- Biblica® Open Hindi Contemporary Version (Updated 2021) 2 शमुएल शमुएल की दूसरी पुस्तक 2 शमुएल 2 शमु शमुएल की दूसरी पुस्तक दावीद को शाऊल की मृत्यु की सूचना शाऊल की मृत्यु हो चुकी थी और दावीद को अमालेकियों का संहार कर लौटे हुए दो दिन व्यतीत हो चुके थे. तीसरे दिन शाऊल के शिविर से एक व्यक्ति वहां आया उसके वस्त्र फटे हुए थे और उसके केशों में धूल समाई हुई थी. जब वह दावीद के निकट पहुंचा, उसने दंडवत हो उनका अभिवादन किया. दावीद ने उससे प्रश्न किया, “कहां से आ रहे हो?” उसने उत्तर दिया, “मैं इस्राएली सेना के शिविर से बच निकल भागकर यहां पहुंचा हूं.” दावीद ने उससे आगे पूछा, “मुझे बताओ वहां स्थिति क्या है?” उसने उत्तर दिया, “इस्राएली सेना पीठ दिखाकर भागी है. अनेक सैनिक घायल हुए, और अनेक मारे गए हैं. शाऊल और उनके पुत्र योनातन भी युद्ध में मारे गये.” दावीद ने उस संदेशवाहक युवक से प्रश्न किया, “तुम्हें यह कैसे ज्ञात हुआ कि शाऊल और योनातन की मृत्यु हो चुकी है?” उस सूचना देनेवाले युवक ने उन्हें बताया, “संयोगवश में उस समय गिलबोआ पर्वत पर ही था. वहां मैंने देखा कि शाऊल अपने भाले पर झुके हुए थे, घुड़सवार और रथ उनकी ओर बढ़े चले आ रहे थे, उन्होंने मुड़कर मेरी ओर देखा और मुझे पुकारा, मैंने उनसे कहा, ‘आज्ञा दीजिए?’ “उन्होंने ही मुझसे पूछा, ‘कौन हो तुम?’ “मैंने उन्हें उत्तर दिया, ‘मैं अमालेकी हूं.’ “उन्होंने मुझसे कहा, ‘मेरे निकट आकर मुझे इस पीड़ा से मुक्त कर दो. मेरी मृत्यु की पीड़ा असहनीय हो रही है, परंतु मेरे प्राण निकल नहीं रहे.’ “तब मैं उनके निकट गया और उन पर वार कर उनकी हत्या कर दी, क्योंकि यह स्पष्ट ही थी कि भाले पर गिरने के बाद उनका जीवित रहना असंभव था. फिर मैंने उनका मुकुट उनके सिर से उठाया, उनकी बांह से उनका कंगन निकाला, और अपने स्वामी के लिए उन्हें ले आया हूं.” तब दावीद ने अपने कपड़ों को पकड़कर उन्हें फाड़ दिया, और यही उनके सभी साथियों ने भी किया. शाऊल, उनके पुत्र योनातन और तलवार से घात किए गए याहवेह की प्रजा और इस्राएल वंश के लिए वे सांझ तक विलाप करते रहे और उन्होंने उपवास किया. दावीद ने उस युवक से जो समाचार लाया था पूछा, “कहां के हो तुम?” और उसने उन्हें उत्तर दिया था, “मैं एक विदेशी की संतान हूं, एक अमालेकी.” दावीद ने इस युवक से प्रश्न किया, “याहवेह के अभिषिक्त पर हाथ उठाते हुए तुम्हें भय क्यों न लगा?” दावीद ने अपने एक युवा साथी को बुलाकर उससे कहा, “जाकर उसे समाप्‍त कर दो.” तब उस साथी ने अमालेकी पर वार किया और उसकी मृत्यु हो गई. दावीद ने कहा, “तुम्हारा रक्त-दोष तुम्हारे ही सिर पर है, क्योंकि स्वयं तुमने यह कहते हुए अपने मुख से अपने ही विरुद्ध गवाही दी है, ‘मैंने याहवेह के अभिषिक्त की हत्या की है.’ ” शाऊल के लिए दावीद का शोक गीत दावीद ने शाऊल और उनके पुत्र योनातन के लिए यह शोक गीत गाया, और उन्होंने यह आदेश प्रसारित किया, कि यह गीत सारे यहूदियावासियों को सिखाया जाए (यह गीत याशर के ग्रंथ में अंकित है): “इस्राएल, तुम्हारा गौरव तुम्हारे ही उच्च स्थानों पर घात किया गया है. कैसे पराक्रमी गिर पड़े हैं! “इसका उल्लेख गाथ में न किया जाए, इसका उल्लेख अश्कलोन की गलियों में भी न किया जाए, ऐसा न हो कि फिलिस्तीनियों की पुत्रियां इस पर उल्लास मनाने लगें, ऐसा न हो कि अख़तनितों की पुत्रियां हर्षित होने लगें. “गिलबोआ के पर्वतों, तुम पर न तो ओस पड़े, और न बारिश, तुम पर उपजाऊ खेत भी न हों. क्योंकि इसी स्थान पर शूर योद्धा की ढाल दूषित की गई, शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई. “घात किए हुओं के रक्त से, शूरवीरों की चर्बी से, योनातन का धनुष कभी खाली न लौटा, वैसे ही शाऊल की तलवार का वार कभी विफल नहीं हुआ. शाऊल और योनातन अपने जीवनकाल में प्रिय और आकर्षक थे, मृत्यु में भी वे विभक्त नहीं हुए. उनमें गरुड़ों सदृश तेज गति, और सिंहों सदृश बल था. “इस्राएल की पुत्रियो, शाऊल के लिए विलाप करो, जिन्होंने तुम्हें भव्य बैंगनी वस्त्र पहनाए, जिन्होंने वस्त्रों के अलावा तुम्हें सोने के आभूषण भी दिए. “शूर कैसे घात किए गए युद्ध में! तुम्हारे उच्च स्थल पर योनातन मृत पड़ा है. योनातन, मेरे भाई, तुम्हारे लिए मैं शोकाकुल हूं; तुम मुझे अत्यंत प्रिय थे. मेरे लिए तुम्हारा प्रेम, नारी के प्रेम से कहीं अधिक मधुर था. “कैसे शूर मिट गए! कैसे युद्ध के हथियार नष्ट हो गए!” दावीद का यहूदिया के राजा के रूप में अभिषेक इसके बाद दावीद ने याहवेह से यह पूछा, “क्या यहूदिया के किसी नगर को मेरा जाना सही होगा?” याहवेह ने उन्हें उत्तर दिया, “हां.” दावीद ने पूछा, “कौन सा नगर उपयुक्त होगा?” “हेब्रोन,” याहवेह ने उत्तर दिया. तब दावीद वहां चले गए. उनके साथ उनकी दोनों पत्नियां, येज़्रील की अहीनोअम और कर्मेलवासी नाबाल की विधवा अबीगइल भी थी. तब दावीद अपने साथियों के साथ जाकर हेब्रोन में बस गए. हर एक के साथ उसका घर-परिवार भी था. यहूदिया प्रदेश के वासियों ने आकर यहूदाह गोत्र के लिए दावीद का राजाभिषेक किया. जब दावीद को यह सूचित किया गया कि शाऊल की अंत्येष्टि याबेश-गिलआदवासियों के द्वारा की गई थी, दावीद ने याबेश-गिलआदवासियो को अपने संदेशवाहकों द्वारा यह संदेश प्रेषित किया, “आप पर याहवेह की विशेष कृपादृष्टि बने रहे, क्योंकि आपने अपने स्वामी शाऊल के प्रति निष्ठा प्रदर्शित करते हुए उनकी अंत्येष्टि की है. आप पर याहवेह का निर्जर प्रेम और उनकी सत्यनिष्ठा बने रहे. तुम्हारे इस सद्भाव के लिए स्वयं मैं तुम पर दया प्रदर्शित करूंगा. अब जबकि तुम्हारे स्वामी शाऊल की मृत्यु हो चुकी है, और यहूदाह गोत्र ने मेरा राजाभिषेक किया है, तुम्हारी भुजाएं बलशाली बनी रहे, और तुममें शौर्य कम न होने पाए.” इस्राएल राज्य के लिए इश-बोशेथ की प्रतिष्ठा मगर दूसरी ओर नेर के पुत्र अबनेर ने, जो शाऊल की सेना के सेनापति था, शाऊल के पुत्र इश-बोशेथ को माहानाईम नगर ले जाकर उसे गिलआद, अश्शूरवासियों, येज़्रील, एफ्राईम, बिन्यामिन और संपूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया. इस्राएल पर शासन प्रारंभ करते समय इश-बोशेथ की अवस्था चालीस वर्ष की थी. उसका शासनकाल दो वर्ष का था. मगर यहूदाह गोत्र दावीद के वफादार बना रहे. हेब्रोन में यहूदाह गोत्र के ऊपर दावीद का शासनकाल सात वर्ष छः महीने का था. इस समय नेर के पुत्र अबनेर, शाऊल के पुत्र इश-बोशेथ के सेवकों को लेकर माहानाईम से गिबयोन को चले गए. दूसरी ओर ज़ेरुइयाह के पुत्र योआब के सेवकों की भेंट उनसे गिबयोन ताल के निकट हुई. दोनों समूह तल के एक-एक ओर बैठ गए. अबनेर ने योआब से कहा, “हमारे ये युवा आगे बढ़ें और हमारे सामने इनकी स्पर्धा हो जाए.” योआब सहमत हो गए, “ठीक है, वे आगे बढ़े.” तब युवा आगे आते गए और उनकी गणना की जाती रही. शाऊल के पुत्र इश-बोशेथ और बिन्यामिन के पक्ष से बारह और दावीद के पक्ष से भी बारह युवक सामने आए. हर एक ने अपने प्रतिद्वंदी का सिर पकड़ा और अपने प्रतिद्वंदी की पसली में तलवार झोंक दी. परिणामस्वरूप वे एक साथ ही धराशायी हुए, इसके कारण गिबयोन नगर में उस स्थान का नाम हेलकाथ-हज़्जूरिम2:16 हेलकाथ-हज़्जूरिम अर्थात् तलवार की धार का मैदान अथवा पसलियों का मैदान पड़ गया. उस दिन युद्ध ने अत्यंत रौद्र रूप ले लिया, और दावीद के युवकों द्वारा अबनेर और इस्राएल के युवक हरा दिए गए. ज़ेरुइयाह के तीनों पुत्र इस समूह में शामिल थे: योआब, अबीशाई और आसाहेल. आसाहेल मरुभूमि की हिरणी जैसा ही तेजी से दौड़ता था. उसने अबनेर का पीछा करना शुरू कर दिया. अबनेर का पीछा करते हुए वह न तो बाएं मुड़ा न दाएं. आसाहेल को अपने पीछे आते देखकर अबनेर ने उससे पूछा, “क्या तुम आसाहेल हो?” “जी हां,” उसने उत्तर दिया. अबनेर ने उससे कहा, “अपने दाएं अथवा बाएं मुड़कर जो भी युवक पकड़ में आए, उससे लूट की सामग्री छीन लो.” मगर आसाहेल ने अबनेर का पीछा करना न छोड़ा. अबनेर ने आसाहेल को पुनः आदेश दिया, “मेरा पीछा करना छोड़ो! मैं नहीं चाहता कि मैं तुम पर वार करके तुम्हें धराशायी कर दूं. तब मैं तुम्हारे भाई योआब को अपना मुख कैसे दिखा सकूंगा?” फिर भी उसने अबनेर का पीछा न छोड़ा. यह देख अबनेर ने अपने भाले के कुन्दे से आसाहेल के पेट पर वार किया. भाला आर-पार हो गया. आसाहेल वहीं धराशायी हो गया, और उसकी मृत्यु हो गई. वे सभी, जो उस स्थान से होकर जा रहे थे, जहां आसाहेल की मृत्यु हुई थी, स्थिर खड़े हो गये. मगर योआब और अबीशाई अबनेर का पीछा करते रहे. सूर्यास्त बेला में वे अम्माह पहाड़ी पर जा पहुंचे. यह पहाड़ी गिबयोन की मरुभूमि के मार्ग पर गियाह नामक स्थान के पूर्व पड़ती है. बिन्यामिनवासी एकजुट होकर अबनेर के पीछे खड़े हो गए. इससे अब वे एक समूह हो गए थे. इन सभी ने पहाड़ी के ऊपर अपना मोर्चा लिया. तब अबनेर ने योआब से कहा, “क्या तलवार का वार कभी न थमेगा? क्या तुम यह नहीं समझ रहे कि इससे अंत में कड़वाहट ही हाथ लगेगी? अब और कितनी देर लगाओगे अपने साथियों को आदेश देने में, कि वे अपने ही भाई-बंधुओं का पीछा करना छोड़ दें?” योआब ने उत्तर दिया, “परमेश्वर की शपथ, यदि आपने यह सब न कहा होता तो हमारे साथी अपनी भाई-बंधुओं का पीछा बिना रुके सुबह तक करते रहते.” योआब ने तुरही फूंकी और उसके साथियों ने पीछा करना बंद कर दिया. फिर उन्होंने न तो इस्राएलियों का पीछा किया और न उनसे युद्ध ही किया. अबनेर और उनके साथियों ने सारी रात चलकर अराबाह पार किया. उन्होंने यरदन नदी को पार किया और दिन के शुरू के घंटों में चलते हुए वे माहानाईम जा पहुंचे. योआब अबनेर का पीछा करना छोड़ लौट गए, और जब वे सब एकत्र हुए तब यह मालूम हुआ कि दावीद के सेवकों में से आसाहेल के अलावा उन्‍नीस व्यक्ति लौटकर नहीं आए थे. मगर दावीद के इस दल ने बिन्यामिन के तीन सौ साठ व्यक्तियों का संहार कर दिया जो अबनेर के साथ थे. आसाहेल के शव को उसके पिता की कब्र में रख दिया गया. यह कब्र बेथलेहेम में थी. योआब और उनके साथी सारी रात यात्रा करते रहे. जब वे हेब्रोन पहुंचे तब भोर हो रही थी. शाऊल के वंश और दावीद के वंश के बीच लंबे समय तक युद्ध चलता रहा. दावीद धीरे धीरे मजबूत होते चले गए, और शाऊल का वंश लगातार दुर्बल होता चला गया. हेब्रोन वास के समय दावीद को ये पुत्र पैदा हुए: उनका पहलौठा था अम्मोन, जो येज़्रीलवासी अहीनोअम से पैदा हुआ था; उनका दूसरा पुत्र था किलियाब जो कर्मेलवासी नाबाल की विधवा पत्नी अबीगइल से पैदा हुआ था; उनका तीसरा पुत्र था अबशालोम, जो गेशूर के राजा तालमाई की पुत्री माकाह से पैदा हुआ था; उनका चौथा पुत्र था अदोनियाह, जिसकी माता थी हेग्गीथ; पांचवा पुत्र था शेपाथियाह जिसकी माता थी अबीताल; छठा पुत्र इथ्रियाम था, जिसकी माता थी दावीद की पत्नी एग्लाह. ये सभी दावीद के हेब्रोन में रहते हुए पैदा हुए थे. अबनेर की दावीद के प्रति वफादारी जब शाऊल और दावीद के वंश के बीच संघर्ष चल रहा था, अबनेर स्वयं को शाऊल के परिवार ही में अपना स्थान सशक्त बनाए जा रहा था. शाऊल की रिज़पाह नामक एक उप-पत्नी थी, जो अइयाह की पुत्री थी. इश-बोशेथ ने अबनेर का सामना करते हुए पूछा, “तुमने मेरे पिता की उप-पत्नी से संबंध क्यों बनाया है?” इश-बोशेथ के इन शब्दों को सुन अबनेर को बहुत ही गुस्सा हो गए. उन्होंने इश-बोशेथ को उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदिया के किसी कुत्ते का सिर हूं? आज तक मैं तुम्हारे पिता शाऊल के परिवार, उनके भाइयों और उनके मित्रों के प्रति पूरी तरह सच्चा रहा हूं, और मैं तुम्हें दावीद के अधीन होने से बचाता रहा हूं, और आज तुम मुझ पर इस स्त्री से संबंधित अपराध का आरोप लगा रहे हो! अब यदि मैं, अबनेर, दान से बियरशीबा तक फैले हुए शाऊल वंश के राज्य दावीद को दिए जाने और दावीद के इस्राएल और यहूदिया पर सिंहासन की प्रतिष्ठा मिलने को, जिसकी शपथ याहवेह द्वारा ही ली गई थी, पूरी न करूं, तो परमेश्वर मुझसे ऐसा ही, बल्कि इससे भी बढ़कर करें.” यह सुन इश-बोशेथ अबनेर से एक शब्द तक न कह सका, क्योंकि वह अबनेर से डरता था. अबनेर ने दावीद के पास इस संदेश के साथ अपने दूत भेजे, “कौन है इस भूमि का स्वामी? मुझसे वाचा बांध लीजिए और तब देखिएगा कि मैं अपने प्रभाव से सारे इस्राएल को आपकी अधीनता में ला दूंगा.” दावीद ने उन्हें उत्तर में यह संदेश भेजा. “बहुत बढ़िया, मैं आपसे वाचा ज़रूर बांधूंगा, मगर एक ही शर्त पर, आप जब मुझसे भेंटकरने आएं, आप शाऊल की पुत्री मीखल को अपने साथ लाएं, नहीं आप मेरा मुख न देख सकेंगे.” इसके बाद दावीद ने शाऊल के पुत्र इश-बोशेथ के पास इस संदेश के साथ संदेशवाहक भेजे: “मुझे मेरी पत्नी मीखल दे दो, जिसके साथ मेरा रिश्ता फिलिस्तीनियों की एक सौ लिंग की खालों का मूल्य चुकता करने के द्वारा हुआ था.” इश-बोशेथ ने उसे उसके पति लायीश के पुत्र पालतिएल के पास से छीनकर दावीद के पास भेजी. इस पर उसका पति सारे रास्ते रोता हुआ उसके साथ साथ बहुरीम तक जा पहुंचा. उसे देख अबनेर ने उसे आदेश दिया, “जाओ अपने घर लौट जाओ!” तब वह अपने घर लौट गया. अबनेर ने इस्राएल के पुरनियों की सभा आयोजित की, और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “बीते वर्षों से आपकी यह इच्छा रही है कि दावीद आप पर राजा होकर शासन करें. अब यही हो जाने दीजिए; क्योंकि याहवेह ने दावीद से यह प्रतिज्ञा की है, ‘मैं अपने सेवक दावीद के बाहुबल से फिलिस्तीनियों के अधिकार से और सारे शत्रुओं से अपनी प्रजा इस्राएल को छुड़ाऊंगा.’ ” अबनेर ने बिन्यामिन गोत्र के लोगों से भी इस विषय के उल्लेख किया. इसके बाद अबनेर हेब्रोन नगर में दावीद को यह बताने गया कि सारे इस्राएल और सारे बिन्यामिन गोत्र के लोगों के मत में अब क्या करना सही है. जब अबनेर बीस व्यक्तियों के साथ दावीद से भेंटकरने हेब्रोन पहुंचे, दावीद ने अबनेर और उन बीस व्यक्तियों के लिए एक भोज तैयार किया. अबनेर ने दावीद से कहा, “मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं जाकर सारे इस्राएल को अपने स्वामी, जो राजा हैं, उनके सामने इकट्ठा करूं, कि वे आपसे वाचा स्थापित कर सकें, कि आप उन पर अपनी इच्छा अनुसार उन सभी पर शासन कर सकें.” तब दावीद ने अबनेर को इसके लिए विदा किया और अबनेर वहां से पूरी शांति से चले गए. योआब द्वारा अबनेर की हत्या ठीक उसी समय योआब के साथ दावीद के सेवक छापामार करके लौट रहे थे. उनके पास लूटी हुई सामग्री भी थी. उस समय अबनेर दावीद के पास हेब्रोन नगर में नहीं थे. क्योंकि दावीद उसे विदा कर चुके थे. योआब और उनकी सारी सेना उनके साथ वहां लौटी, तब उन्हें सूचना इस प्रकार दी गई थी, “नेर के पुत्र अबनेर राजा से भेंटकरने आए थे. राजा ने उन्हें पूरी शांति में लौटा दिया है.” यह सुन योआब ने राजा के पास जाकर कहा, “यह आपने क्या कर डाला है? जब अबनेर आपके पास आया था, आपने उसे ऐसे ही छोड़ दिया, और अब वह आपके हाथ से बच निकला है! इतना तो आप समझते हैं कि नेर का पुत्र अबनेर आपसे छल करने के उद्देश्य से यहां आया था. वह यहां आया था कि आपकी हर एक गतिविधि का भेद ले ले.” दावीद की उपस्थिति से बाहर आकर योआब ने अबनेर के पीछे अपने दूत दौड़ा दिए, जो अबनेर को सीराह के कुंड के निकट से लौटा लाया. मगर दावीद को इसका कोई ज्ञान न था. जब अबनेर हेब्रोन पहुंचे, प्रवेश द्वारा के निकट योआब ने उन्हें अलग ले जाकर कुछ ऐसा दिखाया की मानो वह उन्हें कोई गुप्‍त संदेश देना चाह रहे थे. उस स्थिति ही में योआब ने उनके पेट में घातक वार किया. योआब ने यह हत्या उसके भाई आसाहेल की हत्या का बदला लेने के लिए की. जब दावीद को इस घटना के विषय में मालूम हुआ, उनके वचन थे, “नेर के पुत्र अबनेर के वध के विषय में याहवेह के सामने मैं और मेरा राज्य हमेशा निर्दोष रहेंगे. इसका दोष योआब और उसके कुल पर पड़े, वे स्राव रोग से कभी मुक्त न हो; उसके पिता के कुल में कोढ़ी बने रहें; और बैसाखी का उपयोग करनेवाले हमेशा रहें, उसके कुल के पुरुष तलवार से घात किए जाएं; उसके कुल में भोजन का अभाव बना रहे.” (योआब और उनका भाई अबीशाई अबनेर की हत्या के दोषी थे; यह इसलिये कि अबनेर ने गिबयोन के युद्ध में आसाहेल का वध किया था.) इसके बाद राजा दावीद ने योआब और वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आदेश दिया, “अपने वस्त्र फाड़ दो, शोक-वस्त्र पहन लो और अबनेर के लिए विलाप करो.” राजा दावीद अर्थी के पीछे-पीछे गये. उन्होंने अबनेर को हेब्रोन ही में गाड़ दिया. राजा ऊंची आवाज में रोते हुए अबनेर की कब्र के पास खड़े रहे. वहां उपस्थित सभी लोग भी रोए. राजा ने अबनेर के लिए इन शब्दों में शोक गीत गाया: “क्या सही था कि अबनेर की मृत्यु ऐसी हो, जैसी एक मूर्ख की? अबनेर, न तो तुम्हारे हाथ बांधे गए थे, और न पांवों में बेड़ियां डाली गई थी! फिर भी तुम्हारी मृत्यु ऐसी हुई, जैसी किसी दुष्ट की.” एक बार फिर लोग अबनेर के शोक में रोने लगे. इसके बाद सभी लोग आकर दावीद से विनती करने लगे कि वह सूर्यास्त के पहले भोजन कर लें; मगर दावीद ने शपथ लेते हुए कहा, “परमेश्वर मेरे साथ यही, मगर इससे भी ज्यादा करें, यदि मैं सूर्यास्त के पहले भोजन का सिर्फ स्वाद भी चख लूं!” यह विषय सभी के ज्ञान में आ गया, और इससे सभी प्रसन्‍न हुए! वस्तुतः राजा जो कुछ करते थे, उससे सभी लोग प्रसन्‍न ही होते थे. उस दिन इस्राएल के सभी लोगों के सामने यह स्पष्ट हो गया कि राजा की यह इच्छा कभी न थी कि नेर के पुत्र अबनेर की हत्या की जाए. तब राजा ने अपने सेवकों को संबोधित करते हुए कहा, “क्या आप लोग नहीं समझ रहे कि इस्राएल ने आज एक प्रशासक और एक असाधारण व्यक्ति खो दिया है? अभिषिक्त राजा होने पर भी आज मैं स्वयं को दुर्बल पा रहा हूं. मेरे लिए ज़ेरुइयाह के पुत्र बड़ी समस्या बन गए हैं. याहवेह ही इन दुष्टों को उनके कुकर्मों के लिए सही बदला दें!” इश-बोशेथ का वध अबनेर की मृत्यु का समाचार सुनकर इश-बोशेथ का साहस जाता रहा, और सारे इस्राएल में निराशा छा गई. शाऊल के पुत्र के छापामार दलों के दो प्रधान थे: बाअनाह और रेखाब. ये दोनों बिन्यामिन प्रदेश के बएरोथ नगरवासी रिम्मोन नामक व्यक्ति के पुत्र थे. बीरोथ नगर बिन्यामिन प्रदेश का हिस्सा माना जाता था, बीरोथवासियों को पलायन कर गित्ताईम नगर में जा बसना पड़ा, और वे वहां आज तक परदेशी ही माने जाते हैं. शाऊल के पुत्र योनातन के एक पुत्र था, जो पैरों से विकलांग था. जब येज़्रील से शाऊल और योनातन से संबंधित समाचार उन्हें दिया गया, वह सिर्फ पांच वर्ष का था. उसकी सेविका उसे लेकर भाग रही थी; उतावली में वह गिर पड़ा और विकलांग रह गया. उसका नाम मेफ़िबोशेथ था. बीरोथवासी रिम्मोन के दोनों पुत्रों, रेखाब और बाअनाह ने यात्रा प्रारंभ की, और वे इश-बोशेथ के आवास पर उस समय जा पहुंचे जब दिन की गर्मी के समय इश-बोशेथ विश्राम कर रहा था. वे भवन के बीचवाले कमरे में कुछ इस ढंग से जा पहुंचे मानो वे वहां गेहूं लेने आए थे. वहां उन्होंने इश-बोशेथ के पेट में वार कर दिया. यह करके रेखाब और उसका भाई बाअनाह भाग निकले. जब उन्होंने भवन में प्रवेश किया, इश-बोशेथ अपने कमरे में बिछौने पर लेटे हुए थे. उन्होंने उन पर वार किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद उन्होंने उनका सिर काट लिया और उसे लेकर वे सारी रात अराबाह मार्ग पर चलते रहे. इश-बोशेथ के सिर को लेकर दावीद के पास हेब्रोन जा पहुंचे और उन्हें यह सूचना दी, “यह देखिए, आपके शत्रु शाऊल के पुत्र इश-बोशेथ का सिर, जो आपके प्राणों के प्यासे रहे थे. अब आज याहवेह ने राजा, मेरे स्वामी को शाऊल और उनके वंशजों का बदला दे दिया है.” दावीद ने बीरोथवासी रिम्मोन के पुत्रों रेखाब और उसके भाई बाअनाह को उत्तर दिया, “जीवित याहवेह की शपथ, जिन्होंने मेरे जीवन को सभी पीड़ाओं से छुड़ाया है, जब उस व्यक्ति ने आकर मुझे सूचना दी, सुनिए, ‘शाऊल की मृत्यु हो चुकी है,’ वह यह समझ रहा था कि वह मेरे लिए शुभ संदेश लेकर आया है, मैंने उसे पकड़ा और उसका वध कर दिया, यह ज़िकलाग की घटना है. उसके द्वारा लाए गए समाचार का ईनाम मैंने उसे इस रीति से दिया था. अब यह विचार करो कि और कितनी अधिक होगी वह प्रतिक्रिया, जब दुष्ट व्यक्तियों ने एक धर्मी व्यक्ति की हत्या उसके घर में जाकर उसके बिछौने पर की है. क्या सही नहीं कि उसके रक्त का बदला तुम्हीं से लेकर तुम्हें पृथ्वी पर से मिटा दूं!” तब दावीद ने युवाओं को आदेश दिया और उन्होंने उन दोनों की हत्या कर दी, उनके हाथ और पांव काटकर उनके शव हेब्रोन के ताल के निकट लटका दिए. मगर उन्होंने इश-बोशेथ के सिर को हेब्रोन में अबनेर की कब्र में गाड़ दिया. संपूर्ण इस्राएल पर दावीद का राजाभिषेक इसके बाद इस्राएल के सारे गोत्र हेब्रोन में दावीद से भेंटकरने आए और उनके समक्ष यह प्रस्ताव रखा, “विचार कीजिए, हम आप ही की अस्थि और मांस हैं. पिछले सालों में जब राजा तो शाऊल थे किंतु ये आप ही थे, जो हमारा मार्गदर्शन और इस्राएली सेना को चलाते रहे. याहवेह ने आपसे कहा था, ‘तुम मेरी प्रजा इस्राएल के चरवाहे होगे, तुम मेरी प्रजा इस्राएल के शासक होगे.’ ” अत: इस्राएल के सारे प्राचीन हेब्रोन नगर में राजा के सामने इकट्ठा हुए. दावीद ने याहवेह के सामने उनसे वाचा बांधी. तत्पश्चात उन्होंने इस्राएल के लिए दावीद का राजाभिषेक किया. शासन प्रारंभ करते समय दावीद की आयु तीस वर्ष की थी, और उन्होंने चालीस वर्ष शासन किया. उन्होंने हेब्रोन में रहते हुए यहूदिया पर सात वर्ष छः माह शासन किया और येरूशलेम में उन्होंने संपूर्ण इस्राएल और यहूदिया पर तैंतीस वर्ष शासन किया. दावीद की येरूशलेम पर जीत राजा ने अपनी सेना के साथ येरूशलेम जाकर उस देश के निवासी यबूसियों पर आक्रमण किया. यबूसियों ने दावीद को संदेश भेजा, “तुम तो यहां प्रवेश भी न कर सकोगे; तुम्हें तो हमारे अंधे और लंगड़े ही पछाड़ देंगे!” उनका विचार था, “दावीद के लिए यहां प्रवेश करना संभव नहीं है.” फिर भी, दावीद ने ज़ियोन गढ़ पर अधिकार कर लिया. अब यह दावीद के नगर के नाम से प्रख्यात हो गया है. उस अवसर पर दावीद ने अपने लोगों से कहा, “यदि तुम लोग यबूसियों को हराना चाहते हो तो जल सुरंग से जाओ, और उन ‘अंधों तथा विकलांगों’ पर हमला करो.” यही कारण है कि लोग कहते हैं “अंधों और विकलांग को (राज) निवास में प्रवेश निषेध है.” दावीद ने गढ़ पर अधिकार कर लिया और उसे दावीद-नगर नाम दिया. दावीद ने मिल्लो से प्रारंभ कर इसके चारों ओर भीतर की ओर नगर का निर्माण किया. दावीद पर सर्वशक्तिमान याहवेह परमेश्वर की कृपादृष्टि थी, इसलिए दावीद धीरे धीरे मजबूत होते चले गए. इसके बाद सोर के राजा हीराम ने दावीद के पास अपने दूत भेजे, जो दावीद के घर को बनाने के लिए अपने साथ देवदार की लकड़ी, बढ़ई और राजमिस्त्री भी ले आए. इससे दावीद को यह अहसास हो गया कि याहवेह ने उन्हें इस्राएल के राजा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है, और यह भी कि याहवेह ने अपनी प्रजा इस्राएल के हित में अपने राज्य को उन्‍नत किया है. हेब्रोन से येरूशलेम आकर बसने पर दावीद और भी उपपत्नियां और पत्नियां ले आए. उनको और भी संतान पैदा हुई. येरूशलेम में पैदा उनकी संतान के नाम ये हैं: शम्मुआ, शोबाब, नाथान, शलोमोन, इबहार, एलिशुआ, नेफ़ेग, याफिया, एलीशामा, एलियादा और एलिफेलेत. फिलिस्तीनियों के साथ युद्ध जब फिलिस्तीनियों को यह मालूम हुआ कि दावीद का राजाभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में किया गया है, सभी फिलिस्तीनी दावीद की खोज में निकल पड़े; मगर जैसे ही दावीद ने इसके विषय में सुना, वह गढ़ में चले गए. इस समय फिलिस्तीनी आकर रेफाइम घाटी में फैल गए. इस पर दावीद ने याहवेह से पूछा, “क्या मैं फिलिस्तीनियों पर आक्रमण करूं? क्या आप उन्हें मेरे अधीन कर देंगे?” याहवेह ने दावीद को उत्तर दिया, “जाओ, क्योंकि मैं फिलिस्तीनियों को निश्चित ही तुम्हारे अधीन कर दूंगा.” दावीद बाल-पेराज़िम नामक स्थान पर पहुंचे और वहां फिलिस्तीनियों को हरा दिया. वहां दावीद ने यह घोषित किया, “याहवेह मेरे पहले ही वहां पहुंचकर मेरे शत्रुओं पर कुछ ऐसे टूट पड़े, जैसे बहुत से जल का बहाव.” इस पर उस स्थान का नाम पड़ गया, बाल-पेराज़िम5:20 बाल-पेराज़िम अर्थ तोड़ देनेवाला प्रभु. फिलिस्तीनी अपनी मूर्तियां वही छोड़कर भागे, जिन्हें दावीद और उनके साथी उठाकर ले गए. एक बार फिर फिलिस्तीनी आए और रेफाइम घाटी में फैल गए. जब दावीद ने याहवेह से इस विषय में पूछा, याहवेह ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम सीधे जाकर उन पर हमला न करना, बल्कि तुम घूमकर उनके पीछे जाकर मोखा वृक्षों की ओर से हमला करना. हमला उस समय सही होगा, जब तुम्हें मोखा के पेड़ों के ऊपर से सेना की चहल-कदमी सुनाई देने लगें. तब तुम युद्ध शुरू कर देना, क्योंकि उस समय याहवेह तुम्हारे आगे-आगे फिलिस्तीनी सेना को मारते हुए बढ़ रहे होंगे.” दावीद ने वैसा ही किया, जैसा याहवेह ने आदेश दिया था. उन्होंने गिबयोन5:25 गिबयोन यानी गेबा से लेकर गेज़ेर तक फिलिस्तीनियों को मार गिराया. पवित्र संदूक का येरूशलेम लाया जाना कुछ समय बाद दावीद ने इस्राएल से वीर युवाओं को चुना, जिनकी संख्या तीस हज़ार पाई गई. दावीद और उनके साथ के सभी व्यक्ति यहूदिया में बालह6:2 बालह यानी किरयथ-यआरीम देखें 1 इति 13:6 के लिए निकले कि वे वहां से परमेश्वर के संदूक, जिसकी पहचान सेनाओं के याहवेह के नाम के द्वारा होती है, जो करूबों पर विराजमान हैं. उन्होंने परमेश्वर के संदूक को एक नई गाड़ी पर रख दिया. उन्होंने संदूक को पहाड़ी पर बने अबीनादाब के घर से, इस रीति से लाया. इस नए वाहन को अबीनादाब के पुत्र उज्जा और आहियो चला रहे थे. और परमेश्वर के संदूक के साथ आहियो आगे-आगे चल रहा था. इसी समय दावीद और सारा इस्राएल वंश याहवेह के सामने सनौवर की लकड़ी के बने हुए सब प्रकार के बाजे, वीणा, सांरगिया, डफ, डमरू और झांझ के साथ आनंद मना रहे थे. जब वे नाकोन के खलिहान पर पहुंचे, बैलों के लड़खड़ाने के कारण उज्जा ने परमेश्वर के संदूक की ओर हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया. इस पर उज्जा पर याहवेह का क्रोध भड़क उठा. परमेश्वर ने उस पर इस बात के कारण वहीं वार किया. उसकी मृत्यु वहीं, परमेश्वर के संदूक के निकट हो गई. उज्जा पर याहवेह के इस क्रोध पर दावीद को गुस्सा हो गया. वह स्थान आज तक पेरेज़-उज्जा6:8 अर्थ उज्जा के विरुद्ध लड़ना नाम से जाना जाता है. उस दिन दावीद याहवेह से डर गए. वह विचार करने लगे, “यह कैसे संभव है कि याहवेह का संदूक मेरे यहां आए?” तब दावीद ने याहवेह के संदूक को दावीद-नगर में लाना न चाहा, बल्कि उन्होंने संदूक को अलग ले जाकर गाथवासी ओबेद-एदोम के घर में रखवा दिया. तब याहवेह का संदूक गाथवासी ओबेद-एदोम के आवास में तीन महीने रखा रहा. याहवेह की कृपादृष्टि ओबेद-एदोम के सारे परिवार पर बनी रही. दावीद राजा को तब यह सूचना दी गई: “परमेश्वर के संदूक के कारण याहवेह ने ओबेद-एदोम के परिवार और उनकी संपत्ति पर आशीषों की बारिश की है.” दावीद गए और ओबेद-एदोम के घर से परमेश्वर का संदूक बड़े हर्ष के साथ दावीद के नगर में ले आए. जब याहवेह के संदूक को उठानेवाले छः कदम आगे बढ़े, दावीद ने एक बैल और एक हष्ट-पुष्ट पशु की बलि चढ़ाई. इस समय मलमल का वस्त्र धारण किए हुए उल्‍लसित दावीद याहवेह के सामने पूरे मन से नाचने में लीन थे. जब याहवेह का संदूक दावीद और संपूर्ण इस्राएल द्वारा लाया जा रहा था, लोग नरसिंगे फूंकने के साथ खुशी से चिल्ला रहे थे. जब याहवेह का संदूक दावीद राजा के नगर में प्रवेश हो रहा था, शाऊल की पुत्री मीखल ने खिड़की के बाहर दृष्टि की, तो यह देखा कि राजा दावीद याहवेह के सामने उछलते हुए नाच रहे थे. यह देख उसका हृदय दावीद के प्रति घृणा से भर गया. उन्होंने याहवेह के संदूक को लाकर उस तंबू, जिसे दावीद ने उसके लिए विशेष रूप से बनवाया था, उसके भीतर, संदूक के लिए निर्धारित स्थान पर, स्थापित कर दिया. इसके बाद दावीद ने याहवेह को अग्निबलि और मेल बलि चढ़ाई. जब दावीद अग्निबलि और मेल बलि चढ़ा चुके, उन्होंने प्रजा के लिए सेनाओं के याहवेह के नाम में आशीर्वाद दिए. इसके बाद उन्होंने सब लोगों में, पूरे इस्राएली जनसमूह में, स्त्री और पुरुष हर एक को, एक-एक रोटी, मांस का एक अंश और किशमिश की एक टिकी बांट दी. इसके बाद सभी लोग अपने-अपने घर चले गए. जब दावीद अपने परिवार को आशीर्वाद देने लौटे, तो शाऊल की पुत्री मीखल दावीद से भेंटकरने के लिए आई. उसने दावीद से कहा, “कैसा देखने लायक था, आज इस्राएल के राजा का वैभव! वह एक बेशर्म मूर्ख के समान अपने सेवकों की दासियों के सामने नंगा हुआ जा रहा था!” दावीद ने मीखल को उत्तर दिया, “यह तो याहवेह के सामने हो रहा था, जिन्होंने मुझे तुम्हारे पिता और तुम्हारे सारे परिवार की अपेक्षा इस्राएल का शासक बनाना सही समझा. याहवेह के सामने मैं और भी नाचूंगा, और मैं तो याहवेह के लिए अपने आपको तुम्हारी दृष्टि में और भी अधिक घृणित बना लूंगा, अपनी ही दृष्टि में नीचा हो जाऊंगा; मगर जिन दासियों का तुमने उल्लेख किया है, उनकी दृष्टि में तो मैं सम्मानित ही रहूंगा.” मृत्यु होने तक शाऊल की पुत्री मीखल बांझ ही रही. दावीद से परमेश्वर का करारनामा जब राजा अपने महल में बस गया और याहवेह ने उन्हें उनके सभी शत्रुओं से शांति प्रदान कर दी. राजा ने भविष्यद्वक्ता नाथान पर अपनी यह इच्छा प्रकट की: अब विचार कीजिए, “मैं तो देवदार से बने भव्य घर में निवास कर रहा हूं, जबकि परमेश्वर का संदूक तंबू और पर्दों में.” नाथान ने राजा को उत्तर दिया, “आप वह सब कीजिए, जो आपने अपने मन में विचार किया है. क्योंकि याहवेह आपके साथ हैं.” उसी रात याहवेह का वचन नाथान को प्राप्‍त हुआ: “मेरे सेवक दावीद से जाकर यह कहना, ‘याहवेह का कथन है: क्या तुम्हीं वह हो, जो मेरे रहने के लिए भवन बनाएगा? जब से मैंने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला है, आज तक मैं किसी भवन में नहीं रहा हूं, हां, मैं तंबू मेरा निवास बनाकर रहता आया हूं, जिधर जिधर इस्राएल के साथ मैं फिरा, क्या मैंने इस्राएल के किसी शासक से, जिसे मैंने अपनी प्रजा के चरवाहा नियुक्त किया था, कभी कहा, “तुमने मेरे लिए देवदार की लकड़ी का घर क्यों नहीं बनाया?” ’ “तब तुम्हें अब मेरे सेवक दावीद से यह कहना होगा, ‘सेनाओं के याहवेह का वचन है, मैंने ही तुम्हें चरागाह से, भेड़ों के चरवाहे के पद पर इसलिये चुना कि तुम्हें अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाऊं. तुम जहां कहीं गए, मैं तुम्हारे साथ था. तुम्हारे सामने से तुम्हारे सारे शत्रुओं को मैंने मार गिराया. मैं तुम्हारे नाम को ऐसा बड़ा करूंगा, जैसा पृथ्वी पर महान लोगों का होता है. अपनी प्रजा इस्राएल के लिए मैं एक जगह तय करूंगा, मैं उन्हें वहां बसाऊंगा कि वे वहां अपने ही घरों में रह सकें, और उन्हें वहां से चलाया न जाए, और कोई भी दुष्ट व्यक्ति उन्हें पहले के समान परेशान न करे. जैसे वे मेरे द्वारा उत्पीड़ित किए जाते थे. मैं तुम्हें तुम्हारे सभी शत्रुओं से शांति दूंगा. “ ‘इसके अलावा, तुम्हारे लिए याहवेह की यह घोषणा है कि याहवेह तुम्हारे वंशपरंपरा को स्थिर करेंगे. जब तुम्हारी आयु के निर्धारित दिन पूर्ण हो जाएंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ चिर-निद्रा में सो जाओगे, मैं तुम्हारी संतान को तुम्हारे बाद पल्लवित करूंगा, जो तुम्हारी ही देह से उत्पन्‍न होगा. मैं उसके साम्राज्य को प्रतिष्ठित करूंगा. वही मेरी प्रतिष्ठा में भवन बनाएगा. मैं उसका राज सिंहासन चिरस्थायी करूंगा. उसका पिता मैं बन जाऊंगा, और वह हो जाएगा मेरा पुत्र. जब उससे कोई अपराध होगा, मैं उसे मनुष्यों की रीति पर छड़ी से अनुशासित करूंगा, वैसे ही जैसे मनुष्य अपनी संतान को प्रताड़ित करते हैं. मगर उसके प्रति मेरा अपार प्रेम कभी कमजोर न होगा, जैसा शाऊल से मेरा प्रेम जाता रहा था, जिसे मैंने ही तुम्हारे पथ से हटा दिया. तुम्हारा वंश और तुम्हारा साम्राज्य निश्चित, मेरे सामने सदा स्थायी रहेगा. तुम्हारा सिंहासन हमेशा प्रतिष्ठित बना रहेगा.’ ” नाथान ने अपने दर्शन और याहवेह के संदेश के अनुसार दावीद को सब कुछ बता दिया. दावीद की प्रार्थना तब राजा दावीद जाकर याहवेह के सामने बैठ गए. वहां उनके हृदय से निकले वचन ये थे: “प्रभु याहवेह, कौन हूं, मैं और क्या है मेरे परिवार का पद, कि आप मुझे इस जगह तक ले आए हैं? और प्रभु याहवेह, मानो यह आपकी दृष्टि में पर्याप्‍त नहीं था, आपने मेरे वंशजों के दूर के भविष्य के विषय में भी प्रतिज्ञा कर दी है. प्रभु परमेश्वर, यह सब केवल मिट्टी मात्र मनुष्य के लिए! “दावीद इसके अलावा आपसे और क्या विनती कर सकता है? क्योंकि प्रभु याहवेह, आप अपने सेवक को जानते हैं. अपनी प्रतिज्ञा के कारण और अपनी योजना के अनुसार, आपने मुझे इस ऊंचाई तक पहुंचा दिया है, कि आपके सेवक को आश्वासन मिल सके. “इसलिये, प्रभु याहवेह, आप ऐसे महान हैं! कोई भी नहीं है आपके तुल्य! हमने जो कुछ अपने कानों से सुना है, उसके अनुसार कोई भी परमेश्वर नहीं है आपके अलावा. इसी प्रकार, कौन है आपकी प्रजा इस्राएल के तुल्य? पृथ्वी पर एक जनता, जिसे स्वयं परमेश्वर ने जाकर इसलिये छुड़ाया, कि वे उनकी प्रजा हो, कि इसमें आपकी प्रतिष्ठा हो. आपने अपनी प्रजा के सामने से अन्य राष्ट्रों को निकाल दिया—उसी प्रजा के सामने से, जिसे आपने मिस्र देश की बंधनों से विमुक्त किया है, कि वे इन राष्ट्रों और विदेशी देवताओं को छोड़ आपकी प्रजा हों. आपने अपने ही लिए अपनी प्रजा इस्राएल को प्रतिष्ठित किया है कि वे सदा-सर्वदा के लिए आपकी प्रजा रहें. और, तब याहवेह, आप उनके परमेश्वर हो गए. “और अब, याहवेह परमेश्वर, अपने सेवक और उसके वंश के विषय में कहे गए वचन को हमेशा के लिए प्रतिष्ठित कर दीजिए, और जो कुछ आपने कहा है, उन्हें पूरा कीजिए. आपकी महिमा के लिए, यह हमेशा के लिए किया जाता रहेगा. आपके विषय में कहा जाएगा, सर्वशक्तिमान याहवेह ही इस्राएल के परमेश्वर है; आपके सामने आपके सेवक दावीद का राजवंश हमेशा स्थायी रहेगा. “यह इसलिये कि सर्वशक्तिमान याहवेह, आपने, इस्राएल के परमेश्वर ही ने, अपने सेवक पर इन शब्दों में यह प्रकाशित किया है, ‘मैं तुम्हारे वंश को प्रतिष्ठित करूंगा.’ इसी बात के प्रकाश में आपके सेवक को इस प्रकार की प्रार्थना करने का साहस प्राप्‍त हुआ है. प्रभु याहवेह, आप परमेश्वर हैं! आपके मुख से निकले शब्द सत्य हैं. आपने अपने सेवक से यह असाधारण प्रतिज्ञा की हैं. तब आपके सेवक के वंश पर आपकी कृपादृष्टि बनाए रखने में आप प्रभु याहवेह की संतुष्टि हो, कि यह वंश आपके सामने हमेशा आगे ही बढ़ता जाए; क्योंकि यह आपने ही कहा है. आपके आशीर्वाद से आपके सेवक का वंश हमेशा के लिए आशीषित हो जाए.” दावीद के अभियान कुछ समय बाद दावीद ने फिलिस्तीनियों को युद्ध में हराया, और फिलिस्तीनियों के कब्जे के प्रमुख नगर का नियंत्रण उनसे छीन लिया. दावीद ने मोआबियों को भी हराया, उन्हें भूमि पर लिटा कर एक डोर से उन्हें मापा. तब दो पंक्तियों का वध किया जाने का और एक पंक्ति को सजीव रखने का आदेश दिया. इससे मोआबी दावीद के सेवक हो गए और उन्हें शुल्क देने लगे. जब ज़ोबाह के राजा रेहोब के पुत्र हादेदेज़र फरात नदी पर अपने अधिकार की पुनःस्थापना कर रहे थे, दावीद ने उसको भी हराया. दावीद ने हादेदेज़र से 1,000 रथ, 7,000 घुड़सवार और 20,000 पैदल सैनिक छीन लिए, और रथों के घोड़ों के पैंरो की प्रमुख नस काट दी, किंतु सौ रथों में इस्तेमाल के लिए पर्याप्‍त घोड़ों को छोड़ दिया. जब ज़ोबाह के राजा हादेदेज़र की सहायता के लिए दमेशेक से अरामी वहां आए, दावीद ने 22,000 अरामियों को मार दिया. दावीद ने दमेशेक के अरामी सैनिकों के बीच एक रक्षक सेना ठहरा दी. अरामी दावीद के सेवक बन गए, और उन्हें कर देने लगे. दावीद जहां कहीं गए, उन्हें याहवेह की सहायता मिलती रही. हादेदेज़र के सेवकों की सोने की ढालों को दावीद ने लाकर येरूशलेम में रख दिया. हादेदेज़र के दोनों नगर बेताह और बेरोथाई से राजा दावीद ने बड़ी मात्रा में कांसा इकट्ठा किया. जब हामाथ के राजा तोऊ ने यह सुना कि दावीद ने हादेदेज़र की संपूर्ण सेना को हरा दिया है, तोऊ ने अपने पुत्र योराम को राजा दावीद से भेंटकरने भेजा, ताकि वह राजा दावीद के स्वास्थ्य के बारे में मालूम करे, और उनको बधाई दे, क्योंकि दावीद ने हादेदेज़र को हरा दिया, जो हमेशा तोऊ से युद्ध करता रहता था. योराम अपने साथ सोना, चांदी और कांसे की वस्तुएं भी लाया था. राजा दावीद ने सोना, चांदी और कांसे की इन सभी वस्तुओं को उन वस्तुओं के साथ याहवेह को समर्पित कर दी, जो वह उन सभी पराजित देशों, यानी, एदोम, मोआब, अम्मोन के वंशजों, फिलिस्तीनियों और अमालेकियों और ज़ोबाह के पुत्र, राजा हादेदेज़र से कब्जा किये गए थे. नमक की घाटी में 18,000 एदोमियों8:13 एदोमियों कुछ पाण्डुलिपियों में अरामियों का संहार कर लौटने पर दावीद ने अपनी कीर्ति व्यापक कर ली. इसके बाद दावीद ने संपूर्ण एदोम राष्ट्र में गढ़ रक्षक सेनाएं बना दी. सभी एदोमवासी दावीद के अधीन हो गए. दावीद जहां कहीं हमला करते थे, याहवेह की ओर से उन्हें सफलता ही प्राप्‍त होती थी. दावीद के अधिकारी दावीद सारे इस्राएल के शासक थे. उन्होंने अपनी सारी प्रजा के लिए न्याय और सच्चाई की व्यवस्था की थी. ज़ेरुइयाह के पुत्र योआब सेना पर अधीक्षक था और अहीलूद के पुत्र यहोशाफ़ात था लेखापाल; अहीतूब के पुत्र सादोक और अबीयाथर के पुत्र अहीमेलेख पुरोहित थे और सेराइयाह उनका सचिव था; यहोयादा के पुत्र बेनाइयाह केरेथि और पेलेथ के निवासियों के प्रधान थे और दावीद के पुत्र प्रशासनिक सलाहकार थे. मेफ़िबोशेथ के प्रति दावीद की अनुकंपा दावीद ने पूछताछ की, “क्या शाऊल के वंशजों में से अब भी कोई बचा रह गया है कि मैं योनातन से की गई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए उस पर कृपा प्रदर्शित कर सकूं?” शाऊल के परिवार की परिचर्या के उद्देश्य से एक सेवक रखा गया था, जिसका नाम ज़ीबा था. उसे ही दावीद से भेंटकरने के लिए बुलवाया गया. राजा ने उससे प्रश्न किया, “क्या तुम्ही ज़ीबा हो?” “जी हां, मैं आपका सेवक ज़ीबा हूं,” उसने उत्तर दिया. इस पर राजा ने इससे आगे प्रश्न किया, “क्या शाऊल के वंश में अब कोई भी शेष न रहा, जिस पर मैं परमेश्वर की दया दिखा सकूं?” ज़ीबा ने उन्हें उत्तर दिया, “योनातन का एक पुत्र ज़रूर जीवित है. दोनों ही पैरों से वह अपंग है.” राजा ने उससे पूछा, “वह कहां है?” ज़ीबा ने राजा को उत्तर दिया, “इस समय वह लो-देबार में अम्मिएल के पुत्र माखीर के आवास में है.” तब राजा दावीद ने लो-देबार में अम्मिएल के पुत्र माखीर के आवास से मेफ़िबोशेथ को बुलवा लिया. शाऊल के पुत्र योनातन का पुत्र मेफ़िबोशेथ ने आकर भूमि पर मुख के बल गिरकर दावीद को नमस्कार किया. दावीद ने उसे संबोधित किया, “मेफ़िबोशेथ!” उसने उत्तर दिया, “हां जी, मैं आपका सेवक हूं!” दावीद ने उसे आश्वासन दिया, “डरो मत, तुम्हारे पिता योनातन के कारण तुम पर कृपा करूंगा, और तुम्हारे पितामह शाऊल की सारी भूमि तुम्हें लौटा दूंगा. इसके अलावा अब से तुम नियमित रूप से मेरे साथ मेरी ही मेज़ पर भोजन किया करोगे.” एक बार फिर मेफ़िबोशेथ दंडवत हो गया. उसने कहा, “आपका सेवक है ही क्या, जो आप मुझ जैसे मरे हुए कुत्ते की ओर ध्यान दें?” इसके बाद राजा ने ज़ीबा, शाऊल के सेवक को यह सूचित किया, “वह सब, जो शाऊल और उनके परिवार का है, मैंने तुम्हारे स्वामी के पोते को दे दिया है. यह तुम्हारी जवाबदारी है कि तुम, तुम्हारे पुत्र और तुम्हारे सेवक उनके लिए इस भूमि पर खेती करें और उपज उत्पन्‍न करें और उन्हें सौंपे, कि तुम्हारे स्वामी के पोते के पर्याप्‍त भोजन रहे; मगर मेफ़िबोशेथ, तुम्हारे स्वामी का पोता हमेशा मेरे साथ भोजन करता रहेगा.” (ज़ीबा के पन्द्रह पुत्र और बीस सेवक थे.) ज़ीबा ने राजा से कहा, “जैसा राजा, मेरे स्वामी ने आदेश दिया है, आपका सेवक वैसा ही करेगा.” तब मेफ़िबोशेथ दावीद के साथ राजा के पुत्रों के समान भोजन करने लगा. मेफ़िबोशेथ का मीका नामक एक पुत्र था—एक बालक. वे सभी, जो ज़ीबा के घर में रहते थे, मेफ़िबोशेथ के सेवक बन गए. तब मेफ़िबोशेथ येरूशलेम में निवास करने लगा, क्योंकि वह सदैव राजा के साथ भोजन किया करता था; वह दोनों पैरों में अपंग था. अम्मोन और सीरिया पर दावीद की विजय इसके बाद अम्मोनियों के राजा की मृत्यु हो गई. उसके स्थान पर उसका पुत्र हानून शासन करने लगा. दावीद ने यह निश्चय किया, “मैं नाहाश के पुत्र हानून पर दया दिखाऊंगा ठीक जिस प्रकार उसके पिता ने मुझ पर दया की थी.” तब दावीद ने अपने कुछ सेवकों को उसके पास उसके पिता के विषय में शांति देने भेजा. मगर जब दावीद के सेवक अम्मोनियों के देश पहुंचे, अम्मोनियों के मंत्रियों ने अपने स्वामी हानून से कहा, “क्या आप समझ रहे हैं कि इन सांत्वना के लिए भेजे गए व्यक्तियों को भेजकर दावीद आपके पिता के प्रति श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर रहा है? दावीद ने ये व्यक्ति नगर का भेद लेने भेजे हैं, कि हमारा भेद लेकर उसे तहस नहस कर दे.” यह सुन हानून ने दावीद के सेवकों को ले जाकर हर एक की आधी-आधी दाढ़ी मुंडवा दी, उनके कपड़े बीच में नितम्बों तक काट दिए और उन्हें इसी रूप में विदा कर दिया. जब दावीद को इसकी सूचना दी गई, उन्होंने उन सेवकों को उस सुझाव के साथ बुलवा लिया, “आकर येरीख़ो में उस समय तक ठहरे रहना, जब तक तुम्हारी दाढ़ी बढ़ न जाए. तब तुम यहां लौट सकते हो,” क्योंकि वे इस समय बहुत ही शर्म महसूस कर रहे थे. जब अम्मोनियों को यह पता चला कि वे दावीद के लिए अप्रिय हो गए हैं, तब अम्मोनियों ने भाड़े पर अराम के बेथ-रीहोब और ज़ोबाह से 20,000 पद सैनिक, माकाह के राजा के साथ 1,000 सैनिक और तोब से 12,000 सैनिक मंगवा लिए. जब दावीद को इसका समाचार प्राप्‍त हुआ, उन्होंने योआब के साथ वीर योद्धाओं की सारी सेना वहां भेज दी. अम्मोनियों ने आकर नगर फाटक पर मोर्चा बना लिया, जबकि ज़ोबाह और रेहोब के, अरामी और तोब और माकाह के, सैनिक स्वतंत्र रूप से मैदान में ही रहे. जब योआब ने यह देखा कि उनके विरुद्ध युद्ध छिड़ चुका है—सामने से और पीछे से भी, उन्होंने इस्राएल के सर्वोत्तम योद्धा अलग किए और उन्हें अरामियों का सामना करने के लिए चुन दिया. शेष सैनिकों को योआब ने अपने भाई अबीशाई के नेतृत्व में छोड़ दिया कि वे अम्मोनियों का सामना करें. योआब के स्पष्ट निर्देश थे, “यदि तुम्हें यह लगे कि अरामी मुझ पर हावी हो रहे हैं, तब तुम मेरी सहायता के लिए आ जाना, मगर यदि अम्मोनी तुम पर प्रबल होने लगे, तब मैं तुम्हारी सहायता के लिए आ जाऊंगा. साहस बनाए रखो. हम अपने परमेश्वर के नगरों के लिए और अपने देशवासियों के लिए साहस का प्रदर्शन करें, कि याहवेह वह कर सकें, जो उनकी दृष्टि में सही है.” योआब और उनके साथ के सैनिकों ने अश्शूरियों पर हमला किया और अरामी उनके सामने से भाग खड़े हुए. जब अम्मोनियों ने यह देखा कि अरामी मैदान छोड़कर भाग रहे हैं, अम्मोनी भी अबीशाई के समक्ष से भागकर अपने नगर में जा छिपे. योआब अम्मोनियों से युद्ध करने के बाद येरूशलेम लौट गए. जब अश्शूरियों ने यह देखा कि उन्हें इस्राएल से हार का सामना करना पड़ा है, वे आपस में एकजुट हो गए. हादेदेज़र ने उन अश्शूरियों को बुला लिया, जो फ़रात नदी के पार बसे हुए थे. ये सब हालेम नामक स्थान पर इकट्ठा हो गए. उनका सेनापति था हादेदेत्सर की सेना का आदेशक शोबाख. जब दावीद को इसकी सूचना दी गई, वह सारी इस्राएली सेना को इकट्ठा कर यरदन के पार हालेम पहुंच गए. अरामियों ने दावीद के विरुद्ध मोर्चा बांधकर उनके साथ युद्ध शुरू कर दिया. अरामी इस्राएलियों के सामने पीठ दिखाकर भागने लगे. दावीद ने अरामी सेना के 700 रथ सैनिक, 40,000 घुड़सवार मार गिराए और उनकी सेना के आदेशक शोबाख को घायल कर दिया; उसकी वहीं मृत्यु हो गई. जब हादेदेज़र के सभी जागीरदारों ने यह देखा कि वे इस्राएल द्वारा हरा दिया गया है, उन्होंने इस्राएल से संधि कर ली और इस्राएल के अधीन हो गए. इसके बाद अम्मोनियों की सहायता करने में अरामी झिझकने लगे. दावीद का गंभीर पाप जब वसन्त काल में राजा लोग युद्ध करने निकलते थे, दावीद ने योआब, उनके अधीनस्थ अधिकारियों और सारे इस्राएली सेना को युद्ध के लिए भेज दिया. उन्होंने अम्मोनियों का नाश कर दिया और रब्बाह पर अधिकार कर लिया. मगर दावीद येरूशलेम में ही रह गए थे. एक दिन, शाम के समय में, जब दावीद अपने बिछौने से उठकर राजमहल की छत पर टहल रहे थे, वहां से उन्हें स्‍नान करती हुई एक स्त्री दिखाई दी. वह स्त्री बहुत ही सुंदर थी. दावीद ने किसी को भेजकर यह मालूम करवाया कि वह स्त्री कौन थी. उन्हें सूचित किया गया, “वह एलियाम, की पुत्री बैथशेबा है; हित्ती उरियाह की पत्नी.” दावीद ने दूतों को भेजकर उसे बुलवा लिया. (इस समय वह अपने स्त्री-धर्म से शुद्ध हो चुकी थी.) वह दावीद के पास आ गई, और दावीद ने उसके साथ संबंध बनाया. इसके बाद वह अपने घर लौट गई. वह गर्भवती हो गई. उसने दावीद को यह संदेश भेजा, “मैं गर्भवती हो गई हूं.” यह मालूम होने पर दावीद ने योआब को यह संदेश भेजा, “हित्ती उरियाह को यहां भेज दो.” योआब ने उरियाह को दावीद के पास भेज दिया. जब उरियाह दावीद के सामने उपस्थित हुआ. दावीद ने उससे योआब का हाल-चाल मालूम किया, सैनिकों और युद्ध की स्थिति भी मालूम की. उसके बाद दावीद ने उरियाह को आदेश दिया, “अब तुम अपने घर चले जाओ.” राजा की ओर से उसके पीछे-पीछे उसके लिए उपहार भी भेजा गया. मगर उरियाह राजमहल के द्वार के निकट ही उसके स्वामी के सभी सेवकों के सोने के स्थान पर सो गया, और वह अपने घर नहीं गया. जब दावीद को यह बताया गया, “उरियाह तो अपने घर गया ही नहीं.” दावीद ने उरियाह से पूछा, “तुम यात्रा से लौटे हो, तो तुम अपने घर क्यों नहीं गए?” उरियाह ने उन्हें उत्तर दिया, “संदूक, इस्राएल और यहूदिया की सेना मैदान में तंबू में ठहरे हुए हैं, और योआब मेरे स्वामी और मेरे स्वामी के सैनिक मैदान में शिविर डाले हुए हैं, तब क्या यह मेरे लिए सही है कि मैं अपने घर जाऊं, और खा-पीकर अपनी पत्नी के साथ सो जाऊं? आपकी और आपके प्राणों की शपथ, मुझसे वह सब हो ही नहीं सकता!” यह सुन दावीद ने उससे कहा, “आज भी यहां ठहरो, मैं तुम्हें कल विदा कर दूंगा.” तब उरियाह येरूशलेम में एक दिन और ठहर गया. तब दावीद ने उसे आमंत्रित किया. उसने दावीद के साथ भोजन किया और दावीद उसे मदोन्मत होने तक दाखमधु पिलाई. संध्याकाल में उरियाह वहां से निकलकर अपने स्वामी के सेवकों के लिए निर्धारित स्थान पर अपने बिछौने पर जाकर सो गया, मगर अपने घर नहीं गया. प्रातः दावीद ने योआब को एक पत्र लिखा और उसे उरियाह के ही हाथ से भेज दिया. दावीद ने पत्र में लिखा था, “उरियाह को ऐसे मोर्चे पर भेज दो, जहां युद्ध सबसे तेज हो और फिर उसे वहां अकेला छोड़ पीछे हट जाना, कि उस पर शत्रुओं का वार हो और वहीं उसकी मृत्यु हो जाए.” जब योआब नगर पर घेरा डाल रहे थे, उन्हें मालूम था कि किस स्थान पर शत्रु के सबसे अधिक बलवान सैनिक युद्ध कर रहे थे, तब उन्होंने उरियाह को उसी स्थान पर युद्ध करने के लिए आदेश दिया. नगर के शूर योद्धा योआब से युद्ध करने निकल आए. दावीद के कुछ सैनिक इस हमले से घात किए गए, हित्ती उरियाह भी इसमें मारा गया. योआब ने दावीद को युद्ध का विस्तृत समाचार भेज दिया. योआब ने दूत को ये विशेष निर्देश दिए, “जब तुम राजा को युद्ध का विस्तृत लेखा दे चुको, तब यदि राजा गुस्सा होते दिखे और यदि वह तुमसे पूछे, ‘तुम लोग युद्ध करते हुए नगर के इतने निकट क्यों जा पहुंचे थे? क्या तुम्हें इतनी भी बुद्धि न थी कि वे लोग तुम पर शहरपनाह से बाण चलाएंगे? येरूब-बाशेथ11:21 येरूब-बाशेथ यरूबाल नाम से भी यह जाना जाता था का पुत्र अबीमेलेक किसके वार से मारा गया था? क्या, एक स्त्री ने ही उस पर शहरपनाह से चक्की का ऊपरी पाट नहीं फेंका था और वह तेबेज़ में इसी प्रकार मारा नहीं गया था? तुम लोग शहरपनाह के इतने निकट गए ही क्यों?’ तब तुम्हें उत्तर देना होगा, ‘महाराज, इसी में आपके सेवक हित्ती उरियाह की भी मृत्यु हो गई है.’ ” तब दूत चला गया. उसने आकर दावीद को वह सब सुना दिया, जिसे सुनाने का आदेश उसे योआब ने दिया था. दूत ने दावीद से कहा, “शत्रु सैनिक हम पर प्रबल हो गए थे. वे हम पर हमला करने मैदान तक आ गए, मगर हमने उन्हें नगर प्रवेश तक धकेल दिया. इसके बाद धनुर्धारियों ने शहरपनाह से हमारी सेना पर बाणों की बौछार कर दी. राजा के कुछ सैनिक इसमें मारे गए. उन्हीं में आपका सेवक हित्ती उरियाह भी था.” दावीद ने दूत को यह आदेश दिया, “तुम्हें जाकर योआब से यह कहना होगा: ‘तुम इस बात से उदास न होना, क्योंकि तलवार तो किसी को आज मारती है तो किसी को कल. इस नगर पर अपना हमला और अधिक प्रबल कर दो कि, नगर नष्ट कर दिया जाए,’ तुम यह कहकर योआब को प्रोत्साहित कर देना.” जब उरियाह की पत्नी को यह मालूम हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो गई है, वह अपने पति के लिए रोने लगी. जब विलाप के लिए निर्धारित अवधि पूरी हो गई, दावीद ने उसे अपने पास बुलवा लिया कि वह उसकी पत्नी बन जाए. मगर दावीद के इस काम ने याहवेह को अप्रसन्‍न कर दिया. नाथान की फटकार फिर याहवेह ने नाथान को दावीद के पास भेजा. नाथान ने आकर दावीद से कहा, “किसी नगर में दो व्यक्ति थे, एक धनी और दूसरा निर्धन. धनी व्यक्ति अनेक पशुओं और भेड़ों का स्वामी था, मगर निर्धन के पास सिर्फ एक ही छोटी भेड़ थी, जिसे उसने मोल लिया था, और वह उसका पालन पोषण कर रहा था. यह भेड़ उसके बालकों के साथ ही बड़ी हो रही थी. वह उसी व्यक्ति के साथ भोजन करती थी, उसी के प्याले से पीती थी और उसके साथ बिछौने में सोया करती थी. वह उसके लिए उसकी पुत्री समान थी. “उस धनी के पास एक यात्री आया हुआ था. उस धनिक ने उस यात्री के सत्कार के लिए अपनी भेड़ों में से कोई भेड़ न ली, बल्कि उस निर्धन की भेड़ लेकर उस यात्री के लिए भोजन तैयार कर लिया.” यह सुनते ही उस धनी व्यक्ति के प्रति दावीद का क्रोध भड़क उठा. उन्होंने नाथान से कहा, “जीवित याहवेह की शपथ, जिस व्यक्ति ने यह किया है, मृत्यु दंड के योग्य है! इसलिये कि उसने ऐसा किया है, इसलिये कि वह ऐसा निर्दयी है, उसे उस भेड़ की चौगुनी भरपाई करनी होगी.” नाथान ने दावीद को उत्तर दिया, “आप हैं वह व्यक्ति! याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का वचन यह है: ‘इस्राएल पर मैंने तुम्हें राजा बनाया; शाऊल के वारों से मैंने तुम्हारी रक्षा की. तुम्हारे स्वामी का घर मैंने ही तुम्हें दे दिया है, मैंने ही तुम्हारे स्वामी की पत्नियां तुम्हारे अधिकार में कर दी हैं, और तुम्हें इस्राएल और यहूदिया के वंश का अधिकारी बना दिया है. यदि यह सब तुम्हारे विचार से बहुत कम था, मैं तुम्हें इतना ही और दे देता. तुमने याहवेह के वचन को क्यों तुच्छ समझा कि तुमने वही किया, जो उनकी दृष्टि में गलत है? तुमने हित्ती उरियाह पर तलवार चलाई, और उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है. तुमने उरियाह को अम्मोनियों की तलवार से घात किया है. अब तलवार तुम्हारे परिवार का पीछा कभी न छोड़ेगी. तुमने मुझसे घृणा की है, और हित्ती उरियाह की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया है.’ याहवेह का यह कथन है: “यह देखना, कि मैं तुम्हारे ही परिवार में से तुम्हारे विरुद्ध बुराई उत्पन्‍न करूंगा. मैं तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों को लेकर तुम्हारे साथी को दे दूंगा कि वह तुम्हारे देखते-देखते तुम्हारी पत्नियों से दिन के प्रकाश में कुकर्म करे. तुमने तो यह गुप्‍त में किया, मगर मैं यह पूरे इस्राएल के सामने करूंगा और वह भी सूर्य प्रकाश में.” दावीद ने नाथान से कहा, “मैंने याहवेह के विरुद्ध पाप किया है.” नाथान ने दावीद से कहा, “तुम्हारा पाप याहवेह ने दूर कर दिया है. तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी. फिर भी इस काम के द्वारा तुमने याहवेह का तिरस्कार किया है, उस पुत्र की, जिसका जन्म होने पर है, मृत्यु हो जाएगी.” इसके बाद नाथान अपने घर चले गए, उरियाह की पत्नी से दावीद का जो शिशु पैदा हुआ, याहवेह ने उस पर वार किया और शिशु गंभीर रूप से रोगी हो गया. दावीद ने अपने शिशु के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की. इस समय दावीद ने न कुछ खाया न पिया और वह जाकर सारी रात भूमि पर ही पड़े रहे. घर के सारे पुरनिए उनके निकट इस प्रतीक्षा में ठहरे रहे कि कब उन्हें भूमि पर से उठाएं, मगर दावीद ने उठना अस्वीकार किया. उन्होंने उनके साथ भोजन भी न किया. सातवें दिन शिशु की मृत्यु हो गई. दावीद को इसकी सूचना देने में सेवक झिझक रहे थे कि शिशु की मृत्यु हो चुकी थी. उनका कहना था, “देखो, जब शिशु जीवित था और हम उन्हें मना रहे थे, उन्होंने हमारी न सुनी. तब भला हम उन्हें कैसे बताएं कि शिशु की मृत्यु हो गई? कहीं वह अपनी ही कोई हानि न कर लें.” जब दावीद ने ध्यान दिया कि सेवक परस्पर दबे स्वर में बातचीत कर रहे थे, दावीद समझ गए कि शिशु की मृत्यु हो चुकी. दावीद ने सेवकों से प्रश्न किया, “क्या शिशु की मृत्यु हो गई?” “जी हां,” उन्होंने उत्तर दिया. तब दावीद भूमि से उठे, स्‍नान कर तेल लगाया और अपने वस्त्र बदले. इसके बाद याहवेह के भवन में जाकर उन्होंने उनकी वंदना की और अपने घर चले गए. उन्होंने भोजन मांगा, सेवकों ने उनके साम्हने भोजन परोस दिया और राजा ने वह खाया. इस पर सेवकों ने दावीद से पूछा, “हमें समझ नहीं आया आपने यह क्या किया? जब शिशु जीवित था आप भूखे रहे और रोते रहे, मगर जब शिशु की मृत्यु हो गई, आपने उठकर भोजन किया!” दावीद ने उत्तर दिया, “जब तक शिशु जीवित था, मैं उपवास करते हुए रोता रहा, ‘क्योंकि मैं विचार कर रहा था, किसे पता याहवेह मुझ पर कृपा करें और शिशु जीवित रह जाए.’ मगर अब, जब शिशु की मृत्यु हो चुकी है, क्या अर्थ है मेरे उपवास का? क्या इससे मैं उसे लौटा ला सकता हूं? मैं उससे जा मिलूंगा, लौटकर वह मेरे पास न आएगा.” दावीद अपनी पत्नी बैथशेबा को सांत्वना देते रहे. वह उसके निकट रहे और उसमें संबंध बना. उन्हें एक पुत्र पैदा हुआ, जिसे दावीद ने शलोमोन नाम दिया. वह याहवेह का प्रिय हुआ; भविष्यद्वक्ता नाथान के द्वारा याहवेह ने एक संदेश भेजा. तब याहवेह की आज्ञा पर उन्होंने उसे येदीदियाह12:25 येदीदियाह अर्थ याहवेह का प्रिय नाम दिया. योआब ने अम्मोनियों के रब्बाह नगर से युद्ध छेड़ दिया और इस राजधानी को अपने अधीन कर लिया. तब योआब ने दूतों द्वारा दावीद को यह संदेश भेजा, “मैंने रब्बाह नगर से युद्ध किया है, और मैंने जल नगर पर अधिकार भी कर लिया है. अब आप बाकी सैनिकों को इकट्ठा कर नगर की घेराबंदी कर लीजिए और इसे अपने अधिकार में कर लीजिए. ऐसा न हो कि मैं इस पर अधिकार कर लूं और यह मेरी संपत्ति के रूप में प्रख्यात हो जाए.” तब दावीद ने सैनिक इकट्ठा किए और रब्बाह नगर पर हमला किया और उसे अपने अधिकार में कर लिया. तत्पश्चात उन्होंने उनके राजा के सिर से उसका मुकुट ले लिया. इस स्वर्ण मुकुट का वजन एक तालन्त12:30 करीब 34 कि. ग्राम था. एक अमूल्य रत्न भी इसमें जड़ित था. यह मुकुट दावीद के सिर पर रखा गया. दावीद इस नगर से अत्यंत भारी मात्रा में लूटी हुई सामग्री अपने साथ ले गए. इस नगर से दावीद-नगर निवासी भी अपने साथ ले गए, जिन्हें उन्होंने श्रमिक बनाकर उन्हें आरी, कुदाली, कुल्हाड़ी से संबंधित कार्यों में लगा दिया और उन्हें ईंट निर्माण की भट्ठियों में भी संलग्न कर दिया. यही उन्होंने अम्मोनियों के सारे नगरों के साथ किया. इसके बाद दावीद और सारे सैनिक येरूशलेम लौट गए. अम्मोन और तामार दावीद के अबशालोम नामक पुत्र की अत्यंत रूपवती बहन थी, जिसका नाम तामार था. अम्मोन नामक दावीद के अन्य पुत्र को तामार से प्रेम हो गया. अम्मोन अपनी बहन के कारण इतना अधिक निराश हो गया कि वह रोगी रहने लगा. उसके साथ कुछ करना अम्मोन को कठिन जान पड़ता था. तामार अब तक कुंवारी थी. दावीद के भाई सिमअह का योनादाब नामक पुत्र था, जो अम्मोन का मित्र था. वह एक चतुर व्यक्ति था. उसने अम्मोन से कहा, “ओ राजा के सपूत, तुम दिन-प्रतिदिन ऐसे मुरझाए हुए मुंह के क्यों हुए जा रहे हो? मुझे बताओ, हुआ क्या है?” अम्मोन ने उसे उत्तर दिया, “मुझे मेरे भाई अबशालोम की बहन तामार से प्रेम हो गया है.” योनादाब ने उससे कहा, “ऐसा करो, जाकर अपने बिछौने पर सो जाओ मानो तुम रोगी हो. जब तुम्हारे पिता तुम्हें देखने आएं तो उनसे कहना, ‘मेरी बहन तामार को भेज दीजिए कि वह यही आकर मेरे देखते हुए भोजन तैयार करे कि मैं उसकी के हाथ से भोजन करूं.’ ” तब अम्मोन ऐसे सो गया मानो वह रोगी था. जब राजा उसे देखने आए, अम्मोन ने राजा से कहा, “कृपया मेरी बहन तामार को भेज दीजिए कि वह यहां आकर मेरे सामने मेरे लिए भोजन बनाए, कि मैं उसी के हाथ से भोजन कर सकूं.” तब दावीद ने तामार के घर पर यह संदेश भेजा, “अपने भाई अम्मोन के घर पर चली जाओ और उसके लिए भोजन तैयार कर दो.” तब तामार अपने भाई अम्मोन के घर पर चली गई, जहां वह लेटा हुआ था. उसने वहां आटा गूंधा और उसके देखते हुए रोटियां बनाई. इसके बाद उसने बर्तन में से भोजन निकालकर अम्मोन को परोस दिया, मगर अम्मोन ने खाना न चाहा. उसने आदेश दिया, “अन्य सभी व्यक्ति उस कमरे से बाहर भेज दिए जाएं.” तब सभी वहां से बाहर चले गए. तब अम्मोन ने तामार से कहा, “भोजन यहां इस कमरे में लाया जाए, कि मैं तुम्हारे हाथ से भोजन कर सकूं.” तब तामार अपने द्वारा तैयार किया हुआ भोजन अपने भाई अम्मोन के निकट ले गई. जैसे ही वह उसके भोजन उसके निकट लेकर गई, अम्मोन ने उसे पकड़ लिया और उससे कहा, “मेरी बहन, आओ, मेरे साथ सोओ.” उसने उत्तर दिया, “नहीं, मेरे भाई! मुझे विवश न करो! इस्राएल राष्ट्र में ऐसा नहीं किया जाता; मत करो यह अनाचार! और फिर मेरे विषय में विचार करो. मैं इस लज्जा को कैसे धोती फिरूंगी? और अपने विषय में भी विचार करो. तुम तो इस्राएल में दुष्ट मूर्ख के रूप में कुख्यात हो जाओगे. सही होगा कि तुम इस विषय में राजा से आग्रह करो. वह मेरे विषय में तुम्हारा आग्रह अस्वीकार न करेंगे.” मगर अम्मोन ने उसकी एक न सुनी. तामार की अपेक्षा बलवान होने के कारण वह उस पर प्रबल हो गया, और उसने उसके साथ बलात्कार किया. इसके होते ही अम्मोन तामार के प्रति ऐसी घृणा से भर गया, जो बहुत बड़ी घृणा थी. उसकी यह घृणा उसके प्रति उसके प्रेम से कहीं अधिक भयंकर थी. तब अम्मोन ने तामार से कहा, “चलो उठो और निकल जाओ यहां से!” मगर तामार ने उससे कहा, “नहीं, मेरे भाई, तुम्हारा मुझे इस प्रकार भेजना मेरे साथ किए गए इस कुकर्म से भी ज्यादा गलत बात होगी.” मगर अम्मोन ने उसकी एक न सुनी. उसने अपने युवा सेवक को बुलाकर उसे आदेश दिया, “इसी समय इस स्त्री को मेरी उपस्थिति से दूर ले जाओ, और फिर यह द्वार बंद कर दो.” तामार एक लंबा वस्त्र धारण किए हुए थी. इस वस्त्र में लंबी बांहें थी. राजा की कुंवारी कन्याएं इसी प्रकार का वस्त्र पहना करती थी. उस सेवक ने उसे कमरे से बाहर निकालकर द्वार बंद कर दिया. तामार ने अपने सिर पर भस्म डाल अपने लंबी बांह युक्त वस्त्र को फाड़ दिया, जिसे उसने इस समय पहना था. वह इस स्थिति में अपने मस्तक पर हाथ रखे हुए उच्च स्वर में रोती हुई लौट गई. तामार के भाई अबशालोम ने उससे पूछा, “क्या, तुम अपने भाई अम्मोन के यहां से आ रही हो? मेरी बहन, अब शांत हो जाओ. वह भाई है तुम्हारा. इसे अपने हृदय से निकाल दो.” तब तामार अपने भाई अबशालोम के आवास में असहाय स्त्री होकर रहने लगी. इस घटना का समाचार सुनकर राजा दावीद बहुत क्रुद्ध हो गए. अबशालोम ने अम्मोन से भला-बुरा कुछ भी न कहा. अम्मोन ने उसकी बहन को भ्रष्‍ट किया था, इसलिए अबशालोम अम्मोन से घृणा करने लगा. तामार के लिए अबशालोम का प्रतिशोध इस घटना के बाद दो वर्ष पूर्ण होने पर अबशालोम ने राजा के सारे पुत्रों को बाल-हाज़ोर नामक स्थान पर आमंत्रित किया. यह स्थान एफ्राईम के निकट था. यहीं अबशालोम के भेड़ के ऊन कतरनेवाले चुने गए थे. अबशालोम ने राजा के निकट जाकर उनसे विनती की, “कृपा कर सुनिए: आपके सेवक ने भेड़ के ऊन कतरनेवाले चुने हैं. कृपया महाराज और उनके सेवक मेरे साथ वहां पधारे.” मगर राजा ने अबशालोम को उत्तर दिया, “नहीं मेरे पुत्र, हम सबका वहां जाना सही न होगा. हम सब तुम्हारे लिए बोझ बन जाएंगे.” अबशालोम विनती करता रहा मगर राजा मना करते रहे. हां, राजा ने अबशालोम को आशीर्वाद अवश्य दिया. इस स्थिति में अबशालोम ने अपने पिता से कहा, “अच्छा, यदि आप नहीं जा सकते तो हमारे साथ मेरे भाई अम्मोन को ही जाने दे.” इस पर राजा ने प्रश्न किया, “क्यों? वह क्यों जाएगा तुम्हारे साथ?” मगर जब अबशालोम विनती करता ही रहा, दावीद ने अम्मोन और सारे राजपुत्रों को उसके साथ जाने की आज्ञा दे दी. अबशालोम ने अपने सेवकों को आदेश दे रखा था, “देखते रहना! जब अम्मोन दाखमधु से नशे में हो जाए, और जब मैं तुम्हें आदेश दूं, ‘अम्मोन पर वार करो,’ तब तुम उसे घात कर देना. ज़रा भी न झिझकना. स्वयं मैं तुम्हें यह आदेश दे रहा हूं; साहस बनाए रखना और वीरता दिखाना.” अबशालोम के सेवकों ने इस आदेश का पूरा-पूरा पालन किया. वह होते ही सभी राजपुत्र अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो भाग गए. जब वे सब मार्ग में ही थे, दावीद को यह समाचार इस प्रकार भेजा गया: “अबशालोम ने सभी राजपुत्रों का संहार कर दिया है; एक भी जीवित शेष न रहा है.” यह सुनकर राजा ने शोक में अपने वस्त्र फाड़ दिए, और उठकर भूमि पर जा लेटे. उनके निकट सभी सेवकों ने भी अपने वस्त्र फाड़ दिए. मगर दावीद के भाई सिमअह के पुत्र योनादाब ने आश्वासन दिया, “मेरे प्रभु, यह न मान लें कि उन्होंने सारे युवा राजपुत्रों का संहार कर दिया है. वध मात्र अम्मोन का ही किया गया है. इसका निश्चय अबशालोम ने उसी दिन कर लिया था, जिस दिन अम्मोन ने अपनी बहन तामार से बलात्कार किया था. मेरे स्वामी महाराज, इस विचार से उदास न हों, कि सारे राजपुत्रों का संहार किया जा चुका है, क्योंकि सिर्फ अम्मोन का ही संहार किया गया है.” इसी बीच अबशालोम वहां से भाग निकला. वहां नियुक्त युवा पहरेदार ने दृष्टि की, तो देखा कि उसके पीछे के मार्ग से पर्वत की एक ओर से अनेक लोग चले आ रहे थे. योनादाब ने राजा से कहा, “देखिए राजपुत्र लौट आए हैं! ठीक वैसा ही हुआ है, जैसे आपके सेवक ने आपको कहा था.” वह यह कह ही रहा था, कि राजपुत्र आ पहुंचे और ऊंची आवाज में रोने लगे. उनके साथ राजा और सारे सेवक भी फूट-फूटकर रोने लगे. इस समय अबशालोम कूच करके गेशूर के राजा अम्मीहूद के पुत्र तालमाई की शरण में जा पहुंचा. राजा दावीद अपने पुत्र के लिए हर रोज़ रोते रहे. अबशालोम भागकर गेशूर नामक स्थान पर गया और वहां तीन साल तक रहता रहा. राजा दावीद का हृदय अबशालोम से मिलने के लिए व्याकुल रहता था. अब उन्हें अम्मोन मृत्यु के विषय में शांति प्राप्‍त हो चुकी थी. तेकोवा की स्त्री ज़ेरुइयाह के पुत्र योआब ने यह भांप लिया कि राजा का हृदय अबशालोम के लिए लालायित है. योआब ने तकोआ नगर से एक विदुषी को बुलवाकर उसे ये निर्देश दिए, “विलाप-वस्त्र धारण कर कृपया आप एक विलाप करनेवाली का अभिनय कीजिए. आप किसी भी प्रकार का सौन्दर्य-प्रसाधन न कीजिए. आपके रोने का ढंग ऐसा हो मानो आप लंबे समय से किसी मृतक के लिए विलाप कर रही हों. तब आप राजा की उपस्थिति में जाकर इस प्रकार कहिए.” और योआब ने उस स्त्री को समझा दिया कि उसे वहां क्या-क्या कहना होगा. जब तकोआ निवासी वह स्त्री राजा की उपस्थिति में आई, उसने भूमि पर मुख के बल गिरकर सम्मानपूर्वक राजा का अभिवादन किया और राजा के सामने अपनी यह विनती की, “महाराज मेरी रक्षा कीजिए!” राजा ने उससे प्रश्न किया, “क्या है तुम्हारी व्यथा?” उसने उत्तर दिया, “मैं एक अभागी विधवा हूं क्योंकि मेरे पति की मृत्यु हो चुकी है. आपकी सेविका के दो पुत्र थे. जब वे खेत में थे, उनमें विवाद फूट पड़ा. वहां कोई भी न था, जो उनके बीच हस्तक्षेप करे. एक ने ऐसा वार किया कि दूसरे की मृत्यु हो गई. अब सारे परिवार आपकी सेविका के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है. उनकी मांग है, ‘अपना वह पुत्र हमें सौंप दो, जिसने भाई की हत्या की है, कि हम उसके भाई की हत्या के लिए उसकी भी हत्या करे.’ यदि वे ऐसा करेंगे तो उत्तराधिकारी की संभावना ही समाप्‍त हो जाएगी. इससे तो वे उत्तराधिकारी ही समाप्‍त कर देंगे. इसमें तो वे मेरे शेष रह गए अंगार का ही शमन कर देंगे और तब पृथ्वी पर मेरे पति का न तो नाम रह जाएगा और न कोई उत्तराधिकारी.” यह सुन राजा ने उस स्त्री से कहा, “तुम अपने घर जाओ. इस विषय में मैं आदेश प्रसारित करूंगा.” तकोआ निवासी उस स्त्री ने राजा से कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, इसका दोष मुझ पर और मेरे पिता के वंश पर हो. महाराज और महाराज का सिंहासन इस विषय में निर्दोष रहेंगे.” राजा ने आगे यह भी कहा, “यदि कोई भी इस विषय में आपत्ति उठाए तो उसे मेरे यहां भेज देना. वह फिर कभी तुम्हें सताएगा नहीं.” उस स्त्री ने तब यह भी कहा, “कृपया महाराज, याहवेह अपने परमेश्वर से यह विनती करें कि अब बदला लेनेवाला किसी की हत्या न करे और मेरा पुत्र जीवित रहे.” राजा ने आश्वासन दिया, “जीवन्त याहवेह की शपथ, तुम्हारे पुत्र का एक बाल भी भूमि पर न गिरेगा.” इसके बाद उस स्त्री ने दावीद से यह कहा, “कृपया अपनी दासी को महाराज, मेरे स्वामी, एक और विनती प्रस्तुत करने की आज्ञा दें.” “कहो,” राजा ने कहा. उसे स्त्री ने कहा, “क्या कारण है आपने परमेश्वर की प्रजा के लिए ऐसी युक्ति की है? आपने इस समय जो निर्णय दिया है, उसके द्वारा महाराज ने स्वयं अपने को ही दोषी घोषित कर दिया है, क्योंकि आपने अपने निकाले हुए को यहां नहीं लौटाया है. हम सभी की मृत्यु निश्चित है. हम सभी भूमि पर छलक चुके उस जल के समान हैं, जिसे दोबारा इकट्ठा करना संभव नहीं होता. मगर परमेश्वर जीवन नष्ट नहीं करते. वह ऐसी युक्ति करते हैं कि कोई भी निकाले हुए हमेशा उनकी उपस्थिति से दूर न रहे. “यह कहने के लिए मैं महाराज के सम्मुख इसलिये आई हूं कि, लोगों की सुनकर मुझे भय लग रहा है. आपकी सेविका ने विचार किया, ‘अब मुझे महाराज से यह कहना ही होगा. संभव है, महाराज अपनी सेविका की विनती पूरी करें. क्योंकि जब महाराज यह सुनेंगे, वही अपनी सेविका को उस व्यक्ति से सुरक्षा प्रदान करेंगे, जो मुझे और मेरे पुत्र को परमेश्वर के उत्तराधिकार से वंचित करने पर है.’ “आपकी सेविका ने यह भी विचार किया, ‘महाराज, मेरे स्वामी का आदेश ही मेरे मन को शांति दे सकता है, क्योंकि महाराज, मेरे स्वामी परमेश्वर के सदृश ही उचित-अनुचित भांप लेते हैं. याहवेह, आपके परमेश्वर आपके साथ रहें.’ ” यह सुन राजा ने उस स्त्री से कहा, “मुझसे कुछ न छिपाना; मैं तुमसे कुछ पूछने जा रहा हूं.” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “महाराज, मेरे स्वामी मुझसे प्रश्न करें.” राजा ने पूछा, “इन सारी बातों में क्या तुम्हारे साथ योआब शामिल है?” आपके जीवन की शपथ, “महाराज मेरे स्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर निरे सत्य के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता. वह योआब ही थे, जिन्होंने मुझे यह सब करने का आदेश दिया था; यह सारे वक्तव्य आपकी सेविका को उन्हीं ने सुझाया था. आपके सेवक योआब ने यह सब इसलिये किया है, कि इस समय घटित हो रही घटनाओं की दिशा परिवर्तित की जा सके. मगर मेरे स्वामी में परमेश्वर के स्वर्गदूत के समान ऐसी बुद्धि है कि पृथ्वी के सारे विषयों को समझा जा सके.” तब राजा ने योआब को आदेश दिया, “सुनो, मैंने तुम्हारा यह प्रस्ताव स्वीकार किया. जाओ, उस युवा अबशालोम को यहां ले आओ.” योआब ने भूमि पर दंडवत होकर राजा का अभिवादन किया और उनसे यह प्रतिवेदन किया, “आज आपके सेवक को यह मालूम हो गया है, कि मुझ पर आपकी दया बनी है, क्योंकि महाराज, मेरे स्वामी ने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार किया है.” तब योआब गेशूर के लिए चले गए और अबशालोम को येरूशलेम ले आए. राजा ने आदेश दिया, “सही होगा कि उसे उसी के घर में रहने दिया जाए; वह मेरी उपस्थिति में न आए.” इसलिये अबशालोम अपने घर चला गया, और राजा का चेहरा न देखा. सारे इस्राएल में सुंदरता में ऐसा कोई भी न था जो अबशालोम के समान प्रशंसनीय हो. सिर से लेकर पैरों तक उसमें कहीं भी कोई दोष न था. प्रति वर्ष जब उसके केश काटे जाते थे; क्योंकि उसके सिर के लिए वे बहुत भारी सिद्ध होते थे, तब राजा के तुलामान के अनुसार इन केशों का भार 200 शकेल14:26 200 शकेल लगभग 3.4 किलोग्राम होता था. अबशालोम के तीन पुत्र पैदा हुए और एक पुत्री, जिसका नाम था तामार. वह रूपवती स्त्री थी. अबशालोम को येरूशलेम में रहते हुए राजा की उपस्थिति में गए बिना दो साल बीत गए. तब अबशालोम ने योआब से विनती की कि उसे राजा की उपस्थिति में जाने दिया जाए, मगर योआब उससे भेंटकरने नहीं आए. तब अबशालोम ने अपने सेवकों को आदेश दिया, “जाओ, योआब के खेत में आग लगा दो. यह देख लेना कि योआब का खेत मेरे खेत से लगा हुआ है और इसमें जौ की उपज खड़ी हुई है.” अबशालोम के सेवकों ने जाकर उस खेत में आग लगा दी. इस पर योआब ने अबशालोम के घर पर जाकर उससे पूछा, “तुम्हारे सेवकों ने मेरे खेत में आग क्यों लगाई?” अबशालोम ने योआब को उत्तर दिया, “याद है, मैंने आपसे विनती की थी, ‘आप यहां आएं, कि मैं आपको राजा की उपस्थिति में इस विनती के साथ भेजूं, “क्या लाभ हुआ मेरे गेशूर से यहां आने का? मेरे लिए अच्छा यही होता कि मैं वहीं ठहरा रहता!” ’ अब तो मुझे राजा के दर्शन करने दीजिए. यदि मैं उनकी दृष्टि में अपराधी हूं, तो वही मुझे मृत्यु दंड दे दें.” तब योआब ने जाकर राजा को यह सब बताया. राजा ने अबशालोम को बुलवाया. अबशालोम ने राजा की उपस्थिति में जाकर भूमि पर गिरकर उनको नमस्कार किया और राजा ने अबशालोम का चुंबन लिया. अबशालोम का विद्रोह कुछ समय बाद अबशालोम ने अपने लिए एक रथ, कुछ घोड़े और इनके आगे-आगे दौड़ने के लिए पचास दौड़ने वाले जुटा लिए. अबशालोम सुबह जल्दी उठकर नगर फाटक के मार्ग पर खड़ा हो जाता था. जब कभी कोई व्यक्ति अपना विवाद लेकर राजा के सामने न्याय के उद्देश्य से आता था, अबशालोम उसे बुलाकर उससे पूछता था, “कहां से आ रहे हो?” उसे उत्तर प्राप्‍त होता था, “इस्राएल के एक वंश से.” तब अबशालोम उसे सलाह देता था, “देखो, तुम्हारी विनती पूरी तरह सटीक और सही है, मगर राजा द्वारा ऐसा कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया है, कि तुम्हारी विनती पर विचार किया जा सके.” अबशालोम आगे कहता था, “कितना अच्छा होता यदि मैं उस देश के लिए न्यायाध्यक्ष बना दिया जाता! तब हर एक व्यक्ति आकर मुझसे उचित न्याय प्राप्‍त कर सकता.” यदि कोई व्यक्ति आकर उसे नमस्कार करने आता था, वह हाथ बढ़ाकर उसे पकड़कर उसका चुंबन ले लिया करता था. अबशालोम की अब यही रीति हो गई थी, कि जो कोई न्याय के उद्देश्य से राजा के सामने जाने के लिए आता था, अबशालोम उसके साथ यही व्यवहार करता था. यह करके अबशालोम ने इस्राएल की जनता के हृदय जीत लिया. चार वर्ष पूरे होते-होते अबशालोम ने राजा से कहा, “कृपया मुझे हेब्रोन जाने की अनुमति दीजिए. मुझे वहां याहवेह से किए गए अपने संकल्प को पूरा करना है. अराम राष्ट्र के गेशूर में रहते हुए आपके सेवक ने यह संकल्प लिया था, ‘यदि याहवेह मुझे वास्तव में येरूशलेम लौटा ले आएंगे, मैं हेब्रोन में आकर याहवेह की वंदना करूंगा.’ ” राजा ने उसे उत्तर दिया, “शांतिपूर्वक जाओ.” तब अबशालोम तैयार होकर हेब्रोन के लिए चला गया. अबशालोम सारे इस्राएल में गुप्‍त रूप से इस संदेश के साथ दूत भेज चुका था, “जैसे ही तुम नरसिंगे की आवाज सुनो, यह घोषणा करना, ‘हेब्रोन में अबशालोम राजा है.’ ” येरूशलेम से अबशालोम के साथ दो सौ व्यक्ति भी हेब्रोन गए ये; आमंत्रित अतिथि थे. वे काफ़ी मासूमियत से गए थे; उन्हें कुछ भी मालूम न था कि क्या-क्या हो रहा था. अबशालोम ने बलि चढ़ाने के अवसर पर गिलोहवासी अहीतोफ़ेल को गिलोह नगर, जो उनके अपना नगर था, आने का न्योता दिया. अहीतोफ़ेल दावीद का मंत्री था. यहां अबशालोम के समर्थक की संख्या बढ़ती जा रही थी, जिससे राजा के विरुद्ध षड़्‍यंत्र मजबूत होता चला गया. येरूशलेम से दावीद का पलायन एक दूत ने आकर दावीद को यह सूचना दी, “इस्राएल के लोगों के दिल अबशालोम के साथ हो गया है.” यह मालूम होते ही दावीद ने येरूशलेम में अपने साथ के सभी सेवकों को आदेश दिया, “उठो! हमें यहां से भागना होगा, नहीं तो हम अबशालोम से बच न सकेंगे. हमें इसी क्षण निकलना होगा, कि हम घिर न जाएं और हम पर विनाश न आ पड़े और सारा नगर तलवार का आहार न हो जाए.” राजा के सेवकों ने उन्हें उत्तर दिया, “सच मानिए महाराज, हमारे स्वामी जो कुछ कहें वह करने के लिए आपके सेवक तैयार हैं.” तब राजा निकल पड़े और उनके साथ उनका सारा घर-परिवार भी; मगर दावीद ने अपनी दस उपपत्नियों को घर की देखभाल के उद्देश्य से वहीं छोड़ दीं. राजा अपने घर से निकल पड़े और उनके पीछे-पीछे सारे लोग भी. चलते हुए वे आखिरी घर तक पहुंचकर ठहर गए. उनके सारे अधिकारी उनके पास से निकलकर आगे बढ़ गए. ये सभी थे केरेथि, पेलेथी और छः सौ गाथवासी, जो उनके साथ गाथ नगर से आए हुए थे. ये सभी उनके सामने से होकर निकले. राजा ने गाथ नगरवासी इत्तई से कहा, “आप क्यों हमारे साथ हो लिए हैं? आप लौट जाइए, और अपने राजा का साथ दीजिए. वैसे भी आप विदेशी हैं, अपने स्वदेश से निकाले हुए. आप कल ही तो हमारे पास आए हैं. क्या मैं आपको अपने साथ भटकाने के लिए विवश करूं? मुझे तो यही मालूम नहीं मैं किधर जा रहा हूं? आप लौट जाइए, ले जाइए अपने भाइयों को अपने साथ. याहवेह तुम पर अपना अपार प्रेम और विश्वासयोग्यता बनाए रखें.” मगर इत्तई ने राजा को उत्तर दिया, “जीवित याहवेह की शपथ, जहां कहीं महाराज मेरे स्वामी होंगे, चाहे जीवन में अथवा मृत्यु में, आपका सेवक भी वहीं होगा.” तब दावीद ने इत्तई से कहा, “जैसी तुम्हारी इच्छा.” तब गाथवासी इत्तई इन सभी व्यक्तियों के साथ शामिल हो गए, इनमें बालक भी शामिल थे. जब यह समूह आगे बढ़ रहा था सारा देश ऊंची आवाज में रो रहा था. राजा ने किद्रोन नदी पार की, और वे सब बंजर भूमि की ओर बढ़ गए. अबीयाथर भी वहां आए और सादोक के साथ सारे लेवी लोग भी. ये अपने साथ परमेश्वर की वाचा का संदूक भी ले आए थे. उन्होंने वाचा के संदूक को उस समय तक भूमि पर रखे रहने दिया जब तक सभी लोग नगर से बाहर न निकल गए. इसके बाद राजा ने सादोक को आदेश दिया, “परमेश्वर की वाचा के संदूक को अब नगर लौटा ले जाओ. यदि याहवेह की कृपादृष्टि मुझ पर बनी रही, तो वह मुझे लौटा लाएंगे तब मैं इस संदूक और उनके निवास का दर्शन कर सकूंगा. मगर यदि याहवेह यह कहें, ‘तुममें मेरी कोई भी खुशी नहीं,’ तो मैं यही हूं कि वह मेरे साथ वहीं करे, जो उन्हें उचित जान पड़े.” तब राजा ने पुरोहित सादोक से कहा, “सुनिए, आप शांतिपूर्वक नगर लौट जाइए, अपने साथ अपने पुत्र अहीमाज़ को और अबीयाथर के पुत्र योनातन को ले जाइए. यह ध्यान में रहे: तुमसे सूचना प्राप्‍त होने तक मैं वन में ठहरूंगा.” अबीयाथर परमेश्वर का संदूक लेकर येरूशलेम लौट गए, और वे वहीं ठहरे रहे. दावीद ज़ैतून पर्वत की चढ़ाई चढ़ते चले गए वह चलते हुए रोते जा रहे थे. उनका सिर तो ढका हुआ था मगर पांव नंगे. उनके साथ चल रहे हर एक व्यक्ति ने भी अपना अपना सिर ढांक लिया था और वे भी रोते हुए चल रहे थे. इस अवसर पर किसी ने दावीद को यह सूचना दी. “अहीतोफ़ेल भी अबशालोम के षड़्यंत्रकारियों में शामिल है.” यह सुन दावीद ने प्रार्थना की, “याहवेह, आपसे मेरी प्रार्थना है, अहीतोफ़ेल की सलाह को मूर्खता में बदल दीजिए.” जब दावीद पर्वत की चोटी पर पहुंच रहे थे, जिस स्थान पर परमेश्वर की आराधना की जाती है, अर्की हुशाई उनसे भेंटकरने आ गया. उसका बाहरी वस्त्र फटे हुए थे और सिर पर धूल पड़ी हुई थी. दावीद ने उससे कहा, “सुनो, यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो मेरे लिए बोझ बन जाओगे. मगर यदि तुम लौटकर नगर चले जाओ और अबशालोम से कहो, ‘महाराज, मैं अब आपका सेवक हूं; ठीक जिस प्रकार पहले आपके पिता का सेवक था; अब आपका सेवक रहूं,’ तब तुम वहां मेरे पक्ष में अहीतोफ़ेल की युक्ति को विफल कर सकोगे. तुम्हारे साथ के पुरोहित सादोक और अबीयाथर भी तो वहीं हैं. राजमहल से तुम्हें जो कुछ मालूम होता है, तुम वह पुरोहित सादोक और अबीयाथर को सूचित कर सकते हो. याद है न, उनके दो पुत्र वहां उनके साथ हैं—अहीमाज़, सादोक का पुत्र और योनातन, अबीयाथर का पुत्र. तुम्हें वहां जो कुछ मालूम होता है, तुम इनके द्वारा भेज सकते हो.” तब दावीद के मित्र हुशाई नगर में आ गए. अबशालोम भी इस समय येरूशलेम आ चुका था. दावीद और ज़ीबा जब दावीद पर्वत की चोटी से कुछ आगे निकल गए, मेफ़िबोशेथ का सेवक ज़ीबा उनसे भेंटकरने आया. वह अपने साथ दो गधों पर दो सौ रोटियां, किशमिश के सौ गुच्छे, सौ गर्मियों के फल और अंगूरों के रस का एक बर्तन लादकर लाया था. राजा ने ज़ीबा से पूछा, “यह सब क्या ले आए हो तुम?” ज़ीबा ने उन्हें उत्तर दिया, “ये गधे तो आपके परिवार को उठाने के लिए हैं और रोटियां और गर्मियों के फल युवाओं के आहार के लिए, और अंगूरों का रस उनके पेय के लिए, जो इस वन में थक जायें.” दावीद ने ज़ीबा से आगे पूछा, “तुम्हारे स्वामी का पुत्र कहां है?” ज़ीबा ने राजा को उत्तर दिया, “वह येरूशलेम में ही हैं, क्योंकि वह कहते हैं, ‘आज इस्राएल मुझे मेरे पिता का साम्राज्य वापस कर देगा.’ ” यह सुन दावीद ने ज़ीबा से कहा, “सुनो, जो कुछ मेफ़िबोशेथ का है, वह अब तुम्हारा है.” “मेरे स्वामी, महाराज,” ज़ीबा ने कहा, “मैं आपका अभिवादन करता हूं. मुझ पर आपकी कृपादृष्टि सदैव बनी रहे.” शिमेई दावीद को शाप देता है जब राजा दावीद बहुरीम पहुंचे, वहां शाऊल का एक संबंधी उनके सामने आ गया, जिसका नाम था शिमेई, जो गेरा का पुत्र था. वह दावीद की ओर बढ़ता चला आ रहा था, और लगातार उन्हें शाप देता जा रहा था. वह दावीद पर और राजा दावीद के सारे साथियों पर पत्थर भी फेंकता जा रहा था, जबकि दावीद के सैन्य अधिकारी उनके दाएं और बाएं उन्हें घेरे हुए चल रहे थे. शिमेई इन शब्दों में उन्हें शाप दे रहा था, “निकल जा यहां से, लहू के प्यासे व्यक्ति! निकम्मे पुरुष! याहवेह ने शाऊल के परिवार में की गई सारी हत्याओं का बदला ले लिया है, जिनके स्थान पर तू सिंहासन पर जा बैठा था. देख ले, अब याहवेह ने यह राज्य तुझसे छीनकर तेरे पुत्र अबशालोम को दे दिया है. देख ले, तेरी बुराई तुझ पर ही आ पड़ी है, क्योंकि तू लहू का प्यासा व्यक्ति ही है!” ज़ेरुइयाह के पुत्र अबीशाई ने यह देख राजा से कहा, “मेरे स्वामी, महाराज को भला यह मरा हुआ कुत्ता शाप क्यों दे? मुझे आज्ञा दें कि मैं जाकर इसका सिर धड़ से अलग कर दूं.” मगर राजा ने उसे उत्तर दिया, “ज़ेरुइयाह के पुत्रों, तुममें और मुझमें कहीं कोई समानता नहीं है. यदि वह मुझे इसलिये शाप दे रहा है, कि उसे याहवेह ही ने यह आदेश दिया है, ‘शाप दो दावीद को,’ तब कौन है, जो उससे यह पूछेगा, ‘क्यों कर रहे हो ऐसा?’ ” तब दावीद ने अबीशाई और अपने सारे सेवकों को संबोधित करते हुए कहा, “देख रहे हो न, मेरा अपना पुत्र ही आज मेरे प्राणों का प्यासा हो गया है, तो फिर बिन्यामिन का वंशज और कितना अधिक न चाहेगा? मत रोको उसे! उसे शाप देने दो, क्योंकि उसे उसके लिए आदेश याहवेह से प्राप्‍त हुआ है. संभव है याहवेह मेरी पीड़ा पर दृष्टि करें और उसके द्वारा की जा रही शाप की बारिश का प्रतिफल मुझे मेरे कल्याण में दें.” तब दावीद और उनके साथी मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए, और शिमेई उनके समानांतर पहाड़ी के ढाल पर उनके साथ साथ चलता गया. चलते हुए वह शाप देता जा रहा था, उन पर पत्थर फेंकता जा रहा था, और साथ ही धूल भी उछालता जाता था. राजा, उनके सारे साथी यरदन नदी पर थके हुए पहुंचे. वहां दावीद में नई ताज़गी आ गई. अबशालोम का येरूशलेम प्रवेश और अहीतोफ़ेल का परामर्श अबशालोम और इस्राएली जनता येरूशलेम पहुंच गए. अहीतोफ़ेल उनके साथ ही थे. यह उस समय की घटना है, जब दावीद के मित्र अर्की हुशाई ने अबशालोम की उपस्थिति में पहुंचकर उससे कहा, “महाराज की लंबी आयु हो! महाराज की लंबी आयु हो!” अबशालोम ने हुशाई से पूछा, “क्या अपने मित्र के प्रति सच्चाई ऐसे ही दिखाई जाती है? क्यों नहीं गए आप अपने मित्र के साथ?” हुशाई ने अबशालोम को उत्तर दिया, “नहीं. मगर मैं तो उसी का होकर रहूंगा, जिसे याहवेह, जनसाधारण और सारे इस्राएल ने चुना है. मैं भी उसी का साथ दूंगा. यह भी समझ लीजिए: किसकी सेवा करना मेरे लिए सही है; क्या उनके ही पुत्र की नहीं? जिस प्रकार मैंने आपके पिता की सेवा की है, आपकी भी करूंगा.” इस पर अबशालोम ने अहीतोफ़ेल से कहा, “अब आप मुझे सलाह दीजिए, क्या होगा मेरा अगला कदम?” अहीतोफ़ेल ने अबशालोम को आदेश दिया, “जिन उपपत्नियों को तुम्हारे पिता गृह प्रबंधन के उद्देश्य से यहां छोड़ गए हैं, जाकर उनसे संबंध बनाओ. जब सारा इस्राएल इसके विषय में सुनेगा कि तुमने स्वयं को अपने पिता के लिए घृणित बना लिया है. इससे उन सभी को, जो तुम्हारे साथ है, जो तुम्हारे समर्थक हैं, बल मिलेगा.” तब इसके लिए राजमहल की छत पर एक तंबू खड़ा किया गया और अबशालोम ने सारे इस्राएल के देखते-देखते अपने पिता की उपपत्नियों से संबंध बनाया. उन दिनों में अहीतोफ़ेल द्वारा दी गई सलाह वैसी ही मानी जाती थी जैसा किसी ने परमेश्वर से प्रकाशन प्राप्‍त कर लिया है. दावीद और अबशालोम दोनों ही के लिए अहीतोफ़ेल की सलाह बहुत ही सम्मानीय होती थी. इसके अलावा अहीतोफ़ेल ने अबशालोम से यह भी कहा, “मुझे आज्ञा हो कि मैं सर्वोत्तम 12,000 सैनिक लेकर आज ही रात में दावीद का पीछा करूं. मैं उस पर ऐसी स्थिति में हमला करूंगा जब वह थका हुआ और निर्बल होगा. तब मैं उसे आतंकित कर दूंगा, जिससे उसके सारे साथी उसे छोड़कर भाग जाएंगे. मैं सिर्फ राजा पर वार करूंगा, और मैं बाकी सभी को उस रीति से लौटा लाऊंगा. जैसे वधू अपने पति के लिए लौट आती है. सभी का लौटकर यहां आ जाना सिर्फ उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, जिसे आप खोज रहे हैं. तभी जनसाधारण में शांति हो सकेगी.” अबशालोम और सारे इस्राएली पुरनियों को यह युक्ति सही लगी. तब अबशालोम ने आदेश दिया, “अर्की हुशाई को भी यहां बुलवाया जाए, कि हम इस विषय में उसका मत भी सुन लें.” जब हुशाई अबशालोम की उपस्थिति में आए, अबशालोम ने उन्हें अहीतोफ़ेल की योजना की जानकारी देते हुए उनसे पूछा, “अहीतोफ़ेल ने यह युक्ति सुझाई है, क्या इसके अनुसार करना सही होगा? यदि नहीं, तो आप अपनी योजना हमें बताएं.” यह सुन हुशाई ने अबशालोम से कहा, “इस स्थिति में अहीतोफ़ेल सही सलाह देने में चूक गए हैं. आगे हुशाई ने कहा, यह तो आपको मालूम ही है, कि आपके पिता और उनके साथी वीर योद्धा है. इस समय उनकी मन स्थिति ठीक वैसी है, जैसे मैदान में नन्हे शावकों के छीन जाने पर गुस्सैल रीछनी की होती है. वे अभी बहुत गुस्से में हैं. इसके अलावा आपके पिता युद्ध कौशल में बहुत निपुण हैं. यह हो ही नहीं सकता कि वह सेना के साथ रात बिताए. यह देख लेना कि इस समय वह किसी गुफा या किसी दूसरे ऐसे स्थान में जा छिपे हैं. जब प्रथम आक्रमण किया जाएगा और हमारे सैनिक मारे जाएंगे, तब जो कोई इसके विषय में सुनेगा, यही कहेगा, ‘अबशालोम के सैनिक इस आक्रमण में परास्त किए गए हैं.’ तब वह, अबशालोम के सैनिकों में जो वीर है, जो साहस में सिंह सदृश हृदय का है, पूरी तरह हतोत्साहित हो जाएगा; क्योंकि सारे इस्राएल में यह सबको मालूम है, कि आपके पिता शूर योद्धा हैं और उनके साथ के सैनिक कुशल योद्धा हैं. “इस समय आपके लिए मेरा परामर्श यह है कि आपके सामने दान से लेकर बेअरशेबा से सारे इस्राएल इकट्ठा किया जाए; ऐसे जनसमूह के रूप में, जैसे सागर तट के धूल के कण और आप स्वयं व्यक्तिगत रूप से युद्ध संचालन करें. तब हम उन्हें उस स्थान से खोज निकालेंगे, जहां वह छिपे हुए हैं. फिर हम उन पर ऐसे टूट पड़ेंगे जैसे ओस भूमि पर जा पड़ती है, उन पर और उनके सारे सैनिकों पर. हम एक को भी न छोड़ेंगे. यदि वह किसी नगर में जा छिपेगा, तब सारा इस्राएल रस्सियां लेकर उस नगर में पहुंच जाएगा, और हम उस नगर को घसीटकर घाटी में डाल देंगे, यहां तक कि वहां एक भी कंकड़ बाकी न रह जाएगा.” तब अबशालोम और इस्राएल के सभी पुरनिए यह कह उठे, “अर्की हुशाई का परामर्श अहीतोफ़ेल के परामर्श से श्रेष्ठतर है.” यह इसलिये कि याहवेह ने ही अहीतोफ़ेल के सुसंगत परामर्श को विफल कर देना निर्धारित कर रखा था, कि याहवेह अबशालोम पर विनाश वृष्टि कर दें. इसके बाद हुशाई ने पुरोहित सादोक और अबीयाथर को यह संदेश भेजा: “अहीतोफ़ेल ने अबशालोम और इस्राएली वृद्धों को यह परामर्श दिया था, और मैंने उन्हें यह परामर्श दे दिया है. अब शीघ्र, अति शीघ्र, दावीद को यह संदेश भेज दीजिए, ‘रात बंजर भूमि के घाट पर न बिताए, बल्कि पूरी शक्ति से प्रयास कर आप नदी के पार चले जाएं; अन्यथा महाराज और उनके सारे साथियों का विनाश होना निश्चित है.’ ” योनातन और अहीमाज़ एन-रोगेल नामक स्थान पर ठहरे हुए थे. एक दासी ठहराई गई थी कि वह जाकर उन्हें सूचित करे और तब वे जाकर यह सूचना राजा दावीद को भेजें; क्योंकि यह ज़रूरी थी कि वे नगर में प्रवेश करते हुए देखे न जाएं. फिर भी एक युवक ने उन्हें देख ही लिया और इसकी सूचना अबशालोम को दे दी. तब वे दोनों बिना देर किए, बहुरीम नामक स्थान पर एक व्यक्ति के घर पर जा पहुंचे, जिसके आंगन में एक कुंआ था. वे दोनों इस कुएं में जा छिपे. एक स्त्री ने कुएं पर वस्त्र बिछाकर उस पर अन्‍न फैला दिया, जिससे इन दोनों के विषय में किसी को कुछ भी मालूम न हो सका. तभी अबशालोम के सैनिक वहां आ पहुंचे और उस गृहणी से पूछताछ करने लगे, “कहां हैं अहीमाज़ और योनातन?” स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, “वे तो नदी के पार जा चुके हैं.” सैनिक उन्हें खोजते रहे और जब उन्हें न पा सके, वे येरूशलेम लौट गए. जब सैनिक वहां से चले गए, वे दोनों कुएं से बाहर आए, और जाकर राजा दावीद को सारा हाल सुना दिया. उन्होंने दावीद से कहा, “बिना देर किए उठिए, और नदी के पार चले जाइए, क्योंकि अहीतोफ़ेल ने आपके विरुद्ध यह साज़िश कर रखी है.” तब दावीद और उनके सारे साथी उठे, और यरदन नदी के पार चले गए. सुबह होते-होते, वहां ऐसा कोई भी न था जो यरदन नदी के पार न गया था. यहां जब अहीतोफ़ेल ने यह देखा कि उसकी सलाह को ठुकरा दिया गया है, उसने अपने गधे पर काठी कसी, और अपने गृहनगर में अपने घर को निकल पड़ा. उसने अपने परिवार को सुव्यवस्थित किया, उसके बाद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उसकी मृत्यु हो गई, और उसके शव को उसके पिता की कब्र में गाड़ दिया गया. अबशालोम की मृत्यु फिर दावीद माहानाईम पहुंचे. अबशालोम ने यरदन नदी पार की. उसके साथ सारे इस्राएली सैनिक थे. अबशालोम ने योआब के स्थान पर अमासा को सेना का अधिकारी बनाया था. अमासा ज़ेथर नामक इशमाएली व्यक्ति के पुत्र थे. ज़ेथर ने नाहाश की पुत्री अबीगइल, जो योओब की माता ज़ेरुइयाह की बहन थी, से विवाह किया था. इस्राएली सेना अबशालोम के साथ गिलआद क्षेत्र में छावनी डाली हुई थी. जब दावीद माहानाईम पहुंचे, अम्मोन वंशज रब्बाहवासी नाहाश के पुत्र शोबी, लो-देबारवासी अम्मिएल के पुत्र माखीर और रोगेलिम क्षेत्र से गिलआदवासी बारज़िल्लई दावीद और उनके साथियों के उपयोग के लिए अपने साथ बिछौने, चिलमचियां, मिट्टी के पात्र, गेहूं, जौ, मैदा, भुना गया अन्‍न, फल्लियां, दालें, मधु, दही, भेड़ें और भेड़ों के दूध से बनाया पनीर आदि ले आए. क्योंकि उन्होंने कहा, “बंजर भूमि में यात्रा कर रहे थे लोग अवश्य ही भूखे, प्यासे और थके होंगे.” दावीद ने अपने साथियों की गिनती की, और इसमें उन्होंने हज़ारों और सैकड़ों के ऊपर प्रधान बना दिए. तब उन्होंने सेना को तीन भागों में बांटकर एक तिहाई भाग योआब के नेतृत्व में, दूसरी तिहाई भाग ज़ेरुइयाह के पुत्र और योआब के भाई अबीशाई के नेतृत्व में और तीसरी तिहाई भाग गाथी इत्तई के नेतृत्व में भेज दिया. राजा ने सेना के सामने यह घोषित किया, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूंगा.” मगर सैनिकों ने विरोध किया, “नहीं, आपका हमारे साथ जाना सही नहीं है. यदि हमें भागना ही पड़ जाए, तो उन्हें तो हमारी कोई परवाह नहीं है. यदि हम आधे मार दिये जाए तो भी अबशालोम के सैनिक परवाह नहीं करेंगे. मगर आपका महत्व हम जैसे दस हज़ार के बराबर है. तब इस स्थिति में ठीक यही है कि आप नगर में रहते हुए ही हमारा समर्थन करें.” यह सुन राजा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं वही करूंगा जो तुम्हारी दृष्टि में सही है.” तब राजा नगर फाटक के पास खड़े हो गए और सारी सेना सौ-सौ और हज़ार के समान समूहों में उनके पास से निकलते चले गए. राजा ने योआब, अबीशाई और इत्तई को आदेश दिया, “मेरे हित का ध्यान रखते हुए इस युवा अबशालोम के साथ दया दिखाना.” राजा द्वारा अबशालोम के विषय में सारे प्रधानों को दिए गए इस आदेश को सारी सेना ने भी सुना. तब यह सेना इस्राएल से युद्ध करने मैदान में जा पहुंची, और यह युद्ध एफ्राईम के वन में छिड़ गया. दावीद के सैनिकों ने इस्राएल की सेना को हरा दिया. उस दिन की मार बहुत ही भयानक थी जिसमें 20,000 सैनिक मारे गये. यह युद्ध पूरे देश में फैल गया था. तलवार की अपेक्षा वन के घनत्व ने ही अधिकतर सैनिकों के प्राण ले लिए. संयोगवश, अबशालोम की भेंट दावीद के सैनिकों से हो गई. उस समय अबशालोम अपने खच्चर पर चढ़ा हुआ था. खच्चर एक विशालकाय बांज वृक्ष के नीचे से भागने लगा. परिणामस्वरूप, अबशालोम का सिर बांज वृक्ष की डालियों में मजबूती से जा फंसा. उसका खच्चर तो आगे बढ़ गया मगर वह स्वयं भूमि और आकाश के बीच लटका रह गया. किसी ने अबशालोम को इस स्थिति में देख लिया और जाकर योआब को इसकी सूचना दे दी, “सुनिए, मैंने अबशालोम को बांज वृक्ष से लटके हुए देखा है.” योआब ने उस व्यक्ति से कहा, “अच्छा! तुमने उसे सचमुच देखा है? तब तुमने उसे मारकर भूमि पर क्यों न गिरा दिया? इसके लिए मैं तुम्हें खुशी से दस चांदी के सिक्‍के और योद्धा का एक कमरबंध भी दे देता.” मगर उस व्यक्ति ने योआब को उत्तर दिया, “यदि मेरे हाथ पर हज़ार चांदी के सिक्‍के भी रख दिए जाते, मेरा हाथ राजकुमार पर नहीं उठ सकता था; क्योंकि स्वयं हमने राजा को आपको, अबीशाई को और इत्तई को यह आदेश देते हुए सुन रखा है, ‘मेरे हित का ध्यान रखते हुए उस युवा अबशालोम को सुरक्षित रखना.’ इसके अलावा यदि मैंने उसके प्राण लेकर राजा के प्रति विश्वासघात किया भी होता, तो आप तो मुझसे स्वयं को पूरी तरह अलग ही कर लेते, जबकि राजा से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता.” इस पर योआब ने कहा, “व्यर्थ है तुम्हारे साथ समय नष्ट करना.” उन्होंने तीन भाले लिए और बांज वृक्ष में लटके हुए जीवित अबशालोम के हृदय में भोंक दिए. उसके बाद दस सैनिकों ने, जो योआब के हथियार उठानेवाले थे, अबशालोम को घेरकर उस पर वार कर उसे घात कर दिया. यह होने के बाद योआब ने युद्ध समाप्‍ति की तुरही फूंकी, और सैनिक इस्राएल का पीछा करना छोड़ लौट आए, युद्ध समापन योआब का आदेश था. उन्होंने अबशालोम के शव को वन में एक गहरे गड्ढे में डालकर उसके ऊपर पत्थरों का बहुत विशाल ढेर लगा दिया. सभी इस्राएली सैनिक भाग गये, हर एक अपने-अपने तंबू में. जब अबशालोम जीवित ही था, उसने राजा की घाटी नामक स्थान पर अपने लिए एक स्मारक खंभा बनवा दिया था. उसका विचार था, “मेरे नाम की याद स्थायी रखने के लिए, क्योंकि मेरे कोई पुत्र नहीं है.” इस स्मारक स्तंभ को उसने अपना ही नाम दिया. आज तक यह अबशालोम स्मारक के नाम से जाना जाता है. अबशालोम की मृत्यु और दावीद यह सब होने पर सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने विचार किया, “मैं दौड़कर राजा को यह संदेश दूंगा कि याहवेह ने उन्हें उनके शत्रुओं के सामर्थ्य से छुड़ाया है.” मगर योआब ने उससे कहा, “आज तुम कोई भी संदेश नहीं ले जाओगे. तुम किसी दूसरे दिन संदेश ले जाना, लेकिन तुम्हें आज ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह राजकुमार की मृत्यु का समाचार है.” वहां कूश18:21 कूश नील नदी का ऊपरी क्षेत्र देश का एक निवासी था. योआब ने आदेश दिया, “तुमने जो कुछ देखा है, उसकी सूचना जाकर राजा को दे दो.” कूश देशवासी ने झुककर योआब का अभिवंदन किया और दौड़ पड़ा. सादोक के पुत्र अहीमाज़ ने योआब से दोबारा विनती की, “कुछ भी हो, मुझे भी उस कूश देश निवासी के पीछे जाने दीजिए.” योआब ने उससे पूछा, “मेरे पुत्र, तुम क्यों जाना चाह रहे हो? इस समाचार को प्रेषित करने का तुम्हें कोई पुरस्कार तो मिलेगा नहीं.” “कुछ भी हो,” उसने उत्तर दिया, “मैं तो जाऊंगा.” तब योआब ने उसे उत्तर दिया, “जाओ!” तब अहीमाज़ दौड़ पड़ा और मैदान में से दौड़ता हुआ उस कूश देश निवासी से आगे निकल गया. दावीद दो द्वारों के मध्य बैठे हुए थे. प्रहरी दीवार से चढ़कर द्वार पर बने छत पर पहुंच गया. जब उसने दृष्टि की तो उसे एक अकेला व्यक्ति दौड़ता हुआ नजर आया. प्रहरी ने पुकारते हुए राजा को इसकी सूचना दी. राजा ने उससे कहा, “यदि वह अकेला व्यक्ति है तो उसके मुख से आनंददायक संदेश ही सुना जाएगा.” वह व्यक्ति निकट-निकट आता गया. तब प्रहरी ने एक और व्यक्ति को दौड़ते हुए आते देखा. प्रहरी ने पुकारते हुए द्वारपाल को सूचित किया, “देखो, देखो, एक और व्यक्ति अकेला दौड़ा आ रहा है!” राजा कहने लगा, “वह भी आनंददायक संदेश ही ला रहा है.” प्रहरी ने उन्हें बताया, “मेरे विचार से प्रथम व्यक्ति के दौड़ने के ढंग से ऐसा लग रहा है कि वह सादोक का पुत्र अहीमाज़ है.” यह सुन राजा ने कहा, “वह एक अच्छा व्यक्ति है. वह अवश्य ही शुभ संदेश ला रहा है.” अहीमाज़ ने पुकारकर राजा से कहा, “सब कुछ कुशल है.” तब वह राजा के समक्ष भूमि पर दंडवत हो गया, उसने आगे कहा, “स्तुत्य हैं याहवेह, आपके परमेश्वर जिन्होंने महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं को पराजित कर दिया है!” राजा ने उससे पूछा, “क्या युवा अबशालोम सकुशल है?” अहीमाज़ ने उत्तर दिया, “जब योआब ने आपके सेवक को महाराज के लिए संदेश के साथ प्रेषित किया था, तब मैंने वहां बड़ी अव्यवस्था देखी, मगर मुझे यह ज्ञात नहीं कि वह सब क्या था.” तब राजा ने उसे आदेश दिया, “आकर यहां खड़े रहो.” तब वह जाकर वहां खड़ा हो गया. तब वह कूश देशवासी भी वहां आ पहुंचा. उसने सूचना दी, “महाराज, मेरे स्वामी के लिए खुशखबरी है! आज याहवेह ने आपको विद्रोहियों पर जयंत किया है.” यह सुनने के बाद राजा ने कूश देशवासी से प्रश्न किया, “युवा अबशालोम तो सकुशल है न?” कूशवासी ने उत्तर दिया, “महाराज मेरे स्वामी के शत्रुओं की और उन सभी की नियति, जो आपके हानि के कटिबद्ध हो जाते हैं, वही हो, जो उस युवा की हुई है.” भावना से अभिभूत राजा नगर द्वार के ऊपर बने हुए कक्ष में जाकर शोक करने लगे. जब वह वहां जा रहे थे, उनके द्वारा उच्चारे गए ये शब्द सुने गए, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र अबशालोम! उत्तम तो यह होता, तुम्हारे स्थान पर मेरी ही मृत्यु हो जाती, अबशालोम, मेरे पुत्र—मेरे पुत्र!” योआब को इसकी सूचना इस प्रकार दी गई, “अपने राजा रो-रोकर अबशालोम के लिए विलाप कर रहे हैं.” तब उस दिन विजय का हर्ष सारी सेना के लिए विलाप में बदल गया; क्योंकि सेना को यह बताया गया था, “महाराज अपने पुत्र के लिए रो रहे है.” उस दिन की जीत की खुशी गहरी उदासी में बदल गई थी. फलस्वरूप, सैनिक नगर में चुपके-चुपके ऐसे प्रवेश कर रहे थे, मानो वे लज्जित होकर युद्ध में शत्रु को पीठ दिखाकर भाग आए हों. राजा अपना मुखमंडल ढांप कर ऊंची आवाज में रो रहे थे, “मेरे पुत्र अबशालोम, मेरे पुत्र, मेरे पुत्र!” तब योआब ने उस कमरे में जाकर राजा से कहा, “आज आपने अपने उन सभी अधिकारियों का मुख लज्जा से झुका दिया है, जिन्होंने आपकी और आपके पुत्र-पुत्रियों, पत्नियों और उपपत्नियों के जीवन की रक्षा की है. आप उनसे तो प्रेम करते हैं, जिन्हें आपसे प्रेम नहीं, और उनसे घृणा करते हैं, जो आपसे प्रेम करते हैं. आज आपने यह साफ़ कर दिया है कि आपकी दृष्टि में न तो अधिकारियों का कोई महत्व है, न सैनिकों का. आज मुझे यह मालूम हो गया है कि आज यदि अबशालोम जीवित होता और हम सभी मृत, तो आपको अत्यंत हर्ष होता. अब ऐसा कीजिए: उठिए, बाहर आइए और अपने सैनिकों से सांत्वनापूर्ण शब्दों में बातें कीजिए, नहीं तो जीवित याहवेह की शपथ, यदि आप यह न करेंगे, एक भी सैनिक आज रात आपके साथ देखा न जाएगा. यह आपके लिए ऐसी किसी भी विपदा से कहीं अधिक सोचने लायक होगा, जो आपके बाल्यकाल से आज तक आप पर न आन पड़ी है.” तब राजा उठे और नगर द्वार पर जाकर बैठ गए, जब लोगों ने यह सुना, “सुनो, सुनो, राजा द्वार पर बैठे हुए है,” तो लोग राजा के निकट आने लगे. इस्राएली अपने-अपने घर भाग जा चुके थे. दावीद का येरूशलेम लौटना इस्राएल के सारे गोत्रों में इस समय इस विषय पर उग्र विवाद छिड़ा हुआ था, “राजा ही हमें हमारे शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करते आए हैं, वही हमें फिलिस्तीनियों से मुक्त करते आए हैं, अब वह अबशालोम के कारण देश छोड़कर भाग गए हैं. यहां हमने अबशालोम का राजाभिषेक किया और वह युद्ध में मारा गया. तब अब राजा को वापस लाने के बारे में कुछ क्यों नहीं किया जा रहा?” राजा दावीद ने पुरोहित सादोक और अबीयाथर के लिए यह संदेश भेजा: “आप यहूदिया के पुरनियों से इस विषय में विचार-विमर्श करें: ‘राजा को उसके आवास में लौटा लाने के विषय में आप सबसे पीछे क्यों हैं, जबकि सारे इस्राएल इस विषय में राजा तक अपने विचार भेज चुका है? आप मेरे रिश्तेदार हैं, आप में और मुझे में लहू-मांस का संबंध है. तब आप ही राजा की पुनःस्थापना में पीछे क्यों हैं?’ अमासा से कहिये, ‘क्या तुम मेरा लहू-मांस नहीं हो? यदि योआब के स्थान पर तुम आज से ही स्थायी रूप से मेरी सेना के सेनापति का पद ग्रहण न करो, तो मैं परमेश्वर के सामने दंड के योग्य रहूंगा.’ ” इस बात ने यहूदिया की जनता का हृदय एक सूत्र में बांध दिया; तब उन्होंने राजा के लिए यह संदेश भेजा, “आप और आपके सारे सेवक यहां लौट आएं.” तब राजा लौटकर यरदन नदी तक पहुंचे. तब यहूदियावासी गिलगाल नामक स्थान पर उनका स्वागत करते हुए प्रतीक्षा कर रहे थे, कि उन्हें यरदन नदी के पार ले आएं. बहुरीम नामक स्थान से बिन्यामिन के एक वंशज, गेरा के पुत्र शिमेई यहूदिया के व्यक्तियों को लेकर शीघ्रतापूर्वक राजा दावीद से भेंटकरने आ गए. उनके साथ बिन्यामिन वंश के हज़ार व्यक्ति भी थे. उसी समय शाऊल का गृह प्रबंधक ज़ीबा भी अपने पन्द्रह पुत्रों और बीस सेवकों के साथ, ढलान पर यरदन नदी की ओर दौड़ता हुआ राजा से भेंटकरने आया. उन्होंने राजा के परिवार को नदी पार करने में सहायता दी, और उनकी सुविधाओं के लिए प्रयास करते रहे. राजा नदी पार करने पर ही थे, कि गेरा का पुत्र शिमेई आकर राजा के चरणों में गिर पड़ा. उसने राजा से तेज आवाज में विनती की, “मेरे स्वामी, न तो मुझे दोषी ठहराएं और न ही मेरे उस गलत व्यवहार को याद रखें, जो मैंने मेरे स्वामी महाराज के येरूशलेम से जाने के अवसर में किया था. महाराज इसे अपने हृदय में न रखें. आपके सेवक को यह पता है, कि मैंने यह पाप किया है. इसलिये यह देखिए, आज मैं ही सारे योसेफ़ वंश में से पहला हूं, जो महाराज, मेरे स्वामी से भेंटकरने आया हूं.” ज़ेरुइयाह के पुत्र अबीशाई ने इसके लिए सुझाव दिया, “क्या सही नहीं कि जो कुछ शिमेई ने किया है, उसके लिए उसे मृत्यु दंड दिया जाए? उसने याहवेह के अभिषिक्त को शाप दिया था.” “तुम ज़ेरुइयाह के पुत्रो,” दावीद ने कहा, “क्या लेना देना है मेरा तुम्हारा? क्या कारण है तुम आज मेरे विपरीत ही जा रहे हो? क्या आज वह दिन है, जिसमें इस्राएल के किसी भी व्यक्ति को प्राण-दंड दिया जाना सही होगा? क्या मुझे यह मालूम नहीं कि मैं इस समय इस्राएल का राजा हूं?” तब शिमेई से उन्मुख हो राजा ने कहा, “तुम्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा.” इसके लिए राजा ने उससे शपथ खाई. शाऊल का पुत्र मेफ़िबोशेथ भी राजा से भेंटकरने आया. जिस दिन से राजा ने पलायन किया था, उस दिन से राजा के सुरक्षित लौटने तक उसने पैरों का ध्यान न रखा था, न अपनी दाढ़ी का प्रसाधन किया था, और न ही उसने धुले हुए कपड़े पहने थे. जब वह राजा से भेंटकरने येरूशलेम में आया, राजा ने उससे कहा, “मेफ़िबोशेथ, पलायन करते समय तुम मेरे साथ क्यों नहीं थे?” उसने उत्तर में कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, मेरे सेवक ने मेरे साथ छल किया. आपके सेवक ने उससे कह रखा था, ‘मैं अपने लिए गधे की काठी कसूंगा कि मैं उस पर चढ़कर राजा के निकट जा सकूं,’ क्योंकि मैं ठहरा अपंग. इसके अलावा उसने महाराज, मेरे स्वामी से आपके सेवक के विरुद्ध झूठा आरोप भी प्रसारित कर दी; मगर महाराज, मेरे स्वामी, आप परमेश्वर के स्वर्गदूत तुल्य हैं; आपको जो कुछ सही लगे, आप वही करें. महाराज मेरे स्वामी के सामने, मेरे पिता का वंश मृतकों के समान छोटा था, फिर भी आपने अपने सेवक को उनमें स्थान दिया, जो आपके साथ भोजन करने के लिए चुने गए थे. महाराज से इससे अधिक अपेक्षा करने का मेरा अधिकार ही नहीं रह जाता.” राजा ने उससे कहा, “अब ज्यादा बोलने से क्या लाभ? मैंने यह निश्चय किया है कि तुम्हारे और ज़ीबा के बीच संपत्ति को बांट दिया जाएगा.” मेफ़िबोशेथ ने राजा से कहा, “आप उसे संपूर्ण संपत्ति ही ले लेने दें. मेरे लिए यही काफ़ी है कि महाराज, मेरे स्वामी सुरक्षित लौट आए हैं.” रोगेलिम नामक स्थान से गिलआदवासी बारज़िल्लई भी आए हुए थे. वह राजा के साथ साथ यरदन नदी तक गए थे, कि उन्हें यरदन नदी पार उतार दें. बारज़िल्लई बहुत वृद्ध व्यक्ति थे, वह अस्सी वर्षीय थे. राजा के माहानाईम पड़ाव के अवसर पर उन्हीं ने राजा की सुरक्षा का प्रबंध किया था, क्योंकि वहां वह अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. राजा ने बारज़िल्लई से कहा, “आप मेरे साथ नदी पार कर चलिए. येरूशलेम में आप मेरे साथ रहेंगे, मैं आपको आश्रय दूंगा.” मगर बारज़िल्लई ने राजा को उत्तर दिया, “और कितने दिन बाकी हैं मेरे जीवन के, कि मैं महाराज के साथ येरूशलेम चलूं? इस समय मेरी आयु अस्सी वर्ष की है. क्या मुझमें अब यह बोध रह गया है कि सुखद क्या है, और क्या नहीं? क्या आपके सेवक में अब भोजन और पेय से संबंधित स्वाद बोध शेष रह गया है? अथवा क्या में अब भी स्त्री-पुरुष गायक-वृन्द की प्रस्तुति सुनने में समर्थ रह गया हूं? तब क्या लाभ है कि आपका सेवक महाराज मेरे स्वामी पर अतिरिक्त बोझ बनकर रहे? आपका सेवक महाराज के साथ मात्र यरदन नदी पार ही करेगा, पर क्या आवश्यकता है कि महाराज प्रतिफल में यह पुरस्कार दें. कृपा कर अपने सेवक को लौटने की अनुमति प्रदान करें, कि मेरा देहांत मेरे ही गृहनगर में, मेरी माता-पिता की कब्र के निकट ही हो. हां, यह किमहाम है, मेरा पुत्र, आपका सेवक. उसे ही आज्ञा दें कि वह महाराज मेरे स्वामी के साथ जाए, और आपकी उपयुक्त इच्छा पूर्ण करता रहे.” राजा ने सहमति प्रदान की: “किमहाम मेरे साथ अवश्य जाएगा, और मैं उसके लिए वही करूंगा, जो आपकी अभिलाषा है, साथ ही मैं आपके लिए भी वहीं करूंगा, जो मुझसे आपकी इच्छा है.” इसके बाद सभी यरदन नदी के पार चले गए, राजा ने भी नदी पार की. तब राजा ने बारज़िल्लई का चुंबन लेते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया. इसके बाद बारज़िल्लई अपने घर लौट गए. राजा गिलगाल की ओर बढ़ते गए. किमहाम राजा के साथ था. राजा के साथ यहूदिया की सभी सेना और इस्राएल की आधी सेना थी. तब इस्राएल के सभी व्यक्ति आकर राजा से कहने लगे, “ऐसा क्यों हुआ है कि हमारे भाई-बंधुओं, यहूदियावासियों ने चुपके-चुपके यरदन के उस पार जाकर, राजा और उनके परिवार को और उनके सारे साथियों को यहां ले आए है?” यहूदिया के सभी निवासियों ने इस्राएल के निवासियों को उत्तर दिया, “इसलिये, कि राजा हमारे निकट संबंधी हैं. इस पर क्रुद्ध होने का क्या कारण है? क्या हमने अपने भोजन के लिए राजा की धनराशि में से खर्च किया है? अथवा क्या उन्होंने हमें उपहार में कुछ दिया है?” यह सुन इस्राएलियों ने यहूदियावासियों को उत्तर दिया, “राजा में हमारे दस अंश निहित है. तब दावीद पर हमारा अधिकार तुमसे अधिक होता ही है. तब तुमने हमें तुच्छ क्यों समझा? क्या राजा को दोबारा प्रतिष्ठित करने का प्रस्ताव सबसे पहले हमारी ओर से ही नहीं आया था?” इसमें यहूदियावासियों के वचन इस्राएलियों के उद्गारों से अधिक प्रभावी रहे. शेबा का विद्रोह वहां बिन्यामिन वंश में से बिकरी नामक व्यक्ति का शीबा नामक निकम्मा पुत्र था. उसने तुरही फूंकने पर यह घोषणा की, “दावीद में हमारा कोई भाग नहीं है, और न यिशै के पुत्र में कोई पैतृक संपत्ति! सुनो इस्राएल, लौट जाओ अपनी छावनी में!” तब सभी इस्राएलियों ने दावीद का अनुसरण छोड़ दिया, और बिकरी के पुत्र शीबा का अनुसरण शुरू कर दिया; मगर यहूदियावासी यरदन नदी से येरूशलेम तक अपने राजा के साथ बने रहे. येरूशलेम पहुंचकर दावीद ने अपने राजमहल में प्रवेश किया. राजा ने उन दस स्त्रियों को, जो उनकी उपपत्नियां थी, जिन्हें वह राजमहल की देखरेख के उद्देश्य से वहां छोड़ गए थे, एक पहरेदार की सुरक्षा में छोड़ दिया, और उनके पालन पोषण का उचित प्रबंध कर दिया; मगर अब उनसे कोई यौन संबंध न रखा; वे मृत्यु होने तक विधवा समान इसी स्थिति में सीमित रह गई. तब राजा ने अमासा को आदेश दिया, “तीन दिन के भीतर यहूदिया मेरे सामने इकट्ठा करो, और तुम भी यहां रहना.” तब अमासा यहूदिया के सैनिकों को इकट्ठा करने निकल पड़ा, मगर उसे निर्धारित समय से अधिक देर हो गई. तब दावीद ने अबीशाई से कहा, “अब तो बिकरी का पुत्र शीबा अबशालोम की अपेक्षा हमारा कहीं अधिक नुकसान कर देगा. अपने स्वामी के सेवकों को लेकर उसका पीछा करो, कि वह गढ़ नगरों में प्रवेश न कर सके, और हमसे छिप जाए.” तब योआब के साथ उसका पीछा करने निकल पड़े उनके साथ केरेथि, पेलेथी और अन्य शूर व्यक्ति भी अबीशाई के अगुवाई में बिकरी के पुत्र शीबा का पीछा उन्होंने येरूशलेम से शुरू किया. जब वे गिबयोन के विशाल चट्टान के निकट आए, अमासा उनसे भेंट करने आ पहुंचा. इस समय योआब युद्ध के लिए तैयार थे. उनकी कमर में कमरबंध कसा हुआ था, उनकी जांघ पर म्यान में एक तलवार भी थी. जब वह आगे बढ़े, तलवार गिर पड़ी. योआब ने अमासा से कहा, “मेरे भाई, सब कुछ कुशल तो है?” योआब ने यह कहते अमासा का चुंबन लेने के उद्देश्य से दाएं हाथ से उसकी दाढ़ी पकड़ी. इस समय अमासा का ध्यान उस तलवार पर न था, जो योआब के हाथ में थी. योआब ने अमासा के पेट में तलवार से ऐसा वार किया, कि दूसरा वार किए बिना ही उसकी अंतड़ियां बाहर निकल भूमि पर आ गिरी, कि उसकी मृत्यु हो गई. तब योआब और उनके भाई अबीशाई ने बिकरी के पुत्र शीबा का पीछा किया. योआब के एक युवा सैनिक ने अमासा के निकट खड़े होकर घोषणा की, “जो कोई योआब के समर्थक हैं, जो कोई दावीद पक्ष में है, वह योआब का अनुसरण करे!” अमासा इस समय प्रमुख मार्ग पर अपने रक्त में लोट रहा था. जब इस व्यक्ति ने देखा कि उस मार्ग से आते जाते सभी यात्री उसे देख वहीं ठहर जाते हैं, उसने अमासा को मार्ग पर से हटाकर खेत में रख दिया और उसे एक वस्त्र से ढांक दिया. जब मार्ग पर से अमासा को हटा दिया गया, तब सभी सैनिक बिकरी के पुत्र शीबा का पीछा करने योआब के साथ हो लिए. जब शीबा इस्राएल राज्य के हर एक प्रदेश को पार करता हुआ बेथ-माकाह के आबेल पहुंचा, वहां सभी बिकरीवासी इकट्ठा होकर उसके पीछे-पीछे नगर में चले गए. योआब के सभी साथी सैनिक वहां आ गए, और शीबा को बेथ-माकाह के आबेल में घेरा डाल दिया. इसके लिए उन्होंने नगर की दीवार के किनारे मिट्टी का ढेर इकट्ठा कर दिया. इसके बाद उन्होंने दीवार को तोड़ना शुरू कर दिया. तब एक नगर में से एक चतुर स्त्री ने पुकारते हुए कहा, “सुनो! सुनो! जाकर योआब से यह कहना, यहां आइए, कि मैं आपसे बात कर सकूं.” तब योआब वहां आए और उस स्त्री ने उनसे पूछा, “क्या आप ही योआब हैं?” “हां, मैं हूं.” योआब ने उत्तर दिया. तब उस स्त्री ने उनसे कहा, “अपनी सेविका की सुन लीजिए.” योआब ने कहा, “मैं सुन रहा हूं.” तब उसने आगे कहा, “कुछ समय पहले यह कहा जाता था: ‘उन्हें यदि सलाह लेनी है’ तो सिर्फ आबेल ही से सलाह लो, इस प्रकार विवाद सुलझा लिया जाता था. हम उनमें से हैं, जो इस्राएल में शांति प्रिय और सच्चे माने जाते हैं. आप एक ऐसे नगर को नष्ट करने के लिए उठे हैं, जो इस्राएल की माता है. आप याहवेह की मीरास को क्यों निगलना चाहते हैं?” योआब ने उत्तर दिया, “मैं ऐसा कभी भी नहीं करूंगा कि यह नगर नष्ट किया जाए! स्थिति ऐसी नहीं है. मगर एफ्राईम के पहाड़ी क्षेत्र से बिकरी के शीबा नामक व्यक्ति ने राजा दावीद के विरुद्ध विद्रोह शुरू किया. बस, आप उसे हमें सौंप दें और मैं यहां से चला जाऊंगा.” उस स्त्री ने योआब को उत्तर दिया, “देखते रहिए, उसका सिर शहरपनाह से आपके सामने फेंका जाएगा.” तब वह स्त्री अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण युक्ति के साथ नगर के सारी भीड़ के सामने पहुंची. परिणाम यह हुआ कि लोगों ने बिकरी के पुत्र शीबा का सिर उड़ाकर योआब के सामने फेंक दिया. तब योआब ने नरसिंगा फूंका और वे उस नगर से विसर्जित होकर अपने-अपने घर को लौट गए जबकि योआब राजा के पास येरूशलेम लौट गए. दावीद के अधिकारी अब योआब इस्राएल की सारी सेना के प्रधान हो गए; केरेथियों और पेलेथियों के प्रधान यहोयादा के पुत्र बेनाइयाह थे; बेगार के मजदूरों के अधिकारी थे अदोरम; अहीलूद के पुत्र यहोशाफ़ात लेखापाल थे; शेवा सचिव थे; सादोक और अबीयाथर पुरोहित थे; और याईर वासी ईरा भी दावीद के पुरोहित थे. गिबियोनवासियों का बदला दावीद के शासनकाल में तीन साल का अकाल पड़ा; लगातार तीन वर्ष के लिए. दावीद ने याहवेह से इसका कारण जानने का प्रयास किया. याहवेह ने उन्हें उत्तर दिया, “शाऊल और उसके परिवार पर लहू का दोष है; उसने गिबियोनवासियों की हत्या की थी.” इसलिये राजा ने बातचीत के लिए गिबियोनवासियों को आमंत्रित किया. (एक सच यह था कि गिबियोनवासी इस्राएल के वंशज नहीं बल्कि अमोरियों के बचे हुए भाग थे. इस्राएलियों ने उन्हें सुरक्षा का वचन दे दिया था. शाऊल ने अपने उत्साह में भरकर इस्राएल और यहूदाह के वंशजों के हित में इन्हें समाप्‍त करने का प्रयास किया था.) दावीद ने गिबियोनवासियों से पूछा, “मैं आप लोगों के लिए क्या कर सकता हूं? मैं इसकी भरपाई किस प्रकार करूं कि आप लोग याहवेह की मीरास के प्रति आशीर्वाद ही दें?” यह सुन गिबियोनवासियों ने उत्तर दिया, “शाऊल के परिवार से हमें न तो स्वर्ण की अपेक्षा है, न चांदी की, न ही हमारी इच्छा यह है कि इस्राएल के किसी भी व्यक्ति की हत्या करें.” राजा ने उन्हें आश्वासन दिया, “मैं तुम्हारे लिए जो कुछ तुम चाहो, करने के लिए तैयार हूं.” यह सुन उन्होंने राजा से कहा, “जिस व्यक्ति ने हमारा जीवन नाश कर दिया, जिसने हमें मिटाने की युक्ति की कि हम इस्राएल देश की सीमा के भीतर देखे न जाएं, उसके वंशजों में से हमें सात पुरुष सौंपे जाएं कि हम उन्हें याहवेह के चुने हुए शाऊल के गिबिया में ले जाकर याहवेह के सामने प्राण-दंड दें.” राजा ने उनसे कहा, “ऐसा ही होगा.” मगर राजा ने याहवेह के सामने अपनी प्रतिज्ञा के कारण, शाऊल के पुत्र योनातन के पुत्र मेफ़िबोशेथ को सुरक्षा प्रदान की. मगर राजा ने इसके लिए अइयाह की पुत्री रिज़पाह के आरमोनी और मेफ़िबोशेथ नामक दो पुत्रों को, जो उसे शाऊल से पैदा हुए थे, और शाऊल की पुत्री मेरब के पांच पुत्रों को, जो उसे मेहोली बारज़िल्लई के पुत्र आद्रिएल से पैदा हुए थे, गिबियोनवासियों को सौंप दिए. इन्हें उन्होंने याहवेह के सामने उस पर्वत पर प्राण-दंड दिया. इससे उसी समय सातों की मृत्यु हो गई. यह प्राण-दंड कटनी के शुरुआती दिनों दिया गया था, जौ की कटनी के शुरुआत में. इस घटना के कारण अइयाह की पुत्री, रिज़पाह ने चट्टान पर अपने लिए मोटे कपड़े का आसरा बना लिया और वह इसमें कटनी के शुरुआती दिनों से बारिश होने तक रही. वह न तो दिन में पक्षियों को शवों के निकट आने देती थी न रात में जंगली पशुओं को. जब दावीद को अइयाह की पुत्री, शाऊल की उप-पत्नी रिज़पाह के इस काम की सूचना दी गई, तब दावीद ने शाऊल और योनातन की अस्थियां याबेश-गिलआद के लोगों से ले लीं. ये अस्थियां याबेश-गिलआदवासियों ने बेथ-शान के नगर चौक से चुरा ली थी. (फिलिस्तीनियों ने शाऊल की हत्या के बाद उसी दिन वहां टांग दिया था.) दावीद ने शाऊल और उनके पुत्र योनातन की अस्थियां ले जाकर उनकी अस्थियों के साथ इकट्ठा कर दीं, जो यहां टांगे गए थे. फिर उन्होंने बिन्यामिन के सेला नामक स्थान पर शाऊल और उनके पुत्र योनातन की अस्थियों को शाऊल के पिता कीश की कब्र में रख दिया. सभी कुछ राजा के आदेश के अनुसार किया गया. यह सब पूरा हो जाने पर परमेश्वर ने देश की दोहाई का उत्तर दिया. फिलिस्तीनियों के साथ युद्ध फिलिस्तीनियों और इस्राएलियों के बीच दोबारा युद्ध छिड़ गया. दावीद अपनी सेना लेकर गए, और उनसे युद्ध किया. युद्ध करते हुए दावीद थक गए. शत्रु सेना में इशबी बेनोब नामक दानवों21:16 दानवों मूल में राफ़ा के वंशज का एक वंशज था, जिसके भाले का तोल लगभग साढ़े तीन किलो था. उसने एक नई तलवार धारण की हुई थी. उसने दावीद की हत्या करने की साजिश की. मगर ज़ेरुइयाह का पुत्र अबीशाई दावीद की सहायता के लिए आ गया. उसने फिलिस्तीनी पर हमला किया और उसका वध कर दिया. दावीद के सैनिकों ने उनसे शपथ ली कि वह अब से युद्ध-भूमि में नहीं जाएंगे, कहीं ऐसा न हो कि इस्राएल वंश का दीप ही बुझ जाए. इसके बाद गोब नामक स्थान पर फिलिस्तीनियों से दोबारा युद्ध छिड़ गया. हुशाथी सिब्बेकाई ने साफ़ को मार गिराया. यह भी दानवों का वंशज था. एक बार फिर गोब नामक स्थान पर ही फिलिस्तीनियों से युद्ध छिड़ गया. बेथलेहेमवासी जारे-ओरेगीम के पुत्र एलहानन ने गाथवासी गोलियथ को मार गिराया. उसका भाला बुनकर की धरणी के समान विशाल था. उसके बाद गाथ में एक बार फिर युद्ध छिड़ गया. वहां एक बहुत ही विशाल डीलडौल का आदमी था, जिसके हाथों और पांवों में छः-छः उंगलियां थीं; पूरी चौबीस. वह भी दानवों के वंश का था. जब उसने इस्राएल को चुनौती देने शुरू किए, दावीद के भाई सिमअह के पुत्र योनातन ने उसको मार दिया. ये चारों गाथ नगर में दानवों का ही वंशज था. वे दावीद और उनके सेवकों द्वारा मार गिराए गए. दावीद-रचित आभार गान जब याहवेह ने दावीद को उनके शत्रुओं तथा शाऊल के आक्रमण से बचा लिया था, तब दावीद ने यह गीत याहवेह के सामने गाया: दावीद ने कहा: “याहवेह मेरी चट्टान, मेरा गढ़ और मेरे छुड़ानेवाले हैं. मेरे परमेश्वर, जिनमें मैं आसरा लेता हूं, मेरे लिए चट्टान हैं. वह मेरी ढाल और मेरे उद्धार का सींग हैं. वह मेरा गढ़, मेरी शरण और मेरा छुड़ाने वाला हैं, जो कष्टों से मेरी रक्षा करते हैं. “मैं दोहाई याहवेह की देता हूं, सिर्फ वही स्तुति के योग्य हैं, और मैं शत्रुओं से छुटकारा पा लेता हूं. मृत्यु की लहरों में घिर चुका था; मुझ पर विध्वंस की तेज धारा का वार हो रहा था. अधोलोक के तंतुओं ने मुझे उलझा लिया था; मैं मृत्यु के जाल के आमने-सामने आ गया था. “अपनी वेदना में मैंने याहवेह की दोहाई दी; मैंने अपने ही परमेश्वर को पुकारा. अपने मंदिर में उन्होंने मेरी आवाज सुन ली, उनके कानों में मेरा रोना जा पड़ा. पृथ्वी झूलकर कांपने लगी, आकाश की नींव थरथरा उठी; और कांपने लगी. क्योंकि वह क्रुद्ध थे. उनके नथुनों से धुआं उठ रहा था, उनके मुख की आग चट करती जा रही थी, उसने कोयलों को दहका रखा था. उन्होंने आकाशमंडल को झुकाया, और उतर आए; उनके पैरों के नीचे घना अंधकार था. वह करूब पर चढ़कर उड़ गए; वह हवा के पंखों पर चढ़कर उड़ गये! उन्होंने अंधकार ओढ़ लिया, वह उनका छाता बन गया, घने-काले वर्षा के मेघ में घिरे हुए. उनके सामने के तेज से कोयलों में आग जल गई. स्वर्ग से याहवेह ने गर्जन की, और परम प्रधान ने अपने शब्द सुनाए. उन्होंने बाण छोड़े, और उन्हें बिखरा दिया. बिजलियों ने उनके पैर उखाड़ दिए. याहवेह की प्रताड़ना से, नथुनों से उनके सांस के झोंके से, सागर के जलमार्ग दिखाई देने लगे; संसार की नीवें खुल गई. “उन्होंने स्वर्ग से हाथ बढ़ा मुझे थाम लिया; प्रबल जल प्रवाह से उन्होंने मुझे बाहर निकाल लिया. उन्होंने मुझे मेरे प्रबल शत्रु से मुक्त किया, उनसे, जिन्हें मुझसे घृणा थी. वे मुझसे कहीं अधिक शक्तिमान थे. संकट के दिन उन्होंने मुझ पर आक्रमण कर दिया था, किंतु मेरी सहायता याहवेह में मगन थी. वह मुझे खुले स्थान पर ले आए; मुझसे अपनी प्रसन्‍नता के कारण उन्होंने मुझे छुड़ाया है. “मेरी भलाई के अनुसार ही याहवेह ने मुझे प्रतिफल दिया है; मेरे हाथों की स्वच्छता के अनुसार उन्होंने मुझे ईनाम दिया है. मैं याहवेह की नीतियों का पालन करता रहा हूं; मैंने परमेश्वर के विरुद्ध कोई दुराचार नहीं किया है. उनके सारे नियम मेरे सामने बने रहे; उनके नियमों से मैं कभी भी विचलित नहीं हुआ. मैं उनके सामने निर्दोष बना रहा. दोष भाव मुझसे दूर ही दूर रहा. इसलिये याहवेह ने मुझे मेरी भलाई के अनुसार ही प्रतिफल दिया है, उनकी नज़रों में मेरी शुद्धता के अनुसार. “सच्चे लोगों के प्रति आप स्वयं विश्वासयोग्य साबित होते हैं, निर्दोष व्यक्ति पर आप स्वयं को निर्दोष ही प्रकट करते हैं, वह, जो निर्मल है, उस पर अपनी निर्मलता प्रकट करते हैं, कुटिल व्यक्ति पर आप अपनी चतुरता प्रगट करते हैं. विनम्र व्यक्ति को आप छुटकारा प्रदान करते हैं, मगर आपकी दृष्टि घमंडियों पर लगी रहती है, कि कब उसे नीचा किया जाए. याहवेह, आप मेरे दीपक हैं; याहवेह मेरे अंधकार को ज्योतिर्मय कर देते हैं. जब आप मेरी ओर हैं, तो मैं सेना से टक्कर ले सकता हूं; मेरे परमेश्वर के कारण मैं दीवार तक फांद सकता हूं. “यह वह परमेश्वर हैं, जिनकी नीतियां खरी हैं: ताया हुआ है याहवेह का वचन; अपने सभी शरणागतों के लिए वह ढाल बन जाते हैं. क्योंकि याहवेह के अलावा कोई परमेश्वर है? और हमारे परमेश्वर के अलावा कोई चट्टान है? वही परमेश्वर मेरे मजबूत आसरा हैं; वह निर्दोष व्यक्ति को अपने मार्ग पर चलाते हैं. उन्हीं ने मेरे पांवों को हिरण के पांवों के समान बना दिया है; ऊंचे स्थानों पर वह मुझे सुरक्षा देते हैं. वह मेरे हाथों को युद्ध की क्षमता प्रदान करते हैं; कि अब मेरी बांहें कांसे के धनुष तक को इस्तेमाल कर लेती हैं. आपने मुझे छुटकारे की ढाल दी है; आपकी सहायता ने मुझे विशिष्ट पद दिया है. मेरे पांवों के लिए आपने चौड़ा रास्ता दिया है, इसमें मेरे पगों के लिए कोई फिसलन नहीं है. “मैंने अपने शत्रुओं का पीछा कर उन्हें नाश कर दिया है; जब तक वे पूरी तरह नाश न हो गए, मैं लौटकर नहीं आया. मैंने उन्हें ऐसा पूरी तरह कुचल दिया कि वे पुनः सिर न उठा सकें; वे तो मेरे पैरों में आ गिरे. शक्ति से आपने मुझे युद्ध के लिए सशस्त्र बना दिया; आपने उन्हें, जो मेरे विरुद्ध उठ खड़े हुए थे, मेरे सामने झुका दिया. आपने मेरे शत्रुओं को पीठ दिखाकर भागने पर विवश कर दिया, जो मेरे विरोधी थे. मैंने उन्हें नष्ट कर दिया. वे आशा ज़रूर करते रहे, मगर उनकी रक्षा के लिए कोई भी न आया. यहां तक कि उन्होंने याहवेह की भी दोहाई दी, मगर उन्होंने भी उन्हें उत्तर न दिया. मैंने उन्हें पीसकर भूमि की धूल के समान बना दिया; मैंने उन्हें कुचल दिया, मैंने उन्हें गली के कीचड़ के समान रौंद डाला. “आपने मुझे सजातियों के द्वारा उठाए कलह से छुटकारा दिया है; आपने मुझे सारे राष्ट्रों पर सबसे ऊपर बनाए रखा; अब वे लोग मेरी सेवा कर रहे हैं, जिनसे मैं पूरी तरह अपरिचित हूं. विदेशी मेरे सामने झुकते आए; जैसे ही उन्हें मेरे विषय में मालूम होते ही वे मेरे प्रति आज्ञाकारी हो गए. विदेशियों का मनोबल जाता रहा; वे कांपते हुए अपने गढ़ों से बाहर आ गए. “जीवित हैं याहवेह! धन्य हैं मेरी चट्टान! मेरे छुटकारे की चट्टान, मेरे परमेश्वर प्रतिष्ठित हों! परमेश्वर, जिन्होंने मुझे प्रतिफल दिया मेरा बदला लिया, और जनताओं को मेरे अधीन कर दिया, जो मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करते हैं. आपने मुझे मेरे शत्रुओं के ऊपर ऊंचा किया है; आपने हिंसक पुरुषों से मेरी रक्षा की है. इसलिये, याहवेह, मैं राष्ट्रों के सामने आपकी स्तुति करूंगा; आपके नाम का गुणगान करूंगा. “अपने राजा के लिए वही हैं छुटकारे का खंभा; अपने अभिषिक्त पर, दावीद और उनके वंशजों पर, वह हमेशा अपार प्रेम प्रकट करते रहते हैं.” दावीद द्वारा मुखरित अंतिम उद्गार यह दावीद द्वारा भेजा उनका आखिरी वचन है: “यिशै के पुत्र दावीद की यह घोषणा है, वह व्यक्ति, जो परमेश्वर द्वारा उन्‍नत किया गया, वह घोषणा कर रहा है, याकोब के परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त, इस्राएल का लोकप्रिय, मधुर संगीतकार: “याहवेह के आत्मा मेरे द्वारा बातें करते रहे हैं. उनका संदेश मेरी जीभ पर रहता था. इस्राएल के परमेश्वर ने, इस्राएल की चट्टान ने मुझसे कहा, ‘वह, जो मनुष्यों पर न्याय के साथ शासन करता है, परमेश्वर की श्रद्धा में शासन करता है, वह सुबह की आभा के समान है, जब सूर्योदय हो रहा होता है, ऐसी सुबह, जो बादलों से छाई हुई, जब भूमि से बारिश के बाद कोमल घास सूर्य प्रकाश में भूमि से अंकुरित होने लगती है.’ “क्या यह तथ्य नहीं, कि मेरे वंश के विषय में परमेश्वर की यही मान्यता है? क्योंकि उन्होंने मुझसे सदा की वाचा स्थापित की है, हर एक पक्ष में सुव्यवस्थित और सुरक्षित. क्या वह मेरे उद्धार और अभिलाषा को उन्‍नत न करेंगे? निकम्मे व्यक्ति फेंक दी गई कंटीली झाड़ियों के समान हैं, उन्हें हाथों से इकट्ठा नहीं किया जा सकता; जो व्यक्ति इन्हें इकट्ठा करने का काम करता है, वह लोहे के दंड और भाले की छड़ को लेकर आता है; तब उन्हें आग में भस्म किया जा सकता है.” दावीद के शूर योद्धा दावीद द्वारा सेना में शामिल वीर योद्धाओं के नाम: तहकेमोनवासी योशेब-बश्शेबेथ; वह तीन सेनापतियों में प्रमुख था. उसने अपने भाले से एक ही समय में आठ सौ शत्रुओं का संहार किया था. इन तीन शूरवीरों में दूसरा पद था अहोही के पुत्र दोदो के पुत्र एलिएज़र का. वही उस समय दावीद के साथ था, जब वे युद्ध के लिए मोर्चा बांधे फिलिस्तीनियों की ओर बेधड़क आगे बढ़ते गए, जबकि इस्राएली सेना पीछे हट चुकी थी. आगे बढ़कर उसने फिलिस्तीनियों का संहार करना शुरू कर दिया, जब तक उसके हाथ थक न गए. उसका हाथ मानो तलवार से चिपक गया था. उस दिन याहवेह द्वारा प्रदान की गई विजय अद्भुत थी. इसके बाद सैनिक वहां आए अवश्य, मगर सिर्फ मृतकों की सामग्री लूटने. इसके बाद नामित है हरारी अगी का पुत्र शम्माह. फिलिस्ती सेना लेही नामक स्थल पर मोर्चा बांधे एकत्र थी. वहां मतूर का खेत था. लोग फिलिस्तीनियों से डरकर भाग रहे थे. उसने खेत के बीच में रहते हुए उनका सामना किया, उस खेत की रक्षा करते रहे, और फिलिस्तीनियों को मार गिराया. याहवेह ने बड़ी जीत के द्वारा उनकी रक्षा की. कटनी के अवसर पर चट्टान में अदुल्लाम गुफा में तीस प्रमुख अधिकारियों में से तीन दावीद से भेंटकरने गए. इस समय, रेफाइम की फिलिस्तीनी सेना घाटी में शिविर डाले हुए थे. इस समय दावीद गढ़ में थे, और फिलिस्तीनी सेना बेथलेहेम में. बड़ी इच्छा से दावीद कह उठे, “कैसा सुखद होता अगर कोई बेथलेहेम फाटक के पास के कुएं से मुझे पीने के लिए पानी ला देता!” यह सुन ये तीन वीर योद्धा फिलिस्तीनियों के शिविर में से बचते-बचाते जाकर उस कुएं से, जो बेथलेहेम के द्वार के निकट था, दावीद के लिए जल ले आए. मगर दावीद ने वह जल पिया नहीं, उन्होंने उसे याहवेह के सामने उंडेल दिया. उन्होंने कहा, “याहवेह, मुझसे यह काम कभी न हो. क्या, यह जल इन वीरों का लहू समान नहीं, जो अपने प्राण जोखिम में डाल मेरे लिए यह लाए हैं?” इसलिये दावीद ने वह जल नहीं पिया. ऐसे साहसिक थे इन वीरों के कार्य. ज़ेरुइयाह का पुत्र, योआब का भाई अबीशाई तीस सैनिकों पर अधिकारी था. उसने तीन सौ पर अपनी बर्छी घुमाई और उनको मार गिराया. उसने भी उन तीनों के समान प्रतिष्ठा प्राप्‍त की. तीसों में वही सबसे अधिक प्रख्यात था. वह उनका प्रधान बन गया, मगर वह उन तीनों में से एक न था. कबज़ीएल के एक वीर के पोते, यहोयादा के पुत्र, बेनाइयाह ने बड़े-बड़े काम किए थे, उसने मोआब के अरीएल के दो पुत्रों को मार गिराया. उसने ही उस दिन, जब बर्फ गिर रही थी, जाकर एक गड्ढे में बैठे सिंह का वध किया था. उसने एक बड़ा सा मिस्री का भी वध किया. उस मिस्री के हाथ में भाला अवश्य था मगर बेनाइयाह ने जाकर अपनी छड़ी से उसके भाले को उससे छीन लिया और उस मिस्र का वध उसी के भाले के कर दिया. यहोयादा के पुत्र बेनाइयाह ने ये सारे काम किए, और उन तीन वीरों के समान प्रतिष्ठा प्राप्‍त की. वह उन तीसों में ही प्रख्यात हुआ, मगर उन तीन के तुल्य नहीं. दावीद ने उसे अपने अंगरक्षक का अधिकारी नियुक्त कर दिया. तीस योद्धाओं के समूह में अन्य व्यक्ति ये थे: योआब का भाई आसाहेल, बेथलेहेम के दोदो का पुत्र एलहानन, हेरोदी शम्माह, हेरोदी एलीका, पेलेथी हेलेस, तकोआ निवासी इक्‍केश का पुत्र ईरा, अनाथोथी अबीएज़ेर, हुशाथी मबुन्‍ने, अहोही सलमोन, नेतोफ़ाही माहाराई, नेतोफ़ाही के बाअनाह का पुत्र हेलेब, गिबियाह के बिन्यामिन परिवार समूह रिबाई का पुत्र इथाई, पिराथोनी बेनाइयाह, गाश के नालों का हिद्दै, अरबाथवासी अबीअल्बोन, बहूरीमी अज़मावेथ, शालबोनी एलीअहाब, याशेन के पुत्र; योनातन हरारी शम्माह का पुत्र, अरारी शारार का अहीयम, माकाहथि का अहसबै का पुत्र एलिफेलेत, गीलोई अहीतोफ़ेल का पुत्र एलियाम, कर्मेली हेस्रो, अराबी पारै, ज़ोबाह के नाथान का पुत्र यिगाल; गादी बानी;23:36 कुछ पाण्डुलिपियों में हागरी का बेटा (देखें 1 इति 11:38) अम्मोनवासी सेलेक, बीरोथवासी नाहाराई, जो ज़ेरुइयाह के पुत्र योआब का हथियार उठानेवाला था; इथरी ईरा इथरी गारेब; और हित्ती उरियाह. सब मिलाकर ये सैंतीस थे. दावीद जनगणना कराता है इस्राएल के विरुद्ध याहवेह का क्रोध एक बार फिर भड़क उठा. उन्होंने दावीद को ही इस्राएल के विरुद्ध कर दिया. उन्होंने दावीद को उकसाया, “इस्राएल और यहूदिया की गिनती करो.” तब राजा ने सेना के आदेशक योआब और उनके सहयोगियों को आदेश दिया, “दान से लेकर बेअरशेबा तक जाकर इस्राएल के सारे गोत्रों की जनगणना करो, कि मुझे जनसंख्या का पता चल सके.” मगर योआब ने राजा से कहा, “जब तक आपकी आंखों में ज्योति है, याहवेह आपके परमेश्वर वर्तमान जनसंख्या की सौ गुणा वृद्धि करें, मगर महाराज, मेरे स्वामी, ऐसा करना क्यों चाह रहे हैं?” मगर राजा के आदेश के आगे योआब और अन्य प्रधानों का तर्क विफल ही रहा. तब योआब और सेना के प्रधान संसद भवन से निकलकर इस्राएल की जनगणना के लिए चल पड़े. उन्होंने यरदन नदी पार कर अरोअर नामक स्थान पर शिविर डाले. यह स्थान याज़र की ओर, गाद की तराई के बीच में है. इसके बाद वे गिलआद आ गए, और हित्तियों के क्षेत्र के कादेश में तब वे दान यअन पहुंचे. दान यअन के बाद वे सीदोन के निकट जा पहुंचे. फिर वे सोर के गढ़ पहुंचे, जहां से उन्होंने हिव्वियों और कनानियों के सभी नगरों में गिनती पूरी की. इसके बाद वे बेअरशेबा में यहूदिया के नेगेव पहुंचे. जब वे संपूर्ण देश में गिनती का काम पूरा कर चुके, वे येरूशलेम आ गए. अब तक नौ महीने और बीस दिन पूरे हो चुके थे. योआब ने राजा के सामने राज्य की जनगणना का लेखा प्रस्तुत किया: इस्राएल में आठ लाख वीर योद्धा थे, और यहूदिया में पांच लाख, जिनमें तलवार के कौशल की क्षमता थी. जनगणना के परिणाम स्पष्ट होते ही दावीद का मन उन्हें कचोटने लगा. सुबह जागने पर दावीद ने याहवेह से कहा, “यह करके मैंने घोर पाप किया है. मगर याहवेह, अपने सेवक का अपराध दूर कर दीजिए, क्योंकि यह मेरी बड़ी मूर्खता थी.” सुबह जागने पर दावीद को याहवेह का यह संदेश भविष्यद्वक्ता गाद को भेज दिया गया. वह दावीद के लिए नियुक्त दर्शी थे: “जाओ और दावीद से यह कहो, ‘याहवेह का यह संदेश है, मैं तुम्हारे सामने तीन विकल्प प्रस्तुत कर रहा हूं. इनमें से तुम एक चुन लो, कि मैं उसे तुम पर इस्तेमाल कर सकूं.’ ” तब गाद दावीद के सामने आए और उनसे यह कहा, “क्या तुम्हारे देश में तीन वर्ष के लिए अकाल भेजा जाए? या तुम तीन महीने तक उन शत्रुओं से बचकर भागते रहो, जो तुम्हारा पीछा कर रहे थे? या क्या देश में तीन दिन की महामारी हो? अब विचार करके निर्णय करो कि मैं अपने भेजनेवाले को उत्तर दे सकूं.” तब दावीद ने गाद को उत्तर दिया, “मैं बड़ी मुसीबत में हूं. हमें याहवेह के हाथ से दिया गया दंड ही सहने दीजिए, क्योंकि अपार है उनकी कृपा. मुझे किसी मनुष्य के हाथ में न पड़ने दें.” तब याहवेह ने उस समय से तय अवधि तक के लिए इस्राएल देश पर महामारी भेज दी. दान से बेअरशेबा तक 70,000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई. जब विनाशक स्वर्गदूत ने येरूशलेम को ध्वस्त करने के उद्देश्य से उसकी ओर हाथ बढ़ाया, याहवेह ने विनाश का विचार त्याग दिया. उन्होंने उस स्वर्गदूत को, जो मनुष्यों को मार रहा था, कहा, “बस करो अब! अपना हाथ रोक दो!” इस समय स्वर्गदूत यबूसी औरनन के खलिहान के निकट था. जब दावीद ने मनुष्यों का संहार कर रहे स्वर्गदूत को देखा, उन्होंने याहवेह को संबोधित कर कहा, “पाप सिर्फ मैंने किया है. सिर्फ मैं ही हूं अपराधी; मगर ये भेड़ें; क्या दोष है उनका? आपका यह दंड देता हुआ हाथ मुझ पर और मेरे पिता के परिवार के विरुद्ध उठने दीजिए.” दावीद वेदी बनाता है तब गाद उसी दिन दावीद के पास पहुंचे और उन्हें आदेश दिया, “यबूसी औरनन के खलिहान में जाकर याहवेह के लिए वेदी बनाओ.” दावीद ने गाद का आदेश पालन कर वैसा ही किया, जैसा याहवेह ने उन्हें आदेश दिया था. जब औरनन ने दृष्टि की, तो यह देखा कि राजा और उनके सेवक उसी की ओर बढ़ते चले आ रहे थे. औरनन ने जाकर दंडवत हो उनको नमस्कार किया. औरनन ने विनती की, “क्या कारण है कि महाराज, मेरे स्वामी को इस सेवक के यहां आने की आवश्यकता हुई है?” दावीद ने उत्तर दिया, “तुमसे खलिहान खरीदने, कि मैं याहवेह के लिये वेदी बना सकूं. तब बीमारी रुक जायेगी.” यह सुन औरनन ने दावीद से कहा, “महाराज, मेरे स्वामी को जो कुछ सही लगे, ले लें और भेंट चढ़ा दें. अग्निबलि के लिए ये बैल हैं, और बलि के लिए आवश्यक लकड़ी के लिए भूसी निकालने के ये हथियार और जूआ प्रस्तुत हैं. महाराज, यह सब औरनन महाराज को भेंट में प्रस्तुत कर रहा है.” औरनन ने राजा से यह भी कहा, “याहवेह, आपके परमेश्वर, आपको स्वीकार करें.” मगर राजा ने औरनन को उत्तर दिया, “नहीं, मैं तुम्हें इनका मूल्य देकर ही इन्हें स्वीकार करूंगा. मैं, याहवेह मेरे परमेश्वर को ऐसी भेंट नहीं चढ़ा सकता, जिसका मैंने मूल्य नहीं चुका दिया है.” दावीद ने चांदी के पचास मुद्राएं देकर खलिहान और बैल मोल ले लिए. दावीद ने वहां याहवेह के निमित्त वेदी बनाई और उस पर अग्निबलि और मेल बलियां चढ़ाईं. तब याहवेह ने देश के लिए इस प्रार्थना को स्वीकार किया जिससे इस्राएल देश से महामारी जाती रही.