करने लगें
तथा वह तुम्हारे विरुद्ध अपना निर्णय दें.
वह तुम पर ज्ञान का रहस्य प्रगट कर दें,
क्योंकि सत्य ज्ञान के दो पक्ष हैं.
तब यह समझ लो, कि परमेश्वर तुम्हारे अपराध के कुछ अंश को भूल जाते हैं.
“क्या, परमेश्वर के रहस्य की गहराई को नापना तुम्हारे लिए संभव है?
क्या तुम सर्वशक्तिमान की सीमाओं की जांच कर सकते हो?
क्या करोगे तुम? वे तो आकाश-समान उन्नत हैं.
क्या मालूम कर सकोगे तुम? वे तो पाताल से भी अधिक अथाह हैं.
इसका विस्तार पृथ्वी से भी लंबा है
तथा महासागर से भी अधिक व्यापक.
“यदि वह आएं तथा तुम्हें बंदी बना दें, तथा तुम्हारे लिए अदालत आयोजित कर दें,
तो कौन उन्हें रोक सकता है?
वह तो पाखंडी को पहचान लेते हैं, उन्हें तो यह भी आवश्यकता नहीं;
कि वह पापी के लिए विचार करें.
जैसे जंगली गधे का बच्चा मनुष्य नहीं बन सकता,
वैसे ही किसी मूर्ख को बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता.
“यदि तुम अपने हृदय को शुद्ध दिशा की ओर बढ़ाओ,
तथा अपना हाथ परमेश्वर की ओर बढ़ाओ,
यदि तुम्हारे हाथ जिस पाप में फंसे है,
तुम इसका परित्याग कर दो तथा अपने घरों में बुराई का प्रवेश न होने दो,
तो तुम निःसंकोच अपना सिर ऊंचा कर सकोगे
तथा तुम निर्भय हो स्थिर खड़े रह सकोगे.
क्योंकि तुम्हें अपने कष्टों का स्मरण रहेगा,
जैसे वह जल जो बह चुका है वैसी ही होगी तुम्हारी स्मृति.
तब तुम्हारा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक प्रकाशमान हो जाएगा,
अंधकार भी प्रभात-समान होगा.
तब तुम विश्वास करोगे, क्योंकि तब तुम्हारे सामने होगी एक आशा;
तुम आस-पास निरीक्षण करोगे और फिर पूर्ण सुरक्षा में विश्राम करोगे.
कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा न डालेगा,
अनेक तुम्हारे समर्थन की अपेक्षा करेंगे.
किंतु दुर्वृत्तों की दृष्टि शून्य हो जाएगी,
उनके लिए निकास न हो सकेगा;
उनके लिए एकमात्र आशा है मृत्यु.”
अय्योब की प्रतिक्रिया
तब अय्योब ने उत्तर दिया:
“निःसंदेह तुम्हीं हो वे लोग,
तुम्हारे साथ ही ज्ञान का अस्तित्व मिट जाएगा!
किंतु तुम्हारे समान बुद्धि मुझमें भी है;
तुमसे कम नहीं है मेरा स्तर.
किसे बोध नहीं है इस सत्य का?
“अपने मित्रों के लिए तो मैं हंसी मज़ाक का विषय होकर रह गया हूं,
मैंने परमेश्वर को पुकारा और उन्होंने इसका प्रत्युत्तर भी दिया;
और अब यहां खरा तथा निर्दोष व्यक्ति उपहास का पात्र हो गया है!
सुखी धनवान व्यक्ति को दुःखी व्यक्ति घृणित लग रहा है.
जो पहले ही लड़खड़ा रहा है, उसी पर प्रहार किया जा रहा है.
उन्हीं के घरों को सुरक्षित छोड़ा जा रहा है, जो हिंसक-विनाशक हैं,
वे ही सुरक्षा में निवास कर रहे हैं, जो परमेश्वर को उकसाते रहे हैं,
जो सोचते हैं कि ईश्वर अपनी मुट्ठी में है12:6 ईश्वर अपनी मुट्ठी में है किंवा जो परमेश्वर के हाथों में है!
“किंतु अब जाकर पशुओं से परामर्श लो, अब वे तुम्हें शिक्षा देने लगें,
आकाश में उड़ते पक्षी तुम्हें सूचना देने लगें;
अन्यथा पृथ्वी से ही वार्तालाप करो, वही तुम्हें शिक्षा दे,
महासागर की मछलियां तुम्हारे लिए शिक्षक हो जाएं.
कौन है तुम्हारे मध्य जो इस सत्य से अनजान है,
कि यह सब याहवेह की कृति है?
किसका अधिकार है हर एक जीवधारी जीवन पर
तथा समस्त मानव जाति के श्वास पर?
क्या कान शब्दों की परख नहीं करता,
जिस प्रकार जीभ भोजन के स्वाद को परखती है?
क्या, वृद्धों में बुद्धि पायी नहीं जाती है?
क्या लंबी आयु समझ नहीं ले आती?
“विवेक एवं बल परमेश्वर के साथ हैं;
निर्णय तथा समझ भी उन्हीं में शामिल हैं.
जो कुछ उनके द्वारा गिरा दिया जाता है, उसे फिर से बनाया नहीं जा सकता;
जब वह किसी को बंदी बना लेते हैं, असंभव है उसका छुटकारा.
सुनो! क्या कहीं सूखा पड़ा है? यह इसलिये कि परमेश्वर ने ही जल रोक कर रखा है;
जब वह इसे प्रेषित कर देते हैं, पृथ्वी जलमग्न हो जाती है.
वही हैं बल एवं ज्ञान के स्रोत;
धोखा देनेवाला तथा धोखा खानेवाला दोनों ही उनके अधीन हैं.
वह मंत्रियों को विवस्त्र कर छोड़ते हैं
तथा न्यायाधीशों को मूर्ख बना देते हैं.
वह राजाओं द्वारा डाली गई बेड़ियों को तोड़ फेंकते हैं
तथा उनकी कमर को बंधन से सुसज्जित कर देते हैं.
वह पुरोहितों को नग्न पांव चलने के लिए मजबूर कर देते हैं
तथा उन्हें, जो स्थिर थे, पराजित कर देते हैं.
वह विश्वास सलाहकारों को अवाक बना देते हैं
तथा बड़ों की समझने की शक्ति समाप्त कर देते हैं
वह आदरणीय व्यक्ति को घृणा के पात्र बना छोड़ते हैं.
तथा शूरवीरों को निकम्मा कर देते हैं.
वह घोर अंधकार में बड़े रहस्य प्रकट कर देते हैं,
तथा घोर अंधकार को प्रकाश में ले आते हैं.
वही राष्ट्रों को उन्नत करते और फिर उन्हें नष्ट भी कर देते हैं.
वह राष्ट्रों को समृद्ध करते और फिर उसे निवास रहित भी कर देते हैं.
वह विश्व के शासकों की बुद्धि शून्य कर देते हैं
तथा उन्हें रेगिस्तान प्रदेश में दिशाहीन भटकने के लिए छोड़ देते हैं.
वे घोर अंधकार में टटोलते रह जाते हैं
तथा वह उन्हें इस स्थिति में डाल देते हैं, मानो कोई मतवाला लड़खड़ा रहा हो.
“सुनो, मेरे नेत्र यह सब देख चुके हैं, मेरे कानों ने,
यह सब सुन लिया है तथा मैंने इसे समझ लिया है.
जो कुछ तुम्हें मालूम है, वह सब मुझे मालूम है;
मैं तुमसे किसी भी रीति से कम नहीं हूं,
हां, मैं इसका उल्लेख सर्वशक्तिमान से अवश्य करूंगा,
मेरी अभिलाषा है कि इस विषय में परमेश्वर से वाद-विवाद करूं.
तुम तो झूठी बात का चित्रण कर रहे हो;
तुम सभी अयोग्य वैद्य हो!
उत्तम तो यह होता कि तुम चुप रहते!
इसी में सिद्ध हो जाती तुम्हारी बुद्धिमानी.
कृपा कर मेरे विवाद पर ध्यान दो;
तथा मेरे होंठों की बहस की बातों पर ध्यान करो.
क्या तुम वह बात करोगे, जो परमेश्वर की दृष्टि में अन्यायपूर्ण है?
अथवा वह कहोगे, जो उनकी दृष्टि में छलपूर्ण है?
क्या तुम परमेश्वर के लिए पक्षपात करोगे?
क्या तुम परमेश्वर से वाद-विवाद करोगे?
क्या जब तुम्हारी परख की जाएगी, तो यह तुम्हारे हित में होगा?
अथवा तुम मनुष्यों के समान परमेश्वर से छल करने का यत्न करने लगोगे?
यदि तुम गुप्त में पक्षपात करोगे,
तुम्हें उनकी ओर से फटकार ही प्राप्त होगी.
क्या परमेश्वर का माहात्म्य तुम्हें भयभीत न कर देगा?
क्या उनका आतंक तुम्हें भयभीत न कर देगा?
तुम्हारी उक्तियां राख के नीतिवचन के समान हैं;
तुम्हारी प्रतिरक्षा मिट्टी समान रह गई है.
“मेरे सामने चुप रहो, कि मैं अपने विचार प्रस्तुत कर सकूं;
तब चाहे कैसी भी समस्या आ पड़े.
भला मैं स्वयं को जोखिम में क्यों डालूं
तथा अपने प्राण हथेली पर लेकर घुमूं?
चाहे परमेश्वर मेरा घात भी करें, फिर भी उनमें मेरी आशा बनी रहेगी;
परमेश्वर के सामने मैं अपना पक्ष प्रस्तुत करूंगा.
यही मेरी छुटकारे का कारण होगा,
क्योंकि कोई बुरा व्यक्ति उनकी उपस्थिति में प्रवेश करना न चाहेगा!
बड़ी सावधानीपूर्वक मेरा वक्तव्य सुन लो;
तथा मेरी घोषणा को मन में बसा लो.
अब सुन लो, प्रस्तुति के लिए मेरा पक्ष तैयार है,
मुझे निश्चय है मुझे न्याय प्राप्त होकर रहेगा.
कौन करेगा मुझसे वाद-विवाद?
यदि कोई मुझे दोषी प्रमाणित कर दे, मैं चुप होकर प्राण त्याग दूंगा.
“परमेश्वर, मेरी दो याचनाएं पूर्ण कर दीजिए,
तब मैं आपसे छिपने का प्रयास नहीं करूंगा.
मुझ पर से अपना कठोर हाथ दूर कर लीजिए,
तथा अपने आतंक मुझसे दूर कर लीजिए.
तब मुझे बुला लीजिए कि मैं प्रश्नों के उत्तर दे सकूं,
अथवा मुझे बोलने दीजिए, और इन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए.
कितने हैं मेरे पाप एवं अपराध?
प्रकट कर दीजिए, मेरा अपराध एवं मेरा पाप.
आप मुझसे अपना मुख क्यों छिपा रहे हैं?
आपने मुझे अपना शत्रु क्यों मान लिया है?
क्या आप एक वायु प्रवाह में उड़ती हुई पत्ती को यातना देंगे?
क्या आप सूखी भूसी का पीछा करेंगे?
आपने मेरे विरुद्ध कड़वे आरोपों की सूची बनाई है
तथा आपने मेरी युवावस्था के पापों को मुझ पर लाद दिया है.
आपने मेरे पांवों में बेड़ियां डाल दी है;
आप मेरे मार्गों पर दृष्टि रखते हैं.
इसके लिए आपने मेरे पांवों के तलवों को चिन्हित कर दिया है.
“तब मनुष्य किसी सड़ी-गली वस्तु के समान नष्ट होता जाता है,
उस वस्त्र के समान, जिसे कीड़े खा चुके हों.
“स्त्री से जन्मे मनुष्य का जीवन,
अल्पकालिक एवं दुःख भरा होता है.
उस पुष्प समान, जो खिलता है तथा मुरझा जाता है;
वह तो छाया-समान द्रुत गति से विलीन हो जाता तथा अस्तित्वहीन रह जाता है.
क्या इस प्रकार का प्राणी इस योग्य है कि आप उस पर दृष्टि बनाए रखें
तथा उसका न्याय करने के लिए उसे अपनी उपस्थिति में आने दें?
अशुद्ध में से किसी शुद्ध वस्तु की सृष्टि कौन कर सकता है?
कोई भी इस योग्य नहीं है!
इसलिये कि मनुष्य का जीवन सीमित है;
उसके जीवन के माह आपने नियत कर रखे हैं.
साथ आपने उसकी सीमाएं निर्धारित कर दी हैं, कि वह इनके पार न जा सके.
जब तक वह वैतनिक मज़दूर समान अपना समय पूर्ण करता है उस पर से अपनी दृष्टि हटा लीजिए,
कि उसे विश्राम प्राप्त हो सके.
“वृक्ष के लिए तो सदैव आशा बनी रहती है:
जब उसे काटा जाता है,
उसके तने से अंकुर निकल आते हैं. उसकी डालियां विकसित हो जाती हैं.
यद्यपि भूमि के भीतर इसकी मूल जीर्ण होती जाती है
तथा भूमि में इसका ठूंठ नष्ट हो जाता है,
जल की गंध प्राप्त होते ही यह खिलने लगता है
तथा पौधे के समान यह अपनी शाखाएं फैलाने लगता है.
किंतु मनुष्य है कि, मृत्यु होने पर वह पड़ा रह जाता है;
उसका श्वास समाप्त हुआ, कि वह अस्तित्वहीन रह जाता है.
जैसे सागर का जल सूखते रहता है
तथा नदी धूप से सूख जाती है,
उसी प्रकार मनुष्य, मृत्यु में पड़ा हुआ लेटा रह जाता है;
आकाश के अस्तित्वहीन होने तक उसकी स्थिति यही रहेगी,
उसे इस गहरी नींद से जगाया जाना असंभव है.
“उत्तम तो यही होता कि आप मुझे अधोलोक में छिपा देते,
आप मुझे अपने कोप के ठंडा होने तक छिपाए रहते!
आप एक अवधि निश्चित करके
इसके पूर्ण हो जाने पर मेरा स्मरण करते!
क्या मनुष्य के लिए यह संभव है कि उसकी मृत्यु के बाद वह जीवित हो जाए?
अपने जीवन के समस्त श्रमपूर्ण वर्षों में मैं यही प्रतीक्षा करता रह जाऊंगा.
कब होगा वह नवोदय?
आप आह्वान करो, तो मैं उत्तर दूंगा;
आप अपने उस बनाए गये प्राणी की लालसा करेंगे.
तब आप मेरे पैरों का लेख रखेंगे
किंतु मेरे पापों का नहीं.
मेरे अपराध को एक थैली में मोहरबन्द कर दिया जाएगा;
आप मेरे पापों को ढांप देंगे.
“जैसे पर्वत नष्ट होते-होते वह चूर-चूर हो जाता है,
चट्टान अपने स्थान से हट जाती है.
जल में भी पत्थरों को काटने की क्षमता होती है,
तीव्र जल प्रवाह पृथ्वी की धूल साथ ले जाते हैं,
आप भी मनुष्य की आशा के साथ यही करते हैं.
एक ही बार आप उसे ऐसा हराते हैं, कि वह मिट जाता है;
आप उसका स्वरूप परिवर्तित कर देते हैं और उसे निकाल देते हैं.
यदि उसकी संतान सम्मानित होती है, उसे तो इसका ज्ञान नहीं होता;
अथवा जब वे अपमानित किए जाते हैं, वे इससे अनजान ही रहते हैं.
जब तक वह देह में होता है, पीड़ा का अनुभव करता है,
इसी स्थिति में उसे वेदना का अनुभव होता है.”
एलिफाज़ की द्वितीय प्रतिक्रिया
इसके बाद तेमानी एलिफाज़ के उद्गार ये थे:
“क्या किसी बुद्धिमान के उद्गार खोखले विचार हो सकते हैं
तथा क्या वह पूर्वी पवन से अपना पेट भर सकता है?
क्या वह निरर्थक सत्यों के आधार पर विचार कर सकता है? वह उन शब्दों का प्रयोग कर सकता है?
जिनका कोई लाभ नहीं बनता?
तुमने तो परमेश्वर के सम्मान को ही त्याग दिया है,
तथा तुमने परमेश्वर की श्रद्धा में विघ्न डाले.
तुम्हारा पाप ही तुम्हारे शब्दों की प्रेरणा है,
तथा तुमने धूर्तों के शब्दों का प्रयोग किये हैं.
ये तो तुम्हारा मुंह ही है, जो तुझे दोषी ठहरा रहा है, मैं नहीं;
तुम्हारे ही शब्द तुम पर आरोप लगा रहे हैं.
“क्या समस्त मानव जाति में तुम सर्वप्रथम जन्मे हो?
अथवा क्या पर्वतों के अस्तित्व में आने के पूर्व तुम्हारा पालन पोषण हुआ था?
क्या तुम्हें परमेश्वर की गुप्त अभिलाषा सुनाई दे रही है?
क्या तुम ज्ञान को स्वयं तक सीमित रखे हुए हो?
तुम्हें ऐसा क्या मालूम है, जो हमें मालूम नहीं है?
तुमने वह क्या समझ लिया है, जो हम समझ न पाए हैं?
हमारे मध्य सफेद बाल के वृद्ध विद्यमान हैं,
ये तुम्हारे पिता से अधिक आयु के भी हैं.
क्या परमेश्वर से मिली सांत्वना तुम्हारी दृष्टि में पर्याप्त है,
वे शब्द भी जो तुमसे सौम्यतापूर्वक से कहे गए हैं?
क्यों तुम्हारा हृदय उदासीन हो गया है?
क्यों तुम्हारे नेत्र क्रोध में चमक रहे हैं?
कि तुम्हारा हृदय परमेश्वर के विरुद्ध हो गया है,
तथा तुम अब ऐसे शब्द व्यर्थ रूप से उच्चार रहे हो?
“मनुष्य है ही क्या, जो उसे शुद्ध रखा जाए अथवा वह,
जो स्त्री से पैदा हुआ, निर्दोष हो?
ध्यान दो, यदि परमेश्वर अपने पवित्र लोगों पर भी विश्वास नहीं करते,
तथा स्वर्ग उनकी दृष्टि में शुद्ध नहीं है.
तब मनुष्य कितना निकृष्ट होगा, जो घृणित तथा भ्रष्ट है,
जो पाप को जल समान पिया करता है!
“यह मैं तुम्हें समझाऊंगा मेरी सुनो जो कुछ मैंने देखा है;
मैं उसी की घोषणा करूंगा,
जो कुछ बुद्धिमानों ने बताया है,
जिसे उन्होंने अपने पूर्वजों से भी गुप्त नहीं रखा है.
(जिन्हें मात्र यह देश प्रदान किया गया था
तथा उनके मध्य कोई भी विदेशी न था):
दुर्वृत्त अपने समस्त जीवनकाल में पीड़ा से तड़पता रहता है.
तथा बलात्कारी के लिए समस्त वर्ष सीमित रख दिए गए हैं.
उसके कानों में आतंक संबंधी ध्वनियां गूंजती रहती हैं;
जबकि शान्तिकाल में विनाश उस पर टूट पड़ता है.
उसे यह विश्वास नहीं है कि उसका अंधकार से निकास संभव है;
कि उसकी नियति तलवार संहार है.
वह भोजन की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है, यह मालूम करते हुए, ‘कहीं कुछ खाने योग्य वस्तु है?’
उसे यह मालूम है कि अंधकार का दिवस पास है.
वेदना तथा चिंता ने उसे भयभीत कर रखा है;
एक आक्रामक राजा समान उन्होंने उसे वश में कर रखा है,
क्योंकि उसने परमेश्वर की ओर हाथ बढ़ाने का ढाढस किया है
तथा वह सर्वशक्तिमान के सामने अहंकार का प्रयास करता है.
वह परमेश्वर की ओर सीधे दौड़ पड़ा है,
उसने मजबूत ढाल ले रखी है.
“क्योंकि उसने अपना चेहरा अपनी वसा में छिपा लिया है
तथा अपनी जांघ चर्बी से भरपूर कर ली है.
वह तो उजाड़ नगरों में निवास करता रहा है,
ऐसे घरों में जहां कोई भी रहना नहीं चाहता था,
जिनकी नियति ही है खंडहर हो जाने के लिए.
न तो वह धनी हो जाएगा, न ही उसकी संपत्ति दीर्घ काल तक उसके अधिकार में रहेगी,
उसकी उपज बढ़ेगी नहीं.
उसे अंधकार से मुक्ति प्राप्त न होगी;
ज्वाला उसके अंकुरों को झुलसा देगी,
तथा परमेश्वर के श्वास से वह दूर उड़ जाएगा.
उत्तम हो कि वह व्यर्थ बातों पर आश्रित न रहे, वह स्वयं को छल में न रखे,
क्योंकि उसका प्रतिफल धोखा ही होगा.
समय के पूर्व ही उसे इसका प्रतिफल प्राप्त हो जाएगा,
उसकी शाखाएं हरी नहीं रह जाएंगी.
उसका विनाश वैसा ही होगा, जैसा कच्चे द्राक्षों की लता कुचल दी जाती है,
जैसे जैतून वृक्ष से पुष्पों का झड़ना होता है.
क्योंकि दुर्वृत्तों की सभा खाली होती है,
भ्रष्ट लोगों के तंबू को अग्नि चट कर जाती है.
उनके विचारों में विपत्ति गर्भधारण करती है तथा वे पाप को जन्म देते हैं;
उनका अंतःकरण छल की योजना गढ़ता रहता है.”
अय्योब
अय्योब ने उत्तर दिया:
“मैं ऐसे अनेक विचार सुन चुका हूं;
तुम तीनों ही निकम्मे दिलासा देनेवाले हो!
क्या इन खोखले उद्गारों का कोई अंत नहीं है?
अथवा किस पीड़ा ने तुमसे ये उत्तर दिलवाए हैं?
तुम्हारी शैली में मैं भी वार्तालाप कर सकता हूं,
यदि मैं आज तुम्हारी स्थिति में होता;
मैं तो तुम्हारे सम्मान में काव्य रचना कर देता
और अपना सिर भी हिलाता रहता.
मैं अपने शब्दों के द्वारा तुममें साहस बढ़ा सकता हूं;
तथा मेरे विचारों की सांत्वना तुम्हारी वेदना कम करती है.
“यदि मैं कुछ कह भी दूं, तब भी मेरी वेदना कम न होगी;
यदि मैं चुप रहूं, इससे भी मुझे कोई लाभ न होगा.
किंतु परमेश्वर ने मुझे थका दिया है;
आपने मेरे मित्र-मण्डल को ही उजाड़ दिया है.
आपने मुझे संकुचित कर दिया है, यह मेरा साक्षी हो गया है;
मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध प्रमाणित हो रहा है, मेरा मुख मेरा विरोध कर रहा है.
परमेश्वर के कोप ने मुझे फाड़ रखा है जैसे किसी पशु को फाड़ा जाता है,
वह मुझ पर दांत पीसते रहे;
मेरे शत्रु मुझ पर कोप करते रहते हैं.
मजाक करते हुए वे मेरे सामने अपना मुख खोलते हैं;
घृणा के आवेग में उन्होंने मेरे कपोलों पर प्रहार भी किया है.
वे सब मेरे विरोध में एकजुट हो गए हैं.
परमेश्वर ने मुझे अधर्मियों के वश में कर दिया है
तथा वह मुझे एक से दूसरे के हाथ में सौंपते हैं.
मैं तो निश्चिंत हो चुका था, किंतु परमेश्वर ने मुझे चूर-चूर कर दिया;
उन्होंने मुझे गर्दन से पकड़कर इस रीति से झंझोड़ा, कि मैं चूर-चूर हो बिखर गया;
उन्होंने तो मुझे निशाना भी बना दिया है.
उनके बाणों से मैं चारों ओर से घिर चुका हूं.
बुरी तरह से उन्होंने मेरे गुर्दे काटकर घायल कर दिए हैं.
उन्होंने मेरा पित्त भूमि पर बिखरा दिया.
वह बार-बार मुझ पर आक्रमण करते रहते हैं;
वह एक योद्धा समान मुझ पर झपटते हैं.
“मैंने तो अपनी देह पर टाट रखी है
तथा अपना सिर धूल में ठूंस दिया है.
रोते-रोते मेरा चेहरा लाल हो चुका है,
मेरी पलकों पर विषाद छा गई है.
जबकि न तो मेरे हाथों ने कोई हिंसा की है
और न मेरी प्रार्थना में कोई स्वार्थ शामिल था.
“पृथ्वी, मेरे रक्त पर आवरण न डालना;
तथा मेरी दोहाई को विश्रान्ति न लेने देना.
ध्यान दो, अब भी मेरा साक्षी स्वर्ग में है;
मेरा गवाह सर्वोच्च है.
मेरे मित्र ही मेरे विरोधी हो गए हैं.
मेरा आंसू बहाना तो परमेश्वर के सामने है.
उपयुक्त होता कि मनुष्य परमेश्वर से उसी स्तर पर आग्रह कर सकता,
जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से.
“क्योंकि जब कुछ वर्ष बीत जायेंगे,
तब मैं वहां पहुंच जाऊंगा, जहां से कोई लौटकर नहीं आता.
मेरा मनोबल टूट चुका है,
मेरे जीवन की ज्योति का अंत आ चुका है,
कब्र को मेरी प्रतीक्षा है.
इसमें कोई संदेह नहीं, ठट्ठा करनेवाले मेरे साथ हो चुके हैं;
मेरी दृष्टि उनके भड़काने वाले कार्यों पर टिकी हुई है.
“परमेश्वर, मुझे वह ज़मानत दे दीजिए, जो आपकी मांग है.
कौन है वह, जो मेरा जामिन हो सकेगा?
आपने तो उनकी समझ को बाधित कर रखा है;
इसलिए आप तो उन्हें जयवंत होने नहीं देंगे.
जो लूट में अपने अंश के लिए अपने मित्रों की चुगली करता है,
उसकी संतान की दृष्टि जाती रहेगी.
“परमेश्वर ने तो मुझे एक निंदनीय बना दिया है,
मैं तो अब वह हो चुका हूं, जिस पर लोग थूकते हैं.
शोक से मेरी दृष्टि क्षीण हो चुकी है;
मेरे समस्त अंग अब छाया-समान हो चुके हैं.
यह सब देख सज्जन चुप रह जाएंगे;
तथा निर्दोष मिलकर दुर्वृत्तों के विरुद्ध हो जाएंगे.
फिर भी खरा अपनी नीतियों पर अटल बना रहेगा,
तथा वे, जो सत्यनिष्ठ हैं, बलवंत होते चले जाएंगे.
“किंतु आओ, तुम सभी आओ, एक बार फिर चेष्टा कर लो!
तुम्हारे मध्य मुझे बुद्धिमान प्राप्त नहीं होगा.
मेरे दिनों का तो अंत हो चुका है, मेरी योजनाएं चूर-चूर हो चुकी हैं.
यही स्थिति है मेरे हृदय की अभिलाषाओं की.
वे तो रात्रि को भी दिन में बदल देते हैं, वे कहते हैं, ‘प्रकाश निकट है,’
जबकि वे अंधकार में होते हैं.
यदि मैं घर के लिए अधोलोक की खोज करूं,
मैं अंधकार में अपना बिछौना लगा लूं.
यदि मैं उस कब्र को पुकारकर कहूं,
‘मेरे जनक तो तुम हो और कीड़ों से कि तुम मेरी माता या मेरी बहिन हो,’
तो मेरी आशा कहां है?
किसे मेरी आशा का ध्यान है?
क्या यह भी मेरे साथ अधोलोक में समा जाएगी?
क्या हम सभी साथ साथ धूल में मिल जाएंगे?”
न्याय के मार्ग पर क्रोध की शक्तिहीनता
इसके बाद शूही बिलदद ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की:
“कब तक तुम इसी प्रकार शब्दों में उलझे रहोगे?
कुछ सार्थक विषय प्रस्तुत करो, कि कुछ परिणाम प्रकट हो सके.
हमें पशु क्यों समझा जा रहा है?
क्या हम तुम्हारी दृष्टि में मूर्ख हैं?
तुम, जो क्रोध में स्वयं को फाड़े जा रहे हो,
क्या, तुम्हारे हित में तो पृथ्वी अब उजड़ हो जानी चाहिए?
अथवा, क्या चट्टान को अपनी जगह से अलग किया जाये?
“सत्य तो यह है कि दुर्वृत्त का दीप वस्तुतः बुझ चुका है;
उसके द्वारा प्रज्वलित अग्निशिखा में तो प्रकाश ही नहीं है.
उसका तंबू अंधकार में है;
उसके ऊपर का दीपक बुझ गया है.
उसकी द्रुत चाल को रोक दिया गया है;
तथा उसकी अपनी युक्ति उसे ले डूबी,
क्योंकि वह तो अपने जाल में जा फंसा है;
उसने अपने ही फंदे में पैर डाल दिया है.
उसकी एड़ी पर वह फंदा जा पड़ा
तथा संपूर्ण उपकरण उसी पर आ गिरा है,
भूमि के नीचे उसके लिए वह गांठ छिपाई गई थी;
उसके रास्ते में एक फंदा रखा गया था.
अब तो आतंक ने उसे चारों ओर से घेर रखा है
तथा उसके पीछे पड़कर उसे सता रहे हैं.
उसके बल का ठट्ठा हुआ जा रहा है;
विपत्ति उसके निकट ठहरी हुई है.
उसकी खाल पर घोर व्याधि लगी हुई है;
उसके अंगों को मृत्यु के पहलौठे ने खाना बना लिया है.
उसके ही तंबू की सुरक्षा में से उसे झपट लिया गया है
अब वे उसे आतंक के राजा के सामने प्रदर्शित हो रहे हैं.
अब उसके तंबू में विदेशी जा बसे हैं;
उसके घर पर गंधक छिड़क दिया गया है.
भूमि के भीतर उसकी जड़ें अब शुष्क हो चुकी हैं
तथा ऊपर उनकी शाखाएं काटी जा चुकी हैं.
धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे;
बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा.
उसे तो प्रकाश में से अंधकार में धकेल दिया गया है
तथा मनुष्यों के समाज से उसे खदेड़ दिया गया है.
मनुष्यों के मध्य उसका कोई वंशज नहीं रह गया है,
जहां-जहां वह प्रवास करता है, वहां उसका कोई उत्तरजीवी नहीं.
पश्चिमी क्षेत्रों में उसकी स्थिति पर लोग चकित होंगे
तथा पूर्वी क्षेत्रों में भय ने लोगों को जकड़ लिया है.
निश्चयतः दुर्वृत्तों का निवास ऐसा ही होता है;
उनका निवास, जिन्हें परमेश्वर का कोई ज्ञान नहीं है.”
परमेश्वर तथा मनुष्य द्वारा विश्वास का उत्तर
तब अय्योब ने उत्तर दिया:
“तुम कब तक मुझे यातना देते रहोगे
तथा अपने इन शब्दों से कुचलते रहोगे?
इन दसों अवसरों पर तुम मेरा अपमान करते रहे हो;
मेरे साथ अन्याय करते हुए तुम्हें लज्जा तक न आई.
हां, यदि वास्तव में मुझसे कोई त्रुटि हुई है,
तो यह त्रुटि मेरे लिए चिंता का विषय है.
यदि तुम वास्तव में स्वयं को मुझसे उच्चतर प्रदर्शित करोगे
तथा मुझ पर मेरी स्थिति को निंदनीय प्रमाणित कर दोगे,
तब मैं यह समझ लूंगा, कि मेरी यह स्थिति परमेश्वर की ओर से है
तथा उन्हीं ने मुझे इस जाल में डाला है.
“मैं तो चिल्ला रहा हूं, ‘अन्याय!’ किंतु मुझे कोई उत्तर नहीं मिल रहा;
मैं सहायता के लिए पुकार रहा हूं, किंतु न्याय कहीं से मिल नहीं रहा है.
परमेश्वर ने ही जब मेरे मार्ग रोक दिया है, मैं आगे कैसे बढ़ूं?
उन्होंने तो मेरे मार्ग अंधकार कर दिए हैं.
मेरा सम्मान मुझसे छीन लिया गया है,
तथा जो मुकुट मेरे सिर पर था, वह भी उतार लिया गया है.
वह मुझे चारों ओर से तोड़ने में शामिल हैं, कि मैं नष्ट हो जाऊं;
उन्होंने मेरी आशा को उखाड़ दिया है, जैसे किसी वृक्ष से किया जाता है.
अपना कोप भी उन्होंने मुझ पर उंडेल दिया है;
क्योंकि उन्होंने तो मुझे अपना शत्रु मान लिया है.
उनकी सेना एकत्र हो रही है;
उन्होंने मेरे विरुद्ध ढलान तैयार की है
तथा मेरे तंबू के आस-पास घेराबंदी कर ली है.
“उन्होंने तो मेरे भाइयों को मुझसे दूर कर दिया है;
मेरे परिचित मुझसे पूर्णतः अनजान हो गए हैं.
मेरे संबंधियों ने तो मेरा त्याग कर दिया है;
मेरे परम मित्रों ने मुझे याद करना छोड़ दिया है.
वे, जो मेरी गृहस्थी के अंग हैं तथा जो मेरी परिचारिकाएं हैं;
वे सब मुझे परदेशी समझने लगी हैं.
मैं अपने सेवक को अपने निकट बुलाता हूं,
किंतु वह उत्तर नहीं देता.
मेरी पत्नी के लिए अब मेरा श्वास घृणास्पद हो गया है;
अपने भाइयों के लिए मैं घिनौना हो गया हूं.
यहां तक कि छोटे-छोटे बालक मुझे तुच्छ समझने लगे हैं;
जैसे ही मैं उठता हूं, वे मेरी निंदा करते हैं.
मेरे सभी सहयोगी मेरे विद्वेषी हो गए हैं;
मुझे जिन-जिन से प्रेम था, वे अब मेरे विरुद्ध हो चुके हैं.
अब तो मैं मात्र चमड़ी तथा हड्डियों का रह गया हूं;
मैं जो हूं, मृत्यु से बाल-बाल बच निकला हूं.
“मेरे मित्रों, मुझ पर कृपा करो,
क्योंकि मुझ पर तो परमेश्वर का प्रहार हुआ है.
किंतु परमेश्वर के समान तुम मुझे क्यों सता रहे हो?
क्या मेरी देह को यातना देकर तुम्हें संतोष नहीं हुआ है?
“कैसा होता यदि मेरे इन विचारों को लिखा जाता,
इन्हें पुस्तक का रूप दिया जा सकता,
सीसे के पटल पर लौह लेखनी से
उन्हें चट्टान पर स्थायी रूप से खोद दिया जाता!
परंतु मुझे यह मालूम है कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित हैं,
तथा अंततः वह पृथ्वी पर खड़ा रहेंगे.
मेरी देह के नष्ट हो जाने के बाद भी,
मैं अपनी देह में ही परमेश्वर का दर्शन करूंगा;
जिन्हें मैं अपनी ही आंखों से देखूंगा,
उन्हें अन्य किसी के नहीं, बल्कि मेरे ही नेत्र देखेंगे.
मेरा मन अंदर ही अंदर उतावला हुआ जा रहा है!
“अब यदि तुम यह विचार करने लगो, ‘हम उसे कैसे सता सकेंगे?’
अथवा, ‘उस पर हम कौन सा आरोप लगा सकेंगे?’
तब उपयुक्त यह होगा कि तुम अपने ऊपर तलवार के प्रहार का ध्यान रखो;
क्योंकि क्रोध का दंड तलवार से होता है,
तब तुम्हें यह बोध होना अनिवार्य है, कि एक न्याय का समय है.”
न्याय-रास्ते पर कोई अपवाद नहीं
तब नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:
“मेरे विचारों ने मुझे प्रत्युत्तर के लिए प्रेरित किया
क्योंकि मेरा अंतर्मन उत्तेजित हो गया था.
मैंने उस झिड़की की ओर ध्यान दिया,
जो मेरा अपमान कर रही थी इसका भाव समझकर ही मैंने प्रत्युत्तर का निश्चय किया है.
“क्या आरंभ से तुम्हें इसकी वास्तविकता मालूम थी,
उस अवसर से जब पृथ्वी पर मनुष्य की सृष्टि हुई थी,
अल्पकालिक ही होता है, दुर्वृत्त का उल्लास
तथा क्षणिक होता है पापिष्ठ का आनंद.
भले ही उसका नाम आकाश तुल्य ऊंचा हो
तथा उसका सिर मेघों तक जा पहुंचा हो,
वह कूड़े समान पूर्णतः मिट जाता है;
जिन्होंने उसे देखा था, वे पूछते रह जाएंगे, ‘कहां है वह?’
वह तो स्वप्न समान टूट जाता है, तब उसे खोजने पर भी पाया नहीं जा सकता,
रात्रि के दर्शन समान उसकी स्मृति मिट जाती है.
जिन नेत्रों ने उसे देखा था, उनके लिए अब वह अदृश्य है;
न ही वह स्थान, जिसके सामने वह बना रहता था.
उसके पुत्रों की कृपा दीनों पर बनी रहती है
तथा वह अपने हाथों से अपनी संपत्ति लौटाता है.
उसकी हड्डियां उसके यौवन से भरी हैं
किंतु यह शौर्य उसी के साथ धूल में जा मिलता है.
“यद्यपि उसके मुख को अनिष्ट का स्वाद लग चुका है
और वह इसे अपनी जीभ के नीचे छिपाए रखता है,
यद्यपि वह इसकी आकांक्षा करता रहता है,
वह अपने मुख में इसे छिपाए रखता है,
फिर भी उसका भोजन उसके पेट में उथल-पुथल करता है;
वह वहां नाग के विष में परिणत हो जाता है.
उसने तो धन-संपत्ति निगल रखी है, किंतु उसे उगलना ही होगा;
परमेश्वर ही उन्हें उसके पेट से बाहर निकाल देंगे.
वह तो नागों के विष को चूस लेता है;
सर्प की जीभ उसका संहार कर देती है.
वह नदियों की ओर दृष्टि नहीं कर पाएगा, उन नदियों की ओर,
जिनमें दूध एवं दही बह रहे हैं.
वह अपनी उपलब्धियों को लौटाने लगा है, इसका उपभोग करना उसके लिए संभव नहीं है;
व्यापार में मिले लाभ का वह आनंद न ले सकेगा.
क्योंकि उसने कंगालों पर अत्याचार किए हैं तथा उनका त्याग कर दिया है;
उसने वह घर हड़प लिया है, जिसका निर्माण उसने नहीं किया है.
“इसलिये कि उसका मन विचलित था;
वह अपनी अभिलाषित वस्तुओं को अपने अधिकार में न रख सका.
खाने के लिये कुछ भी शेष न रह गया;
तब अब उसकी समृद्धि अल्पकालीन ही रह गई है.
जब वह परिपूर्णता की स्थिति में होगा तब भी वह संतुष्ट न रह सकेगा;
हर एक व्यक्ति, जो इस समय यातना की स्थिति में होगा, उसके विरुद्ध उठ खड़ा होगा.
जब वह पेट भरके खा चुका होगा, परमेश्वर
अपने प्रचंड कोप को उस पर उंडेल देंगे,
तभी यह कोप की वृष्टि उस पर बरस पड़ेगी.
संभव है कि वह लौह शस्त्र के प्रहार से बच निकले
किंतु कांस्यबाण तो उसे बेध ही देगा.
यह बाण उसकी देह में से खींचा जाएगा, और यह उसकी पीठ की ओर से बाहर आएगा,
उसकी चमकदार नोक उसके पित्त से सनी हुई है.
वह आतंक से भयभीत है.
घोर अंधकार उसकी संपत्ति की प्रतीक्षा में है.
अग्नि ही उसे चट कर जाएगी.
यह अग्नि उसके तंबू के बचे हुओं को भस्म कर जाएगी.
स्वर्ग ही उसके पाप को उजागर करेगा;
पृथ्वी भी उसके विरुद्ध खड़ी होगी.
उसके वंश का विस्तार समाप्त हो जाएगा,
परमेश्वर के कोप-दिवस पर उसकी संपत्ति नाश हो जाएगी.
यही होगा परमेश्वर द्वारा नियत दुर्वृत्त का भाग, हां,
वह उत्तराधिकार, जो उसे याहवेह द्वारा दिया गया है.”
अय्योब की चेतावनी
तब अय्योब ने उत्तर दिया:
“अब ध्यान से मेरी बात सुन लो
और इससे तुम्हें सांत्वना प्राप्त हो.
मेरे उद्गार पूर्ण होने तक धैर्य रखना,
बाद में तुम मेरा उपहास कर सकते हो.
“मेरी स्थिति यह है कि मेरी शिकायत किसी मनुष्य से नहीं है,
तब क्या मेरी अधीरता असंगत है?
मेरी स्थिति पर ध्यान दो तथा इस पर चकित भी हो जाओ;
आश्चर्यचकित होकर अपने मुख पर हाथ रख लो.
उसकी स्मृति मुझे डरा देती है;
तथा मेरी देह आतंक में समा जाती है.
क्यों दुर्वृत्त दीर्घायु प्राप्त करते जाते हैं?
वे उन्नति करते जाते एवं सशक्त हो जाते हैं.
इतना ही नहीं उनके तो वंश भी,
उनके जीवनकाल में समृद्ध होते जाते हैं.
उनके घरों पर आतंक नहीं होता;
उन पर परमेश्वर का दंड भी नहीं होता.
उसका सांड़ बिना किसी बाधा के गाभिन करता है;
उसकी गाय बच्चे को जन्म देती है, तथा कभी उसका गर्भपात नहीं होता.
उनके बालक संख्या में झुंड समान होते हैं;
तथा खेलते रहते हैं.
वे खंजरी एवं किन्नोर की संगत पर गायन करते हैं;
बांसुरी का स्वर उन्हें आनंदित कर देता है.
उनके जीवन के दिन तो समृद्धि में ही पूर्ण होते हैं,
तब वे एकाएक अधोलोक में प्रवेश कर जाते हैं.
वे तो परमेश्वर को आदेश दे बैठते हैं, ‘दूर हो जाइए मुझसे!’
कोई रुचि नहीं है हमें आपकी नीतियों में.
कौन है यह सर्वशक्तिमान, कि हम उनकी सेवा करें?
क्या मिलेगा, हमें यदि हम उनसे आग्रह करेंगे?
तुम्हीं देख लो, उनकी समृद्धि उनके हाथ में नहीं है,
दुर्वृत्तों की परामर्श मुझे स्वीकार्य नहीं है.
“क्या कभी ऐसा हुआ है कि दुष्टों का दीपक बुझा हो?
अथवा उन पर विपत्ति का पर्वत टूट पड़ा हो,
क्या कभी परमेश्वर ने अपने कोप में उन पर नाश प्रभावी किया है?
क्या दुर्वृत्त वायु प्रवाह में भूसी-समान हैं,
उस भूसी-समान जो तूफान में विलीन हो जाता है?
तुम दावा करते हो, ‘परमेश्वर किसी भी व्यक्ति के पाप को उसकी संतान के लिए जमा कर रखते हैं.’
तो उपयुक्त हैं कि वह इसका दंड प्रभावी कर दें, कि उसे स्थिति बोध हो जाए.
उत्तम होगा कि वह स्वयं अपने नाश को देख ले;
वह स्वयं सर्वशक्तिमान के कोप का पान कर ले.
क्योंकि जब उसकी आयु के वर्ष समाप्त कर दिए गए हैं
तो वह अपनी गृहस्थी की चिंता कैसे कर सकता है?
“क्या यह संभव है कि कोई परमेश्वर को ज्ञान दे,
वह, जो परलोक के प्राणियों का न्याय करते हैं?
पूर्णतः सशक्त व्यक्ति का भी देहावसान हो जाता है,
उसका, जो निश्चिंत एवं संतुष्ट था.
जिसकी देह पर चर्बी थी
तथा हड्डियों में मज्जा भी था.
जबकि अन्य व्यक्ति की मृत्यु कड़वाहट में होती है,
जिसने जीवन में कुछ भी सुख प्राप्त नहीं किया.
दोनों धूल में जा मिलते हैं,
और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं.
“यह समझ लो, मैं तुम्हारे विचारों से अवगत हूं,
उन योजनाओं से भी, जिनके द्वारा तुम मुझे छलते रहते हो.
तुम्हारे मन में प्रश्न उठ रहा है, ‘कहां है उस कुलीन व्यक्ति का घर,
कहां है वह तंबू, जहां दुर्वृत्त निवास करते हैं?’
क्या तुमने कभी अनुभवी यात्रियों से प्रश्न किया है?
क्या उनके साक्ष्य से तुम परिचित हो?
क्योंकि दुर्वृत्त तो प्रलय के लिए हैं,
वे कोप-दिवस पर बंदी बना लिए जाएंगे.
कौन उसे उसके कृत्यों का स्मरण दिलाएगा?
कौन उसे उसके कृत्यों का प्रतिफल देगा?
जब उसकी मृत्यु पर उसे दफन किया जाएगा,
लोग उसकी कब्र पर पहरेदार रखेंगे.
घाटी की मिट्टी उसे मीठी लगती है;
सभी उसका अनुगमन करेंगे,
जबकि असंख्य तो वे हैं, जो उसकी यात्रा में होंगे.
“तुम्हारे निरर्थक वचन मुझे सांत्वना कैसे देंगे?
क्योंकि तुम्हारे प्रत्युत्तर झूठी बातों से भरे हैं!”
एलिफ़ेज़ द्वारा अय्योब पर आरोप
तब तेमानवासी एलिफाज़ ने प्रत्युत्तर में कहा:
“क्या कोई बलवान पुरुष परमेश्वर के लिए उपयोगी हो सकता है?
अथवा क्या कोई बुद्धिमान स्वयं का कल्याण कर सकता है?
क्या तुम्हारी खराई सर्वशक्तिमान के लिए आनंद है?
अथवा क्या तुम्हारा त्रुटिहीन चालचलन लाभकारी होता है?
“क्या तुम्हारे द्वारा दिया गया सम्मान तुम्हें उनके सामने स्वीकार्य बना देता है,
कि वह तुम्हारे विरुद्ध न्याय करने लगते हैं?
क्या तुम्हारी बुराई बहुत नहीं कही जा सकती?
क्या तुम्हारे पाप का अंत नहीं?
क्यों तुमने अकारण अपने भाइयों का बंधक रख लिया है,
तथा मनुष्यों को विवस्त्र कर छोड़ा है?
थके मांदे से तुमने पेय जल के लिए तक न पूछा,
भूखे से तुमने भोजन छिपा रखा है.
किंतु पृथ्वी पर बलवानों का अधिकार है,
इसके निवासी सम्मान्य व्यक्ति हैं.
तुमने विधवाओं को निराश लौटा दिया है
पितृहीनों का बल कुचल दिया गया है.
यही कारण है कि तुम्हारे चारों ओर फंदे फैले हैं,
आतंक ने तुम्हें भयभीत कर रखा है,
संभवतः यह अंधकार है कि तुम दृष्टिहीन हो जाओ,
एक बड़ी जल राशि में तुम जलमग्न हो चुके हो.
“क्या परमेश्वर स्वर्ग में विराजमान नहीं हैं?
दूर के तारों पर दृष्टि डालो. कितनी ऊंचाई पर हैं वे!
तुम पूछ रहे हो, ‘क्या-क्या मालूम है परमेश्वर को?’
क्या घोर अंधकार में भी उन्हें स्थिति बोध हो सकता है?
मेघ उनके लिए छिपने का साधन हो जाते हैं, तब वह देख सकते हैं;
वह तो नभोमण्डल में चलते फिरते हैं.
क्या तुम उस प्राचीन मार्ग पर चलते रहोगे,
जो दुर्वृत्तों का मार्ग हुआ करता था?
जिन्हें समय से पूर्व ही उठा लिया गया,
जिनकी तो नींव ही नदी अपने प्रवाह में बहा ले गई?
वे परमेश्वर से आग्रह करते, ‘हमसे दूर चले जाइए!’
तथा यह भी ‘सर्वशक्तिमान उनका क्या बिगाड़ लेगा?’
फिर भी परमेश्वर ने उनके घरों को उत्तम वस्तुओं से भर रखा है,
किंतु उन दुर्वृत्तों की युक्ति मेरी समझ से परे है.
यह देख धार्मिक उल्लसित हो रहे हैं तथा वे;
जो निर्दोष हैं, उनका उपहास कर रहे हैं.
उनका नारा है, ‘यह सत्य है कि हमारे शत्रु मिटा दिए गए हैं,
उनकी समृद्धि को अग्नि भस्म कर चुकी है.’
“अब भी समर्पण करके परमेश्वर से मेल कर लो;
तब तो तुम्हारे कल्याण की संभावना है.
कृपया उनसे शिक्षा ग्रहण कर लो.
उनके शब्दों को मन में रख लो.
यदि तुम सर्वशक्तिमान की ओर मुड़कर समीप हो जाओ, तुम पहले की तरह हो जाओगे:
यदि तुम अपने घर में से बुराई को दूर कर दोगे,
यदि तुम अपने स्वर्ण को भूमि में दबा दोगे, उस स्वर्ण को, जो ओफीर से लाया गया है,
उसे नदियों के पत्थरों के मध्य छिपा दोगे,
तब सर्वशक्तिमान स्वयं तुम्हारे लिए स्वर्ण हो जाएंगे हां,
उत्कृष्ट चांदी.
तुम परमेश्वर की ओर दृष्टि करोगे,
तब सर्वशक्तिमान तुम्हारे परमानंद हो जाएंगे.
जब तुम उनसे प्रार्थना करोगे, वह तुम्हारी सुन लेंगे,
इसके अतिरिक्त तुम अपनी मन्नतें भी पूर्ण करोगे.
तुम किसी विषय की कामना करोगे और वह तुम्हारे लिए सफल हो जाएगा,
इसके अतिरिक्त तुम्हारा रास्ता भी प्रकाशित हो जाएगा.
उस स्थिति में जब तुम पूर्णतः हताश हो जाओगे, तुम्हारी बातें तुम्हारा ‘आत्मविश्वास प्रकट करेंगी!’
परमेश्वर विनीत व्यक्ति को रक्षा प्रदान करते हैं.
निर्दोष को परमेश्वर सुरक्षा प्रदान करते हैं,
वह निर्दोष तुम्हारे ही शुद्ध कामों के कारण छुड़ाया जाएगा.”
परमेश्वर के लिए अय्योब की लालसा
तब अय्योब ने कहा:
“आज भी अपराध के भाव में मैं शिकायत कर रहा हूं;
मैं कराह रहा हूं, फिर भी परमेश्वर मुझ पर कठोर बने हुए हैं.
उत्तम होगा कि मुझे यह मालूम होता
कि मैं कहां जाकर उनसे भेंट कर सकूं, कि मैं उनके निवास पहुंच सकूं!
तब मैं उनके सामने अपनी शिकायत प्रस्तुत कर देता,
अपने सारे विचार उनके सामने उंडेल देता.
तब मुझे उनके उत्तर समझ आ जाते,
मुझे यह मालूम हो जाता कि वह मुझसे क्या कहेंगे.
क्या वह अपनी उस महाशक्ति के साथ मेरा सामना करेंगे?
नहीं! निश्चयतः वह मेरे निवेदन पर ध्यान देंगे.
सज्जन उनसे वहां विवाद करेंगे
तथा मैं उनके न्याय के द्वारा मुक्ति प्राप्त करूंगा.
“अब यह देख लो: मैं आगे बढ़ता हूं, किंतु वह वहां नहीं हैं;
मैं विपरीत दिशा में आगे बढ़ता हूं, किंतु वह वहां भी दिखाई नहीं देते.
जब वह मेरे बायें पक्ष में सक्रिय होते हैं;
वह मुझे दिखाई नहीं देते.
किंतु उन्हें यह अवश्य मालूम रहता है कि मैं किस मार्ग पर आगे बढ़ रहा हूं;
मैं तो उनके द्वारा परखे जाने पर कुन्दन समान शुद्ध प्रमाणित हो जाऊंगा.
मेरे पांव उनके पथ से विचलित नहीं हुए;
मैंने कभी कोई अन्य मार्ग नहीं चुना है.
उनके मुख से निकले आदेशों का मैं सदैव पालन करता रहा हूं;
उनके आदेशों को मैं अपने भोजन से अधिक अमूल्य मानता रहा हूं.
“वह तो अप्रतिम है, उनका, कौन हो सकता है विरोधी?
वह वही करते हैं, जो उन्हें सर्वोपयुक्त लगता है.
जो कुछ मेरे लिए पहले से ठहरा है, वह उसे पूरा करते हैं,
ऐसी ही अनेक योजनाएं उनके पास जमा हैं.
इसलिये उनकी उपस्थिति मेरे लिए भयास्पद है;
इस विषय में मैं जितना विचार करता हूं, उतना ही भयभीत होता जाता हूं.
परमेश्वर ने मेरे हृदय को क्षीण बना दिया है;
मेरा घबराना सर्वशक्तिमान जनित है,
किंतु अंधकार मुझे चुप नहीं रख सकेगा,
न ही वह घोर अंधकार, जिसने मेरे मुख को ढक कर रखा है.
“सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय-दिवस को ठहराया क्यों नहीं है?
तथा वे, जो उन्हें जानते हैं, इस दिन की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं?
कुछ लोग तो भूमि की सीमाओं को परिवर्तित करते रहते हैं;
वे भेड़ें पकड़कर हड़प लेते हैं.
वे पितृहीन के गधों को हकाल कर ले जाते हैं.
वे विधवा के बैल को बंधक बना लेते हैं.
वे दरिद्र को मार्ग से हटा देते हैं;
देश के दीनों को मजबूर होकर एक साथ छिप जाना पड़ता है.
ध्यान दो, दीन वन्य गधों-समान
भोजन खोजते हुए भटकते रहते हैं,
मरुभूमि में अपने बालकों के भोजन के लिए.
अपने खेत में वे चारा एकत्र करते हैं
तथा दुर्वृत्तों के दाख की बारी से सिल्ला उठाते हैं.
शीतकाल में उनके लिए कोई आवरण नहीं रहते.
उन्हें तो विवस्त्र ही रात्रि व्यतीत करनी पड़ती है.
वे पर्वतीय वृष्टि से भीगे हुए हैं,
सुरक्षा के लिए उन्होंने चट्टान का आश्रय लिया हुआ है.
अन्य वे हैं, जो दूधमुंहे, पितृहीन बालकों को छीन लेते हैं;
ये ही हैं वे, जो दीन लोगों से बंधक वस्तु कर रख लेते हैं.
उन्हीं के कारण दीन को विवस्त्र रह जाना पड़ता है;
वे ही भूखों से अन्न की पुलियां छीने लेते हैं.
दीनों की दीवारों के भीतर ही वे तेल निकालते हैं;
वे द्राक्षरस-कुण्ड में अंगूर तो रौंदते हैं, किंतु स्वयं प्यासे ही रहते हैं.
नागरिक कराह रहे हैं,
तथा घायलों की आत्मा पुकार रही है.
फिर भी परमेश्वर मूर्खों की याचना की ओर ध्यान नहीं देते.
“कुछ अन्य ऐसे हैं, जो ज्योति के विरुद्ध अपराधी हैं,
उन्हें इसकी नीतियों में कोई रुचि नहीं है,
तब वे ज्योति के मार्गों पर आना नहीं चाहते.
हत्यारा बड़े भोर उठ जाता है,
वह जाकर दीनों एवं दरिद्रों की हत्या करता है,
रात्रि में वह चोरी करता है.
व्यभिचारी की दृष्टि रात आने की प्रतीक्षा करती रहती है, वह विचार करता है,
‘तब मुझे कोई देख न सकेगा.’
वह अपने चेहरे को अंधेरे में छिपा लेता है.
रात्रि होने पर वे सेंध लगाते हैं,
तथा दिन में वे घर में छिपे रहते हैं;
प्रकाश में उन्हें कोई रुचि नहीं रहती.
उनके सामने प्रातःकाल भी वैसा ही होता है, जैसा घोर अंधकार,
क्योंकि उनकी मैत्री तो घोर अंधकार के आतंक से है.
“वस्तुतः वे जल के ऊपर के फेन समान हैं;
उनका भूखण्ड शापित है.
तब कोई उस दिशा में दाख की बारी की ओर नहीं जाता.
सूखा तथा गर्मी हिम-जल को निगल लेते हैं,
यही स्थिति होगी अधोलोक में पापियों की.
गर्भ उन्हें भूल जाता है,
कीड़े उसे ऐसे आहार बना लेते हैं;
कि उसकी स्मृति भी मिट जाती है,
पापी वैसा ही नष्ट हो जाएगा, जैसे वृक्ष.
वह बांझ स्त्री तक से छल करता है
तथा विधवा का कल्याण उसके ध्यान में नहीं आता.
किंतु परमेश्वर अपनी सामर्थ्य से बलवान को हटा देते हैं;
यद्यपि वे प्रतिष्ठित हो चुके होते हैं, उनके जीवन का कोई आश्वासन नहीं होता.
परमेश्वर उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं, उनका पोषण करते हैं,
वह उनके मार्गों की चौकसी भी करते हैं.
अल्पकाल के लिए वे उत्कर्ष भी करते जाते हैं, तब वे नष्ट हो जाते हैं;
इसके अतिरिक्त वे गिर जाते हैं तथा वे अन्यों के समान पूर्वजों में जा मिलते हैं;
अन्न की बालों के समान कट जाना ही उनका अंत होता है.
“अब, यदि सत्य यही है, तो कौन मुझे झूठा प्रमाणित कर सकता है
तथा मेरी बात को अर्थहीन घोषित कर सकता है?”
परमेश्वर की सामर्थ्य का स्तवन
तब बिलदद ने, जो शूही था, अपना मत देना प्रारंभ किया:
“प्रभुत्व एवं अतिशय सम्मान के अधिकारी परमेश्वर ही हैं;
वही सर्वोच्च स्वर्ग में व्यवस्था की स्थापना करते हैं.
क्या परमेश्वर की सेना गण्य है?
कौन है, जो उनके प्रकाश से अछूता रह सका है?
तब क्या मनुष्य परमेश्वर के सामने युक्त प्रमाणित हो सकता है?
अथवा नारी से जन्मे किसी को भी शुद्ध कहा जा सकता है?
यदि परमेश्वर के सामने चंद्रमा प्रकाशमान नहीं है
तथा तारों में कोई शुद्धता नहीं है,
तब मनुष्य क्या है, जो मात्र एक कीड़ा है,
मानव प्राणी, जो मात्र एक केंचुआ ही है!”
अय्योब द्वारा बिलदद को फटकार
तब अय्योब ने उत्तर दिया:
“क्या सहायता की है तुमने एक दुर्बल की! वाह!
कैसे तुमने बिना शक्ति का उपयोग किए ही एक हाथ की रक्षा कर डाली है!
कैसे तुमने एक ज्ञानहीन व्यक्ति को ऐसा परामर्श दे डाला है!
कैसे समृद्धि से तुमने ठीक अंतर्दृष्टि प्रदान की है!
किसने तुम्हें इस बात के लिए प्रेरित किया है?
किसकी आत्मा तुम्हारे द्वारा बातें की है?
“मृतकों की आत्माएं थरथरा उठी हैं,
वे जो जल-जन्तुओं से भी नीचे के तल में बसी हुई हैं.
परमेश्वर के सामने मृत्यु खुली
तथा नाश-स्थल ढका नहीं है.
परमेश्वर ने उत्तर दिशा को रिक्त अंतरीक्ष में विस्तीर्ण किया है;
पृथ्वी को उन्होंने शून्य में लटका दिया है.
वह जल को अपने मेघों में लपेट लेते हैं
तथा उनके नीचे मेघ नहीं बरस पाते हैं.
वह पूर्ण चंद्रमा का चेहरा छिपा देते हैं
तथा वह अपने मेघ इसके ऊपर फैला देते हैं.
उन्होंने जल के ऊपर क्षितिज का चिन्ह लगाया है.
प्रकाश तथा अंधकार की सीमा पर.
स्वर्ग के स्तंभ कांप उठते हैं
तथा उन्हें परमेश्वर की डांट पर आश्चर्य होता है.
अपने सामर्थ्य से उन्होंने सागर को मंथन किया;
अपनी समझ बूझ से उन्होंने राहाब26:12 राहाब [9:13] देखिए को संहार कर दिया.
उनका श्वास स्वर्ग को उज्जवल बना देता है;
उनकी भुजा ने द्रुत सर्प को बेध डाला है.
यह समझ लो, कि ये सब तो उनके महाकार्य की झलक मात्र है;
उनके विषय में हम कितना कम सुन पाते हैं!
तब किसमें क्षमता है कि उनके पराक्रम की थाह ले सके?”
अय्योब का अंतिम भाषण
तब अपने वचन में अय्योब ने कहा:
“जीवित परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे मेरे अधिकारों से वंचित कर दिया है,
सर्वशक्तिमान ने मेरे प्राण को कड़वाहट से भर दिया है,
क्योंकि जब तक मुझमें जीवन शेष है,
जब तक मेरे नथुनों में परमेश्वर का जीवन-श्वास है,
निश्चयतः मेरे मुख से कुछ भी असंगत मुखरित न होगा,
और न ही मेरी जीभ कोई छल उच्चारण करेगी.
परमेश्वर ऐसा कभी न होने दें, कि तुम्हें सच्चा घोषित कर दूं;
मृत्युपर्यंत मैं धार्मिकता का त्याग न करूंगा.
अपनी धार्मिकता को मैं किसी भी रीति से छूट न जाने दूंगा;
जीवन भर मेरा अंतर्मन मुझे नहीं धिक्कारेगा.
“मेरा शत्रु दुष्ट-समान हो,
मेरा विरोधी अन्यायी-समान हो.
जब दुर्जन की आशा समाप्त हो जाती है, जब परमेश्वर उसके प्राण ले लेते हैं,
तो फिर कौन सी आशा बाकी रह जाती है?
जब उस पर संकट आ पड़ेगा,
क्या परमेश्वर उसकी पुकार सुनेंगे?
तब भी क्या सर्वशक्तिमान उसके आनंद का कारण बने रहेंगे?
क्या तब भी वह हर स्थिति में परमेश्वर को ही पुकारता रहेगा?
“मैं तुम्हें परमेश्वर के सामर्थ्य की शिक्षा देना चाहूंगा;
सर्वशक्तिमान क्या-क्या कर सकते हैं, मैं यह छिपा नहीं रखूंगा.
वस्तुतः यह सब तुमसे गुप्त नहीं है;
तब क्या कारण है कि तुम यह व्यर्थ बातें कर रहे हो?
“परमेश्वर की ओर से यही है दुर्वृत्तों की नियति,
सर्वशक्तिमान की ओर से वह मीरास, जो अत्याचारी प्राप्त करते हैं.
यद्यपि उसके अनेक पुत्र हैं, किंतु उनके लिए तलवार-घात ही निर्धारित है;
उसके वंश कभी पर्याप्त भोजन प्राप्त न कर सकेंगे.
उसके उत्तरजीवी महामारी से कब्र में जाएंगे,
उसकी विधवाएं रो भी न पाएंगी.
यद्यपि वह चांदी ऐसे संचित कर रहा होता है,
मानो यह धूल हो तथा वस्त्र ऐसे एकत्र करता है, मानो वह मिट्टी का ढेर हो.
वह यह सब करता रहेगा, किंतु धार्मिक व्यक्ति ही इन्हें धारण करेंगे
तथा चांदी निर्दोषों में वितरित कर दी जाएगी.
उसका घर मकड़ी के जाले-समान निर्मित है,
अथवा उस आश्रय समान, जो चौकीदार अपने लिए बना लेता है.
बिछौने पर जाते हुए, तो वह एक धनवान व्यक्ति था;
किंतु अब इसके बाद उसे जागने पर कुछ भी नहीं रह जाता है.
आतंक उसे बाढ़ समान भयभीत कर लेता है;
रात्रि में आंधी उसे चुपचाप ले जाती है.
पूर्वी वायु उसे दूर ले उड़ती है, वह विलीन हो जाता है;
क्योंकि आंधी उसे ले उड़ी है.
क्योंकि यह उसे बिना किसी कृपा के फेंक देगा;
वह इससे बचने का प्रयास अवश्य करेगा.
लोग उसकी स्थिति को देख आनंदित हो ताली बजाएंगे
तथा उसे उसके स्थान से खदेड़ देंगे.”
ज्ञान की खोज दुष्कर होती है
इसमें कोई संदेह नहीं, कि वहां चांदी की खान है
तथा एक ऐसा स्थान, जहां वे स्वर्ण को शुद्ध करते हैं.
धूल में से लौह को अलग किया जाता है,
तथा चट्टान में से तांबा धातु पिघलाया जाता है.
मनुष्य इसकी खोज में अंधकार भरे स्थल में दूर-दूर तक जाता है;
चाहे वह अंधकार में छिपी कोई चट्टान है
अथवा कोई घोर अंधकार भरे स्थल.
मनुष्य के घर से दूर वह गहरी खान खोदते हैं,
रेगिस्तान स्थान में से दुर्गम स्थलों में जा पहुंचते हैं;
तथा गहराई में लटके रहते हैं.
पृथ्वी-पृथ्वी ही है, जो हमें भोजन प्रदान करती है,
किंतु नीचे भूगर्भ अग्निमय है.
पृथ्वी में चट्टानें नीलमणि का स्रोत हैं,
पृथ्वी की धूल में ही स्वर्ण मिलता है.
यह मार्ग हिंसक पक्षियों को मालूम नहीं है,
और न इस पर बाज की दृष्टि ही कभी पड़ी है.
इस मार्ग पर निश्चिंत, हृष्ट-पुष्ट पशु कभी नहीं चले हैं,
और न हिंसक सिंह इस मार्ग से कभी गया है.
मनुष्य चकमक के पत्थर को स्पर्श करता है,
पर्वतों को तो वह आधार से ही पलटा देता है.
वह चट्टानों में से मार्ग निकाल लेते हैं तथा उनकी दृष्टि वहीं पड़ती है,
जहां कुछ अमूल्य होता है;
जल प्रवाह रोक कर वह बांध खड़े कर देते हैं
तथा वह जो अदृश्य था, उसे प्रकाशित कर देते हैं.
प्रश्न यही उठता है कि कहां मिल सकती है बुद्धि?
कहां है वह स्थान जहां समझ की जड़ है?
मनुष्य इसका मूल्य नहीं जानता वस्तुतः
जीवितों के लोक में यह पाई ही नहीं जाती.
सागर की गहराई की घोषणा है, “मुझमें नहीं है यह”;
महासागर स्पष्ट करता है, “मैंने इसे नहीं छिपाया.”
स्वर्ण से इसको मोल नहीं लिया जा सकता,
वैसे ही चांदी माप कर इसका मूल्य निर्धारण संभव नहीं है.
ओफीर का स्वर्ण भी इसे खरीद नहीं सकता,
न ही गोमेद अथवा नीलमणि इसके लिए पर्याप्त होंगे.
स्वर्ण एवं स्फटिक इसके स्तर पर नहीं पहुंच सकते,
और वैसे ही कुन्दन के आभूषण से इसका विनिमय संभव नहीं है.
मूंगा तथा स्फटिक मणियों का यहां उल्लेख करना व्यर्थ है;
ज्ञान की उपलब्धि मोतियों से कहीं अधिक ऊपर है.
कूश देश का पुखराज इसके बराबर नहीं हो सकता;
कुन्दन से इसका मूल्यांकन संभव नहीं है.
तब, कहां है विवेक का उद्गम?
कहां है समझ का निवास?
तब यह स्पष्ट है कि यह मनुष्यों की दृष्टि से छिपी है,
हां, पक्षियों की दृष्टि से भी इसे नहीं देख पाते है.
नाश एवं मृत्यु स्पष्ट कहते हैं
“अपने कानों से तो हमने बस, इसका उल्लेख सुना है.”
मात्र परमेश्वर को इस तक पहुंचने का मार्ग मालूम है,
उन्हें ही मालूम है इसका स्थान.
क्योंकि वे पृथ्वी के छोर तक दृष्टि करते हैं
तथा आकाश के नीचे की हर एक वस्तु उनकी दृष्टि में होती है.
जब उन्होंने वायु को बोझ प्रदान किया
तथा जल को आयतन से मापा,
जब उन्होंने वृष्टि की सीमा तय कर दी
तथा गर्जन और बिजली की दिशा निर्धारित कर दी,
तभी उन्होंने इसे देखा तथा इसकी घोषणा की
उन्होंने इसे संस्थापित किया तथा इसे खोज भी निकाला.
तब उन्होंने मनुष्य पर यह प्रकाशित किया,
“इसे समझ लो प्रभु के प्रति भय, यही है बुद्धि,
तथा बुराइयों से दूरी बनाए रखना ही समझदारी है.”
अय्योब का संवाद समापन
तब अपने वचन में अय्योब ने कहा:
“उपयुक्त तो यह होता कि मैं उस स्थिति में जा पहुंचता जहां मैं कुछ माह पूर्व था,
उन दिनों में, जब मुझ पर परमेश्वर की कृपा हुआ करती थी,
जब परमेश्वर के दीपक का प्रकाश मेरे सिर पर चमक रहा था.
जब अंधकार में मैं उन्हीं के प्रकाश में आगे बढ़ रहा था!
वे मेरी युवावस्था के दिन थे,
उस समय मेरे घर पर परमेश्वर की कृपा थी,
उस समय सर्वशक्तिमान मेरे साथ थे,
मेरे संतान भी उस समय मेरे निकट थे.
उस समय तो स्थिति ऐसी थी, मानो मेरे पैर मक्खन से धोए जाते थे,
तथा चट्टानें मेरे लिए तेल की धाराएं बहाया करती थीं.
“तब मैं नगर के द्वार में चला जाया करता था,
जहां मेरे लिए एक आसन हुआ करता था,
युवा सम्मान में मेरे सामने आने में हिचकते थे,
तथा प्रौढ़ मेरे लिए सम्मान के साथ उठकर खड़े हो जाते थे;
यहां तक कि शासक अपना वार्तालाप रोक देते थे
तथा मुख पर हाथ रख लेते थे;
प्रतिष्ठित व्यक्ति शांत स्वर में वार्तालाप करने लगते थे,
उनकी तो जीभ ही तालू से लग जाती थी.
मुझे ऐसे शब्द सुनने को मिलते थे ‘धन्य हैं वह,’
जब मेरी दृष्टि उन पर पड़ती थी, यह वे मेरे विषय में कह रहे होते थे.
यह इसलिये, कि मैं उन दीनों की सहायता के लिए तत्पर रहता था, जो सहायता की दोहाई लगाते थे.
तथा उन पितृहीनों की, जिनका सहायक कोई नहीं है.
जो मरने पर था, उस व्यक्ति की समृद्धि मुझे दी गई है;
जिसके कारण उस विधवा के हृदय से हर्षगान फूट पड़े थे.
मैंने युक्तता धारण कर ली, इसने मुझे ढक लिया;
मेरा न्याय का काम बाह्य वस्त्र तथा पगड़ी के समान था.
मैं दृष्टिहीनों के लिए दृष्टि हो गया
तथा अपंगों के लिए पैर.
दरिद्रों के लिए मैं पिता हो गया;
मैंने अपरिचितों के न्याय के लिए जांच पड़ताल की थी.
मैंने दुष्टों के जबड़े तोड़े तथा उन्हें जा छुड़ाया,
जो नष्ट होने पर ही थे.
“तब मैंने यह विचार किया, ‘मेरी मृत्यु मेरे घर में ही होगी
तथा मैं अपने जीवन के दिनों को बालू के समान त्याग दूंगा.
मेरी जड़ें जल तक पहुंची हुई हैं
सारी रात्रि मेरी शाखाओं पर ओस छाई रहती है.
सभी की ओर से मुझे प्रशंसा प्राप्त होती रही है,
मेरी शक्ति, मेरा धनुष, मेरे हाथ में सदा बना रहेगा.
“वे लोग मेरे परामर्श को सुना करते थे, मेरी प्रतीक्षा करते रहते थे,
इस रीति से वे मेरे परामर्श को शांति से स्वीकार भी करते थे.
मेरे वक्तव्य के बाद वे प्रतिक्रिया का साहस नहीं करते थे;
मेरी बातें वे ग्रहण कर लेते थे.
वे मेरे लिए वैसे ही प्रतीक्षा करते थे, जैसे वृष्टि की,
उनके मुख वैसे ही खुले रह जाते थे, मानो यह वसन्त ऋतु की वृष्टि है.
वे मुश्किल से विश्वास करते थे, जब मैं उन पर मुस्कुराता था;
मेरे चेहरे का प्रकाश उनके लिए कीमती था.
उनका प्रधान होने के कारण मैं उन्हें उपयुक्त हल सुझाता था;
सेना की टुकड़ियों के लिए मैं रणनीति प्रस्तुत करता था;
मैं ही उन्हें जो दुःखी थे सांत्वना प्रदान करता था.
“किंतु अब तो वे ही मेरा उपहास कर रहे हैं,
जो मुझसे कम उम्र के हैं,
ये वे ही हैं, जिनके पिताओं को मैंने इस योग्य भी न समझा था
कि वे मेरी भेडों के रक्षक कुत्तों के साथ बैठें.
वस्तुतः उनकी क्षमता तथा कौशल मेरे किसी काम का न था,
शक्ति उनमें रह न गई थी.
अकाल एवं गरीबी ने उन्हें कुरूप बना दिया है,
रात्रि में वे रेगिस्तान के कूड़े में जाकर
सूखी भूमि चाटते हैं.
वे झाड़ियों के मध्य से लोनिया साग एकत्र करते हैं,
झाऊ वृक्ष के मूल उनका भोजन है.
वे समाज से बहिष्कृत कर दिए गए हैं,
और लोग उन पर दुत्कार रहे थे, जैसे कि वे चोर थे.
परिणाम यह हुआ कि वे अब भयावह घाटियों में,
भूमि के बिलों में तथा चट्टानों में निवास करने लगे हैं.
झाड़ियों के मध्य से वे पुकारते रहते हैं;
वे तो कंटीली झाड़ियों के नीचे एकत्र हो गए हैं.
वे मूर्ख एवं अपरिचित थे,
जिन्हें कोड़े मार-मार कर देश से खदेड़ दिया गया था.
“अब मैं ऐसों के व्यंग्य का पात्र बन चुका हूं;
मैं उनके सामने निंदा का पर्याय बन चुका हूं.
उन्हें मुझसे ऐसी घृणा हो चुकी है, कि वे मुझसे दूर-दूर रहते हैं;
वे मेरे मुख पर थूकने का कोई अवसर नहीं छोड़ते.
ये दुःख के तीर मुझ पर परमेश्वर द्वारा ही छोड़े गए हैं,
वे मेरे सामने पूर्णतः निरंकुश हो चुके हैं.
मेरी दायीं ओर ऐसे लोगों की सन्तति विकसित हो रही है.
जो मेरे पैरों के लिए जाल बिछाते है,
वे मेरे विरुद्ध घेराबंदी ढलान का निर्माण करते हैं.
वे मेरे निकलने के रास्ते बिगाड़ते;
वे मेरे नाश का लाभ पाना चाहते हैं.
उन्हें कोई भी नहीं रोकता.
वे आते हैं तो ऐसा मालूम होता है मानो वे दीवार के सूराख से निकलकर आ रहे हैं;
वे तूफान में से लुढ़कते हुए आते मालूम होते हैं.
सारे भय तो मुझ पर ही आ पड़े हैं;
मेरा समस्त सम्मान, संपूर्ण आत्मविश्वास मानो वायु में उड़ा जा रहा है.
मेरी सुरक्षा मेघ के समान खो चुकी है.
“अब मेरे प्राण मेरे अंदर में ही डूबे जा रहे हैं;
पीड़ा के दिनों ने मुझे भयभीत कर रखा है.
रात्रि में मेरी हड्डियों में चुभन प्रारंभ हो जाती है;
मेरी चुभती वेदना हरदम बनी रहती है.
बड़े ही बलपूर्वक मेरे वस्त्र को पकड़ा गया है
तथा उसे मेरे गले के आस-पास कस दिया गया है.
परमेश्वर ने मुझे कीचड़ में डाल दिया है,
मैं मात्र धूल एवं भस्म होकर रह गया हूं.
“मैं आपको पुकारता रहता हूं,
किंतु आप मेरी ओर ध्यान नहीं देते.
आप मेरे प्रति क्रूर हो गए हैं;
आप अपनी भुजा के बल से मुझ पर वार करते हैं.
जब आप मुझे उठाते हैं, तो इसलिये कि मैं वायु प्रवाह में उड़ जाऊं;
तूफान में तो मैं विलीन हो जाता हूं;
अब तो मुझे मालूम हो चुका है, कि आप मुझे मेरी मृत्यु की ओर ले जा रहे हैं,
उस ओर, जहां अंत में समस्त जीवित प्राणी एकत्र होते जाते हैं.
“क्या वह जो, कूड़े के ढेर में जा पड़ा है,
सहायता के लिए हाथ नहीं बढ़ाता अथवा क्या नाश की स्थिति में कोई सहायता के लिए नहीं पुकारता.
क्या संकट में पड़े व्यक्ति के लिए मैंने आंसू नहीं बहाया?
क्या दरिद्र व्यक्ति के लिए मुझे वेदना न हुई थी?
जब मैंने कल्याण की प्रत्याशा की, मुझे अनिष्ट प्राप्त हुआ;
मैंने प्रकाश की प्रतीक्षा की, तो अंधकार छा गया.
मुझे विश्रान्ति नही है, क्योंकि मेरी अंतड़ियां उबल रही हैं;
मेरे सामने इस समय विपत्ति के दिन आ गए हैं.
मैं तो अब सांत्वना रहित, विलाप कर रहा हूं;
मैं सभा में खड़ा हुआ सहायता की याचना कर रहा हूं.
मैं तो अब गीदड़ों का भाई
तथा शुतुरमुर्गों का मित्र बनकर रह गया हूं.
मेरी खाल काली हो चुकी है;
ज्वर में मेरी हड्डियां गर्म हो रही हैं.
मेरा वाद्य अब करुण स्वर उत्पन्न कर रहा है,
मेरी बांसुरी का स्वर भी ऐसा मालूम होता है, मानो कोई रो रहा है.
“अपने नेत्रों से मैंने एक प्रतिज्ञा की है
कि मैं किसी कुमारी कन्या की ओर कामुकतापूर्ण दृष्टि से नहीं देखूंगा.
स्वर्ग से परमेश्वर द्वारा क्या-क्या प्रदान किया जाता है
अथवा स्वर्ग से सर्वशक्तिमान से कौन सी मीरास प्राप्त होती है?
क्या अन्यायी के लिए विध्वंस
तथा दुष्ट लोगों के लिए सर्वनाश नहीं?
क्या परमेश्वर के सामने मेरी जीवनशैली
तथा मेरे पैरों की संख्या स्पष्ट नहीं होती?
“यदि मैंने झूठ का आचरण किया है,
यदि मेरे पैर छल की दिशा में द्रुत गति से बढ़ते,
तब स्वयं परमेश्वर सच्चे तराजू पर मुझे माप लें
तथा परमेश्वर ही मेरी निर्दोषिता को मालूम कर लें.
यदि उनके पथ से मेरे पांव कभी भटके हों,
अथवा मेरे हृदय ने मेरी स्वयं की दृष्टि का अनुगमन किया हो,
अथवा कहीं भी मेरे हाथ कलंकित हुए हों.
तो मेरे द्वारा रोपित उपज अन्य का आहार हो जाए
तथा मेरी उपज उखाड़ डाली जाए.
“यदि मेरा हृदय किसी पराई स्त्री द्वारा लुभाया गया हो,
अथवा मैं अपने पड़ोसी के द्वार पर घात लगाए बैठा हूं,
तो मेरी पत्नी अन्य के लिए कठोर श्रम के लिए लगा दी जाए,
तथा अन्य पुरुष उसके साथ सोयें,
क्योंकि कामुकता घृण्य है,
और एक दंडनीय पाप.
यह वह आग होगी, जो विनाश के लिए प्रज्वलित होती है,
तथा जो मेरी समस्त समृद्धि को नाश कर देगी.
“यदि मैंने अपने दास-दासियों के
आग्रह को बेकार समझा है
तथा उनमें मेरे प्रति असंतोष का भाव उत्पन्न हुआ हो,
तब उस समय मैं क्या कर सकूंगा, जब परमेश्वर सक्रिय हो जाएंगे?
जब वह मुझसे पूछताछ करेंगे, मैं उन्हें क्या उत्तर दूंगा?
क्या उन्हीं परमेश्वर ने, जिन्होंने गर्भ में मेरी रचना की है?
उनकी भी रचना नहीं की है तथा क्या हम सब की रचना एक ही स्वरूप में नहीं की गई?
“यदि मैंने दीनों को उनकी अभिलाषा से कभी वंचित रखा हो,
अथवा मैं किसी विधवा के निराश होने का कारण हुआ हूं,
अथवा मैंने छिप-छिप कर भोजन किया हो,
तथा किसी पितृहीन को भोजन से वंचित रखा हो.
मैंने तो पिता तुल्य उनका पालन पोषण किया है,
बाल्यकाल से ही मैंने उसका मार्गदर्शन किया है.
यदि मैंने अपर्याप्त वस्त्रों के कारण किसी का नाश होने दिया है,
अथवा कोई दरिद्र वस्त्रहीन रह गया हो.
ऐसों को तो मैं ऊनी वस्त्र प्रदान करता रहा हूं,
जो मेरी भेडों के ऊन से बनाए गए थे.
यदि मैंने किसी पितृहीन पर प्रहार किया हो,
क्योंकि नगर चौक में कुछ लोग मेरे पक्ष में हो गए थे,
तब मेरी बांह कंधे से उखड़ कर गिर जाए
तथा मेरी बांह कंधे से टूट जाए.
क्योंकि परमेश्वर की ओर से आई विपत्ति मेरे लिए भयावह है.
उनके प्रताप के कारण मेरा कुछ भी कर पाना असंभव है.
“यदि मेरा भरोसा मेरी धनाढ्यता पर हो
तथा सोने को मैंने, ‘अपनी सुरक्षा घोषित किया हो,’
यदि मैंने अपनी महान संपत्ति का अहंकार किया हो,
तथा इसलिये कि मैंने अपने श्रम से यह उपलब्ध किया है.
यदि मैंने चमकते सूरज को निहारा होता, अथवा उस चंद्रमा को,
जो अपने वैभव में अपनी यात्रा पूर्ण करता है,
तथा यह देख मेरा हृदय मेरे अंतर में इन पर मोहित हो गया होता,
तथा मेरे हाथ ने इन पर एक चुंबन कर दिया होता,
यह भी पाप ही हुआ होता, जिसका दंडित किया जाना अनिवार्य हो जाता,
क्योंकि यह तो परमेश्वर को उनके अधिकार से वंचित करना हो जाता.
“क्या मैं कभी अपने शत्रु के दुर्भाग्य में आनंदित हुआ हूं
अथवा उस स्थिति पर आनन्दमग्न हुआ हूं, जब उस पर मुसीबत टूट पड़ी?
नहीं! मैंने कभी भी शाप देते हुए अपने शत्रु की मृत्यु की याचना करने का पाप
अपने मुख को नहीं करने दिया.
क्या मेरे घर के व्यक्तियों की साक्ष्य यह नहीं है,
‘उसके घर के भोजन से मुझे संतोष नहीं हुआ?’
मैंने किसी भी विदेशी प्रवासी को अपने घर के अतिरिक्त अन्यत्र ठहरने नहीं दिया,
क्योंकि मेरे घर के द्वार प्रवासियों के लिए सदैव खुले रहते हैं.
क्या, मैंने अन्य लोगों के समान अपने अंदर में अपने पाप को छुपा रखा है;
अपने अधर्म को ढांप रखा है?
क्या, मुझे जनमत का भय रहा है?
क्या, परिजनों की घृणा मुझे डरा रही है?
क्या, मैं इसलिये चुप रहकर अपने घर से बाहर न जाता था?
(“उत्तम होती वह स्थिति, जिसमें कोई तो मेरा पक्ष सुनने के लिए तत्पर होता!
देख लो ये हैं मेरे हस्ताक्षर सर्वशक्तिमान ही इसका उत्तर दें;
मेरे शत्रु ने मुझ पर यह लिखित शिकायत की है.
इसका धारण मुझे कांधों पर करना होगा,
यह आरोप मेरे अपने सिर पर मुकुट के समान धारण करना होगा.
मैं तो परमेश्वर के सामने अपने द्वारा उठाए गए समस्त पैर स्पष्ट कर दूंगा;
मैं एक राजनेता की अभिवृत्ति उनकी उपस्थिति में प्रवेश करूंगा.)
“यदि मेरा खेत मेरे विरुद्ध अपना स्वर ऊंचा करता है
तथा कुंड मिलकर रोने लगते हैं,
यदि मैंने बिना मूल्य चुकाए उपज का उपभोग किया हो
अथवा मेरे कारण उसके स्वामियों ने अपने प्राण गंवाए हों,
तो गेहूं के स्थान पर कांटे बढ़ने लगें
तथा जौ के स्थान पर जंगली घास उग जाए.”
यहां अय्योब का वचन समाप्त हो गया.
एलिहू
तब इन तीनों ने ही अय्योब को प्रत्युत्तर देना छोड़ दिया, क्योंकि अय्योब स्वयं की धार्मिकता के विषय में अटल मत के थे. किंतु राम के परिवार के बुज़वासी बारकएल के पुत्र एलिहू का क्रोध भड़क उठा-उसका यह क्रोध अय्योब पर ही था, क्योंकि अय्योब स्वयं को परमेश्वर के सामने नेक प्रमाणित करने में अटल थे. इसके विपरीत अय्योब अपने तीनों मित्रों पर नाराज थे, क्योंकि वे उनके प्रश्नों के उत्तर देने में विफल रहे थे. अब तक एलिहू ने कुछ नहीं कहा था, क्योंकि वह उन सभी से कम उम्र का था. तब, जब एलिहू ने ध्यान दिया कि अन्य तीन प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ थे, तब उसका क्रोध भड़क उठा.
तब बुज़वासी बारकएल के पुत्र एलिहू ने कहना प्रारंभ किया:
“मैं ठहरा कम उम्र का
और आप सभी बड़े;
इसलिये मैं झिझकता रहा
और मैंने अपने विचार व्यक्त नहीं किए.
मेरा मत यही था, ‘विचार वही व्यक्त करें,
जो वर्षों में मुझसे आगे हैं, ज्ञान की शिक्षा वे ही दें, जो बड़े हैं.’
वस्तुतः सर्वशक्तिमान की श्वास तथा परमेश्वर का आत्मा ही है,
जो मनुष्य में ज्ञान प्रगट करता है.
संभावना तो यह है कि बड़े में विद्वत्ता ही न हो,
तथा बड़े में न्याय की कोई समझ न हो.
“तब मैंने भी अपनी इच्छा प्रकट की ‘मेरी भी सुन लीजिए;
मैं अपने विचार व्यक्त करूंगा.’
सुनिए, अब तक मैं आप लोगों के वक्तव्य सुनता हुआ ठहरा रहा हूं,
आप लोगों के विचार भी मैंने सुन लिए हैं,
जो आप लोग घोर विचार करते हुए प्रस्तुत कर रहे थे.
मैं आपके वक्तव्य बड़े ही ध्यानपूर्वक सुनता रहा हूं. निःसंदेह ऐसा कोई भी न था
जिसने महोदय अय्योब के शब्दों का विरोध किया हो;
आप में से एक ने भी उनका उत्तर नहीं दिया.
अब यह मत बोलना, ‘हमें ज्ञान की उपलब्धि हो गई है;
मनुष्य नहीं, स्वयं परमेश्वर ही उनके तर्कों का खंडन करेंगे.’
क्योंकि अय्योब ने अपना वक्तव्य मेरे विरोध में लक्षित नहीं किया था,
मैं तो उन्हें आप लोगों के समान विचार से उत्तर भी न दे सकूंगा.
“वे निराश हो चुके हैं, अब वे उत्तर ही नहीं दे रहे;
अब तो उनके पास शब्द न रह गए हैं.
क्या उनके चुप रहने के कारण मुझे प्रतीक्षा करना होगा, क्योंकि अब वे वहां चुपचाप खड़े हुए हैं,
उत्तर देने के लिए उनके सामने कुछ न रहा है.
तब मैं भी अपने विचार प्रस्तुत करूंगा;
मैं भी वह सब प्रकट करूंगा, जो मुझे मालूम है.
विचार मेरे मन में समाए हुए हैं,
मेरी आत्मा मुझे प्रेरित कर रही है.
मेरा हृदय तो दाखमधु समान है, जिसे बंद कर रखा गया है,
ऐसा जैसे नये दाखरस की बोतल फटने ही वाली है.
जो कुछ मुझे कहना है, उसे कहने दीजिए, ताकि मेरे हृदय को शांति मिल जाए;
मुझे उत्तर देने दीजिए.
मैं अब किसी का पक्ष न लूंगा
और न किसी की चापलूसी ही करूंगा;
क्योंकि चापलूसी मेरे स्वभाव में नहीं है, तब यदि मैं यह करने लगूं,
मेरे रचयिता मुझे यहां से उठा लें.
“फिर भी, महोदय अय्योब, कृपा कर मेरे वक्तव्य;
मेरे सभी विचारों पर ध्यान दीजिए.
अब मैं अपने शब्द आपके सामने प्रकट रहा हूं;
अब मेरी जीभ तथा मेरा मुख तैयार हो रहे हैं.
मेरे ये शब्द मेरे हृदय की ईमानदारी से निकल रहे हैं;
मेरे होंठ पूर्ण सच्चाई में ज्ञान प्रकट करेंगे.
मैं परमेश्वर के आत्मा की कृति हूं;
मेरी प्राणवायु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उच्छ्वास से है.
यदि आपके लिए संभव हो तो मेरे शब्दों का खंडन कीजिए;
मेरा सामना करने के लिए आप तैयार हो जाइए.
स्मरण रखिए आपके समान मैं भी परमेश्वर की सृष्टि हूं;
मैं भी मिट्टी की ही रचना हूं.
सुनिए, मुझसे आपको किसी प्रकार का भय न हो,
मैं आपको किसी भी रीति से कठोर नहीं करूंगा.
“निःसंदेह जो कुछ आपने कहा हैं, वह सब मैंने सुना है,
आपके सभी शब्द मैं सुन चुका हूं—
‘मैं निष्कलंक हूं, अत्याचार रहित हूं;
मैं निर्दोष हूं तथा मुझमें कोई दोष नहीं है.
ध्यान दीजिए, फिर भी परमेश्वर मेरे विरुद्ध दोष खोज रहे हैं;
उन्होंने तो मुझे अपना शत्रु समझे हैं.
उन्होंने मेरे पांव काठ में जकड़ दिए;
मेरे समस्त मार्गों पर वह निगरानी बनाए हुए हैं.’
“सुनिए, मैं आपको सूचित कर रहा हूं: आप इस विषय में नीतिमान नहीं हैं,
क्योंकि परमेश्वर मनुष्यों से बड़े हैं.
आप परमेश्वर के विरुद्ध यह शिकायत क्यों कर रहे हैं
कि वह अपने कार्यों का लेखा नहीं दिया करते?
परमेश्वर संवाद अवश्य करते हैं—कभी एक रीति से, कभी अन्य रीति से—
मनुष्य इसके ओर ध्यान देने से चूक जाता है.
कभी तो स्वप्न के माध्यम से, कभी रात्रि में प्रकाशित दर्शन के माध्यम से,
जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़ा रहता है,
जब वह बिछौने पर नींद में डूबता है.
तब परमेश्वर उसके कान को जागृत कर देते हैं.
उसे चेतावनियों से भयभीत कर देते हैं,
कि ऐसा करके वह मनुष्य को उसके आचरण से दूर कर दें
तथा मनुष्य को अहंकार से बचा लें;
परमेश्वर गड्ढे से मनुष्य की आत्मा की रक्षा कर लेते हैं,
कि उसका जीवन अधोलोक में न चला जाए.
“मनुष्य जब अपने बिछौने पर होता है, तब भी उसे पीड़ा द्वारा सताया जाता है,
इसके अतिरिक्त उसकी हड्डियों में गहन वेदना के द्वारा भी.
परिणामस्वरूप उसका मन तक भोजन से घृणा करने लगता है
भले ही वह उसका सर्वाधिक उत्तम भोजन रहा हो.
उसके शरीर का मांस देखते ही सूख जाता है,
वे हड्डियां, जो अदृश्य थी, मांस सूख कर अब स्पष्ट दिखाई दे रही हैं.
तब उसके प्राण उस कब्र के निकट पहुंच जाते हैं,
तथा उसका जीवन मृत्यु के दूतों33:22 मृत्यु के दूतों किंवा मृत्यु की जगह के निकट पहुंच जाता है.
यदि सहस्रों में से कोई एक स्वर्गदूत ऐसा है,
जो उसका मध्यस्थ है, कि उसे यह स्मरण दिलाए,
कि उसके लिए सर्वोपयुक्त क्या है,
तब वह बड़ी ही शालीनता के भाव में उससे यह कहे.
‘उसका उस कब्र में जाना निरस्त कर दिया जाए,
मुझे इसके लिए छुड़ौती प्राप्त हो चुकी है;
अब उसके मांस को नवयुवक के मांस से भी पुष्ट कर दिया जाए,
उसे उसके युवावस्था के काल में पहुंचा दिया जाए.’
तब उसके लिए यह संभव हो जाएगा, कि वह परमेश्वर से प्रार्थना करे और परमेश्वर उसे स्वीकार भी कर लेंगे,
कि वह हर्षोल्लास में परमेश्वर के चेहरे को निहार सके
तथा परमेश्वर उस व्यक्ति की युक्तता की पुनःस्थापना कर सकें.
वह गा गाकर अन्य मनुष्यों के सामने यह बता देगा.
‘मैंने धर्मी को विकृत करने का पाप किया है,
मेरे लिए ऐसा करना उपयुक्त न था.
परमेश्वर ने मेरे प्राण को उस कब्र में जा पड़ने से बचा लिया है,
अब मेरे प्राण उजियाले को देख सकेंगे.’
“यह देख लेना,
परमेश्वर मनुष्यों के साथ यह सब बहुधा करते हैं,
कि वह उस कब्र से मनुष्य के प्राण लौटा लाएं,
कि मनुष्य जीवन ज्योति के द्वारा प्रकाशित किया जा सके.
“अय्योब, मेरे इन शब्दों को ध्यान से सुन लो;
तुम चुप रहोगे, तो मैं अपना संवाद प्रारंभ करूंगा.
यदि तुम्हें कुछ भी कहना हो तो कह दो, कह डालो;
क्योंकि मैं चाहता हूं, कि मैं तुम्हें निर्दोष प्रमाणित कर दूं.
यदि यह संभव नहीं, तो मेरा विचार ध्यान से सुन लो;
यदि तुम चुप रहो, तो मैं तुम्हें बुद्धि की शिक्षा दे सकूंगा.”
एलिहू ने फिर कहा:
“बुद्धिमानों, मेरा वक्तव्य सुनो;
आप तो सब समझते ही हैं, तब मेरी सुन लीजिए.
जैसे जीभ भोजन के स्वाद को परखती है,
कान भी वक्तव्य की विवेचना करता है.
उत्तम यही होगा, कि हम यहां अपने लिए;
वही स्वीकार कर लें, जो भला है.
“अय्योब ने यह दावा किया है ‘मैं तो निर्दोष हूं,
किंतु परमेश्वर ने मेरे साथ अन्याय किया है;
क्या अपने अधिकार के विषय में,
मैं झूठा दावा करूंगा?
मेरा घाव असाध्य है,
जबकि मेरी ओर से कोई अवज्ञा नहीं हुई है.’
क्या ऐसा कोई व्यक्ति है, जो अय्योब के समान हो,
जो निंदा का जल समान पान कर जाते हैं,
जो पापिष्ठ व्यक्तियों की संगति करते हैं;
जो दुर्वृत्तों के साथ कार्यों में जुट जाते हैं?
क्योंकि उन्होंने यह कहा है, ‘कोई लाभ नहीं होता
यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से आनंदित होता.’
“तब अब आप ध्यान से मेरी सुन लीजिए, आप तो बुद्धिमान हैं.
परमेश्वर के लिए तो यह संभव ही नहीं कि वह किसी भी प्रकार की बुराई करे,
सर्वशक्तिमान से कोई भूल होना संभव नहीं.
क्योंकि वह तो किसी को भी उसके कार्यों के अनुरूप प्रतिफल देते हैं;
तथा उसके आचरण के अनुसार फल भी.
निश्चय, परमेश्वर बुराई नहीं करेंगे
तथा सर्वशक्तिमान न्याय को विकृत नहीं होने देंगे.
पृथ्वी पर उन्हें अधिकारी किसने बनाया है?
किसने संपूर्ण विश्व का दायित्व उन्हें सौंपा है?
यदि वह यह निश्चय कर लेते हैं, कि वह कोई कार्य निष्पन्न करेंगे,
यदि वह अपनी आत्मा तथा अपना श्वास ले लें,
तो समस्त मानव जाति तत्क्षण नष्ट हो जाएगी
तथा मनुष्य धूल में लौट जाएगा.
“किंतु यदि वास्तव में आप में समझ है, यह सुन लीजिए;
मेरे शब्द की ध्वनि पर ध्यान दीजिए.
क्या यह उपयुक्त है कि वह शासन करे, जिसे न्याय से घृणा है?
क्या आप उस शूर पर, जो पूर्ण धर्मी है दंड प्रसारित करेंगे?
जिसमें राजा तक पर यह आक्षेप लगाने का साहस है
‘निकम्मे,’ तथा प्रधानों पर, ‘तुम दुष्ट हो,’
जो प्रमुखों से प्रभावित होकर उनका पक्ष नहीं करता,
जो न दीनों को तुच्छ समझ धनाढ्यों को सम्मान देता है, क्योंकि उनमें यह बोध प्रबल रहता है
दोनों ही एक परमेश्वर की कृति हैं?
सभी की मृत्यु क्षण मात्र में हो जाती है,
मध्य रात्रि के समय एक पल के साथ उनके प्राण उड़ जाते हैं,
हां, शूरवीर तक, बिना किसी मानव हाथ के प्रहार के चले जाते हैं.
“क्योंकि मनुष्य की हर एक गतिविधि पर परमेश्वर की दृष्टि रहती है;
उसकी समस्त चाल परमेश्वर को मालूम रहते हैं.
न तो कोई ऐसा अंधकार है, और न ही ऐसी कोई छाया,
जहां दुराचारी छिपने के लिए आश्रय ले सकें.
परमेश्वर के लिए यह आवश्यक नहीं, कि वह किसी मनुष्य के लिए गए निर्णय पर विचार करें,
कि मनुष्य को न्याय के लिए परमेश्वर के सामने उपस्थित होना पड़े.
बिना कुछ पूछे परमेश्वर, शूरवीरों को चूर-चूर कर देते हैं,
तब अन्य व्यक्ति को उसके स्थान पर नियुक्त कर देते हैं.
तब परमेश्वर को उनके कृत्यों का पूरा हिसाब रहता है,
रात्रि के रहते ही वह उन्हें मिटा देते हैं, वे कुचल दिए जाते हैं.
उन पर परमेश्वर का प्रहार वैसा ही होता है,
मानो कोई दुराचारी सार्वजनिक रीति से दंडित किया जा रहा हो,
क्योंकि वे परमेश्वर से दूर हो गये थे,
उन्होंने परमेश्वर के मार्ग का कोई ध्यान नहीं दिया था,
कि कंगालों की पुकार परमेश्वर तक जा पहुंची,
कि पीड़ित की पुकार परमेश्वर ने सुनी.
जब परमेश्वर चुप रहते हैं,
तब उन पर उंगली कौन उठा सकेगा?
तथा अगर वह मुख छिपाने का निर्णय ले लें, तो कौन उनकी झलक देख सकेगा;
चाहे कोई राष्ट्र हो अथवा व्यक्ति?
किंतु दुर्जन शासक न बन सकें,
और न ही वे प्रजा के लिए मोहजाल प्रमाणित हों.
“क्या कोई परमेश्वर के सामने यह दावा करे,
‘मैं तो गुनहगार हूं, परंतु इसके बाद मुझसे कोई अपराध न होगा.
अब आप मुझे उस विषय की शिक्षा दीजिए; जो मेरे लिए अब तक अदृश्य है.
चाहे मुझसे कोई पाप हो गया है, मैं अब इसे कभी न करूंगा.’
महोदय अय्योब, क्या परमेश्वर आपकी शर्तों पर नुकसान करेंगे,
क्योंकि आपने तो परमेश्वर की कार्यप्रणाली पर विरोध प्रकट किया है,
चुनाव तो आपको ही करना होगा मुझे नहीं तब;
अपने ज्ञान की घोषणा कर दीजिए.
“वे, जो बुद्धिमान हैं, तथा वे, जो ज्ञानी हैं,
मेरी सुनेंगे और मुझसे कहेंगे,
‘अय्योब की बात बिना ज्ञान की होती है;
उनके कथनों में कोई विद्वत्ता नहीं है.’
महोदय अय्योब को बड़ी ही सूक्ष्मता-पूर्वक परखा जाए,
क्योंकि उनके उत्तरों में दुष्टता पाई जाती है!
वह अपने पाप पर विद्रोह का योग देते हैं;
वह हमारे ही मध्य रहते हुए उपहास में ताली बजाते
तथा परमेश्वर की निंदा पर निंदा करते जाते हैं.”
एलिहू ने और कहा:
“क्या आप यह न्याय समझते हैं?
आप कहते हैं, ‘मेरा धर्म परमेश्वर के धर्म से ऊपर है?’
क्योंकि आप तो यही कहेंगे, ‘आप पर मेरे पाप का क्या प्रभाव पड़ता है,
और पाप न करने के द्वारा मैंने क्या प्राप्त किया है?’
“इसका उत्तर आपको मैं दूंगा,
आपको तथा आपके मित्रों को.
आकाश की ओर दृष्टि उठाओ;
मेघों का अवलोकन करो, वे तुमसे ऊपर हैं.
जब आप पाप कर बैठते हैं, इससे हानि परमेश्वर की कैसी होती है?
यदि आपके अत्याचारों की संख्या अधिक हो जाती, क्या परमेश्वर पर इसका कोई प्रभाव होता है?
यदि आप धर्मी हैं, आप परमेश्वर के लिए कौन सा उपकार कर देंगे,
अथवा आपके इस कृत्य से आप उनके लिए कौन सा लाभ हासिल कर देंगे?
आपकी दुष्चरित्रता आप जैसे व्यक्ति पर ही शोभा देती है,
तथा आपकी धार्मिकता मानवता के लिए योग देती है.
“अत्याचारों में वृद्धि होने पर मनुष्य कराहने लगते हैं;
वे बुरे काम के लिए किसी शूर की खोज करते हैं.
किंतु किसी का ध्यान इस ओर नहीं जाता ‘कहां हैं परमेश्वर, मेरा रचयिता,
जो रात में गीत देते हैं,
रचयिता परमेश्वर ही हैं, जिनकी शिक्षा हमें पशु पक्षियों से अधिक विद्वत्ता देती है,
तथा हमें आकाश के पक्षियों से अधिक बुद्धिमान बना देती है.’
वहां वे सहायता की पुकार देते हैं, किंतु परमेश्वर उनकी ओर ध्यान नहीं देते,
क्योंकि वे दुर्जन अपने अहंकार में डूबे हुए रहते हैं.
यह निर्विवाद सत्य है कि परमेश्वर निरर्थक पुकार को नहीं सुनते;
सर्वशक्तिमान इस ओर ध्यान देना भी उपयुक्त नहीं समझते.
महोदय अय्योब, आप कह रहे थे,
आप परमेश्वर को नहीं देख सकते,
अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करें.
आपका पक्ष उनके सामने रखा जा चुका है.
इसके अतिरिक्त,
परमेश्वर क्रोध कर तुम्हें
दण्ड नहीं देता,
और न ही वह अभिमान की ओर ध्यान देते हैं,
महोदय अय्योब, इसलिये व्यर्थ है आपका इस प्रकार बातें करना;
आप बिना किसी ज्ञान के अपने उद्गार पर उद्गार किए जा रहे हैं.”
एलिहू ने आगे कहा:
“आप कुछ देर और प्रतीक्षा कीजिए, कि मैं आपके सामने यह प्रकट कर सकूं,
कि परमेश्वर की ओर से और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.
अपना ज्ञान मैं दूर से लेकर आऊंगा;
मैं यह प्रमाणित करूंगा कि मेरे रचयिता धर्मी हैं.
क्योंकि मैं आपको यह आश्वासन दे रहा हूं, कि मेरी आख्यान झूठ नहीं है;
जो व्यक्ति इस समय आपके सामने खड़ा है, उसका ज्ञान त्रुटिहीन है.
“स्मरण रखिए परमेश्वर सर्वशक्तिमान तो हैं, किंतु वह किसी से घृणा नहीं करते;
उनकी शक्ति शारीरिक भी है तथा मानसिक भी.
वह दुष्टों को जीवित नहीं छोड़ते
किंतु वह पीड़ितों को न्याय से वंचित नहीं रखते.
धर्मियों पर से उनकी नजर कभी नहीं हटती,
वह उन्हें राजाओं के साथ बैठा देते हैं,
और यह उन्नति स्थायी हो जाती है,
वे सम्मानित होकर वहां ऊंचे पद को प्राप्त किए जाते हैं.
किंतु यदि कोई बेड़ियों में जकड़ दिया गया हो,
उसे पीड़ा की रस्सियों से बांध दिया गया हो,
परमेश्वर उन पर यह प्रकट कर देते हैं, कि इस पीड़ा का कारण क्या है?
उनका ही अहंकार, उनका यही पाप.
तब परमेश्वर उन्हें उपयुक्त शिक्षा के पालन के लिए मजबूर कर देते हैं,
तथा उन्हें आदेश देते हैं, कि वे पाप से दूर हो जाएं.
यदि वे आज्ञापालन कर परमेश्वर की सेवा में लग जाते हैं,
उनका संपूर्ण जीवन समृद्धि से पूर्ण हो जाता है
तथा उनका जीवन सुखी बना रहता है.
किंतु यदि वे उनके निर्देशों की उपेक्षा करते हैं,
तलवार से नाश उनकी नियति हो जाती है
और बिना ज्ञान के वे मर जाते हैं.
“किंतु वे, जो दुर्वृत्त हैं, जो मन में क्रोध को पोषित करते हैं;
जब परमेश्वर उन्हें बेड़ियों में जकड़ देते हैं, वे सहायता की पुकार नहीं देते.
उनकी मृत्यु उनके यौवन में ही हो जाती है,
देवताओं को समर्पित लुच्चों के मध्य में.
किंतु परमेश्वर पीड़ितों को उनकी पीड़ा से मुक्त करते हैं;
यही पीड़ा उनके लिए नए अनुभव का कारण हो जाती है.
“तब वस्तुतः परमेश्वर ने आपको विपत्ति के मुख से निकाला है,
कि आपको मुक्ति के विशाल, सुरक्षित स्थान पर स्थापित कर दें,
तथा आपको सर्वोत्कृष्ट स्वादिष्ट खाना परोस दें.
किंतु अब आपको वही दंड दिया जा रहा है, जो दुर्वृत्तों के लिए ही उपयुक्त है;
अब आप सत्य तथा न्याय के अंतर्गत परखे जाएंगे.
अब उपयुक्त यह होगा कि आप सावधान रहें, कि कोई आपको धन-संपत्ति के द्वारा लुभा न ले;
ऐसा न हो कि कोई घूस देकर रास्ते से भटका दे.
आपका क्या मत है, क्या आपकी धन-संपत्ति आपकी पीड़ा से मुक्ति का साधन बन सकेगी,
अथवा क्या आपकी संपूर्ण शक्ति आपको सुरक्षा प्रदान कर सकेगी?
उस रात्रि की कामना न कीजिए,
जब लोग अपने-अपने घरों से बाहर नष्ट होने लगेंगे.
सावधान रहिए, बुराई की ओर न मुड़िए, ऐसा जान पड़ता है,
कि आपने पीड़ा के बदले बुराई को चुन लिया है.
“देखो, सामर्थ्य में परमेश्वर सर्वोच्च हैं.
कौन है उनके तुल्य उत्कृष्ट शिक्षक?
किसने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया है, कौन उनसे कभी यह कह सका है
‘इसमें तो आपने कमी कर दी है’?
यह स्मरण रहे कि परमेश्वर के कार्यों का गुणगान करते रहें,
जिनके विषय में लोग स्तवन करते रहे हैं.
सभी इनके साक्ष्य हैं;
दूर-दूर से उन्होंने यह सब देखा है.
ध्यान दीजिए परमेश्वर महान हैं, उन्हें पूरी तरह समझ पाना हमारे लिए असंभव है!
उनकी आयु के वर्षों की संख्या मालूम करना असंभव है.
“क्योंकि वह जल की बूंदों को अस्तित्व में लाते हैं,
ये बूंदें बादलों से वृष्टि बनकर टपकती हैं;
मेघ यही वृष्टि उण्डेलते जाते हैं,
बहुतायत से यह मनुष्यों पर बरसती हैं.
क्या किसी में यह क्षमता है, कि मेघों को फैलाने की बात को समझ सके,
परमेश्वर के मंडप की बिजलियां को समझ ले?
देखिए, परमेश्वर ही उजियाले को अपने आस-पास बिखरा लेते हैं
तथा महासागर की थाह को ढांप देते हैं.
क्योंकि ये ही हैं परमेश्वर के वे साधन, जिनके द्वारा वह जनताओं का न्याय करते हैं.
तथा भोजन भी बहुलता में प्रदान करते हैं.
वह बिजली अपने हाथों में ले लेते हैं,
तथा उसे आदेश देते हैं, कि वह लक्ष्य पर जा पड़े.
बिजली का नाद उनकी उपस्थिति की घोषणा है;
पशुओं को तो इसका पूर्वाभास हो जाता है.
“मैं इस विचार से भी कांप उठता हूं.
वस्तुतः मेरा हृदय उछल पड़ता है.
परमेश्वर के उद्घोष के नाद
तथा उनके मुख से निकली गड़गड़ाहट सुनिए.
इसे वह संपूर्ण आकाश में प्रसारित कर देते हैं
तथा बिजली को धरती की छोरों तक.
तत्पश्चात गर्जनावत स्वर उद्भूत होता है;
परमेश्वर का प्रतापमय स्वर,
जब उनका यह स्वर प्रक्षेपित होता है,
वह कुछ भी रख नहीं छोड़ते.
विलक्षण ही होता है परमेश्वर का यह गरजना;
उनके महाकार्य हमारी बुद्धि से परे होते हैं.
परमेश्वर हिम को आदेश देते हैं, ‘अब पृथ्वी पर बरस पड़ो,’
तथा मूसलाधार वृष्टि को, ‘प्रचंड रखना धारा को.’
परमेश्वर हर एक व्यक्ति के हाथ रोक देते हैं
कि सभी मनुष्य हर एक कार्य के लिए श्रेय परमेश्वर को दे.
तब वन्य पशु अपनी गुफाओं में आश्रय ले लेते हैं
तथा वहीं छिपे रहते हैं.
प्रचंड वृष्टि दक्षिण दिशा से बढ़ती चली आती हैं
तथा शीत लहर उत्तर दिशा से.
हिम की रचना परमेश्वर के फूंक से होती है
तथा व्यापक हो जाता है जल का बर्फ बनना.
परमेश्वर ही घने मेघ को नमी से भर देते हैं;
वे नमी के ज़रिए अपनी बिजली को बिखेर देते हैं.
वे सभी परमेश्वर ही के निर्देश पर अपनी दिशा परिवर्तित करते हैं
कि वे समस्त मनुष्यों द्वारा बसाई पृथ्वी पर वही करें,
जिसका आदेश उन्हें परमेश्वर से प्राप्त होता है.
परमेश्वर अपनी सृष्टि, इस पृथ्वी के हित में इसके सुधार के निमित्त,
अथवा अपने निर्जर प्रेम से प्रेरित हो इसे निष्पन्न करते हैं.
“अय्योब, कृपया यह सुनिए;
परमेश्वर के विलक्षण कार्यों पर विचार कीजिए.
क्या आपको मालूम है, कि परमेश्वर ने इन्हें स्थापित कैसे किया है,
तथा वह कैसे मेघ में उस बिजली को चमकाते हैं?
क्या आपको मालूम है कि बादल अधर में कैसे रहते हैं?
यह सब उनके द्वारा निष्पादित अद्भुत कार्य हैं, जो अपने ज्ञान में परिपूर्ण हैं.
जब धरती दक्षिण वायु प्रवाह के कारण निस्तब्ध हो जाती है
आपके वस्त्रों में उष्णता हुआ करती है?
महोदय अय्योब, क्या आप परमेश्वर के साथ मिलकर,
ढली हुई धातु के दर्पण-समान आकाश को विस्तीर्ण कर सकते हैं?
“आप ही हमें बताइए, कि हमें परमेश्वर से क्या निवेदन करना होगा;
हमारे अंधकार के कारण उनके सामने अपना पक्ष पेश करना हमारे लिए संभव नहीं!
क्या परमेश्वर को यह सूचना दे दी जाएगी, कि मैं उनसे बात करूं?
कि कोई व्यक्ति अपने ही प्राणों की हानि की योजना करे?
इस समय यह सत्य है, कि मनुष्य के लिए यह संभव नहीं,
कि वह प्रभावी सूर्य प्रकाश की ओर दृष्टि कर सके.
क्योंकि वायु प्रवाह ने आकाश से मेघ हटा दिया है.
उत्तर दिशा से स्वर्णिम आभा का उदय हो रहा है;
परमेश्वर के चारों ओर बड़ा तेज प्रकाश है.
वह सर्वशक्तिमान, जिनकी उपस्थिति में प्रवेश दुर्गम है, वह सामर्थ्य में उन्नत हैं;
यह हो ही नहीं सकता कि वह न्याय तथा अतिशय धार्मिकता का हनन करें.
इसलिये आदर्श यही है, कि मनुष्य उनके प्रति श्रद्धा भाव रखें.
परमेश्वर द्वारा वे सभी आदरणीय हैं, जिन्होंने स्वयं को बुद्धिमान समझ रखा है.”
अय्योब से परमेश्वर का संवाद
तब स्वयं याहवेह ने तूफान में से अय्योब को उत्तर दिया:
“कौन है वह, जो अज्ञानता के विचारों द्वारा
मेरी युक्ति को बिगाड़ रहा है?
ऐसा करो अब तुम पुरुष के भाव कमर बांध लो;
तब मैं तुमसे प्रश्न करना प्रारंभ करूंगा,
तुम्हें इन प्रश्नों का उत्तर देना होगा.
“कहां थे तुम, जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली थी?
यदि तुममें कुछ भी समझ है, मुझे इसका उत्तर दो.
यदि तुम्हें मालूम हो! तो मुझे बताओ, किसने पृथ्वी की नाप ठहराई है?
अथवा, किसने इसकी माप रेखाएं निश्चित की?
किस पदार्थ पर इसका आधार स्थापित है?
किसने इसका आधार रखा?
जब निशांत तारा सहगान में एक साथ गा रहे थे
तथा सभी स्वर्गदूत उल्लासनाद कर रहे थे, तब कहां थे तुम?
“अथवा किसने महासागर को द्वारों द्वारा सीमित किया,
जब गर्भ से इसका उद्भव हो रहा था;
जब मैंने इसके लिए मेघ परिधान निर्मित किया
तथा घोर अंधकार को इसकी मेखला बना दिया,
तथा मैंने इस पर सीमाएं चिन्हित कर दीं तथा ऐसे द्वार बना दिए,
जिनमें चिटकनियां लगाई गईं;
तथा मैंने यह आदेश दे दिया ‘तुम यहीं तक आ सकते हो, इसके आगे नहीं
तथा यहां आकर तुम्हारी वे सशक्त वाली तरंगें रुक जाएंगी’?
“क्या तुमने अपने जीवन में प्रभात को यह आदेश दिया है,
कि वह उपयुक्त क्षण पर ही अरुणोदय किया करे,
कि यह पृथ्वी के हर एक छोर तक प्रकट करे,
कि दुराचारी अपने-अपने छिपने के स्थान से हिला दिए जाएं?
गीली मिट्टी पर मोहर लगाने समान परिवर्तन
जिसमें परिधान के सूक्ष्म भेद स्पष्ट हो जाते हैं.
सूर्य प्रकाश की उग्रता दुर्वृत्तों को दुराचार से रोके रहती है,
मानो हिंसा के लिए उठी हुई उनकी भुजा तोड़ दी गई हो.
“अच्छा, यह बताओ, क्या तुमने जाकर महासागर के स्रोतों का निरीक्षण किया है
अथवा सागर तल पर चलना फिरना किया है?
क्या तुमने घोर अंधकार में जाकर
मृत्यु के द्वारों को देखा है?
क्या तुम्हें ज़रा सा भी अनुमान है,
कि पृथ्वी का विस्तार कितना है, मुझे बताओ, क्या-क्या मालूम है तुम्हें?
“कहां है प्रकाश के घर का मार्ग?
वैसे ही, कहां है अंधकार का आश्रय,
कि तुम उन्हें यह तो सूचित कर सको,
कि कहां है उनकी सीमा तथा तुम इसके घर का मार्ग पहचान सको?
तुम्हें वास्तव में यह मालूम है, क्योंकि तब तुम्हारा जन्म हो चुका होगा!
तब तो तुम्हारी आयु के वर्ष भी अनेक ही होंगे!
“क्या तुमने कभी हिम के भंडार में प्रवेश किया है,
अथवा क्या तुमने कभी हिम के भण्डारगृह देखे हैं,
उन ओलों को जिन्हें मैंने पीड़ा के समय के लिए रखा हुआ है
युद्ध तथा संघर्ष के दिनों के लिए?
क्या तुम्हें मालूम है कि प्रकाश का विभाजन कहां है,
अथवा यह कि पृथ्वी पर पुरवाई कैसे बिखर जाती है?
क्या तुम्हें मालूम है कि बड़ी बरसात के लिए धारा की नहर किसने काटी है,
अथवा बिजली की दिशा किसने निर्धारित की है,
कि रेगिस्तान प्रदेश में पानी बरसायें,
उस बंजर भूमि जहां कोई नहीं रहता,
कि उजड़े और बंजर भूमि की प्यास मिट जाए,
तथा वहां घास के बीजों का अंकुरण हो जाए?
है कोई वृष्टि का जनक?
अथवा कौन है ओस की बूंदों का उत्पादक?
किस गर्भ से हिम का प्रसव है?
तथा आकाश का पाला कहां से जन्मा है?
जल पत्थर के समान कठोर हो जाता है
तथा इससे महासागर की सतह एक कारागार का रूप धारण कर लेती है.
“अय्योब, क्या तुम कृतिका नक्षत्र के समूह को परस्पर गूंथ सकते हो,
अथवा मृगशीर्ष के बंधनों को खोल सकते हो?
क्या तुम किसी तारामंडल को उसके निर्धारित समय पर प्रकट कर सकते हो
तथा क्या तुम सप्त ऋषि को दिशा-निर्देश दे सकते हो?
क्या तुम आकाशमंडल के अध्यादेशों को जानते हो,
अथवा क्या तुम पृथ्वी पर भी वही अध्यादेश प्रभावी कर सकते हो?
“क्या यह संभव है कि तुम अपना स्वर मेघों तक प्रक्षेपित कर दो,
कि उनमें परिसीमित जल तुम्हारे लिए विपुल वृष्टि बन जाए?
क्या तुम बिजली को ऐसा आदेश दे सकते हो,
कि वे उपस्थित हो तुमसे निवेदन करें, ‘क्या आज्ञा है, आप आदेश दें’?
किसने बाज पक्षी में ऐसा ज्ञान स्थापित किया है,
अथवा किसने मुर्गे को पूर्व ज्ञान की क्षमता प्रदान की है?
कौन है वह, जिसमें ऐसा ज्ञान है, कि वह मेघों की गणना कर लेता है?
अथवा कौन है वह, जो आकाश के पानी के मटकों को झुका सकता है,
जब धूल मिट्टी का ढेला बनकर कठोर हो जाती है,
तथा ये ढेले भी एक दूसरे से मिल जाते हैं?
“अय्योब, क्या तुम सिंहनी के लिए शिकार करते हो,
शेरों की भूख को मिटाते हो
जो अपनी कन्दरा में दुबकी बैठी है,
अथवा जो झाड़ियों में घात लगाए बैठी है?
कौवों को पौष्टिक आहार कौन परोसता है,
जब इसके बच्चे परमेश्वर को पुकारते हैं,
तथा अपना भोजन खोजते हुए भटकते रहते हैं?
“क्या तुम्हें जानकारी है, कि पर्वतीय बकरियां किस समय बच्चों को जन्म देती हैं?
क्या तुमने कभी हिरणी को अपने बच्चे को जन्म देते हुए देखा है?
क्या तुम्हें यह मालूम है, कि उनकी गर्भावस्था कितने माह की होती है?
अथवा किस समय वह उनका प्रसव करती है?
प्रसव करते हुए वे झुक जाती हैं;
तब प्रसव पीड़ा से मुक्त हो जाती हैं.
उनकी सन्तति होती जाती हैं, खुले मैदानों में ही उनका विकास हो जाता है;
विकसित होने पर वे अपनी माता की ओर नहीं लौटते.
“किसने वन्य गधों को ऐसी स्वतंत्रता प्रदान की है?
किसने उस द्रुत गधे को बंधन मुक्त कर दिया है?
मैंने घर के लिए उसे रेगिस्तान प्रदान किया है
तथा उसके निवास के रूप में नमकीन सतह.
उसे तो नगरों के शोर से घृणा है;
अपरिचित है वह नियंता की हांक से.
अपनी चराई जो पर्वतमाला में है, वह घूमा करता है
तथा हर एक हरी वनस्पति की खोज में रहता है.
“क्या कोई वन्य सांड़ तुम्हारी सेवा करने के लिए तैयार होगा?
अथवा क्या वह तुम्हारी चरनी के निकट रात्रि में ठहरेगा?
क्या तुम उसको रस्सियों से बांधकर हल में जोत सकते हो?
अथवा क्या वह तुम्हारे खेतों में तुम्हारे पीछे-पीछे पाटा खींचेगा?
क्या तुम उस पर मात्र इसलिये भरोसा करोगे, कि वह अत्यंत शक्तिशाली है?
तथा समस्त श्रम उसी के भरोसे पर छोड़ दोगे?
क्या तुम्हें उस पर ऐसा भरोसा हो जाएगा, कि वह तुम्हारी काटी गई उपज को घर तक पहुंचा देगा
तथा फसल खलिहान तक सुरक्षित पहुंच जाएगी?
“क्या शुतुरमुर्ग आनंद से अपने पंख फुलाती है,
उसकी तुलना सारस के परों से
की जा सकते है?
शुतुरमुर्ग तो अपने अंडे भूमि पर रख उन्हें छोड़ देती है,
मात्र भूमि की उष्णता ही रह जाती है.
उसे तो इस सत्य का भी ध्यान नहीं रह जाता कि उन पर किसी का पैर भी पड़ सकता है
अथवा कोई वन्य पशु उन्हें रौंद भी सकता है.
बच्चों के प्रति उसका व्यवहार क्रूर रहता है मानो उनसे उसका कोई संबंध नहीं है;
उसे इस विषय की कोई चिंता नहीं रहती, कि इससे उसका श्रम निरर्थक रह जाएगा.
परमेश्वर ने ही उसे इस सीमा तक मूर्ख कर दिया है
उसे ज़रा भी सामान्य बोध प्रदान नहीं किया गया है.
यह सब होने पर भी, यदि वह अपनी लंबी काया का प्रयोग करने लगती है,
तब वह घोड़ा तथा घुड़सवार का उपहास बना छोड़ती है.
“अय्योब, अब यह बताओ, क्या तुमने घोड़े को उसका साहस प्रदान किया है?
क्या उसके गर्दन पर केसर तुम्हारी रचना है?
क्या उसका टिड्डे-समान उछल जाना तुम्हारे द्वारा संभव हुआ है,
उसका प्रभावशाली हिनहिनाना दूर-दूर तक आतंक प्रसारित कर देता है?
वह अपने खुर से घाटी की भूमि को उछालता है
तथा सशस्त्र शत्रु का सामना करने निकल पड़ता है.
आतंक को देख वह हंस पड़ता है उसे किसी का भय नहीं होता;
तलवार को देख वह पीछे नहीं हटता.
उसकी पीठ पर रखा तरकश खड़खड़ाता है,
वहीं चमकती हुई बर्छी तथा भाला भी है.
बड़ी ही रिस और क्रोध से वह लंबी दूरियां पार कर जाता है;
तब वह नरसिंगे सुनकर भी नहीं रुकता.
हर एक नरसिंग नाद पर वह प्रत्युत्तर देता है, ‘वाह!’
उसे तो दूर ही से युद्ध की गंध आ जाती है,
वह सेना नायकों का गर्जन तथा आदेश पहचान लेता है.
“अय्योब, क्या तुम्हारे परामर्श पर बाज आकाश में ऊंचा उठता है
तथा अपने पंखों को दक्षिण दिशा की ओर फैलाता है?
क्या तुम्हारे आदेश पर गरुड़ ऊपर उड़ता है
तथा अपना घोंसला उच्च स्थान पर निर्माण करता है?
चट्टान पर वह अपना आश्रय स्थापित करता है;
चोटी पर, जो अगम्य है, वह बसेरा करता है.
उसी बिंदु से वह अपने आहार को खोज लेता है;
ऐसी है उसकी सूक्ष्मदृष्टि कि वह इसे दूर से देख लेता है.
जहां कहीं शव होते हैं, वह वहीं पहुंच जाता है
और उसके बच्चे रक्तपान करते हैं.”
तब याहवेह ने अय्योब से पूछा:
“क्या अब सर्वशक्तिमान का विरोधी अपनी पराजय स्वीकार करने के लिए तत्पर है अब वह उत्तर दे?
जो परमेश्वर पर दोषारोपण करता है!”
तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:
“देखिए, मैं नगण्य बेकार व्यक्ति, मैं कौन होता हूं, जो आपको उत्तर दूं?
मैं अपने मुख पर अपना हाथ रख लेता हूं.
एक बार मैं धृष्टता कर चुका हूं अब नहीं, संभवतः दो बार,
किंतु अब मैं कुछ न कहूंगा.”
तब स्वयं याहवेह ने तूफान में से अय्योब को उत्तर दिया:
“एक योद्धा के समान कटिबद्ध हो जाओ;
अब प्रश्न पूछने की बारी मेरी है
तथा सूचना देने की तुम्हारी.
“क्या तुम वास्तव में मेरे निर्णय को बदल दोगे?
क्या तुम स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए मुझे दोषी प्रमाणित करोगे?
क्या, तुम्हारी भुजा परमेश्वर की भुजा समान है?
क्या, तू परमेश्वर जैसी गर्जना कर सकेगा?
तो फिर नाम एवं सम्मान धारण कर लो,
स्वयं को वैभव एवं ऐश्वर्य में लपेट लो.
अपने बढ़ते क्रोध को निर्बाध बह जाने दो,
जिस किसी अहंकारी से तुम्हारा सामना हो, उसे झुकाते जाओ.
हर एक अहंकारी को विनीत बना दो,
हर एक खड़े हुए दुराचारी को पांवों से कुचल दो.
तब उन सभी को भूमि में मिला दो;
किसी गुप्त स्थान में उन्हें बांध दो.
तब मैं सर्वप्रथम तुम्हारी क्षमता को स्वीकार करूंगा,
कि तुम्हारा दायां हाथ तुम्हारी रक्षा के लिए पर्याप्त है.
“अब इस सत्य पर विचार करो जैसे मैंने तुम्हें सृजा है,
वैसे ही उस विशाल जंतु बहेमोथ40:15 बहेमोथ जलहस्ती हो सकता है को भी
जो बैल समान घास चरता है.
उसके शारीरिक बल पर विचार करो,
उसकी मांसपेशियों की क्षमता पर विचार करो!
उसकी पूंछ देवदार वृक्ष के समान कठोर होती है;
उसकी जांघ का स्नायु-तंत्र कैसा बुना गया हैं.
उसकी हड्डियां कांस्य की नलियां समान है,
उसके अंग लोहे के छड़ के समान मजबूत हैं.
वह परमेश्वर की एक उत्कृष्ट रचना है,
किंतु उसका रचयिता उसे तलवार से नियंत्रित कर लेता है.
पर्वत उसके लिए आहार लेकर आते हैं,
इधर-उधर वन्य पशु फिरते रहते हैं.
वह कमल के पौधे के नीचे लेट जाता है,
जो कीचड़ तथा सरकंडों के मध्य में है.
पौधे उसे छाया प्रदान करते हैं;
तथा नदियों के मजनूं वृक्ष उसके आस-पास उसे घेरे रहते हैं.
यदि नदी में बाढ़ आ जाए, तो उसकी कोई हानि नहीं होती;
वह निश्चिंत बना रहता है, यद्यपि यरदन का जल उसके मुख तक ऊंचा उठ जाता है.
जब वह सावधान सजग रहता है तब किसमें साहस है कि उसे बांध ले,
क्या कोई उसकी नाक में छेद कर सकता है?
“क्या तुम लिवयाथान41:1 लिवयाथान यह बड़ा मगरमच्छ हो सकता है को मछली पकड़ने की अंकुड़ी से खींच सकोगे?
अथवा क्या तुम उसकी जीभ को किसी डोर से बांध सको?
क्या उसकी नाक में रस्सी बांधना तुम्हारे लिए संभव है,
अथवा क्या तुम अंकुड़ी के लिए उसके जबड़े में छेद कर सकते हो?
क्या वह तुमसे कृपा की याचना करेगा?
क्या वह तुमसे शालीनतापूर्वक विनय करेगा?
क्या वह तुमसे वाचा स्थापित करेगा?
क्या तुम उसे जीवन भर अपना दास बनाने का प्रयास करोगे?
क्या तुम उसके साथ उसी रीति से खेल सकोगे जैसे किसी पक्षी से?
अथवा उसे अपनी युवतियों के लिए बांधकर रख सकोगे?
क्या व्यापारी उसके लिए विनिमय करना चाहेंगे?
क्या व्यापारी अपने लिए परस्पर उसका विभाजन कर सकेंगे?
क्या तुम उसकी खाल को बर्छी से बेध सकते हो
अथवा उसके सिर को भाले से नष्ट कर सकते हो?
बस, एक ही बार उस पर अपना हाथ रखकर देखो, दूसरी बार तुम्हें यह करने का साहस न होगा.
उसके साथ का संघर्ष तुम्हारे लिए अविस्मरणीय रहेगा.
व्यर्थ है तुम्हारी यह अपेक्षा, कि तुम उसे अपने अधिकार में कर लोगे;
तुम तो उसके सामने आते ही गिर जाओगे.
कोई भी उसे उकसाने का ढाढस नहीं कर सकता.
तब कौन करेगा उसका सामना?
उस पर आक्रमण करने के बाद कौन सुरक्षित रह सकता है?
आकाश के नीचे की हर एक वस्तु मेरी ही है.
“उसके अंगों का वर्णन न करने के विषय में मैं चुप रहूंगा,
न ही उसकी बड़ी शक्ति तथा उसके सुंदर देह का.
कौन उसके बाह्य आवरण को उतार सकता है?
कौन इसके लिए साहस करेगा कि उसमें बागडोर डाल सके?
कौन उसके मुख के द्वार खोलने में समर्थ होगा,
जो उसके भयावह दांतों से घिरा है?
उसकी पीठ पर ढालें पंक्तिबद्ध रूप से बिछी हुई हैं
और ये अत्यंत दृढतापूर्वक वहां लगी हुई हैं;
वे इस रीति से एक दूसरे से सटी हुई हैं,
कि इनमें से वायु तक नहीं निकल सकती.
वे सभी एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं उन्होंने एक दूसरे को ऐसा जकड़ रखा है;
कि इन्हें तोड़ा नहीं जा सकता.
उसकी छींक तो आग की लपटें प्रक्षेपित कर देती है;
तथा उसके नेत्र उषाकिरण समान दिखते हैं.
उसके मुख से ज्वलंत मशालें प्रकट रहती;
तथा इनके साथ चिंगारियां भी झड़ती रहती हैं.
उसके नाक से धुआं उठता रहता है, मानो किसी उबलते पात्र से,
जो जलते हुए सरकंडों के ऊपर रखा हुआ है.
उसकी श्वास कोयलों को प्रज्वलित कर देती,
उसके मुख से अग्निशिखा निकलती रहती है.
उसके गर्दन में शक्ति का निवास है,
तो उसके आगे-आगे निराशा बढ़ती जाती है.
उसकी मांसपेशियां
उसकी देह पर अचल एवं दृढ़,
और उसका हृदय तो पत्थर समान कठोर है!
हां! चक्की के निचले पाट के पत्थर समान!
जब-जब वह उठकर खड़ा होता है, शूरवीर भयभीत हो जाते हैं.
उसके प्रहार के भय से वे पीछे हट जाते हैं.
उस पर जिस किसी तलवार से प्रहार किया जाता है, वह प्रभावहीन रह जाती है,
वैसे ही उस पर बर्छी, भाले तथा बाण भी.
उसके सामने लौह भूसा समान होता है,
तथा कांसा सड़ रहे लकड़ी के समान.
बाण का भय उसे भगा नहीं सकता.
गोफन प्रक्षेपित पत्थर तो उसके सामने काटी उपज के ठूंठ प्रहार समान होता है.
लाठी का प्रहार भी ठूंठ के प्रहार समान होता है,
वह तो बर्छी की ध्वनि सुन हंसने लगता है.
उसके पेट पर जो झुरिया हैं, वे मिट्टी के टूटे ठीकरे समान हैं.
कीचड़ पर चलते हुए वह ऐसा लगता है, मानो वह अनाज कुटने का पट्टा समान चिन्ह छोड़ रहा है.
उसके प्रभाव से महासागर जल, ऐसा दिखता है मानो हांड़ी में उफान आ गया हो.
तब सागर ऐसा हो जाता, मानो वह मरहम का पात्र हो.
वह अपने पीछे एक चमकीली लकीर छोड़ता जाता है यह दृश्य ऐसा हो जाता है,
मानो यह किसी वृद्ध का सिर है.
पृथ्वी पर उसके जैसा कुछ भी नहीं है;
एकमात्र निर्भीक रचना!
उसके आंकलन में सर्वोच्च रचनाएं भी नगण्य हैं;
वह समस्त अहंकारियों का राजा है.”
अय्योब की स्वीकृति निर्णायक उत्तर
तब अय्योब ने याहवेह को यह उत्तर दिया:
“मेरे प्रभु, मुझे मालूम है कि आप सभी कुछ कर सकते हैं;
तथा आपकी किसी भी योजना विफल नहीं होती.
आपने पूछा था, ‘कौन है वह अज्ञानी, जो मेरे ज्ञान पर आवरण डाल देता है?’
यही कारण है कि मैं स्वीकार कर रहा हूं, कि मुझे इन विषयों का कोई ज्ञान न था, मैं नहीं समझ सका, कि क्या-क्या हो रहा था,
तथा जो कुछ हो रहा था, वह विस्मयकारी था.
“आपने कहा था, ‘अब तुम चुप रहो;
कि अब मैं संवाद कर सकूं,
तब प्रश्न मैं करूंगा, कि तुम इनका उत्तर दो.’
इसके पूर्व आपका ज्ञान मेरे लिए मात्र समाचार ही था,
किंतु अब आपको मेरी आंखें देख चुकी हैं.
इसलिये अब मैं स्वयं को घृणास्पद समझ रहा हूं,
मैं इसके लिए धूल तथा भस्म में प्रायश्चित करता हूं.”
समाप्ति
अय्योब से अपना आख्यान समाप्त करके याहवेह ने तेमानी एलिफाज़ से पूछा, “मैं तुमसे तथा तुम्हारे दोनों मित्रों से अप्रसन्न हूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो सही है, जैसा मेरे सेवक अय्योब ने प्रकट किया था. तब अब तुम सात बछड़े तथा सात मेढ़े लो और मेरे सेवक अय्योब के पास जाकर अपने लिए होमबलि अर्पित करो तथा मेरा सेवक अय्योब तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा, क्योंकि मैं उसकी याचना स्वीकार कर लूंगा, कि तुम्हारी मूर्खता के अनुरूप व्यवहार न करूं, क्योंकि तुमने मेरे विषय में वह सब अभिव्यक्त नहीं किया, जो उपयुक्त था जैसा अय्योब ने किया था.” तब तेमानी एलिफाज़ ने, शूही बिलदद ने तथा नआमथी ज़ोफर ने याहवेह के आदेश के अनुसार अनुपालन किया तथा याहवेह ने अय्योब की याचना स्वीकार कर ली.
जब अय्योब अपने मित्रों के लिए प्रार्थना कर चुके, तब याहवेह ने अय्योब की संपत्ति को पूर्वावस्था में कर दिया तथा जो कुछ अय्योब का था, उसे दो गुणा कर दिया. कालांतर उनके समस्त भाई बहनों तथा पूर्व परिचितों ने उनके घर पर आकर भोज में उनके साथ संगति की. उन्होंने उन पर याहवेह द्वारा समस्त विपत्तियों के संबंध में सहानुभूति एवं सांत्वना दी. उनमें से हर एक ने अय्योब को धनराशि एवं सोने के सिक्के भेंट में दिये.
याहवेह ने अय्योब के इन उत्तर वर्षों को उनके पूर्व वर्षों की अपेक्षा कहीं अधिक आशीषित किया. उनकी संपत्ति में अब चौदह हजार भेड़ें, छः हजार ऊंट, एक हजार जोड़े बैल तथा एक हजार गधियां हो गईं. उनके सात पुत्र एवं तीन पुत्रियां हुईं. पहली पुत्री का नाम उन्होंने यमीमाह, दूसरी का केज़ीआह, तीसरी का केरेन-हप्पूख रखा. समस्त देश में अय्योब की पुत्रियों समान सौंदर्य अन्यत्र नहीं थी. उनके पिता ने उन्हें उनके भाइयों के साथ ही मीरास दी.
इसके बाद अय्योब एक सौ चालीस वर्ष और जीवित रहे. उन्होंने चार पीढ़ियों तक अपने पुत्र तथा पौत्र देखे. वृद्ध अय्योब अपनी पूर्ण परिपक्व आयु में चले गये.